कुछ पाना , कुछ खोना – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

    “ध्रुव, उठ जाओ बेटा, वरना बहुत देर हो जाएगी”, आनंद ने बेटे का कंबल हटाते हुए कहा।

“ ओह पापा, बस थोड़ी देर और, बहुत नींद आ रही है” ध्रुव ने मचलते हुए कहा।

  नहीं , अब और नहीं, और आनंद ने उसे उठाकर बिठाते हुए कहा।पहले ही पांच बजकर दस मिंट हो गए है। पास में ही लेटी हुई दिया का मन किया कि पति को रोक कर कहे कि सोने दो बच्चे को, सिरफ दस साल का ही तो है, इतनी सुबह सुबह क्यों उठा रहे हो।

     लेकिन हिम्मत नहीं हुई , क्योंकि उसे पता था कि आनंद किसी की सुनने वाला नहीं। ध्रुव चुपचाप उठ कर तैयार हुआ और दोनों बाप, बेटा निकल गए सैर और दौड़ लगाने के लिए। छः बजे आकर थोड़ा आराम किया और स्कूल के लिए तैयारी, नाशता वगैरह सब हुआ। 

     दोनों के जाने के बाद  दिया घर का काम निपटाने में लग गई, रोज की तरह मेड माया भी काम पर लगी हुई थी। रात को ध्रुव का पिज्जा खाने का मन था लेकिन दिया जानती थी कि बाहर का खाना हफ्ते में सिरफ एक दिन ही आ सकता है, क्योंकि आनंद को बाहर का खाना बिल्कुल पंसद नहीं था।

      हां, महीने में एक बार तीनों  बाहर जाते थे, घूमना, फिरना, खाना पीना , लेकिन किसी अच्छे होटल में। 

    बच्चे का मन रखने के लिए हफ्तें में एक बार पिज्जा, बर्गर, नूडल्स , मोमोज वगैरह मंगवाए जाते, वैसे आंनद को तो ये भी पंसद नहीं था, परतुं चलो ध्रुव की इच्छा का ध्यान रखना भी जरूरी था। 

       वैसे तो दिया बहुत अच्छा खाना बनाती थी, लेकिन कुछ चीजे बाहर की भी अच्छी लगती है। 

     महीने के शुरू में ध्रुव को एक हजार जेब खर्च मिलता, जिसमें से दौ सौ रूपए पिगी बैंक में डालने जरूरी थे, ताकि उसे बचत करनी आए।  ध्रुव को पापा की कई बातों से चिड़ मचती परंतु कुछ कर नहीं सकता था। समय पर सोना, उठना, होम वर्क , सैर , खाना , हर काम का जैसे टाईम टेबल सा बना हुआ था।

         मोबाईल फोन आज की जरूरत है, क्योंकि  पढ़ाई का भी कुछ कुछ माध्यम यही बन गया है, लेकिन गेम्स वगैरह के लिए समय निश्चित था। 

     कई बार लाल बती पर जब आनंद कार रोकता और कई लोग न रोकते तो ध्रुव कहता, चलो पापा, देखो कितने लोग निकल गए, लेकिन आंनद कहता, नहीं, नियम हमारी सुरक्षा के लिए बने हैं, और इनका पालन करना हर नागरिक की जिम्मेवारी है। एक गल्ती कर रहा है तो ये नहीं कि देखा देखी दूसरा भी गल्ती करे। 

       कई बार टाफी, चाकलेट या चिप्स वगैरह खाने पर रैपर को हमेशा कूड़ेदान में डालने की सख्त हिदायत थी, भले ही जेब में डालना पड़ जाए, लेकिन सड़क पर नहीं फेंकना। 

     ऐसी ही छोटी छोटी बातें, पर्यावरण, प्रदूषण, पलास्टिक से दूरी, बिजली, पानी की बचत और ऐसी ही अनेक छोटी छोटी बातें जो पहले ध्रुव को बुरी लगती थी, अब उसकी आदत बन चुकी थी। 

     बचपन में एक दो बार स्कूल में चोरी करने पर आनंद ने उसे कड़ी सजा दी और स्कूल में प्रिंसिपल के सामने ध्रुव को माफी मांगनी पड़ी। 

    इसी माहौल में पल बढ़ कर ध्रुव बारहवीं में पहुचं गया। बचपन की बातें और थी लेकिन अब तो उसका मन कई बार खीज जाता। मां के सामने तो वो पापा को हिटलर पापा कहता । 

    दिया का मां का दिल सचमुच ही कई बार दुःखी हो जाता, उसे लगता कि आनंद का दिल तो जैसे पत्थर का है, बच्चे की कोमल भावनाओं की बिल्कुल कदर नहीं, लेकिन जब वो टाप करता या बहुत बढ़िया अंक लाता, तो दिया प्रफुल्लित हो जाती। 

       बारहवीं के बाद अच्छे कालिज में एडमिशन।बचपन की अच्छी आदतों ने उसे समझदार , जिम्मेदार नागरिक, और सुबह जल्दी उठना, सैर वगैरह करने से उसका शरीर भी बलिष्ठ, अच्छी सेहत , आकर्षक व्यक्तित्व और कुछ बातें तो जीन्स से ही मिलती है। 

      कालिज के समय से ही ध्रुव के मन में पुलिस में भर्ती होने की इच्छा जागृत हो चुकी थी। शरीर तो उसका इस काबिल था ही, उसे यकीन था कि उसका चयन हो जाएगा। 

     और सच में ही वो उच्च दर्जे का पुलिस अधिकारी नियुक्त हुआ। दिया के साथ साथ सारे परिवार, मित्रों, रिशतेदारों को ध्रुव की कामयाबी पर गर्व था। 

     ध्रुव की कामयाबी पर सम्मान समारोह आयोजित हुआ, जिसमें बड़े बड़े पुलिस अधिकारी और गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए, तो स्टेज पर उसने अपनी कामयाबी का सारा श्रेय अपने माता पिता को दिया, खास तौर पर पिता को। 

      बेटे की इस कामयाबी पर दिया की आखों से खुशी के आसूं बह रहे थे।और वो सोच रही थी कि आनंद की प्यार भरी सख्तियों का ही नतीजा है। जिसे वो पत्थर दिल कहती थी, वास्तव में ये हीरा वहीं से बना,और वो गर्व से भर उठी।

प्रिय पाठकों,कहा जाता है कि मां की ममता ठंडी छांव है तो पिता भी उस घने पेड़ के समान है, जिसकी छाया में परिवार पलता है। कामयाबी की डगर का रास्ता कंकरों पत्थरों से भरा होता है, लेकिन अंत में फूल खिलते है।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य- पत्थर दिल

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