एक संयुक्त परिवार, जो दिल्ली के एक पॉश इलाके में स्थित था । एक अच्छा-खासा, खाता-पीता, संस्कारी परिवार जहाँ आपसी समझदारी और प्रेम से जीवन की गाड़ी सरपट दौड़ती थी। घर में माता-पिता थे, बड़े भाई-भाभी और उनके दो चुलबुले बच्चे थे, और सबसे छोटा था अमन। रौनक ऐसी कि घर में हर समय त्योहार जैसा माहौल रहता।
अमन की उम्र शादी की हो चुकी थी। उसके लिए रिश्ते आने लगे थे, एक से बढ़कर एक।
अमन ने कई लड़कियाँ देखीं, सुंदर, सुशील, पढ़ी-लिखी… पर किसी में उसे वो बात नहीं दिखी जो उसके सपनों की राजकुमारी में होनी चाहिए थी।
उसके मन में अपनी जीवनसंगिनी की एक खास तस्वीर थी – गोरी, पतली, सुंदर, और हमेशा मुस्कुराती हुई। वह चाहता था कि उसकी पत्नी ऐसी हो, जिसे देखकर हर कोई कहे, “वाह! क्या जोड़ी है!”
फिर एक दिन उसके सामने रिया का प्रस्ताव आया। रिया थी ही इतनी ख़ूबसूरत कि अमन को पहली नज़र में ही वह अपनी कल्पना से भी ज़्यादा हसीन लगी।
बड़ी-बड़ी आँखें, घने काले बाल, सुडौल काया और चेहरे पर हमेशा एक मनमोहक मुस्कान। अमन ने तुरंत हाँ कर दी।
शादी से पहले की मुलाकातों में अमन रिया की सुंदरता की खूब तारीफ करता, “रिया, तुम सिर्फ सुंदर नहीं हो, तुम तो एकदम परफेक्ट हो।
जैसी मैंने हमेशा से चाहा था, वैसी ही मिली हो तुम।” रिया को भी यह सुनकर अच्छा लगता था। उसे लगता था कि अमन उससे बहुत प्यार करता है और उसकी सुंदरता का भी दीवाना है। उसे लगा कि उसे अपना सच्चा हमसफ़र मिल गया है।
अमन और रिया की शादी धूमधाम से हुई और रिया इस संयुक्त परिवार का हिस्सा बन गई। शुरुआत के दो-ढाई साल किसी हसीन सपने से कम नहीं थे। अमन और रिया एक-दूसरे के प्यार में डूबे रहते। घर में भी रिया ने अपनी जगह बना ली थी।
उसकी विनम्रता और समझदारी ने सबका दिल जीत लिया था। सास-ससुर उसे अपनी बेटी मानते, और जेठ-जेठानी भी उससे अच्छे से पेश आते। घर में अमन की पसंद का हमेशा ख्याल रखा जाता था, और रिया भी उसे खुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करती।
फिर एक दिन, घर में खुशखबरी आई – रिया गर्भवती थी। पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। अमन भी बहुत खुश था, उसने रिया का बहुत ध्यान रखा। नौ महीने पूरे हुए और रिया ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।
घर में किलकारियाँ गूँजने लगीं। सब बच्चे को देखकर निहाल थे।
लेकिन बच्चे के जन्म के बाद, रिया के शरीर में थोड़ा बदलाव आया। प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के बाद अक्सर महिलाओं के साथ ऐसा होता है। वह थोड़ी स्वस्थ (हेल्दी) हो गई थी, और उसका फिगर पहले जैसा नहीं रहा था। चेहरे पर मातृत्व की चमक थी, पर अमन को अब वो ‘परफेक्ट’ रिया नहीं दिख रही थी, जिससे उसने शादी की थी।
शुरुआत में अमन ने इशारों में कहा, “रिया, अब तो बच्चा हो गया है, तुम अब अपनी फिटनेस पर ध्यान दो। मुझे वैसी ही फिट रिया चाहिए, जैसी पहले थी।”
रिया ने सोचा, शायद अमन यूँ ही कह रहा होगा, पर धीरे-धीरे ये बातें रोज़ की दिनचर्या का हिस्सा बन गईं।
“देखो, रिया, तुम कितनी मोटी हो गई हो। तुम्हें अपनी डाइट कंट्रोल करनी चाहिए। चाहे तो आया रख लो बच्चे के लिए, पर मुझे तुम पहले जैसी सुंदर चाहिए।” अमन कभी प्यार से कहता, कभी थोड़ा खीझकर, लेकिन उसका संदेश साफ था।
रिया कोशिश करती। वह कम खाती, हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करती, पर बच्चे की नींदें खराब होतीं, तो उसे पौष्टिक आहार लेना ज़रूरी लगता। जब वह घी-दूध या कोई सेहतमंद चीज़ खाती, तो अमन तुरंत टोक देता, “बस करो रिया, तुम और मोटी होती जा रही हो।”
रिया को ये बातें दिल पर लगतीं। उसे समझ आ रहा था कि अमन का प्यार कहीं न कहीं उसकी सुंदरता से जुड़ा था। उसकी तारीफें, उसकी चाहत, सब उसके बाहरी रूप तक सीमित थीं। वह भावनात्मक रूप से बहुत अकेली और आहत महसूस करने लगी थी।
अमन के मन में अब एक नई तरह की परेशानी शुरू हो गई थी। जब उसके दोस्त ऑफिस के उसके कुछ खास सहकर्मी उसके बच्चे को देखने घर आया तो अमन को रिया को अपने दोस्त और सहकर्मियों से मिलवाने में शर्म महसूस होने लगी।
उसे लगने लगा था कि उसके दोस्त उसकी पत्नी के बारे में फुसफुसा रहे हैं, मज़ाक उड़ा रहे हैं। कभी कोई दोस्त मज़ाक में कह भी देता, “और भाई अमन, तेरी मैडम थोड़ी हेल्दी हो गई है, फिटनेस का ध्यान नहीं रख रही?” अमन इन बातों को सीधे तौर पर नहीं लेता,
पर ये बातें उसके दिमाग में घर कर जातीं। उसे लगने लगता कि अगर रिया पहले जैसी सुंदर नहीं दिखेगी, तो उसकी अपनी इमेज भी खराब होगी। यह सब सिर्फ उसकी गलतफहमी थी, उसके अपने ही जुनून का नतीजा, पर उसे ये बातें रिया को और अधिक दबाव में डालने के लिए पर्याप्त लगतीं।
वह जब भी घर आता, रिया पर फिर दबाव डालना शुरू कर देता। “रिया, तुम क्यों नहीं समझती? मुझे पहले वाली रिया चाहिए। बाहर लोग क्या कहेंगे? तुम डॉक्टर से बात करो, डाइटिशियन से मिलो, कुछ भी करो, पर मुझे पहले जैसी सुंदरता चाहिए।”
रिया ने एक दिन शांति से कहा, “अमन, मैंने डॉक्टर से बात की है। डॉक्टर ने भी कहा है कि डिलीवरी के बाद शरीर को सामान्य होने में समय लगता है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं। मुझे धीरे-धीरे ही ठीक होना है।” लेकिन अमन सुनने को तैयार नहीं था। उसे लगता था कि रिया बस बहाने बना रही है।
रिया की सास जहां बार बार रिया से ये कहती रहतीं कि बच्चे की सेहत के लिए तुम्हारा सेहतमंद होना जरूरी है। इस समय पौष्टिक खाना खाओ। तंदरुस्त रहो। वहीं दूसरी तरफ घर में जेठानी की मौजूदगी रिया के लिए और भी मुश्किल साबित हो रही थी।
भले ही जेठानी का स्वभाव बुरा नहीं था, पर देवरानी-जेठानी के बीच की सूक्ष्म प्रतिद्वंद्विता अक्सर सामने आ जाती थी।
जब अमन रिया को उसकी बढ़ती सेहत के लिए टोकता, तो जेठानी भी अक्सर हल्के में कहती, “देखो रिया, देवर जी कह रहे हैं तो सुन लो। मर्दों को सुंदर बीवी ही पसंद आती है।” कभी कहती “थोड़ा तो ध्यान दो अपने ऊपर, नहीं तो लोग क्या कहेंगे!”
जेठानी की ये बातें रिया को और भी अकेला महसूस करातीं, क्योंकि उसे लगता कि परिवार में कोई नहीं समझ पा रहा है कि वह किस दौर से गुज़र रही है।
इन सब दबावों का नतीजा ये हुआ कि रिया ने चुपचाप अपना खाना-पीना कम कर दिया। रातें जागकर बच्चे की देखभाल में निकल जातीं और दिन में वह भूखी-प्यासी रहती। वह चिड़चिड़ी रहने लगी। उसकी तबीयत बिगड़ने लगी, पर उसने किसी को नहीं बताया। वह जानती थी कि अगर उसने अपने खाने पर ध्यान दिया, तो अमन और जेठानी उसे फिर टोकेंगे।
एक रात, रिया अचानक बेहोश हो गई। अमन और पूरा परिवार घबरा गया। आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने रिया की जांच की। बच्चे को भी देखा गया क्योंकि रिया के बीमार पड़ने का असर बच्चे पर भी पड़ सकता था।
डॉक्टर ने अमन को कमरे में बुलाया। “मिस्टर अमन,” डॉक्टर ने कड़े शब्दों में कहा, “आपकी पत्नी की हालत बहुत खराब है। उन्हें कुपोषण की शिकायत है। उनके शरीर में पोषक तत्वों की गंभीर कमी है। क्या वह ठीक से खा-पी नहीं रही थीं? और यह सब बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है।”
अमन स्तब्ध रह गया। कुपोषण? पोषक तत्वों की कमी? यह कैसे हो सकता है? उनके घर में तो किसी चीज़ की कमी नहीं थी।
डॉक्टर ने आगे कहा, “लगता है उन्होंने अपनी खुराक कम कर दी है। क्या उन पर किसी तरह का कोई मानसिक दबाव था? एक माँ को डिलीवरी के बाद सबसे ज़्यादा पोषण की ज़रूरत होती है, और आप लोगों ने उनके साथ यह क्या किया है!”
डॉक्टर की बातों ने अमन को अंदर तक झकझोर दिया। उसके दिमाग में एक-एक करके सारी बातें घूमने लगीं – उसकी अपनी अपेक्षाएँ, उसका रिया को लगातार टोकना, तीखी टिप्पणियाँ। उसे अपनी माँ की बातें याद आईं, “माँ स्वस्थ रहेगी, तभी तो बच्चा भी स्वस्थ रहेगा।” उसे एहसास हुआ कि रिया उसकी ‘सुंदरता’ की सनक के कारण अपनी जान जोखिम में डाल रही थी, और बच्चे का स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ रहा था।
अमन की आँखों में आँसू आ गए। उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका था। वह शर्मिंदा था, और उसका दिल पश्चाताप से भर गया था। रिया सिर्फ उसकी पत्नी नहीं थी, वह उसके बच्चे की माँ थी, और सबसे बढ़कर, एक इंसान थी जिसकी अपनी गरिमा और स्वास्थ्य था। वह दौड़कर रिया के पास गया, जो अब होश में आ चुकी थी, पर बहुत कमजोर थी।
“रिया,” अमन ने कांपती आवाज़ में कहा, “मुझे माफ़ कर दो। मैं कितना अंधा था। मैंने तुम्हें इतना दुख पहुँचाया। मैंने सिर्फ़ तुम्हारे बाहरी रूप को देखा, और तुम्हारे अंदर की सुंदरता, तुम्हारी ममता, तुम्हारी सेहत को नज़रअंदाज़ कर दिया।
तुम जैसी भी हो, मेरे लिए परफेक्ट हो। मुझे तुमसे सच्चा प्यार है।” मैं भूल गया था कि तुम अपनी जान जोखिम में डालकर हमारे बच्चे को दुनिया में लाई हो ।मुझे तुम्हारी देखभाल करनी चाहिए थी। तुमने मुझे पिता बनने का सुख दिया और मैं ___
रिया ने अमन का हाथ पकड़ लिया और इंकार में गर्दन हिलने लगी। रिया ने कमजोर सी मुस्कान दी। शायद उसे भी राहत मिली थी कि अमन को आखिरकार अपनी गलती का एहसास हो गया है।
इस घटना ने पूरे परिवार को हिला दिया था। सास-ससुर तो पहले से ही रिया के पक्ष में थे, पर अब वे और भी चिंतित हुए। उन्होंने अमन को समझाया और रिया का पूरा ध्यान रखने की ज़िम्मेदारी ली।
जेठानी, जो अब तक अपने तानों को मामूली समझ रही थी, रिया की हालत देखकर गहरी सोच में पड़ गई। उसे एहसास हुआ कि उसकी बातें, जो उसे सिर्फ ‘मज़ाक’ या ‘सलाह’ लगती थीं, उनका रिया पर कितना गहरा असर पड़ा था।
उसने कभी सोचा भी नहीं था कि शब्दों का ऐसा घातक परिणाम भी हो सकता है। जब उसने देखा कि अमन, उसका देवर, किस तरह पश्चाताप कर रहा था और रिया का ध्यान रख रहा था, तो उसे अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस हुई।
एक दिन, जब रिया थोड़ी ठीक हुई, तो जेठानी उसके पास आई। उसने रिया का हाथ पकड़ा। “रिया,” उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी नम्रता और पश्चाताप था, “मुझे माफ़ कर देना। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी बातों का तुम पर इतना बुरा असर होगा। मैं तो बस… बस तुम्हें खुश देखना चाहती थी।” उसकी आँखें भर आईं।
रिया को शांत देखकर जेठानी ने अपनी बात जारी रखी, “देखो, रिया, मेरे पति, यानी तुम्हारे जेठ, उन्हें कभी मेरी बाहरी सुंदरता से कोई फर्क नहीं पड़ा।
वह मुझसे हमेशा बहुत प्यार से रहे हैं, जैसे मैं हूँ मुझे स्वीकार किया। इसलिए मुझे कभी ये समस्या आई ही नहीं। लेकिन अमन के मामले में ऐसा नहीं था, मुझे पता था कि अमन को सुंदरता का बहुत जुनून है।
उसने कितनी सारी लड़कियों को सिर्फ़ इसी वजह से मना कर दिया था क्योंकि वो बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थीं। उसे अपने जीवनसाथी के रूप मे बहुत ही ज्यादा सुंदर लड़की की तलाश थी और जब उसने तुम्हें चुना, तो मुझे लगा कि वह तुम्हें तुम्हारी सुंदरता के कारण ही इतना पसंद करता है।
मैं बस ये चाहती थी कि तुम दोनों का रिश्ता ऐसे ही प्यार भरा और सही-सलामत बना रहे, इसीलिए मैंने तुम्हें कभी-कभी कह दिया कि तुम पहले जैसी दिखो।”
जेठानी की बात सुनकर रिया को थोड़ी हैरानी हुई। उसे एहसास हुआ कि जेठानी के शब्दों के पीछे शायद गलत समझी गई एक अच्छी मंशा थी, भले ही उसका तरीका गलत था।
रिया ने जेठानी का हाथ थाम लिया, जिससे पता चला कि उसने माफ़ कर दिया है। जेठानी को यह देखकर थोड़ी राहत मिली।
रिया को ठीक होने में कुछ समय लगा, पर अमन ने इस बार उसका पूरा साथ दिया। उसने रिया को पौष्टिक खाना खाने के लिए प्रेरित किया, बच्चे की देखभाल में पूरा हाथ बंटाया, और सबसे बढ़कर, उसे मानसिक और भावनात्मक सहारा दिया।
उसने समझा कि सच्चा प्यार किसी बाहरी सुंदरता का मोहताज नहीं होता, बल्कि वह आंतरिक सुंदरता, त्याग और आपसी सम्मान में निहित होता है।
इस घटना के बाद, अमन और रिया का रिश्ता पहले से भी ज़्यादा मजबूत हो गया था। ‘सौंदर्य का बंधन’ टूट गया था, और अब उनके रिश्ते की नींव समझ, सम्मान और निस्वार्थ प्रेम पर खड़ी थी। रिया ने स्वस्थ रहने के साथ-साथ अपने आत्मविश्वास को भी वापस पा लिया था,
क्योंकि उसे पता था कि उसे एक ऐसा साथी मिल गया है जो उसे उसके सच्चे रूप में स्वीकार करता है। जेठानी ने भी अपनी गलती से सीखा और परिवार में अब सब एक-दूसरे की भावनाओं का अधिक सम्मान करने लगे थे।
समाप्त
© मीनाक्षी गुप्ता (मिनी) 2025। सभी अधिकार सुरक्षित।