बारिश का मौसम देखकर दुर्गा खेतों की और चल पड़ी। जहां उस का पति हरिया था । उसे देखते ही हरिया बोल उठा । देख दुर्गा अब की धरती मां ने हमें अपना बहुत आशीर्वाद दिया है। दोनों की मेहनत से कितनी सुंदर फसल लहलहा रही है। अब की इस फसल के जो भी पैसे आएंगे ।
गुड्डू और मुन्नी को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाएंगे, ताकि दोनों बच्चे शिक्षित होकर अपनी जिंदगी सुधार ले । तू ऐसे संस्कार देना कि बच्चे कितने भी शिक्षित हो जाए मगर अपने गांव की मिट्टी से कभी भी दूर ना हो ।
हम तो पैसे के अभाव में कभी पढ़ नहीं पाए मगर गुड्डू और मुन्नी को अपने जैसा जीवन ना जीना पड़े।
हरिया की बात सुनकर दुर्गा भी खुश होते हुए बोल पड़ी। हां आज अपना खेत ऐसे लग रहा है जैसे धरती माता ने हरी भरी चुनरी ओढ़ ली है।
तुम बिल्कुल सही कह रहे हो मुन्नी के बापू। हम अपने दोनों बच्चों का अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाएंगे और खूब पढ़ाएंगे। जो सहूलियत हमें नहीं मिली। वह हम अपने बच्चों को जरूर देंगे।
दुर्गा की बात सुनते ही हरिया थोड़ा निराश हो गया और कहने लगा। देख दुर्गा जिस दिन से मैं तुझे इस घर में ब्याह कर लाया हूं। तूने बड़े कष्ट झेले हैं मेरे साथ। मेरे हर सुख दुख की तू सांझी रही। मैं तो बड़ा भागी रहा ।
जो तेरे जैसी घरवाली मुझे मिली, मगर तू बड़ी अभागी निकली। जो मेरे जैसा पति तुझे मिला। जो कभी तुझे बहुत सारी खुशियां नहीं दे पाया, फिर भी तूने कभी मुझ से शिकायत नहीं की। बच्चों को पालने में भी बड़ा कष्ट उठाया तूने।
हरिया की बात सुनते ही दुर्गा बोल पड़ी । ऐसे क्यों बोलते हो मुन्नी के बापू?? सुख दुख तो सब के जीवन में आते जाते रहते हैं, अगर इनको देखकर पति-पत्नी डर जाए या भाग जाए, तो वह अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे और सबसे बड़ी बात तुम्हारी मन के अंदर जो सच्चाई है ।
उसे तो मैं ब्याह होते ही जान गई थी । पता है मुन्नी के बापू एक पत्नी को एक ईमानदार पति मिल जाए तो इस से बड़ी बात और क्या होती होगी।
तुने इस गांव में जो सम्मान कमाया है । वही तो अपनी गाढ़ी कमाई है । अब छोड़ो मुन्नी के बापू आसमान को देखो, बारिश की बूंदे भी हल्की हल्की बरसने लगी है ।
मुझे झूले पर आज झूला नहीं दोगे, कह कर दुर्गा तुरंत आम के पेड़ के नीचे डाले हुए उस रस्सी के झूले पर जा बैठी। हरिया भी दुर्गा को प्रेम से झूला देते हुए कहने लगा । अरे दुर्गा आराम से बैठना। कहकर वह धीरे-धीरे उसे झूलाने लगा।
दूर कहीं संगीत बज रहा था”” मेघा रे मेघा रे मत परदेस जा रे”” शायद पड़ोसी के खेत में रेडियो पर बज रहा था। जो दोनों के कानों को बहुत अच्छा लग रहा था।
अचानक हरिया बोल उठा, दुर्गा तू यहीं रुक, मैं गुड्डू और मुन्नी को यही ले आता हूं । आज हम सब सावन की इस बारिश में खेड़ की छान तले बैठकर बारिश की बूंदों का सुख भोगेंगे।
दुर्गा हरिया की बात सुनते ही खुशी से बोल उठी।
ठीक है तुम बच्चों को लेकर आओ। तब तक मैं यहां थोड़ी घास बिछा लेती हूं, और सुनो अपनी झोपड़ी में जो थोड़ा गुड रखा हुआ है। वह भी लेते आना । यहां बैठे-बैठे खाएंगे हम ।
ठीक है कहते हुए हरिया खेत से निकल पड़ा। कुछ देर बाद हरिया दोनों बच्चों को लेकर आ गया । हरिया दुर्गा दोनों बच्चे अपने खेत को देख कर बड़े खुश थे ।
यह सच है एक किसान अपने खेत को लहलहाते देखकर ऐसे खुश होता है जैसे एक मां अपने छोटे बच्चों को चलते, मुस्कुराते हुए देखकर खुश होती है। अचानक हरिया बोल उठा।
अरे दुर्गा कुछ देर पहले जो रेडियो में गाना बज रहा था। तू अपने मुंह से सुना दे । तू भी तो कितना अच्छा गाती है।
यह सुनते ही दुर्गा भाव विभोर होकर गाने लगी “”मेघा रे मेघा रे मत परदेस जा रे”” अचानक बारिश बहुत तेज हो गई। खेतों में चारों ओर से पानी बढ़ने लगा । यह देखकर हरिया डर गया। हरिया कुछ समझ पाता । इसके पहले ही पानी का सैलाब आया और खेतों में घुस गया।
सारा खेत तहस नहस होने लगा। यह देख हरिया और दुर्गा समझ ही नहीं पा रहे थे,दोनों करें तो क्या करें ।
अचानक हरिया दुर्गा से बोल उठा। दुर्गा तू बच्चों को लेकर यहीं रुक जा । मैं थोड़ा खेत के मुहाने पर जाता हूं कहकर हरिया जाने लगा। अचानक पानी का तेज बहाव आया और हरिया को बहा कर ले गया।
दुर्गा और बच्चे एक रस्सी के सहारे टिके रहे मगर हरिया बहते-बहते कहां चला गया। कुछ पता नहीं चला। अपनी आंखों के सामने दुर्गा और बच्चे हरिया को बहते देख चीखते चिल्लाते रहे,मगर वहां सुनने वाला कोई नहीं था ।
जब सैलाब रुका। ना खेत में फसल थी और ना ही हरिया। पूरे गांव में सब तरफ हरिया को ढूंढा गया मगर हरिया कहीं नहीं मिला। दुर्गा पर बहुत बड़ी जिम्मेदारियां आ पड़ी थी। उस बेचारी पर तो मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।
आज इस घटना को पूरे पच्चीस वर्ष हो चुके थे। दुर्गा के बालों में सफेदी आ चुकी थी। जो दुर्गा हर वक्त हंसती मुस्कुराती रहती थी । अपनी आंखों के किनारे को कभी भीगने नहीं देती थी। हर वक्त हरिया की हिम्मत बनकर खड़ी रहती थी ।
सच कहूं तो वह अपने दुर्गा नाम पर पूरी खरी उतरती थी,मगर आज वही दुर्गा पत्थर दिल की हो चुकी थी। हरिया के जाने के बाद उसने लगभग हंसना मुस्कुराना छोड़ दिया ।
हरिया की इच्छा थी गुड्डू और मुन्नी को पढ़ाने लिखाने की। उसमें उसने कोई कमी नहीं छोड़ी। यहां तक की इसके लिए उसे गांव के बाकी घरों में रसोई बनाने का काम भी करना पड़ा था,क्योंकि खेत तो पूरा तहस-नहस हो चुका था।
जिसे दुर्गा ने गांव के और लोगों को किराए पर दे दिया था । थोड़ा बहुत अनाज बदले में दुर्गा को मिल जाता,जिससे उसके घर की रसोई चलती रहती थी और दूसरों के घर में जो रसोई बनाने के उसे पैसे मिलते थे ।
उसे वह पढ़ाई लिखाई में लगा देती। अरे मां कहां खोई हो आप ।देखो मेरा रिजल्ट कितना अच्छा आया है मां ।अब आपको घर-घर इस तरह रसोई बनाना नहीं पड़ेगा । मैं अब खेतों में नई नई तकनीक लाकर नए तरीके से खेती करवाऊंगा और पिताजी का नाम इस गांव में और ऊंचा करूंगा।
मां सिर्फ एक बार आज मुझे अपना वह गीत सुना दीजिए । जो आप और बाबूजी बारिश के मौसम में अक्सर सुना करते थे। पच्चीस साल से मेरे और मुन्नी के कान तरस गए हैं मां । मां इन पच्चीस सालों में पच्चीस सावन आकर चले गए, मगर आप पच्चीस सालों में पच्चीस बार भी नहीं मुस्कुराई और ना ही वो गीत कभी सुनने को मिला।
दुर्गा ने गुड्डू को बहुत आशीर्वाद दिया और धीरे-धीरे गाने लगी “”मेघा रे मेघा रे मत परदेस जा रे ,आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे गाते गाते ही दुर्गा की आंखे बरसने लगी। अपनी मां को इस तरह देख गुड्डू और मुन्नी की आंखे भी बरसने लगी।
वो फिर मासूमियत से अपनी मां दुर्गा से पूछने लगा। मां आपको आज पहली बार मैंने इस तरह आंसू बहाते हुए देखा है। आप जी भर के रो लो मां। गुड्डू की बात सुनकर दुर्गा आंसू बहाते हुए ही बोल उठी।
हां बेटा तुम्हारी यह मां अगर पहले भी दिन भर आंसू बहाती रहती,तो तुम सबका पालन कैसे करती, इसीलिए बेटा दिन में मैंने मां बनकर अपना दिल पत्थर का रखा और तुम सब के सो जाने के बाद रात भर हरिया की पत्नी दुर्गा की ये आंखें बरसते रहती और दूसरे दिन मैं फिर मां बनकर खड़ी हो जाती।
तू नहीं जानता गुड्डू एक औरत को अपने मर्द के बिना अपने बच्चों को पालना,बड़ा करना कितना मुश्किल होता है। उसकी राह में कितने कांटे आते हैं। मगर हर मां अपने बच्चों के लिए यही सब करती है । जो मैने किया कहते हुए दुर्गा ने अपने दोनों बच्चों को गले लगा लिया। दोनों बच्चे भी अपनी मां से लिपट गए।
उस वक्त दुर्गा को ऐसे लग रहा था । मानों हरिया अपनी मुस्कुराती हुई नजरों से उसे ही देख रहा है और कह रहा है कि दुर्गा तूने मेरे बच्चों को बहुत अच्छे से पाला है।
आज के बाद तू हरदम मुस्कुराना क्योंकि मैं ना सही मेरी परछाई मेरे बच्चे तो तेरे साथ है। ऐसा आभास पाकर दुर्गा हरिया की तस्वीर देखकर हौले से प्रणाम कर के मुस्कुरा दी क्योंकि आज उसका पत्थर दिल कुछ कुछ पिघलने लगा था।
स्वयरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम