आंसू पीकर रह जाना – रेखा सक्सेना : Moral Stories in Hindi

सुजाता एक पढ़ी-लिखी, समझदार और संस्कारी लड़की थी। उसके माता-पिता ने एक अच्छे परिवार में उसकी शादी की। पति की कपड़ों की दुकान थी, जीवन सामान्य था और शुरुआत में सब कुछ ठीक चल रहा था। एक वर्ष बाद उनकी एक प्यारी-सी बेटी का जन्म हुआ।

लेकिन वक्त ने करवट ली। पति की संगत कुछ ऐसे लोगों से हो गई, जो उसे बुरी राह पर ले गए। अब न वह दुकान पर मन लगाकर बैठते, न ही घर पर ध्यान देते। व्यापार में लगातार घाटा होने लगा। घर के लोग समझाते, तो वह गुस्से में आकर लड़ने लगते। सुजाता अगर कुछ कहती, तो उस पर हाथ उठाया जाता।

सुजाता खामोशी से सहती रही — बस आंसू पीकर रह जाती।

कभी मायके चली जाती, पर मां-बाप समझा-बुझा कर फिर ससुराल भेज देते। फिर दूसरी बेटी का जन्म हुआ, लेकिन इस बार सुजाता ने तय कर लिया था कि अब वह वापसी नहीं करेगी।

मायके में रहते हुए उसने एक छोटे स्कूल में नौकरी कर ली। पति कभी-कभी आता और उसकी तनख्वाह ले जाता। तब भी सुजाता कुछ नहीं कहती — बस आंसू पीकर रह जाती।

फिर उसकी बड़ी बहन जो हैदराबाद में रहती थी, उसे अपने साथ ले गई। वहीं उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई। बेटियों को वह माता-पिता के पास छोड़ आई।

लोगों ने कहा, “तलाक ले लो, मुआवज़ा मिलेगा, भविष्य सुरक्षित रहेगा।”

लेकिन सुजाता ने दृढ़ स्वर में कहा —

“मेरे सास-ससुर और जेठ-जेठानी ने कभी मेरे साथ गलत नहीं किया। मैं उन्हें कोर्ट के चक्कर में नहीं डाल सकती। हमारे रिश्ते पैसों से ज़्यादा कीमती हैं।”

पर उसकी परेशानियाँ यहीं नहीं रुकीं। भाई की शादी के बाद घर का माहौल और बिगड़ गया। भाभी को बच्चों का रहना पसंद नहीं था। बच्चियों को समय से खाना नहीं मिलता। घर में क्लेश न हो इसलिए  मां-बाप सब देखकर भी चुप रहते।

यह सब जानकर सुजाता फिर… आंसू पीकर रह गई।

पर इस बार वह चुप नहीं बैठी। बच्चों को साथ लेकर हैदराबाद चली आई। किसी को पता नहीं दिया, नंबर तक बदल लिया।

अब उसकी दुनिया सिर्फ उसकी बेटियाँ थीं। वह दिन-रात मेहनत करती, बस यही सोचकर कि बेटियों को किसी के आगे झुकना न पड़े।

समय ने उसका साथ दिया। बेटियाँ पढ़ने में होशियार निकलीं। उन्हें स्कॉलरशिप मिली। एक बेटी विदेश में नौकरी पर गई, दूसरी ने खुद का व्यवसाय शुरू किया।

आज जब सुजाता अपनी बेटियों को देखकर मुस्कुराती है, तो उसके भीतर का हर आंसू गर्व में बदल जाता है।

क्योंकि कुछ आंसू ऐसे होते हैं, जो चुपचाप बहने के लिए नहीं होते…

बल्कि भीतर से एक औरत को मजबूत बनाने के लिए होते हैं।

और वही सुजाता ने किया — हर बार आंसू पीकर रह गई,

पर अपनी बेटियों के लिए एक पूरा आकाश जीत लाई।

Rekha saxena

Leave a Comment

error: Content is protected !!