कल मिसीज गुप्ता को अपने किन्हीं विशेष कार्यों के लिए पोस्ट ऑफिस जाना पड़ा। यह सामान्य बात है कि पोस्ट ऑफिस में विभिन्न प्रकार के , विभिन्न क्षेत्रों के तथा आर्थिक दृष्टि से अलग-अलग स्तरों के अनेक लोगों का आना-जाना लगा ही रहता है।
मिसीज गुप्ता के काम की प्रक्रिया चल रही थी कि तभी वहाँ लगभग 85-86 वर्ष की एक बुजुर्ग महिला आईं। वे अत्यंत धीरे-धीरे चलते हुए भी हांफ रही थीं और बोलते समय उनकी वाणी भी लड़खड़ा रही थी।
मिसीज गुप्ता स्वयं अपनी कुर्सी से उठीं और उन्होंने उस बुजुर्ग महिला को निकट पड़ी कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया। वे बुजुर्ग महिला उन्हें धन्यवाद देते हुए धीरे-धीरे कुर्सी पर बैठ गईं। कुछ पलों पश्चात् जब उनका हांफना कुछ कम हुआ
तो वे उठकर पोस्ट ऑफिस की एक महिला कर्मचारी की तरफ मुखातिब हुईं। उनके उस कर्मचारी की तरफ मुखातिब होने के अंदाज ने सहसा मिसीज गुप्ता को संदेह में डाल दिया और उनका सारा ध्यान उस बुजुर्ग महिला की ओर चला गया।
दरअसल उन बुजुर्ग मां ने महिला कर्मचारी के कान के बिल्कुल निकट तक अपना मुंह ले जाते हुए घबराहट भरी धीमी आवाज में कुछ फुसफुसाया।
इस पर महिला कर्मी ने उन्हें कुछ देर बैठकर इंतजार करने की हिदायत दी। उन दोनों की इस कवायद से मिसीज गुप्ता को इतना अंदाजा तो हो गया कि वे अपने इसी काम के सिलसिले में यहां पहली बार नहीं आईं हैं, अपितु इससे पूर्व भी वे यहां आ चुकी हैं।
अतः शिष्टाचार के विरुद्ध होते हुए भी मिसीज गुप्ता के अशांत मन ने उस महिला कर्मी से बुजुर्ग मां की परेशानी के बारे में जानना चाहा। पूछने पर उन्हें पता लगा कि उनके पति नगर के डी. ए. वी.संस्थान में कार्य करते थे।
सात वर्ष पहले उनका देहांत हो गया था। पति की मृत्यु के बाद से ही उनके दोनों लड़के उनका तिरस्कार करने लगे थे। उनकी पेंशन भी उनसे छीन लेते थे। आहिस्ता-आहिस्ता जब वे उनका सारा धन हड़पने की फिराक में रहने लगे तो उनके पति के, नगर के एक रसूखदार गहरे मित्र ने अपनी गवाही पर उनकी पेंशन का एक बड़ा हिस्सा पोस्ट आफिस में जमा करवा दिया
क्योंकि उनकी मासिक पैंशन तो उनकी संतान उन तक पहुंचने ही नहीं देती थी। उनके लड़के न केवल उनका अपमान करते थे बल्कि उन्हें पैंशन न देने की हालत में घर से निकाल देने तक की धमकियाँ भी देते थे।
अब इस साल फिर उन्हें विभाग की ओर से कुछ पैसा एक साथ मिला है। इस पैसे को ये बुजुर्ग मां बिना किसी को बताए अपनी अलग पासबुक में रखना चाहती हैं। पहली पासबुक की जानकारी लड़कों को है। अतः वे इस पैसे को उस पासबुक से अलग रखना चाहती हैं।यह सब जानकर मिसीज गुप्ता सन्न रह गईं, ‘उफ्फ! अपनी ही संतान का इतना ‘पत्थर दिल’ ? इतनी ‘अमानवीयता’ ? ‘
तभी उस कर्मचारी ने उन्हें अपनी पास बुक दिखाने को कहा तो उस बेचारी बूढ़ी मां ने तीन लिफाफों की तह में संभाल कर रखी पासबुक निकालकर दिखाई। मिसीज गुप्ता के सामने ही उन बुजुर्ग मां को बार-बार समझाया गया कि आपका यह वाला पैसा भी पहले इसी पासबुक में जमा होगा,
क्योंकि पेंशन विभाग के पास आपका यही खाता नंबर है। बाद में हम आपके लिए कुछ अलग व्यवस्था कर लेंगे। एक खाते की हम दो अलग-अलग पास बुक नहीं बना सकते कि आप दो जगह अपना पैसा रख लें।
लेकिन वे ‘बेचारी अनपढ़ मां’ इस तकनीकी भाषा को कैसे समझ पातीं ? उन्हें तो अपने बच्चों को पालने के लिए सिर्फ ‘प्रेम की भाषा’ और त्याग एवं अपने सुखों के बलिदान की तकनीक का ही ज्ञान था न ! अत: वे रुआंसी होकर बार-बार एक ही बात दोहराती रहीं कि फिर तो बच्चों को इस पैसे के बारे में पता चल जाएगा और वे मुझसे फिर सारा पैसा छीन लेंगे। खैर..
उस महिला कर्मचारी ने उन्हें एक बार फिर अपने पति के उसी मित्र को साथ लेकर आने के लिए कह कर तसल्ली दी, जिन्होंने पहले भी उनकी मदद की थी और मन में कुछ आशा लिए वह बुजुर्ग मां वहां से चली गईं।
इस सारी स्थिति में उस बूढ़ी मां की असहाय अवस्था पर मिसीज गुप्ता की आंखे बुरी तरह डबडबा गईं । प्रभु का नाम जपते हुए ईश्वर भजन करने वाली इस बुजुर्ग मां की उम्र में उनके चेहरे पर आई पैसों के जोड़- तोड़ की परेशानी ने उन्हें सोचने पर विवश कर दिया कि ‘यह कहां आ गए हम …जहां हम अजनबियों पर तो भरोसा कर रहे हैं, किंतु अपनों पर भरोसा नहीं कर पाते ?
धन-दौलत के लालच में फंसकर अपने रास्ते से भटक चुके आज के कुछ बच्चे यह क्यों नहीं समझ पाते कि जिस प्रेम-प्यार से माता-पिता अपने बच्चों का लालन-पालन करते हैं,उसी प्रेम-प्यार की भूख उनके बूढ़े माता-पिता को भी है।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।
# पत्थर दिल