मेट्रो में अंदर घुसते ही ऋतुराज ने चारों तरफ बैठने के लिए जैसे ही नजर दौड़ाई तो उसकी नजर कोने की सीट पर बैठी एक लड़की चश्मा लगाए एक पत्रिका पढ़ती नजर आई। पत्रिका के कवर पर
“दो गुलाब” लिखा देख ऋतुराज के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वह पढ़ने वाली लड़की का चेहरा भी देखने का प्रयास करने लगा।
पर उस भीड़ में ना लड़की ने चेहरा ऊपर किया ना ही उसे अच्छे से लड़की का चेहरा नजर आया । मन में उत्सुकता बनी रही आखिर वह लड़की कौन है जो इतनी मग्न होकर “दो गुलाब” पुस्तक पढ़ रही थी। लड़की के चेहरे पर उसके लम्बे केश आ रहे थे तो कभी मेट्रो में चढ़ते उतरते मुसाफिर ऋतुराज के सामने आ जाते।
अब ऋतुराज लगभग झींक सा गया क्योंकि वो हर हाल में उस चेहरे का दीदार करना चाहता था जो दो गुलाब इतनी तन्मयता से पढ़ रही थी, क्योंकि दो गुलाब एक प्रेम पत्रिका थी जो सिर्फ प्रेम करने वाला ही इतना मग्न होकर पढ़ सकता था। पुस्तक पढ़ते समय बीच में एक बार भी जिसने अपना चेहरा ऊपर नहीं किया यानि वह कोई प्रेमी ही थी।
धीरे-धीरे ऋतुराज भी भीड़ को आगे पीछे करता हुआ करीब करीब उस सीट के पास पहुंच गया जहां वो लड़की बैठी थी। लड़की के हाथों में पुस्तक लगी हुई थी, उसने मोर पंख का बुकमार्क बुक में लगा रखा था और साइड से लंबे-लंबे घने बाल कभी उसके चेहरे को ढंकते, दिखाते अपनी अठखेलियां कर रहे थे।
तभी ऋतुराज को उसके हाथ में नन्ही सी गुलाबी रंग के नग में गुलाब के फूल के डिजाइन वाली अंगूठी दिखाई दी। उसकी धड़कने और तेज हो गईं। उसने सोचा क्या…. क्या ये रिषिता ही है? जिसे कभी उसने पसंद किया था। 8th क्लास की ही तो बात है कितना छोटा था वो… पर उसके प्रेम में इस कदर दीवाना हुआ
कि अपनी पॉकेट मनी से ही ऐसी ही छोटी सी अंगूठी गुलाब के फूल वाली रिषिता को गिफ्ट कर दी। तभी अगले पल ही उसे विचार आया कि नहीं-नहीं यह रिषिता नहीं हो सकती …वह तो कितना नाराज हुई थी उस पर उसके अंगूठी और कार्ड देने पर। उसने उसे कहा था यह हमारे पढ़ने लिखने की उम्र है और तुम भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो नहीं
तो मैं तुमसे दोस्ती भी छोड़ दूंगी। उसे लगा कितनी पत्थर दिल हैं वो। उसका डांटना था कि अब वो उसके सामने आने से भी बचने लगा, और अगले ही बरस उसके पिताजी ने उसे कोटा कोचिंग के लिए भेज दिया और आज वो अच्छी पोस्ट पर इंजीनियर की जॉब करते हुए करीब बारह बर्ष बाद दिल्ली वापस आया है।
कितने बरस हो गए ,लेकिन उसकी अपने प्यार की खोज अभी भी जारी है। मां के विवाह के सवाल करने पर उसका दिल अभी भी रिषिता को ही ढूंढता है।
अगले ही पल मेट्रो की आवाज आती है अगला स्टेशन करकरडूमा है, सभी यात्री सावधान रहे अपने पल्लू, साड़ी को गेट के दरवाजे से बचाए। अपने सामान की देखभाल खुद करें। यह आवाज सुनते ही वह लड़की जैसे ही उठती है ,
उसका चेहरा आखिरकार उसे दिख जाता है और ऋतुराज मन ही मन खुशी से झूम उठता है। वह तो उसकी अपनी रिषिता ही थी। रिषिता भी उसे देखकर खुशी से हतप्रत हो जाती है। ऋतुराज को अगले स्टेशन पर उतरना था, लेकिन वह भी रिषिता के साथ-साथ इसी स्टेशन पर उतर जाता है।
पर अभी भी उसके मन में दुविधा थी कि कहीं उसका प्रेम अब उसका ना रहा हो, उसकी शादी हो गई हो और ना जाने क्या क्या सवाल इन पांच मिनटों में उसके दिमाग ने उसके दिल से कर डाले थे। पर जैसे ही रिषिता ने उसे बताया कि जब से उसने “दो गुलाब” पढी है
ना जाने क्यों उसे विश्वास था कि उसका प्रेम भी उसे एक दिन जरूर मिलेगा, क्योंकि लिखने वाले की फीलिंग हमेशा मुझे तुम्हारी याद दिलाती रही ।
इस पर ऋतुराज ने उसे बताया कि एक और सरप्राइज आपके लिए ये है मोहतरमा कि आपके इस आशिक ने हीं आपके लिए
“दो गुलाब” लिखी थी, पर कहीं कोई पहचान ना ले इसलिए लेखक का नाम शरद नादान रख लिया। इतना सुनकर रिषिता कहने लगी चलो झूठे कहीं के… तुम आखिर कब से लिखने लगे? इतने अच्छे लेखक कैसे हो सकते हो तुम? अगर ये बात सच है तो जरा
“दो गुलाब” की दो पंक्तियां सुनाना तो… इस पर ऋतुराज ने मुस्कुराते हुए कहा तेरे प्रेम में क्या ना बने हम… कभी प्रेमी हुए, कभी पागल हुए, कभी लेखक भी बन गए! हम तो तुम्हें पत्थर दिल सनम समझते रहे, पर तुम्हारी चाहत हमसे भी बढ़कर निकली। चलो इसी बात पर दो गुलाब की पंक्तियां सिर्फ तुम्हारे लिए …
दो गुलाबों सा प्रेम मेरा तुम्हारा..
दो गुलाबों सा प्रेम मेरा तुम्हारा
पत्तों की हरी चादर में लिपटा
जिंदगी की मुश्किलों में शूल से घिरे,
मखमली सा दो गुलाबों सा प्रेम मेरा तुम्हारा ।
सुना है जो प्रेम प्रकट न किया जाए
वही पवित्र प्रेम होता है।
इसलिए सीप में छिपे मोती के जैसा
पवित्र प्रेम मेरा तुम्हारा ।
दो गुलाबों सा प्रेम मेरा तुम्हारा।
इतना सुनकर रिषिता भी खुलकर हंसने लगी।आज मेट्रो की इस छोटी सी जर्नी ने दो बिछड़े हुए प्रेमियों को मिला कर सच में
“दो गुलाब” सा खिला दिया था।
सभी सखा मित्रों से अनुरोध है मैंने बहुत समय बाद कोई कहानी लिखी और प्रेषित की है,कृप्या अपने प्रेम या जीवन साथी से जोड़कर कहानी पढ़ियेगा और आपका भरपूर प्रेम और आशीर्वाद मेरी कलम को आपका दीजिएगा।
सादर
ऋतु गुप्ता
#पत्थर दिल