रमा एक पढ़ाकू लड़की थी जो हमेशा कक्षा में अव्वल आती ।घर में मां शांति और पिता रामपाल और दो भाई रतन और मदन।रतन और मदन पढ़ने में जरा कच्चे ही थे।पिता रामपाल मुनीम थे फैक्ट्री में और शांति घर संभालती।बेटों से ज्यादा जुड़ाव था उन्हें पर रामपाल रमा को बहुत चाहते थे उनका
मानना था कि यदि लड़की पढ़ी लिखी होगी तो दो परिवारों का भविष्य सुधारेगी। रमा द्वितीय वर्ष में थी कि एक विवाह समारोह से आते हुए एक्सीडेंट में रामपाल जी का देहांत हो गया और शांति जी को चोट लगी पर वो बच गई। रमा पर घर की जिम्मेदारी आ गई भाई तो अभी छोटे थे उसने कोचिंग सेंटर खोल लिया बच्चे पढ़ाती और खुद की भी पढ़ाई करती भाइयों का ध्यान रखती उनको भी पढ़ाई का
महत्व समझाती।घर की पूरी करता धरत। वही थी।समय बीत रहा था।शांति देवी का इतना सब होने पर भी पुत्र प्रेम जो का तो ही था। रमा कुछ कहती तो उससे ही लड़ने खड़ी हो जाती।इतनी मेहनत के बाद रमा ने सरकारी नौकरी के लिए पर्चा भरा और उसका चयन हो गया उसने अपने शहर में ही नौकरी ली ताकि भाई और मां का ध्यान रख सके। ऑफिस से आ कर वो ट्यूशन पढ़ाती भाइयों को
पढ़ाती उसी की मेहनत का नतीजा था कि रतन को अच्छी नौकरी लग गई और मदन ने अपनी स्टेशनरी की दुकान खोल ली। रमा भी 32 साल की हो गई पर मा उसके रिश्ते की बात ना करती।एक दो अच्छे रिश्ते रमा के मामा ने बताए भी पर शांति ने ध्यान नहीं दिया।कहती पहले अच्छा घर बनवायेगी फिर रिश्ते की बात करेगी। रमा ने लोन लेकर 2 मंजिला शानदार घर बनवा दिया।
अब शांति कहती मुझसे काम नहीं होता तू दफ्तर जाती हैं सारा काम मुझ पर आ जाता है तो रतन की शादी कर देते है। रमा सोच रही थीं मै 35 की हो गई मां को मेरी चिंता नहीं खैर रतन के लिए लड़की तलाश करने से पहले ही उसने बता दिया मै शालू से शादी करूंगा मेरे साथ ही काम करती है घर में मां बाप और एक भाई है बस शालू और रतन की शादी हो गई और ऊपर वाले पोर्शन में वो रहने लगे
सारा फ्लोर उसके दहेज से भरा था वो भी नौकरी पर जाती तो फुल टाइम मैड थी।रतन अब अपनी तनख्वाह भी घर में ना देता हमारे भी खर्चे है।नीचे के हिस्से में ये तीनों रहते ।हॉल तीन बेडरूम किचेन और एक छोटा सा गेस्ट रूम था ।इसी बीच मदन के लिए उनकी रिश्तेदारी से ही रिश्ता आ गया रेखा का मदन की भी शादी हो गई।पहले रेखा घर के काम करती फिर शालू की देखा देखी वो भी काम ना
करती नीचे भी काम वाली लग गई पर खाना रेखा को ही बनाना पड़ता इसी बीच रमा का ट्रांसफर हो गया प्रमोशन के साथ रमा को लगा मां इस बार भी मना कर देगी पर प्रमोशन के साथ पैसे भी बढ़ेंगे तो वो तैयार हो गई रमा ने बहुत कहा मां मेरे साथ चलो पर वो नहीं गई बोली ना मै तो मेरे बेटों के पास रहूंगी। रमा दूसरे शहर आ गई क्वार्टर मिला था पड़ोस में रागिनी रहती थी जो उसके कॉलेज में ही
लाइब्रेरियन थी । उसके पति राघव भी कॉलेज में प्राध्यापक थे।यहां आकर रागिनी और उसके पति ने रमा की बहुत सहायता की । रमा कॉलेज में वाइसप्रिंसिपल थी वो रागिनी और उसके पति के साथ ही कॉलेज जाती और उन्हीं के साथ आती उनके परिवार के साथ उसका घर जैसा नाता था।कॉलेज बंद हो रहे थे शीत अवकाश के लिए रागिनी और राघव बाहर घूमने जा रहे थे। रमा ने सोचा मै भी घर चलू
उसने मां को फोन लगाया मदन ने फोन उठाया बोला मां सो रही हैं और अभी हम सब बाहर जा रहे है तो तुम यहां मत आना क्योंकि बच्चों की छुट्टियां है। रमा मन मसोस कर रह गई।अगली सुबह पड़ोस में रागिनी के घर से आवाज आ रही थी तो रमा देखने गई वहां एक बहुत ही सुदर्शन युवक रसोई में कुछ बना रहा था रमा
ने पूछा तुम कौन हो यहां क्या कर रहे हों।वो बोला आप कौन ये तो मेरे भाई भाभी का घर है में राघव का छोटा भाई उदित हूँ ।भैया भाभी बाहर गए हैं रमा बोली अच्छा मै आवाज सुन आ गई थी ठीक है मै चलती हूं।उदित बोला आप रमा है ना आइए चाय पीते हैं रमा और उदित ने चाय पीते हुए अपने पसंदीदा विषयों पर चर्चा की
।उदित बोला चलिए मैं आपको शहर घूमता हूं।3,4 दिन वो दोनों घूमे तब तक रागिनी और राघव भी आ गए। उदित बोला भाभी आपकी सहेली की शादी क्यों नहीं हुई ।रागिनी ने सारी कहानी कह सुनाई।उदित बोला इतनी जिम्मेदारी निभाने पर भी कोई इनके बारे में नहीं सोचता।रागिनी बोली हा हर महीने तनख्वाह और खर्चों के लिए फोन आता है।
उदित बोला भाभी मै इनसे शादी करना चाहता हूं।पहले तो रमा मना करती रही पर फिर सबके समझाने पर और रागिनी के कहने पर की बहुत दूसरों के लिए जी ली अब अपना सोच।उन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली।उदित अपनी ड्यूटी लौट गया और उसी शहर में ट्रांसफर के लिए रमा को भी अप्लाई करवा दिया। रमा बोली मै घर मिल कर आती हूं।उदित बोला ठीक है मै विकेंड पर तुम्हे लेने आऊंगा।
रमा घर आई तो मां आंगन में लेटी थी।इतनी कमजोर हो गई थी कि बस पास में थाली में कुछ टुकड़े पड़े थे खाने के गंदगी इतनी थी कि बस। रमा मां से लिपट गई मां क्या हालत बना रखी है क्या हुआ आपको । रमा को देख मां रो पड़ी बोली बिटिया कभी तुम्हारे बारे में ना सोचे हम इन कपूतों के बारे में सोचा इन्होंने मुझे बाहर फेक दिया ना खाना देते हैं ना कुछ। रमा मां का हाथ पकड़ अंदर आई टेबल
पर नाश्ता लगा था और सब खा रहे थे।रतन बोला अरे जीजी आप अपने शादी कर ली हमें ना बुलाया रमा बोली जब भी फोन किया हमेशा तुम जल्दी में रहते फोन काट देते तो क्या बताती और मां की यह क्या हालत बना रखी है। अरे कुछ नहीं जीजी रेखा बोली मां जी को अंदर घुटन होती हैं तो बाहर ही चारपाई लगवा दी। रमा बोली यह मत भूलो कि इस घर पर आज भी मेरा अधिकार है ये परिवार भी
मेरा है इस घर की मालकिन मै हूँ।मदन बोला हा जीजी अब ये घर हमारे नाम कर दो आपकी तो अब शादी हो गई।रागिनी बोली मै ही इस घर की मालकिन हूँ और मेरी गैरहाजिरी में मां अगर तुमने मां को दुख दिया तो मै ये घर बेच दूंगी और तुम अपना ठिकाना ढूंढ लेना।रागिनी ने मां को अंदर उनके कमरे
में बिठाया नहलाया धुलाया अच्छे कपड़े पहनाए ।खाना खिलाया फिर कैमरे वाले को बुला घर में कैमरे लगवाए और बोली अगर अब घर की मालकिन से दुर्व्यवहार हुआ तो याद रखना फिर बच्चों के लिए जो तोहफे लाई थी वो दिए भाई भाभी को दिए उन्हें बोली हम एक परिवार है और मैं नहीं चाहती
कि ये परिवार टूटे या मेरे भाई सड़क पर आए बस तुम मां का ख्याल रखो।इतवार को तुम्हारे जीजाजी आयेंगे मुझे ले जाने।भाई भाभी को समझ आ गया कि घर तभी मिलेगा जब मां का ध्यान रखेंगे।अब वे मां का भी करते और हफ्ते भर रमा की भी खूब खातिर की विदाई के समय मां ने गहने दिए भाइयों ने
भी अच्छा लेन देन किया।और रमा दोनों भाइयों को समझा कर और 50 हजार के चेक देकर गई।मां बोली बेटी मेरा बुढ़ापा तूने सवार दिया आती रहना। रमा निकल गई यही सोचते हुए चलो लालच में ही सही मां का ध्यान दोनो रखेंगे।मेरा परिवार एक रहेगा।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी