मत भूलो की ये भी मेरा परिवार है – मणि त्यागी : Moral Stories in Hindi

घर के लिविंग रूम में शर्मा जी अपने परिवार के साथ बैठे थे , बहु श्रद्धा रसोई से चाय लाकर मेज़ पर रख देती है और वहीँ खड़ी हो जाती है।

शर्मा जी श्रद्धा से भी बैठने के लिए कहते है ..अरे बेटा खड़ी क्यों हो ? तुम भी बैठो …ये सुनते ही श्रद्धा भी बैठ जाती है।

शर्मा जी अपनी बात रखते है ,” ये घर मैने और मेरे भाई ने मिलकर बनाया था ..इस घर की ज़मीन का पैसा मेरे पिताजी ने दिया था ।”

अब पिताजी तो गुज़र गए तो मैं चाहता हूँ की ये घर हम दोनों भाइयों के नाम हो जाए ।

“पर पापा चाचा जी तो अपना नया घर बनवा चुके है और वो भी बहुत ही आलिशान ” , शर्मा जी का बेटा सार्थक बोला ।

शर्मा जी ने अपना पक्ष रखते हुए समझाया ,” इससे ये सच तो नहीं बदल जायेगा की इस घर में उसका भी हिस्सा है।”

तभी शर्मा जी की पत्नी कुंती ने अपना विचार रखा ,”मुझे लगता है की हमें एक बार देवर जी को बैठा कर बात करनी चाहिए ।”

ये सुनते ही शर्मा जी को गुस्सा आ गया … इसमें बात क्या करनी है ? जो है सो है ।

“हम उनसे कह सकते है की जो उनका हिस्सा है उसके हम पैसे दे देंगे ..इस तरह से उनका भी नुकसान नहीं होगा और घर भी हमारे पास रह जायेगा” ,.. कुंती ने अपना सुझाव रखा ।

पढ़े लिखे कॉलेज में प्रोफेसर शर्मा जी को अपनी पांचवी पास पत्नी की बात पसंद नहीं आयी।

“नहीं ! मैं ऐसा कभी नहीं कहूंगा”, शर्मा जी ने दो टूक बात कह दी ।

कुंती ने फिर कहा ,”पर इस घर”  .. शर्मा जी ने कुंती की बात काटते हुए चिढ़े हुए स्वर में कहा , ” क्या घर तुमने बनवाया था ? ये घर मेरा और मेरे भाई का … तुम बीच में मत बोलो ।

ये सुनते ही कुंती और श्रद्धा स्तब्ध रह गयी , श्रद्धा तुरंत वहां से उठ खड़ी हुई और ये कहकर की , पापा जी जैसे आपकी मर्ज़ी ..वहां से चली गयी ।

कुंती ने भरे गले से बेटे सार्थक को कहा , ” बड़ा गलत बोल गए तेरे पापा ” ।

ओह ओ माँ ऐसा कुछ नहीं है , सार्थक भी उठकर वहाँ से चला गया 

अगले दिन शर्मा जी सो कर उठे तो देखा रोज तो उनके उठते ही कुंती चाय ले कर आ जाती थी पर आज नहीं आयी ।

वो कॉलेज जाने के लिए तैयार थे पर रसोई में कोई नहीं था ..घर देखकर ही पता चल रहा था की झाड़ू भी नहीं लगी … रसोई में रात के खाने के बर्तनो का ढेर लगा हुआ था ।

उन्होंने अपने बेटे सार्थक को पूछा ,” आज दोनों सास बहु कहाँ चली गयी ?” और तुम भी अभी तक तैयार क्यों नहीं हुए ?? आज ऑफिस नहीं जाना है ?

पानी ख़तम हो गया है अभी भरने के लिए मोटर चलाई है और श्रद्धा माँ के साथ घूमने गयी है ।

क्या दोनों घूमने गयी है ? मुझसे तो पूछा भी नहीं ।

शर्मा जी हैरान परेशान बिखरे घर को देख आज छुट्टी लेकर पत्नी का इंतजार करने निर्णय लेते है। 

दोपहर में श्रद्धा और कुंती वापस आ जाती है शर्मा जी गुस्से में कोई बात नहीं करते ।

शाम को जब चाय भी नहीं मिलती तब वो चिल्लाकर कहते है , “अरे आज चाय मिलेगी या नहीं ?”

कोई जवाब न पाकर वो रसोई में आते है फिर पूरे घर में घूम कर मुआयना करते है अभी तक वही हाल था और तो और पौधों में भी पानी नहीं डाला गया था ।

वो गुस्से में चीख उठे कुंती…श्रद्धा !

उनकी आवाज़ सुन कुंती के साथ श्रद्धा और सार्थक भी आ जाते है।

आज घर में हो क्या रहा है ?

तभी दरवाज़े पर छोटा भाई भी आ जाता है , ” क्या हुआ भैया इतने गुस्से में क्यों हो ?

अरे छोटे तुम ! .. “आओ आओ बैठो ।”

एक बार फिर पूरा परिवार साथ बैठ जाता है पर श्रद्धा चाय बनाने नहीं जाती ।

छोटा भाई कहता है , भैया ..भाभी ने बुलाया था,” जी भाभी बताइये ?”

इससे पहले शर्माजी गुस्से में कुछ बोले श्रद्धा बोल पड़ती है ,” मैं पहले बता दूँ की हमें कोई लालच नहीं है पर आज माँ आप सब से कुछ कहना चाहती है ।”

थैंक यू श्रद्धा आज तुम्हारे दिये साहस से ही मै अपनी बात कह पाउंगी।

मैं जब इस घर में आयी मेरी उम्र सोलह बरस की थी आज मैं पचपन साल की हूँ पिछले उन्तालीस सालो से ये घर परिवार मैं संभाल रही हूँ ।

“माता जी की तबियत खराब रहती थी इसलिए आपकी शादी जल्दी कराई गयी शर्मा जी “, आज कुंती अपने पति की आँखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह रही थी ।

आप भी और देवर जी दोनों पढ़ते थे सुबह पांच बजे से रात दस बजे तक मैं बिना शिकायत के सारा काम किया करती थी।

पहले जब खुला आंगन था तब रसोई से जो नाली जाती थी दिन में दस बार साफ़ करती थी ।

जब कभी मकान में रंग रोगन का काम पड़ा या फिर जब घर में बदलाव किये गए तब भी मैं सब लेबर को चाय पिलाने से लेकर सामान लाना और देखरेख मे काम करवाना ,, सब करती थी ।

माताजी पिताजी की सेवा भी जीजान से की कभी मन में ये ख्याल नहीं आया की मैं क्यों करूँ ।

आप देवर जी कभी जब आपकी तबियत खराब हुई मैंने हमेशा सेवा की ,, घर से जाने का निर्णय भी आपका था आपको बड़ा घर चाहिए था , क्या कभी मैंने आपके और देवरानी के मान सम्मान में कोई कमी रखी ?

फिर शर्मा जी की तरफ ,”मैंने कभी आपको किसी बात के लिए दबाव नहीं बनाया , मायके भी कभी कभी जाती थी , कभी नहीं कहा की कोई काम वाली बाई की ज़रुरत है ।”

मैंने तो आप सभी को अपना परिवार मान लिया पर क्या आप लोग मुझे अपना पाए ?

और आप पतिदेव कल जो आपने कहा की ये घर क्या तुमने बनाया है ? ये घर मेरा और मेरे भाई का ..तो उसका जवाब आपके भाई के सामने ही देना चाहती हूँ ।

“ये सिर्फ एक मकान था घर बना परिवार से और आप मत भूलो की ये भी मेरा परिवार है।”

मेरा भी … श्रद्धा ने भी अपनी बात मिलायी।

समाप्त 

लेखिका मणि त्यागी

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