कई बार फोन करने के बाद भी जब नही उठा तो आंखों में आंसू लिये सोचने लगी वर्षों पहले जिसे जिंदगी से बेदखल कर दिया था आज उसी के पीछे मन भाग रहा अचानक से माल में हुई मुलाकात ने उन दोनों को करीब ला दिया सबकी अपनी अपनी दुनिया होते हुए कभी कार बातें हो जाया करती नम्बर न उठने पर वो अपने अतीत में खो कैसे दोनों पहले सहपाठी थे
फिर कब कहां कैसे दोनों एक दूसरे के करीब आ गए पता न चला पर पर ये सफ़र लम्बा न चल सका बी. ए. करने के बाद उसकी शादी हो गई और वो अपने प्रतियोगी परिक्षाओं में लग गया। बिना किसी बिना किसी तकरार के दोनों एक दूसरे की जिंदगी से अलग हो गए कुछ सालों बाद उसकी भी शादी हो गई दोनों की अपनी अपनी दुनिया हो गई दोनों का अपना परिवार हो गया ,
बाल बच्चे हो गए जिम्मेदारियां सर पर चढ़कर बोलने लगी ऐसे में पलटना उस जिंदगी की तरफ जिसका कोई अस्तित्व ही न हो इन सबसे कैसे मुंह मोड़ सकती है और फिर सबको छोड़ो साथी को क्या जवाब देगे क्या उससे नज़र मिला पायेंगे या फिर बच्चों का सामान कर पायेगी नही ।
फिर भी दूसरे ही क्षण आखिर मन का सुकून भी तो बड़ी चीज़ है वो कैसे मिले जब जहाँ से जिंदगी की डोर बंधी हो वहां न मिले तो मन की डोर की तरफ भागना लाजिमी है तभी तो भरा पुरा
परिवार,जिम्मेदारियों को निभाते हुए वो बेचैन है उधर जाने के लिए जहा क्षणिक ही सही सुकून है मन क तभी डोर बेल बिजी और उसकी तन्मयता भंग हो गई उठकर उसने दरवाजा खोला तो देखा बड़ा बेटा सामने खड़ा था जो कि भीतर आते हुए बोला मां जल्दी से खाना लगा दो बाहर जाना है ।
उसने हां में गर्दन हिला विचारों की पोटली समेट उसके लिए खाना लगाने चली गई उसका खाना लेकर आ ही रही थी कि दूसरा भी आ गया आते ही बोला मां जल्दी से एक कप गरमा गरम काफी बना दो कोचिंग के लिए देर हो रहा है।
और वो बना ही रही थी कि पति देव भी आ गए और आते ही बोले सुनों तौलिया तो लाना हाथ मुंह धुलकर तुरंत निकलना है
अर्जेंट मिटिंग है।बस यही छोटी छोटी बातें है जो स्त्री को उस पुरुष की ओर आकर्षित करती है और वही इसके साथ हुआ सब कुछ होने के बावजूद भी वो मन से संतुष्ट नही थी तभी तो प्रेम की तरफ भागी वरना क्यों भागती।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू
प्रयागराज