पिछले कई दिनों से राशि का मूड खराब ही चल रहा था।उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो क्या करे कि यह समस्या सुलझ जाए। राशि दो भाईयों सागर और सरल की इकलौती और छोटी बहन थी। सब शादी शुदा और अपने घरों में सुखी थे।
दोनों भाई और मां बाप सब इकट्ठे एक ही घर में रहते थे। घर काफी बड़ा और दो मजिंला बना हुआ था।पिताजी ने बहुत ही चाव से यह घर बनवाया था और अपनी नौकरी से तीनों बच्चों की अच्छे से परवरिश , पढ़ाई लिखाई, शादी ब्याह सब किया था। उम्र हो चली थी तो पिछले साल उपर से बुलावा आ गया।
चलो यह सब दुनिया की रीत है, जाने की टिकट तो सबकी कन्फर्म है। पिछले महीने राशि के पिताजी की बरसी थी। राशि के पति सिंकदर और दोनों बच्चे तो अगले दिन वापिस आ गए, क्योंकि स्कूल जाना था, और उन्की दादी थी घर पर । राशि दो दिन के लिए रूक गई थी।
तभी उसे मां देवकी ने रात को जब सो गए तो घर में होने वाली समस्या के बारे में बताया। बाहर से सब शांत दिखने वाले घर में इतना बड़ी कहानी पनप रही हैं। मां ने बताया कि जब से उसके पिताजी का निधन हुआ है, दोनों बेटे चाहते है कि वो अलग हो जाए और मकान को दोनों भाईयों के नाम पर कर दिया जाए।
“ये कैसे हो सकता है,फिर आप कहां रहोगे”।उनका कहना कि मैं जहां चाहूं रह सकती हूं, फैमिली पेंशन उस बेटे को दे दूं, जहां मैं रहूं।
“ दोनों वैसे भी अलग रह ले, नीचे उपर घर बना हुआ है, नाम पर आपके हो या उनके क्या फर्क पड़ता है” राशि बोली।
“यही तो मैं चाहती हूं बेटी कि जीते जी मैं किसी के नाम पर अपना घर नहीं करना चाहती। और पता नहीं अभी कितनी जिंदगी पड़ी है, बुढ़ापे में कितनी बीमारियां लग जाती है। कल को तुम आओ, मेरे रिशतेदार आए, तुम सब के बच्चों की शादियां” मां का गला भर आया।
और ये भी मालूम नहीं कि ये घर को बेच ही दे। अपनी नौकरी में हमने कैसे ये घर बनाया, ये हम ही जानते हैं, यह कहते कहते माँ चुप हो गई जैसे आगे कुछ कहने की हिम्मत न बची हो।
“ मैं तो अपने जीते जी यह घर बिकने नहीं दूंगी, यह घर तो मेरे सपनों की संसार है, अपने पति के साथ बिताए पलों की यादगार है” देवकी ने कहा।
तो उन दोनों नालायको को बाहर का रास्ता दिखाओ, जा कर रहे किराए के मकान में, राशि ने गुस्से से कहा।
वो भी तो नहीं कर सकती, पूत कपूत हो जाता है, माता कुमाता कैसे हो सकती है। दोनों के दो दो बच्चे हैं। उनको देखे बिना तो मेरा दिन ही नहीं निकलता। “ दादी, ये खाना, दादी कहानी सुनाओं, मेरे आगे पीछे घूमते है, कोई न कोई तो मेरे पास सो ही जाता है” देवकी की आखें नम हो आई।
राशि का मन भी दुविधा में पड़ गया। भाई दिल के बुरे नहीं थे। भाभियां भी ठीक थी। पिताजी के जाते ही ऐसा क्या हो गया जो सब बंटवारे पर उतर आए।
दो दिन के बाद राशि को वापिस आना ही था। लेकिन मन में तो झंझावत चलता रहता। सिंकदर ने कई बार पूछा लेकिन वो टाल गई। लेकिन कब तक। दरअसल सिंकदर अपने काम से काम रखने वाला बंदा था। दस साल होने को आए, ससुराल की बातों में कभी उसने दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।
दामाद था तो सब उसकी इज्जत मान करते थे, लेकिन वो रिजर्व तबियत का था।आखिर राशि ने मायके में होने वाली समस्या बता ही दी। कुछ सोचकर उसने कहा कि इतवार को वहां चलते है।
सिंकदर की सबने आव भगत की , खाने के बाद सिकंदर ने साथ लाई हुई चाकलेटस और नई वीडियो गेम बच्चों को देकर उन्हें अपने कमरे में जाकर खेलने के लिए कहा।
अब वहां सब बड़े रह गए। सिंकदर ने बिना कोई भूमिका बांधे सीधे ही बात करते हुए कहा कि , मुझे पता चला है कि तुम मकान अपने नाम पर करवाने के लिए माता जी पर जोर दे रहे हो। ।
“ तो इसमें बुराई क्या है, बड़ा भाई सरल कुछ ढ़ीढ़ता से बोला”।
“ ये घर बेचकर किसी अच्छी सोसायटी में हम दो फ्लैटस ले सकते है”। अब बोलने की बारी सागर की थी।
तो माताजी का क्या, राशि ने पूछा।
“ अरे मां का क्या, कहीं भी रह ले, कभी मेरे पास , कभी सरल के पास , सागर ने लापरवाही से कहा। बाबू जी की पेशंन ही काफी है उनके लिए”।
राशि को बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन उसने अपनी भावनाओं पर काबू पा रखा था।भावनाओं की कोई कीमत न हुई, मां न हुई गेंद हो गई कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ।
बात को ज्यादा न खींचते हुए सिंकदर ने सिर्फ इतना ही कहा, अच्छा होता कि पिताजी ने वसीयत की होती, लेकिन अब वसीयत नहीं है तो घर के दो नहीं चार हिस्से होगें।
कानून यही कहता है। तुम दोनों के इलावा राशि और माताजी का भी। तुम दोनों अपना फैसला बता देना, और तुम चाहों तो इस घर में नीचे उपर अलग भी रह सकते हो।और रही बात माताजी की, तुम उनके पास रह रहे हो, वो तुम्हारे पास नहीं रह रही।
यह सुनकर सरल और सागर के चेहरे लटक गए।जल्दी फैसला कर लेना, चलो राशि बुलाओ बच्चों को , घर चलें, सिंकदर ने कहा।
कुछ दिनों बाद देवकी ने सिकंदर से बात करते हुए कहा, धन्यवाद बेटा तेरी चार हिस्सों वाली बात से सब डर गए, अब सब ठीक हो गया।
“माताजी, हमें कोई हिस्सा नहीं चाहिए, लेकिन मैं कभी नहीं भूला कि वो परिवार मेरा भी है।आपकी और उस परिवार की खुशी ही हमारी खुशी है”।
दोस्तों , घर से जुड़ाव क्या होता है,यह वही समझता है जिसने तिनका तिनका जोड़कर अपना आशियाना बनाया होता है।
बच्चों को अपने सपने पूरे करने हैं तो अपने बल पर करें,न कि मां बाप की कमाई पर। मां बाप का कर्तव्य उन्हें अपने पैरों पर खड़े करने तक ही होता है।दूसरे के पैसे से जरूरते तो पूरी हो सकती है, इच्छाएं नहीं।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
#वाक्य- मत भूलो कि ये भी मेरा परिवार है