तलाक – संगीता स्थाना : Moral Stories in Hindi

सीमा के परिवार वाले बेहद ख़ुश थे ।फाइनली सीमा को आजादी मिल गई थी —अपने पति से ।माँ के चेहरे पर शकून था जीत की अपार ख़ुशी थी ।उन्होंने अपने कामवाली को कड़क चाय बनाने को बोला —- “अरे नीता – कड़क चाय बना हम सब के लिए 

मिठाई और नमकीन भी ले आना आज तो कविता जी भी चाय पी के जायेंगी ।”कविता जी वो वकील है जिन्होंने सीमा का केस लड़ा है और जीता भी ।

“ठीक है”

पर क्या सीमा भी ख़ुश है ।

“ माँ – मुझे डिस्टर्ब मत करना मैं सोने जा रही हूँ मेरा सिर दुख रहा है ।”

“पर चाय तो पी लो बेटा आराम मिलेगा ।”

“आराम तुम्हें ही मुबारक मुझे नहीं चाहिए आराम ।”उसके इस जवाब से सब हैरान थे ।सीमा ने अपने रूम में जा कर इतनी जोर से से दरवाजा बंद किया कि उसके आहत गुस्से की आहट सबने सुना।

जाहिर है इस रिश्ते के अंत से सीमा ख़ुश नहीं थी 

उस रिश्ते से जिसने सीमा ने स्वयं चुना था ।घर वाले कहाँ ख़ुश थे ।रोहन सीमा के माँ को पसंद नहीं था ।पर पापा की नज़र में तो वो हीरो था ।रोहन और सीमा ने पापा की रजामंदी से एक दूसरे को पसंद कर के शादी की थी । कितने खुश थे दोनों ।रोहन प्यार भी कितना करता था ।कितना ख्याल रखता था मेरा ।मैं ही डफर हूँ ।रोहन की जरा सी गलती को मैंने बढ़ा चढ़ा कर माँ को बताया कि की मेरी गृहस्थी ही उजड़ गई । पापा ने हमेशा मुझे ही समझाया उन्होंने तलाक को कभी जायज नहीं ठहराया । पर माँ अड़ ही गई थी ।अब रोहन के साथ मेरी बेटी एक पल भी नहीं रह सकती ।उस समय मुझे माँ की बातें कितनी अच्छी और प्यारी लगती थी ।पर माँ ने इतना कान भरा मेरा की उनकी बातों में मैंने अपनी गृहस्थी बर्बाद कर डाली । 

“ रोहन माफ़ कर दो मुझे मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती ।”बोल बोल के बस रोए जा रही थी रोहन तुमने भी अपनी क्या हालत बना रखी है ।

अपने बैग में अपना सामान पैक कर रही थी ।

“दीदी चाय बन गई बाहर आ जाओ सब बुला रहे है “पर सीमा अनसुना करती हुई बैग पैक करती रही ।सबने आवाज लगाई लेकिन सीमा नहीं आई । फिर माँ आई ——“बेटा बाहर आओ न सब प्रतीक्षा में है तुम्हारे ।” माँ की आवाज सुनकर सीमा ने दरवाजा खोला और अपनी सारी भड़ास निकाल दी——“अब तो माँ तुम्हारे क़लज़े को ठंडक मिल गई होगी—-तुम्हारी जीत जो हुई “ 

“ये कैसी बाते कर रही है माँ से तू “

“और क्या —— तुमने मेरे कान भर भर के रोहन के ख़िलाफ़ कर दिया और मैं तुम्हारी बातों में आ गई और अपना घर उजाड़ दिया ।काश मैंने पापा 

की बात मन ली होती ।”

“मैंने तो सिर्फ़ रोहन की सच्चाई बताई थी वो तुम्हारे लायक ही नहीं , तू बेकार ही मुझ पर भड़क रही है ।”

“ बस करो माँ — बहुत हो गया तुम कितना भी उसकी चुगली करो मैं नहीं आने वाली तुम्हारी बातों में ।”

“ये बैग क्यों पैक कर रही है कहाँ जा रही है तू “

माँ ने पूछा 

“अपने घर जा रही हूँ अपने रोहन के पास कागज पर लिखे चंद शब्द हमें अलग नहीं कर सकते मैं ख़ुद को एक मौक़ा और देना चाहती हूँ ।” सीमा ने तलाक के पेपर को टुकड़े टुकड़े कर के हवा में उछाल दिया । सब अचंभित थे क्रोधित भी ।लेकिन एक शख़्स थे ——सीमा के पिता जी ——  जिनके चेहरे पर मुस्कान थी और 

संतोष भी ।

लेखिका : संगीता स्थाना 

कान भरना

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