सास को बहु की तकलीफ  नहीं दिखती । – लक्ष्मी त्यागी : Moral Stories in Hindi

रमा,बहु ! जरा पानी तो लाना ! 

जी माँजी !अभी लाई कहकर उसने अपने आटे से सने हाथों को धोया और दौड़ते हुए ,एक गिलास पानी ले आई ,वो जानती है ,यदि मम्मी जी के आदेश का पालन होने में तनिक भी देर हुई तो मम्मीजी ,नाराज हो जायेंगीं। लीजिये !मम्मी जी !

क्या कर रही थी ?इतनी देर लगा दी। 

वो मम्मी जी, आटा गूँथ रही थी। 

मर्दों के आने का समय हो रहा है ,तू अभी तक आटा ही गुँथ रही है ,तुझसे कितनी बार कहा है ,दिन भर के थके -हारे मर्द घर में आते हैं ,कम से कम उन्हें रोटी तो समय पर मिलनी चाहिए। थोड़ा समय से काम कर लिया कर। 

जी मम्मी जी ,मैंने तो सब्जी पहले ही छोंक दी थी ,अब तो बस आटा ही तो गूँथ रही थी ,बाक़ी सब तैयार है। 

हम्म्म्म कहते हुए उसे घूरा और बोलीं -खाने में क्या सब्ज़ी बनाई है ? मुझसे पूछने की तो जरूरत ही नहीं है रमा पर तंज कसते हुए बोलीं -अब तो ये हीं  घर की मालकिन हो गयी हैं। 

कल मम्मी जी !आपने ही तो आलू -बैंगन की सब्ज़ी बनाने के लिए कहा था ,फ़्रिज में बैंगन रखे थे ,वो ही बना दिए ,रमा यह उम्मीद लगाए बैठी थी ,अब तो वे मेरी प्रशंसा करेंगी ,तारीफ़ के दो बोल बोलेंगी। 

तभी वो बोलीं -बहु !मुझे समझ नहीं आता तुझे कब अक़्ल आएगी ? आलू -बैंगन ही बनाने थे तो दोपहर में बना लेती तुझे पता है ,कमल !से बिना दही के सूखी सब्ज़ी नहीं खाई जाती। अब वो परेशान होगा। 

मुझे मालूम है ,मम्मी जी ! इसीलिए मैंने उनके लिए दही में हींग -जीरे का तड़का लगाकर रखा है ,रमा ने तो आज जैसे क़सम खाई है ,अपनी सास की हर बात का सही उत्तर देगी और उनकी बोलती बंद कर देगी ,तब वे उसके लिए प्रशंसा के दो शब्द बोलेंगी। 

तभी वो बोलीं – तेरे ससुर क्या उसका मुँह देखेंगे ?उनके लिए तो तूने सोचा ही नहीं होगा ,रात्रि में दही खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। क्या यह बात भी तुझे बतानी पड़ेगी ?कमल अभी जवान है ,झेल जायेगा किन्तु अच्छी आदतें जितनी जल्दी हो सके ,उतनी ही जल्दी डाल लेनी चाहिए। 

जी ,अब रमा का चेहरा उतर गया और सोचने लगी -गृहस्थ जीवन भी आसान नहीं है ,मम्मी जी को खुश करते -करते मेरी हालत खराब हो जाएगी किन्तु कोई न कोई परेशानी खड़ी ही रहेगी।

 मुझे इस घर में आये,अभी छह माह ही हुए हैं और मैं हर सम्भव प्रयास करती हूँ कि  अपनी सास को खुश कर दूँ किन्तु ये हैं कि मेरे काम में कोई न कोई कमी निकाल ही देती हैं। ये मेरी परेशानी कब समझेंगी ?नई -नई जगह आई हूँ ,थोड़ा लोगों को समझने में ,उनकी रूचि जानने में समय तो लगता ही है ,धीरे -धीरे सब सीख जाउंगी किन्तु ये हैं, कि प्रतिदिन एक नया’ सबक’ सिखाने लग जातीं हैं। कभी भी मेरे काम से खुश नहीं होतीं। 

रात्रि में सभी ने भोजन किया और प्रसन्न हुए और सोने चले गए ,रमा के ससुर ने उसकी प्रशंसा भी की ,बेटा !तुमने सब्जी बहुत अच्छी बनाई है।

रमा जब काम निपटाकर अपने कमरे में आई तो कमल फोन पर व्यस्त थे ,उन्होंने रमा को अंदर आते हुए देख लिया था और यह भी देख लिया था कि उसका चेहरा उतरा हुआ है , न जाने क्यों उदास है? कमल के मन में विचार आया और उसने रमा से पूछा -क्या कुछ हुआ है , या मम्मी ने कुछ कहा है। 

कमल की प्यार भरी बातें सुनकर, रमा से रुका नहीं गया और बोली -मैं कितना भी प्रयास करती हूं, किंतु आपकी मम्मी, कभी भी मेरे किसी भी कार्य से प्रसन्न नहीं होतीं। तभी तो लोग कहते हैं ”औरत ही औरत का दर्द नहीं समझती ” यह कहते हुए उसने सारी बात कमल को बता दी कि उनके मध्य  क्या वार्तालाप हुआ था ? 

तब कमल बोला -मम्मी! वैसे ही जबान से कड़वा बोलतीं है, किंतु दिल की बहुत अच्छी हैं , तुम उनकी बातों को अन्यथा क्यों ले जाती हो? तुम इसे सकारात्मक रूप से क्यों नहीं सोचती हो ? क्या यह बात तुम्हें पता थी की रात्रि में दही खाना अच्छा नहीं होता है। 

नहीं,

तो फिर, आज तुमने मम्मी के माध्यम से जाना कि रात्रि में दही खाना, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। सूखी सब्जी के साथ हमेशा, दही या रायता कुछ होना चाहिए इसलिए आइंदा तुम ध्यान रखोगी कि ऐसा भोजन, दोपहर में बनाया जाए, तो इसमें बुराई ही क्या है ?

उन्होंने अपने जीवन के, चालीस वर्ष गृहस्थ जीवन में बिताये ,जो अनुभव उन्होंने कमाए, वे अनुभव अब वे तुम्हें दे रही हैं।  इसमें मुझे तो कोई बुराई नजर नहीं आती है। हो सकता है, उनका कहने का तरीका थोड़ा सख़्त हो किंतु तुम्हें कुछ सीखा ही रही हैं , कुछ तुमसे ले तो नहीं रही हैं। जब तक वे हैं उनसे जितना ज्ञान बटोरना है, बटोर लो ! प्यार से समझाएं या गुस्से से, कुछ मिलेगा ही, कमल मुस्कुराते हुए बोला।

तुम ऐसा  इसीलिए कह रहे हो ,वो तुम्हारी माँ हैं ,तुम्हें न ही वो कुछ कहतीं हें ,सुनना तो मुझे ही पड़ता है।  

तब कमल ने रमा को समझाया -”अध्यापक भी जब अपना ज्ञान देता है, तो वह छात्र को कभी प्यार से, तो कभी मार से समझाता है या नहीं इसी तरीके से तुम इन्हें अपना’ गुरु’ समझ सकती हो। अपने जीवन के अनुभवों को तुम्हारे अंदर भर रहीं हैं और वो भी मुफ़्त में…. 

तब रमा  मुंह बनाते हुए बोली -मैं उनकी बातों का बुरा नहीं मानती हूं , उनके अनुसार कार्य भी करने का प्रयास करती हूं किंतु कभी-कभी मुझे भी उम्मीद होती है, कि वह शिक्षक मेरी प्रशंसा करें, जो परिश्रम मैंने किया है उसकी उपेक्षा न करके, एक- दो बोल प्यार के भी तो बोल सकती हैं।

वह शिक्षक नहीं, वे सास ही हैं , शिक्षक कभी-कभी अपने छात्र की प्रशंसा भी तो करता है किंतु ”सास कभी भी अपनी बहू की तकलीफ को नहीं समझती है।” कि वह किस तरह अनजान घर में आकर, अनजान लोगों के साथ रहकर अपना तालमेल बैठाने का प्रयास कर रही है। 

यहां पर तुम गलत हो, जहां तक मैं अपनी मां को समझता हूं , तुम्हारे सामने सख्त होने का प्रयास करती हैं, ताकि तुम किसी भी कार्य में लापरवाही ना बरतो ! किंतु बाद में तो तुम्हारी प्रशंसा ही करती हैं।

 मैंने तो कभी नहीं सुना,रमा बोली। 

सुनोगी कैसे? अभी तो तुम्हें बताया कि तुम्हारे पीछे, तुम्हारी प्रशंसा करती हैं , अच्छा चलो, यदि तुम अपनी प्रशंसा सुनना ही चाहती हो तो मैं एक दिन तुम्हें उनके मुख से ही तुम्हारी प्रशंसा सुनवा दूंगा। बड़े लोग सामने प्रशंसा नहीं करते हैं , प्रशंसा तो वो होती है ”जो पीठ पीछे की जाए,

पीठ पीछे तो ज्यादातर लोग बुराई ही करते हैं मुख पर चापलूसी के लिए प्रशंसा करते हैं।” तो मम्मी को तुम्हारी चापलूसी नहीं करनी है, तुम्हें जिंदगी जीना सिखा  रही हैं। कमल की बातों से रमा को थोड़ी सी राहत मिली और बोली -मेरी इच्छा है कि मैं भी कभी मम्मी जी के मुंह से अपने प्रशंसा सुनूँ । 

ठीक है, एक दिन तुम्हारी प्रशंसा में तुम्हें सुनवा कर रहूंगा। इस बात को लगभग 15 दिन हो गए, कमल की छुट्टी थी, रमा  भी अपने घर के कार्य निपटा कर अंदर सोने चली गई थी। कमल की नींद खुल गई और वह बाहर आकर अपने मम्मी के पास बैठ गया।

कुछ देर पश्चात अपनी मम्मी से बोला  -चाय की इच्छा हो रही है , रमा तो ‘घोड़े बेचकर सो रही है,’ यह भी न कितना सोती है ?यह सारा दिन करती ही क्या है ? सारा दिन घर में रहना और आराम करना। आज मेरी छुट्टी है , तो यह नहीं की पति को एक कप चाय भी दे दे ! थोड़ा नाश्ता हो जाता। रात भर सोएगी, दिन में भी सो रही है कमल बहुत देर तक उसकी बुराई करता रहा।

 तब अचानक उसकी मम्मी बोलीं -सारा दिन काम करके थक जाती है , पहले नाश्ता फिर दोपहर का खाना , तेरे कपड़े घर की साफ सफाई, मेरे भी चार काम हैं ,

जब से यहां आई है ,मैं आराम ही तो कर रही हूं। वरना मुझे कहां आराम मिल रहा था ? आज सोचा होगा, तेरी छुट्टी है इसलिए थोड़ा आराम कर लेती हूं , किंतु तुझे तो 2 मिनट के लिए भी चैन नहीं है। जब से देख रही हूं, उसकी बुराई पर बुराई किये  जा रहा है। आखिर वह भी इंसान है, जा, खड़ा हो! और तीन कप चाय बना कर ले आ !

कम से कम उसे एहसास तो होगा कि तू उसका कितना ख्याल रखता है ? उसके लिए चाय बना कर लाया है। इससे पति-पत्नी में प्रेम बढ़ता है अपनापन बढ़ता है। 

ऐसा तो आप भी कर सकती हैं, कमल ने कहा -मैंने तो आपको उसे डांटते हुए ही देखा है। 

हंसते हुए वह बोलीं -”सास तो वैसे ही बदनाम होती है”, सास- बहू का रिश्ता ही ऐसा है, हमारी सास हमसे सख्त थीं तभी तो हम जीवन के और गृहस्थी के सभी कार्य सीख पाए , आज वही गुर मैं अपनी बहू को सीखा  रही हूँ  ताकि वह जीवन में कभी मात न खाए। हां, मैं जानती हूं उसे मेरे व्यवहार से बुरा तो लगता होगा किंतु लाड- प्यार तो उसकी मां ने भी किया होगा, क्या वह वहां सीख पाई ? इसलिए थोड़ा सास  बनना पड़ता है तभी तो वह आगे जीवन में मजबूत होकर तेरे कंधे से कंधा मिलाकर चल पाएगी। 

आज अपनी की सास के मुंह से यह सब बातें सुनकर, रमा की आंखों में आंसू आ गए, और सोचने लगी -सही तो कह रही हैं, सास -बहू का रिश्ता ही ऐसा होता है, कभी नीम से कड़वा! और कभी खट्टा उसकी मिठास कभी महसूस नहीं होती जो धीरे-धीरे जीवन में घुलती जाती है। खुश होते हुए वह तुरंत ही रसोई में गई और उसने तीन कप चाय बनाने के लिए रख दीं। सोच रही थी-सास को बहू की तकलीफ दिखलाई तो देती है किंतु कभी-कभी उसके अच्छे के लिए सख्त भी बन जाती है।

                 ✍️ लक्ष्मी त्यागी

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