कठपुतली – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

   मां जब अपने हीं कोख जाए को कठपुतली बना डाले तो उसका वर्तमान और भविष्य कैसे नष्ट हो जाता है…. तुषार इसका ज्वलंत उदाहरण था… रांची के एक मेंटल हॉस्पिटल में मेरी बचपन की सखी  तुहिना जो आगरा में डॉक्टर है… आने के पहले से हीं अपने प्रवास की सूचना दे दी थी.. प्लीज जरूर आना तनु का आग्रह….

सब्र नहीं हुआ तो हॉस्पिटल में हीं चली गई.. गर्मजोशी से मिलने के बाद उसने एक बच्चे की चर्चा की जिसके लिए वो खासकर यहां आई थी… मैने भी उत्सुकता दिखाई उस केस में.. उसने कहा बाइस साल का एक लड़का है.. अच्छी पर्सनालिटी देखने में भी सुंदर स्मार्ट पर…. नाम भी बहुत प्यारा है तुषार… मै चौंक गई एक बार नाम बताओ तुषार…

मैने कहा एक प्लीज तुहिना एक झलक तो दिखा दो…. दूर से हों उसे पहचान गई… मेरे बेटे के साथ प्ले स्कूल में था… एक साथ हीं डीपीएस में एडमिशन लिया… को एजुकेशन होने के कारण लड़के लड़कियां आपस में घुले मिले थे.. पर तुषार अलग हीं रहता.. बेटा अक्सर अपनी छोटी बहन को बताता पता नहीं क्यों तुषार हम सभी से इतना कटा कटा सा रहता है…

पढ़ने में इतना तेज है पर.. धीरे धीरे उसके घर के आस पास रहने वाले सहपाठियों ने बताया इसकी मम्मी की सख्त हिदायत है अपने साथ पढ़ने वाले लड़कों से दूर रहना… लड़कियों से अगर बात भी कर ली तो पढ़ाई भी छूटेगी और फिर समझना… आठवीं क्लास में गणित साइंस और इतिहास के सर ने मोबाईल पर एक ग्रुप बना दिया था…

प्रोजेक्ट मिलता तो किसी क्लासमेट के घर बच्चे जमा होते नाश्ता खाना होता और अपना प्रोजेक्ट बनाते… लड़के और लड़कियां भी… पर तुषार कभी नहीं आता.. ऐसे हीं एक दिन अपने दोनों बच्चों को लेकर मै आंख के डॉक्टर के यहां गई थी… संयोग से बेटा की क्लासमेट सुहानी भी अपनी मम्मी के साथ आ गई… हम लोग टाइम पास के लिए गप्पे मारने लगे..

तभी अचानक तुषार अपनी मम्मी के साथ आया… सुहानी धीरे से अपनी मम्मी से बोल रही थी मम्मी उधर देखना भी मत टोकना तो दूर की बात प्लीज मम्मी.. मेरे दोनो बच्चे भी एकदम चुप हो गए… संडे के कारण भीड़ भी बहुत थी.. चश्मा लगाए चेहरे पर कोमलता की जगह कठोरता के भाव आंखों में अजीब सी मनहूसियत समेटे लगभग पैंतालिस साल की उम्र की थी तुषार की मां..

तुषार की आंखों में भय उदासी की गहरी छाया मैने एक झलक में ही देख ली थी… सरकारी स्कूल में शिक्षिका थी तुषार की मां… ये क्या शिक्षा देती होगी अपने स्टूडेंट्स को.. जो अपने बेटे की छोटी सी उम्र में… ब्रिलिएंट स्टूडेंट तुषार अपनी मां के गलत अनुशासन के कारण धीरे धीरे कुंठित होते जा रहा था…. वक्त गुजर रहा था .. बेटा प्लस टू कर लिया… उसके साथ के सभी बच्चे अच्छे नंबरों से पास हो

कर आगे की पढ़ाई के लिए बड़े शहरों में चले गए थे… छुट्टियों में आते तो सब इकट्ठे होते खूब मस्ती करते.. मै तुषार का जिक्र छेड़ देती.. सब खामोश हो जाते.. क्योंकि किसी के पास उसका कॉन्टैक्ट नंबर नहीं था.. एक दोस्त कहीं से उसकी मम्मी का नंबर ले कर तुषार का समाचार पूछा और बात

करने की इच्छा व्यक्त की तो उसकी मां खरी खोटी सुना कर फोन ना करने की हिदायत दे फोन काट दिया… बच्चे दबे जुबान बोल रहे थे तुषार की छोटी बहन अपने बॉय फ्रेंड के साथ मूवी देखने मॉल घूमने जाती है.. उसको कुछ नहीं बोलती आंटी..

         आज वही तुषार इस हाल में पहुंच गया है.. पहले ऑनलाइन थैरेपी का सेशन लंबे टाईम तक चला पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा.. तब यहां लाना पड़ा… सहेली से मिलने की खुशी तुषार का ये हाल देखकर कपूर की तरह उड़ गया…. अनुशासन के अर्थ ये नहीं होता बच्चे मां बाप के हाथों की

कठपुतली बन जाएं.. उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए एक सीमा तक आजादी भी जरूरी है… बच्चे बेजान कठपुतली नहीं होते कुदरत के द्वारा हाड़ मांस से बना खूबसूरत मासूम दिल के अनमोल उपहार होते हैं… इन फरिश्तों को प्यार अपनत्व भरोसा ममत्व स्नेह का वातावरण देना पड़ता है.. तुषार जैसा प्यारा जीनियस बच्चा उफ्फ अपनी मां के हाथों का कठपुतली बन यहां पहुंच गया…

Veena singh

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