पहली ही नजर में तनुश्री भा गई थी सोमेश्वर जी को।बहू के रूप में ऐसी ही लड़की की कल्पना की थी उन्होंने।गए तो थे किसी दूसरी लड़की को देखने,पर उनके परिवार वालों का व्यवहार और लड़की की अति आधुनिकता उन्हें पसंद नहीं आई।
लौटते हुए अपने भांजे के अनुरोध पर तनुश्री के घर पहुंचे थे वे। तनुश्री बड़ी बेटी थी घर की।सुंदर और सुशील तनुश्री को देखकर सोमेश्वर जी को बहुत अच्छा लगा।चेहरे पर बाल सुलभ हंसी और शालीन व्यवहार ने पूरी तरह मन मोह लिया था उनका।
पत्नी(सीमा) ने तुरंत हां कहने के लिए मना किया,और कानों में बुदबुदाते हुए कहा”सुनिए जी,लड़की घर के काम बिल्कुल भी नहीं कर पाती।देख नहीं रहे,कैसे हड़बड़ा रही है।बात करने से पहले अपने पिता की तरफ देख रही है।अभी हां मत कहिए।घर जाकर विचार-विमर्श करेंगे,तब जवाब फोन पर बता दीजिएगा।”
सोमेश्वर जी ने सीमा को समझाते हुए कहा”आज के जमाने में इतनी सीधी लड़की मिलती है भला?भोली है,बुद्धू नहीं है। धीरे-धीरे सब सीख जाएगी।तुम मां की नजर से देखोगी,तो पहचान पाओगी।सास बनकर कमी निकालती रहोगी,तो अच्छाई कैसे दिखेंगी?”
साथ में बड़ी बेटी भी थी।पिता की बातों का उसने भी समर्थन किया।
विधि का विधान ही था, तनुश्री सोमेश्वर जी के घर की बहू बनकर आ गई। मध्यमवर्गीय परिवार के सोमेश्वर जी,बहुत ही सज्जन और निर्विवाद डॉक्टर थे नगर के।सुंदर बहू की हर ओर प्रशंसा हो रही थी। तनुश्री के पिता ने मना करने के बावजूद शादी में बहुत सारा सामान दिया।
सीमा जी ने रिसेप्शन वाले दिन ही उनसे कहा था”भाई साहब,हमारे घर में आपकी बेटी को कभी कोई तकलीफ़ नहीं होगी।
हम लोग साधारण जीवन जीते हैं।दहेज का इतना सामान देखकर नाते-रिश्तेदार तरह-तरह की बातें बना रहें हैं।आपसे विनती है, अनावश्यक सामान वापस ले जाएं।समाज में गलत संदेश जा रहा है,कि डॉक्टर साहब ने इकलौते बेटे की शादी में जमकर दहेज मांग लिया।”
तनुश्री के पापा तुनककर बोले”अरे,कैसी बातें कर रहीं हैं आप?एक पिता ने अपनी बेटी को खुशी-खुशी सामान दिया है।दहेज का नाम देकर अपमानित मत कीजिए।”उनके तेवर देखकर ही सीमा को अंदाजा हो गया था कि तनुश्री के पापा को अपनी संपन्नता का बहुत ज्यादा घमंड है।
छठी इंद्रिय संकेत दे रही थी,पर पति को कौन समझाए।बहू के आते ही सर आंखों पर बिठा लिया था, सोमेश्वर जी ने।सीमा के टोकने पर उल्टे उन्हें ही अच्छी सास बनने का ज्ञान दे देते।
शादी के दूसरे दिन से ही दिन में कम से कम आठ-दस बार तनुश्री के पापा का फोन आने लगा।घर में घट रही हर छोटी-बड़ी खबर बेटी अपने पिता से साझा करती,और पिता ससुराल के विरुद्ध कान भरते रहते।
बेटे ने भी कई बार टोका तनुश्री को”हर छोटी-बड़ी बड़ी बात यहां की बाबा से मत बताया करो तनु।उस घर और इस घर के कायदे,रहने सहन अलग है।तुम अब इस परिवार का हिस्सा हो।मन खोलकर मां-पापा से बात किया करो।जो बात तुम्हें पसंद नहीं,साफ बोल दिया करो।तुम्हारे बाबा की अत्यधिक दखलअंदाजी मुसीबत बन जाएगी।”
तनुश्री ने यह बात भी जब अपने पिता को बताई,तो उन्होंने निःसंकोच समधी जी को ही फोन पर खरी-खोटी सुना दी।सीमा ने सोमेश्वर जी को बार-बार आगाह किया,पर सोमेश्वर जी बहू में बचपना ही देखते रहे।
एक छोटी सी बात पर जब तनुश्री की अपने पिता से बात हो रही थी,सीमा जी ने बहू का जवाब सुना”हां,बाबा।नाश्ता तो हो गया है।अभी बर्तन धो रही हूं।”उधर से पिता गुस्से से तमतमा कर जोर से बोले”इतना खर्च कर तुझे ब्याहा है,
बर्तन धोने के लिए।ये कंजूस लोग एक बाई अलग से नहीं रख सकते क्या?”बेटी ने शिकायतों का पुलिंदा खोल दिया।सीमा जी ने तुरंत पति को आने वाली विपत्ति से अवगत कराना चाहा,
तो उल्टा उन्हीं पर बरस पड़े”बस तुम औरतों का कान भरने के अलावा और कुछ काम नहीं है ना।तुम्हीं लोगों को दिक्कत होती है,बहुओं से। छिप-छिप कर क्या जरूरत थी,बहू की बातें सुनने की?ख़ुद में बदलाव लाओ सीमा।”
पति के कहे शब्द शूल की तरह चुभे आज सीमा को।इतना ही पहचाना था अपनी पत्नी को इतने सालों में।मन ही मन कहा उन्होंने,अब कुछ नहीं कहूंगी।जब भोगेंगे,तभी मानेंगे।सोची हुई बात जल्दी सच भी हो गई।छोटी बेटी के आते ही,फोन कर पिता को बुलवा लिया था तनुश्री ने।
आते ही पिता ने हुकुम सुना दिया”भाई साहब,तबीयत ठीक नहीं है तनु की।कुछ दिनों के लिए ले जा रहा हूं।”बिना जवाब की प्रतीक्षा किए,तनु तैयार होकर चल दी। सास-ससुर या पति से पूछने की जरूरत भी नहीं समझी।सीमा जी तो तैयार थीं,कान भरने का परिणाम देखने के लिए। सोमेश्वर जी ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी।
धीरे-धीरे यह क्रम अक्सर होने लगा।आम तौर पर दोष महिलाओं(मांओं)पर आता है,बेटी की ससुराल में दखलअंदाजी करने का।यहां तो मां का किरदार नगण्य था,हां पिता बखूबी यह दायित्व निभा रहे थे।छोटी सी बात पर पिता का आ धमकना और बेटी को ले जाना।
पंद्रह -बीस दिन के बाद फिर तनु का पति को वापस ले जाने का दवाब बनाना।तंग आ चुका था बेटा(वरुण) भी इन सबसे।थक कर एक दिन सोमेश्वर जी से बोला”बाबा,आपने तनु को इतना सर पर चढ़ाकर ठीक नहीं किया।
हर बार उसकी गलती को बचपना समझ कर टालते-टालते अब यह उसकी आदत बन गई है।उसके पिता अप्रत्यक्ष रूप से कई बार अलग रहने की बात कर चुकें हैं।तनु के मन में आपके और मां के लिए जहर घोल रहें हैं।आपको एक बार उनसे बात करनी चाहिए।मैं थक चुका हूं, बार-बार समझाते।”
सोमेश्वर जी अवाक रह गए। तनुश्री अंदर ही अंदर यह खेल, खेल रही थी।हे भगवान!मैं तो उसे मन का भोला समझता रहा।
समय बीतते-बीतते कान में जहर भरते-भरते इतना भर चुका था कि तनुश्री का व्यवहार और व्यक्तित्व ही पूरा बदल चुका था।इस बार सास को खूब खरी-खोटी सुनाकर गई ,जाते समय तनु। सोमेश्वर जी के सामने सास की ओर उंगली उठाकर रोते-रोते पिता से कहा उसने
“इस औरत ने जीना हराम कर के रखा है। रात-दिन बेटे के आगे-पीछे घूमती रहती है।बेटियों को जब-तब बुलवा लेती है,मुझसे सेवा करवाने।हमेशा बाबा(सोमेश्वर जी)के कान भरती रहती है।मुझे नहीं रहना यहां।मुझे ले चलिए यहां से।
“सीमा जी की आंखों से बहते आंसुओं ने सोमेश्वर जी को पछताने पर विवश कर दिया।उनकी पत्नी ने कभी बहू और बेटी में अंतर नहीं किया।अपने हाथों से खाना परोस कर पति के बाद बहू को खिलाया।हां ,घर के कायदे-कानून जरूर बताती रहती थी।
ग़लत काम करने पर सुधारने का प्रयास करती थी।पहली बार बहू से इतना ही कहा”बस तनु,तुम्हारी सास मेरी पत्नी है।तुमसे ज्यादा मैं उसे जानता हूं।उस पर कोई भी लांछन मत लगाना। तुम्हें जाना है,पिता के साथ जाओ।अब हमारा बेटा लेने नहीं आएगा, तुम्हें खुद आना पड़ेगा।
हां जब भी आओ ,अपने आपको बदल कर आना।मेरी कल्पना वाली तनु बनकर आना।”सास-ससुर की आंखों से गिरते आंसुओं की परवाह किए बगैर तनु जा चुकी थी।लगभग ढाई साल हो रहे थे।पिता के घमंडी और गुस्सैल स्वभाव से भली भांति परिचित थी वह।
अब वरुण को आकर ले जाने की गुहार लगाने लगी थी। वरुण ने साफ-साफ कह दिया था माता-पिता से”आएगी,फिर वही नाटक होगा।उसके बाबा फिर कान भरेंगे। आस-पड़ोस के लोगों के सामने हंगामा करके फिर चली जाएगी वह।मैं अब नहीं जाऊंगा।”
दामाद के ना आने से ससुर के दंभ को जब चोट पहुंची तो, उन्होंने बेटी के ऊपर झूठ का मंत्र फूंक दिया कि वरुण तलाक चाहता है तुझसे।”
पिता के मोह में फंसीं बेटी ने आकर सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की,बल्कि पिता के उकसाने पर खुद ही ससुराल वालों पर विभिन्न आरोप लगा कर तलाक की अर्जी लगा दी।
नोटिस जब सोमेश्वर जी के हांथ आया,सिर पकड़ कर बैठ गए।सीमा जी भी रोने लगी।तब बेटे(वरुण)ने हौसला बढ़ाया,”यह सब उसके पापा के उकसाने का नतीजा है।पैसे की ताकत से वे सभी को खरीदना चाहते हैं।मैं उससे मिलकर बात करता हूं कि म्यूचुअल कर लें। कोर्ट कचहरी ना जाए।दोनों परिवारों की ही बेइज्जती होगी।”
वरुण गया भी मिलने,पर पिता ने अंदर घुसने ही नहीं दिया।बरामदे में ही कुर्सी पर बैठकर फरमान जारी कर दिया,”अब तो तलाक होकर ही रहेगा।तनु नहीं रहना चाहती तुम्हारे साथ।”
वरुण ने असली कारण जानना चाहा “मेरे साथ या, मेरे माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती तनु।मैं बुढ़ापे मेंअपने माता पिता को तो अकेले नहींछोड़ सकता।आप लोग देख लीजिए,जो उचित है वहीं करिए।इस पूरे वार्तालाप में तनु एक बार भी सामने नहीं आई।अपना सा मुंह लेकर वरुण लौट आया और बोला”अब वे लोग कोई बात नहीं करना चाहते, सिर्फ तलाक चाहतें हैं।”
सोमेश्वर जी की सात पीढ़ियों में कभी तलाक नहीं हुआ था।पूरे नगर में उनकी प्रतिष्ठा चरम थी।समाज के लोग घरेलू कलह सुलझाने ,जिन्हें सम्मान के साथ बुलाकर ले जातें हैं,आज उन्हीं के घर में यह क्लेष हो रहा।पहली पेशी का नोटिस हांथ में था,भूख पेट में लगी थी, स्वास्थ्य भी कई वर्षों से सही नहीं चल रहा था।तलाक के अपमान का बोझ ऐसा लिया अपने मन में,बीमार पड़ गये।
बीस दिन एडमिट रहकर वैंटीलेटर में ही पड़े रहे।अभी कल ही आक्सीजन सप्लाई हार्ट में सही ना होने से अटैक आ गया। मानसिक अशांति ,उनके मनोबल से जीत गई।कल सुबह ही परलोक गमन कर गए डॉक्टर साहब।पूरा नगर उमड़ पड़ा था
उनकी अंतिम यात्रा में।दूर या करीबी सारे रिश्तेदार पहुंच चुके थे।ये सभी डाक्टर साहब के कर्ज दार थे। उन्होंने अपने-पराए का भेद किए बिना,सभी को समान प्रेम और आशीर्वाद दिया था।पूरा नगर रो रहा था,और उनकी मृत्यु की असली वजह “मानसिक अशांति “बता रहा था।
इस पवित्र आत्मा के साथ ऐसा कभी नहीं होना था।अंतिम दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते रहे,जाते रहे।नहीं आया तो वो एक अपना ,जिसे अपनों से भी ज्यादा प्यार किया था उन्होंने।सरल मन की बहू ,जो कि पापा के कान भरने से और उकसाने से विरोधी बन चुकी थी।
नहीं आ पाई।शायद उसे पता भी नहीं चल पाया होगा।उसका ना आ पाना(खबर ना मिलने की वजह से)शायद एक सहृदय ससुर का अभिशाप था।
अब रिश्ते दारों से अग्निसंस्कार का समय पूछ रही है तनु,ताकि उस परिवार के मृत्यु पश्चात नियम कर सके।यह एक सज्जन ससुर की परिकल्पना वाली बहू रह ही कहां गई थी,शायद इसलिए अंतिम दर्शन तक नहीं करने का अवसर मिला उसे।
अब कान भरने वाले चाहे जितना भरे,एक भला आदमी बहू -बेटे की साथ की गृहस्थी देखने के लिए तरस कर ही दुनिया को छोड़कर जा चुका था।अब बहू नियम करके पछतावा करना चाहती है,या दिखावा वही जाने।
शुभ्रा बैनर्जी
कान भरना मुहावरा आधारित लघुकथा