कान भरना – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

रामायण के प्रमुख पात्र दशरथनन्दन श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। पूरे अयोध्यावासी राम के राजा बनने की खुशी में नाच-गाकर उत्सव मना रहे थे।अगले दिन राज्याभिषेक की तैयारी में गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र अन्य पंडित -पुरोहितों के साथ विचारमग्न थे।राजा दशरथ और रानी कौशल्या अपने ज्येष्ठ पुत्र राम के राज्याभिषेक की कल्पना कर आनंद सागर में डुबकी लगा रहें

थे।राजा दशरथ की तीसरी पत्नी कैकेयी भी राम के राज्याभिषेक की खबर से प्रफुल्लित थी, क्योंकि राम को वह अपने पुत्र भरत से भी ज्यादा प्यार करती थी।राम भी कैकेयी को अपनी माता कौशल्या जैसा ही आदर , सम्मान देते थे।

राजा दशरथ की तीसरी पत्नी कैकेयी कैकेय देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी।कैकेयी युद्ध कौशल में भी पारंगत थी।अक्सर वह पति के साथ सारथी रूप में युद्ध के मैदान में जाती थी और संकट की घड़ी में उनकी मदद करती थी।इस कारण राजा दशरथ अन्य रानियों की अपेक्षा कैकेयी को अत्यधिक प्यार करते थे।रानी कैकेयी के साथ दासी मंथरा भी सेवा के लिए अयोध्या आ गई थी।

राम के राज्याभिषेक की खबर से दासी मंथरा जल-भुन उठी।जब उसने कैकेयी को खुशी से झूमते हुए देखा,तो उसका सब्र जबाव दे गया।उसने  कैकेयी के कान भरते हुए कहा -“रानी!तुम बहुत भोली हो।तुम राम के राज्याभिषेक की खबर सुनकर खुशी से फूली न समा रही हो। तुम्हें अगर अपनी चिंता नहीं है,तो अपने पुत्र भरत के भविष्य के बारे में तो ख्याल करो!”

कैकेयी -” मंथरा!तुम्हारी मति भ्रष्ट हो गई है। मैं राम को अपने पुत्र भरत से ज्यादा स्नेह,प्रेम करती हूॅं, फिर उनके राज्याभिषेक की खबर से क्यों न खुश होऊॅं?”

मंथरा ने हार न मानते हुए एक बार फिर से कहा -“रानी!इतनी भी भोली मत बनो। गहराई से सोचकर देखो कि अगर राजा दशरथ तुम्हें सभी रानियों से ज्यादा प्यार करते तो उन्होंने राज्याभिषेक के समय भरत को ननिहाल क्यों भेज दिया?

राम के राजा बनते ही तुम्हारी स्थिति दूध में गिरी मक्खी के समान हो जाएगी। कौशल्या राजमाता बन जाएगी।तुम माता और पुत्र सदा के लिए उनके सेवक ही रह जाओगी। तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हूॅं।मुझे क्या?’कोऊ नृप होहिं  हमहिं का हानी,चेरी छाड़ि न होएब रानी।”

कैकेयी मंथरा की कुटिल चाल में फॅंस चुकी थी।उसे धीरे-धीरे एहसास होने लगा था कि मंथरा की बातें बिल्कुल सही हैं। निराश न होते हुए कैकेयी ने कहा -“मंथरा! तुम्हारी बातें सत्य प्रतीत हो रहीं हैं, परन्तु राज्याभिषेक की तैयारी तो पूरी हो चुकी है।ऐसे में भला मैं क्या कर सकती हूॅं?”

अपना तीर सही निशाने पर लगते देखकर मंथरा ने चालाकी से एक बार  फिर से कैकेयी के कान भरते हुए कहा -“रानी!राजा दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दे रखे हैं। उन्हें माॅंगने का अवसर आ गया है।पहले वरदान के रूप में भरत के लिए राजसिंहासन माॅंगो और दूसरे वरदान के रूप में राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास।”

एक बार राजा दशरथ ने असुरों विशेष रूप से शंभासुर के साथ युद्ध में देवताओं की सहायता की थी।उस युद्ध में एक बार राजा दशरथ बेहोश हो गए थे तो कैकेयी ने सारथी के रूप में उनके प्राणों की रक्षा की थी।पत्नी के प्रति कृतज्ञता दिखाते हुए राजा दशरथ ने कहा था -” रानी!आपने युद्ध में मेरी जान बचाई है।आप मुझसे दो वरदान माॅंग लीजिए।”

 उस समय जबाव में कैकेयी ने कहा था -” राजन्!अभी वरदान माॅंगने का सही वक्त नहीं है।अवसर आने पर अवश्य माॅंग लूॅंगी।”

मंथरा राजा दशरथ द्वारा दिए गए उसी वरदान की याद कैकेयी को दिलाती है।मंथरा अनेक छल-कपट और षड्यंत्र के द्वारा बार-बार कैकेयी के कान भरने में सफल हो जाती है। अंततः मंथरा की बांतों में आकर कैकेयी की मति भ्रष्ट हो ही जाती है और उसने राजा दशरथ से अपने दोनों वरदान माॅंग लिए।

राजा दशरथ कैकेयी द्वारा अप्रत्याशित माॅंग सुनकर अचंभित हो उठे। उन्हें भरत को राजगद्दी देना तो मंजूर था, परन्तु राम का चौदह वर्ष का वनवास मंजूर नहीं था। उन्होंने कैकेयी को मनाने की काफी कोशिशें की, परन्तु कैकेयी अपनी माॅंग पर टस-से-मस नहीं हुई।राजा दशरथ अपने दिए हुए वचन से पीछे नहीं हट सकते थे, क्योंकि ‘रघुकुल रीति सदा चलिए आई,प्राण जाऍं पर वचन न जाऍं।’

राजा दशरथ ने कैकेयी को दोनों वरदान देकर अपने वचन पूरे किऍं, परन्तु ज्येष्ठ पुत्र राम वियोग में अपने प्राण त्याग दिऍं।

बाद में कैकेयी को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ। मंथरा के कान भरने के कारण एक ओर  उसे वैधव्य का शोक झेलना पड़ा,तो दूसरी ओर समाज की अवहेलना के साथ अपने पुत्र भरत का भी तिरस्कार झेलना पड़ा। सचमुच मंथरा की बातों में आने के कारण कैकेयी को माया मिली न राम!

समाप्त। 

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

मुहावरा व कहावतों की लघु-कथा

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