औरत कोई कठपुतली नहीं – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

रीना अब तुम्हारे में वो पहले जैसे बात नहीं रही, बुढ़िया लगने लगी हो अभी से।मिसेज शर्मा को देखो कैसी टनाटन लगती हैं इस उम्र में भी।कोई कह नहीं सकता,कि वो दो बड़े बच्चों की माँ हैं।” रीना को आए दिन अपने पति रमेश की व्यंग भरी बातों से दो चार होना पड़ता था।सासु माँ भी कभी-कभी अपनी सहेलियों की बहुओं की सुंदरता के बखान करती रहती थीं।पर उन्हें ये कभी नहीं लगता,कि उनकी बहु भी कभी सुंदर थी फिर उसका ऐसा हाल क्यों हुआ ?

रीना बहुत ही सुशील व संस्कारी लड़की थी।सबकी बातें सुनती,पर चुप रहती।बस दिन भर घर के कामों में व्यस्त रहती थी।सुबह बेटे राहुल को स्कूल और पति को ऑफिस भेजना उसके बाद सास-ससुर का नाश्ता बनाना फिर घर की साफ सफाई।बेटे को देखना,दोनों समय का खाना बनाना ये ही उसकी दिनचर्या बन चुकी थी।उस पर रिश्तेदारों का भी आना जाना लगा रहता था।दो नंदें भी शहर में रहतीं थीं,वो भी अक्सर आ जाती थीं

और भाभी से अपनी आवभगत करवाती थीं।काम के नाम पर तिनका नहीं तोड़ती थीं,सास भी बस जोड़ों के दर्द का बहाना बनाकर काम से बचती रहती थी।पति देव ऑफिस से आकर टी वी लगाकर बैठ जाते।बेटे से पूछते तक नहीं,कि उसकी पढ़ाई कैसी चल रही है?सबकी जी हजुरी करते-करते वो इतना थक जाती,कि उसे अपने लिए समय ही नहीं मिलता।कभी-कभी तो बाल भी अच्छे से सँवार नहीं पाती थी।बस एक कठपुतली बनकर रह गई जो सबके इशारे पर नाचती रहती थी उसका अपना कोई वजूद नहीं रह गया था।

राहुल के स्कूल से आने का समय हो गया था,रीना ने जल्दी से जो दुपट्टा हाथ में आया उसे गले में डाला और बाहर की तरफ दौड़ी।राहुल को स्कूल बस से उतारकर गोदी में उठाया और घर आ गई।उसका हाथ मुँह धुलवाया और उसके कपड़े बदले।तभी वह अपनी तोतली भाषा में बोला-” मम्मा,आज मेले दोस्त की मम्मी इचकूल आई थी वो बोत सुंदल लग रही थी,आप भी ऐछे बाल काटलो।बेटे की बातें सुनकर रीना को महसूस हुआ,कि बच्चों को भी सुंदरता आकर्षित करती है।राहुल को खाना खिलाकर सुला दिया.

थोड़ा कमर सीधी करले ये सोचकर वह भी लेट गई।तभी डोर बैल बजी,सासु माँ ने आवाज लगाई..रीना देखना कौन है? जी,माँजी कहकर रीना दरवाजा खोलने गई।अरे मधु,तू..!! अपनी कॉलेज की दोस्त को यूँ अचानक देखकर रीना की खुशी का ठिकाना ना रहा।उससे गले मिली और उसे अंदर लेकर आई।बातों ही बातों में मधु ने रीना को बताया,कि वो किसी रिश्तेदार की शादी में आई थी सोचा उससे भी मिलती चले।

मधु रीना से बोली-“ये तूने अपना क्या हाल बना रखा है?तू तो कॉलेज की ब्यूटी क्वीन थी।तेरी सुंदरता के कितने लड़के दीवाने थे?बड़ी बड़ी आँखे अंदर धँस गई हैं,गुलगुले गाल पिचक गए हैं।चेहरा भी फीका पड़ गया है।सब ठीक है? तू खुश तो है ना?”मधु ने एक साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी।रीना बोली-” अरे बाबा मैं खुश हूँ,वो तो बस बच्चा अभी छोटा है,इसलिए मैं अपने को वक्त नहीं दे पाती हूँ ।”

मधु तो चली गई,पर रीना के मन में बहुत सारे सवाल छोड़ गई।वो आइने के सामने खड़ी होकर अपने आप से बातें करने लगी,क्या सचमुच वह अब पहले जैसी नहीं दिखती?,क्या वह उम्र से ज्यादा बड़ी दिखने लगी है? इसके लिए वह अपने को ही दोषी मानने लगी।उसने अपने आप से एक वादा किया,कि वह अब से परिवार के साथ-साथ अपना भी ध्यान रखेगी।

रविवार था,रमेश घर पर था राहुल के स्कूल की भी छुट्टी थी।रीना जल्दी-जल्दी घर के काम कर रही थी,ताकि दोपहर में जब सब आराम करेंगे तो वह पास के ब्यूटीपार्लर में जाकर अपने बालों की कटिंग,आइ ब्रो और पेडीक्योर मेनिक्योर करवाएगी।

रमेश ने आखिर पूछ ही लिया-” क्या बात है,आज इतनी जल्दी में क्यों हो? कहीं जाना है क्या?” रीना बोली -“हाँ सोच रहीं हूँ,कि आप आज घर पर हो तो राहुल को देख लोगे मैं पार्लर होकर आती हूँ ।” रीना का इतना कहना ही था,कि रमेश तुनककर बोला-“आज ये बैठे बिठाए पार्लर जाने की क्या धुन सवार हो गई?अब कौनसे तुम्हें लड़के देखने आने वाले हैं? एक संडे ही तो मिलता है आराम करने के लिए वो भी बच्चे को सम्भालने में बीत जाएगा।” रीना सहमे हुए बोली-“आप ही तो कहते हो ना मैं बुढ़िया लगने लगी हूँ,मुझमें वो पहले वाली बात नहीं है।” 

“वो तो मैं ऐसे ही कह रहा था,वैसे भी तुम कौनसा नौकरी करती हो? जो अपने को मेंटेन करना पड़े।” इससे पहले कि रमेश अपनी बात पूरी करता,सासु माँ और ससुर जी बोले-” बेटा तन की सुंदरता नहीं मन की सुंदरता मायने रखती है।ये पार्लर-वार्लर सब चौंचले बाजी है इन सबके चक्कर छोड़ो और अपना घर-परिवार पर ध्यान दो।रीना को रमेश की बताई वो बात याद आ गई,

कि माँ व बहनों को तो सुंदर बहु ही चाहिए थी।स्वयं रमेश ने भी कितनी लड़कियाँ देखी थीं पर उसे रीना ही पसंद आई थी क्योंकि वह सुंदर थी।वह सोचने लगी…कैसे हैं यह दोहरी मानसिकता वाले लोग? शादी के लिए इन्हें “तन की सुंदरता “और घर के काम के लिए “मन की सुंदरता” चाहिए।

रीना का अपने से किया वादा टूट गया।उस दिन के बाद से वह उदास रहने लगी ना हँसती,ना ढंग से खाती नाही किसी से ज्यादा बात करती।यदि रमेश कहीं चलने को कहता तो मना कर देती उसके अंदर हीन भावना आ गई थी,कि वह सुंदर नहीं दिखती इसलिए किसी पार्टी,फंक्शन में जाने लायक नहीं है।

एक दिन राहुल ने रमेश से कहा-“पापा,मम्मी आजकल हस्ती भी नहीं है,ओल मेले को प्याल भी नहीं करती।” रमेश ने समझाया -“बेटा मम्मी की तबियत ठीक नहीं है।”

रीना धीरे-धीरे अवसाद की शिकार हो गई।बैठे-बैठे रोने लगती,ना उसे भूख लगती ना ही नींद आती।सारा घर परेशान हो गया।डॉक्टर को दिखाया,जाँच करवाई तो सब रिपोर्टस नॉर्मल आईं।डॉक्टर ने कुछ सोचकर रमेश से कहा-“इन्हें किसी अच्छे सायक़ेटिस्ट को दिखाइए। “

रमेश रीना को सायकेटिस्ट के पास ले गया।उसने पहले रीना से अकेले में सब पूछा,फिर रमेश को बुलाकर कहा-“मिस्टर रमेश आपकी पत्नी को सिवीयर डिप्रेशन हो गया है और आप इसके लिए जिम्मेदार हैं।आपने रीना को एक कठपुतली की तरह बना रखा है,जैसा आप लोग चाहते वैसा वो करती है।उसकी अपनी अपनी कोई चाहत ही नहीं रह गई।उसने अपने लिए कुछ करने का सोचा भी तो आपने उसकी भावनाओं को कुचल दिया।आप जानते हैं? हर स्त्री मरते दम तक सुंदर दिखना चाहती है,सुंदर व आकर्षक दिखना उसका हक है।एक तो आपने उसके ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी डालकर उसकी सुंदरता (तन) को खराब किया और ऊपर से उसको ये अहसास कराके कि वो अब पहले जैसी नहीं दिखती बुढ़िया लगती है,उसके मन को भी खराब कर दिया।नतीजा आपके सामने है।ये अपनी “तन की सुंदरता” और “मन की सुंदरता” वाली दोहरी मानसिकता को छोड़ दें।और हाँ आपसे किसने कहा कि केवल नौकरी करने वाली महिलाओं को ही सजने सँवरने की जरूरत होती है,घर पर रहने वाली महिलाओं को नहीं।”

रमेश अपराधबोध सा सर झुकाकर चुपचाप खड़ा था।डॉक्टर फिर बोला -” मिस्टर रमेश यू नो,एक स्त्री सब कुछ सहन कर सकती है,पर उसके रूप-रंग का कोई उपहास करे तो वह सह नहीं पाती फलस्वरूप वह हीन भावना से ग्रस्त हो जाती है।उसके आत्मविश्वास में कमी आ जाती है और धीरे-धीरे अवसाद का शिकार हो जाती है।समय रहते संभाल लीजिये वरना इनको इस अवस्था से उबार पाना कठिन हो जाएगा..!!

रमेश रीना को लेकर घर आ गया,उसे समझ आ गया था कि उसके परिवार की खुशियाँ किसमें निहित हैं?अबसे रमेश रीना की खुशियों का स्वयं ख्याल रखने लगा,परिवार के लोगों ने भी उसका साथ दिया।सबने अपने-अपने हिस्से का काम बाँट लिया।धीरे-धीरे रीना ठीक होने लगी और परिवार की खुशियाँ लौट आईं।

दोस्तों औरत कोई कठपुतली नहीं जो सबके इशारे पर नचाते रहें।वो भी एक इंसान है उसके सीने में भी दिल होता है।उसकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिए ताकि वो खुश रह सके।क्योंकि वो खुश रहेगी तभी तो परिवार को खुश रख पाएगी।

कमलेश आहूजा
#कठपुतली 

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