कठपुतली – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

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जूही ने सोचा भी नहीं था कि उसकी जिन्दगी इस तरह बदल जायेगी। उसके जीवन से तो प्यार, स्नेह और अनुराग सब समाप्त हो गया था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह कठपुतली से एक जीवित युवती के रूप में कैसे बदल गई?

पिता की एक छोटी सी दुकान थी। बचपन से ही उसने घर में अभाव देखा था। उससे छोटी दो बहनें और एक भाई और घर के खर्चे के लिये हर समय लड़ते माता पिता ने घर को घर कम अखाड़ा अधिक बना दिया। दोनों ही एक-दूसरे को समझने को तैयार नहीं थे। जूही सबसे बड़ी थी, गरीबी से बाहर निकलने का उसे एक ही रास्ता समझ में आया कि अच्छी तरह से पढाई करके नौकरी करे ताकि घर की गरीबी और कलह दूर हो सके।

इच्छा और क्षमता तो उसकी आगे बहुत पढ़ने की थी लेकिन परिस्थितियां प्रतिकूल थीं। इण्टर करने के बाद ही उसने बच्चों को ट्यूशन पढाना शुरू कर दिया। मम्मी के साथ घर के काम में हाथ बंटाना तो शुरू तो किया ही, भाई बहनों की परवरिश में भी हाथ बंटाने लगी।

पापा की सीमित आमदनी से घर का खर्च चलना ही मुश्किल था। जूही ने अपनी सब इच्छाओं और तमन्नाओं का बचपन से ही गला घोटना सीख लिया।

ग्रेजुएशन करने के तुरन्त बाद उसकी सरकारी संस्थान में लिपिक के पद पर नौकरी लग गई। 

घर में सभी बहुत खुश थे। घर में खुशहाली आने लगी लेकिन घर वाले खुशहाली लाने वाले को भूल गये। सबके पास हर समय अपनी मॉगें थीं। 

पापा खुश थे कि अब उनमें और मम्मी में पैसे को लेकर लड़ाई होनी बंद हो गई। रिश्तेदार मम्मी से कहने लगे कि अब जूही की नौकरी लग गई है इसकी शादी करो लेकिन मम्मी बड़े घमंड से कहतीं कि सरकारी नौकरी वाले लड़कों को जितना दहेज मिलता है उतना ही कोई देगा तभी मैं अपनी बिटिया की शादी करूॅगी। आखिर हमारी जूही किसी लड़के से कम तो है नहीं।

उससे बिना दहेज शादी करने वालों की कमी नहीं थी लेकिन मम्मी की यह विचित्र मॉग कोई भी मानने को तैयार नहीं था।

अधिकतर बातें तो उसे पता नहीं चलतीं। वह सुबह अपना टिफिन लेकर चली जाती, घर की अच्छी व्यवस्था के लिये देर तक ओवरटाइम करती और घर आकर खाना खाकर सो जाती।

मम्मी अक्सर उसका सिर सहलाते हुये कहतीं – ” बहुत मन करता है कि तुम्हें दुल्हन बनाकर विदा करूॅ लेकिन क्या करूॅ बेटा, तुम्हारे पापा ने जिन्दगी में कुछ किया ही नहीं। बस मुश्किल से रोटी दाल भर का ही कमा पाये। समझ में नहीं आता कि तुम तीनों बहनों को कैसे पार लगाऊॅ?”

भावुकता में भरकर वह कह देती – ” मेरी चिन्ता न करो मम्मी, पहले राही  की शादी कर दो।”

” लोग तो यही कहेंगे कि बड़ी की कमाई के लिये उसकी शादी नहीं की और छोटी की कर दी।”

” कहने दो मम्मी, आप अपना काम करो।”

धीरे-धीरे मम्मी ने सब जगह यह बात फैलानी शुरू कर दी कि जूही अभी शादी नहीं करना चाहती। आखिर कब तक उसके कारण दूसरी लड़कियों को बैठाये रखूॅगी। 

बहन की शादी के पहले ही मम्मी ने यह मकान छोड़कर बड़े घर की भी मॉग रख दी – ” अभी तो किसी तरह इस घर में रह लेते हैं क्योंकि सभी अपने बच्चे हैं लेकिन दामाद आयेगा तो कहॉ बैठा लूॅगी?”

बड़े घर का किराया भी अधिक था, तभी भाई ने सुझाव दिया – ” दीदी, इससे तो अच्छा है हम बैंक और आपके ऑफिस से ऋण लेकर एक नया घर खरीद लें। जितना आप किराया देंगी उतनी ही किश्तें होंगी और अपने पास मकान भी हो जायेगा।”

” फिर शादी का क्या होगा?” जूही की चिन्ता।

” अभी तो राही की शादी तय भी नहीं है। जब तय होगी, देखा जायेगा।”

आखिर ऋण लेकर घर ले लिया गया। जूही की सारी जमा-पूंजी राही की शादी में लग गई। उसके ऊपर मकान और राही की शादी का दोहरा ऋण हो गया। 

एक एक करके दोनों बहनों राही, माही और भाई की शादी हो गई। मम्मी को हर समय बहनों के घरों में दिये जाने वाले तीज त्यौहार, रीति रिवाजों की चिन्ता लगी रहती। 

राही, माही अपने पतियों के और भाई अपनी पत्नी के साथ बैठकर हॅसी मजाक करते रहते, उसमें मम्मी भी शामिल रहतीं लेकिन जूही के आते ही एक सन्नाटा फैल जाता, सब चुप हो जाते। जूही सबके बीच में आकर बैठती तो अपनी अवांछित उपस्थिति अनुभव करके थकान का बहाना करके उठ जाती। उसके कमरे से निकलते ही माहौल फिर वैसा ही हो जाता।

अब उसे अनुभव होने लगा कि वह सिर्फ पैसा कमाने की मशीन मात्र है। पैसा कमाने से अधिक उसकी कोई उपयोगिता नहीं रह गई थी।

एक दिन बेशर्म बनकर मम्मी से कह दिया –  अब तो मैंने आपकी सारे दायित्व पूरे कर दिये, अब तो मेरे सम्बन्ध में सोचिये। सब अपनी अपनी गृहस्थी में मग्न हैं। मैं अकेली पड़ती जा रही हूॅ।” 

मम्मी ऐसे चौंकी जैसे उन्हें बिच्छू ने डंक मार दिया हो – ” क्या कहा? अकेली कैसे  हो? मैं , पापा,  राही, माही, उनके बच्चे, तुम्हारा भाई भाभी, उनके बच्चे इतने लोग तो हैं। अब बुढ़ापे में तुम्हें शादी का शौक चढ रहा है। पहले तो तुम कहती थीं कि शादी नहीं करूॅगी। अब क्या हो गया?”

” आपकी परेशानी देखकर ही मैंने कहा था कि पहले राही और माही की शादी कर दो। अब तो दोनों बहनों और भाई की शादी भी हो गई। भाई की नौकरी भी लग गई तो सब कुछ व्यवस्थित हो गया है।”

यह सुनते ही मम्मी ने रोना धोना मचा दिया – ” नौकरी है तो क्या हुआ? उसकी शादी हो गई है, उसका अपना परिवार है, उसे देखेगा कि हमें देखेगा। तुम्हें अपना सुख और अपना स्वार्थ दिख रहा है। अपने बूढ़े माॅ बाप नहीं दिख रहे हैं। हम दोनों को किसी तीरथ में भीख मॉगने के लिये छोड़ आओ, फिर धूमधाम से ब्याह रचाना।

जूही भविष्य की भयावह कल्पना से सहम गई और मम्मी के ड्रामे के कारण चुप रह गई। इस घटना के बाद से दोनों बहनें और भाभी उसे व्यंग्य भरी नजरों से देखकर मुस्कराती रहतीं। तरह तरह के गानों की पंक्तियां उसे देखकर गुनगुनाई जातीं-

” चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी।”

” निगोड़ी कैसी जवानी है?”

जूही का घर आने का मन नहीं करता है। उसका मन सबसे खिन्न हो गया। तभी उसके ऑफिस में  स्नानान्तरण के कारण माणिक आये। जूही की बगल वाली सीट पर बैठने वाले मिस्टर अग्रवाल उसी माह सेवा निवृत्त हुये थे। इसी कारण माणिक को मिस्टर अग्रवाल की ही सीट और काम दिया गया। माणिक जूही से तीन साल छोटे थे और बहुत शान्त रहता थे काम को लेकर की जाने वाली बातों के कारण दोनों में दोस्ती का एक सम्बन्ध बन गया लेकिन दोनों ही अपने अपने परिवार की बातें करने में कतराते थे।

एक दिन ऑफिस में किसी का फोन आया। सुनते ही माणिक के चेहरे पर जैसे हवाइयां उड़ने लगीं – ” जूही जी, मेरी सीट देख लीजियेगा, मैं घर जा रहा हूॅ।”

” क्या हुआ?” लेकिन बिना जवाब दिये माणिक चला गया। 

रात में घर पहुॅचने पर उसने माणिक को फोन किया – ” सब ठीक है ना। आखिर क्या हो गया था?”

” मेरा बेटा सीढ़ियों से गिर गया था। अभी अभी अस्पताल से लौटा हूॅ। बाद में बात करेंगे।”

” माणिक की शादी हो चुकी है, उसके एक बेटा भी है‌। लगता तो नहीं है।” फिर खुद ही अपनी सोच पर उसे हॅसी आ गई कि उससे छोटे उसके तीनों भाई बहन भी तो शादी-शुदा और बच्चे वाले हैं।

दूसरे दिन भी जब माणिक नहीं आया तो जूही ने घर में फोन कर दिया कि वह अपने सहकर्मी के बीमार बेटे को देखने के लिये जायेगी, इसलिये देर से घर आयेगी।

माणिक कहॉ रहता है, यह तो उसे मालुम था लेकिन उसके घर का पता उसके पास नहीं था। इसलिये उसने रास्ते से ही माणिक को फोन किया और उसका पता ले लिया। 

माणिक ने पूॅछा भी लेकिन उसने फोन काट दिया।

थोड़ी देर बाद ही वह माणिक के घर के बाहर खड़ी थी। उसे देखकर माणिक आश्चर्य में था। उसके आश्चर्य को अनदेखा करके उसने पूॅछा – ” बेटू कहॉ है?”

माणिक उसे अन्दर कमरे में ले आया। अन्दर एक वृद्धा करीब डेढ़ – दो साल के सोते हुये बच्चे को गोद में लिये बैठी थीं।

” अचानक क्या हो गया था?” जूही ने वृद्धा के पास बैठते हुये कहा।

वृद्धा ने सुबकते हुये कहा- ” क्या बताऊॅ बेटा? आज इसकी आया नहीं आई थी तो मैं बस दो मिनट के लिये इसे कमरे में छोड़ कर इसके लिये खाना लेने गई और यह सीढ़ियों तक चला गया और •••••।”

” आप इस तरह मत रोइये, इस उम्र के बच्चे शरारत में चोट लगा लेते हैं लेकिन इसकी मम्मी कहॉ थीं?”

तब तक चाय लेकर माणिक आ गया – ” मैं बताता हूॅ?”

माणिक ने बताया कि शादी के तीन साल बाद जब उसके घर में खुशियों ने दस्तक दी तो सबसे ज्यादा खुश उसकी पत्नी अंजली थी। वह और माणिक आने वाले बच्चे की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था।

अंजली का आठवां महीना चल रहा था। ऑफिस में अंजली का फोन पहुॅचा – ” माणिक, जल्दी आओ, मुझे लग रहा है कि बच्चा पेट में हिल डुल नहीं रहा है। कोई गति अनुभव नहीं हो रही है। कहीं मेरे बच्चे को कुछ हो तो नहीं गया।” 

अंजली बुरी तरह रो रही थी – ” चिन्ता मत करो, कुछ नहीं हुआ हमारे बच्चे को। मैं आ रहा हूॅ।”

माणिक ने प्रसव के लिये अम्मा को पहले ही बुला लिया था। अस्पताल पहुॅचने पर पता चला कि बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन नहीं पहुॅच रही हैं। अभी आठवां महीना लगा ही था लेकिन ऑपरेशन करना जरूरी हो गया। ऑपरेशन सुनते ही अंजली का ब्लडप्रेशर बहुत बढ गया। किसी तरह ब्लडप्रेशर नियंत्रण में करके ऑपरेशन से बच्चा पेट से निकाल लिया गया। बच्चा बहुत कमजोर था। अंजली की जिद पर उसे बच्चे को दिखाया गया तो उसने एक नजर बच्चे को और फिर माणिक की ओर देखा – ” माणिक, हमारा बच्चा।”

” हॉ अंजली, अभी कमजोर है इसलिये अभी इनक्यूबेटर ( मशीन ) में रखेंगे।”

बच्चा इनक्यूबेटर में था इसलिये केवल अंजली को छुट्टी दे दी गई लेकिन बच्चे को दूध पिलाने के लिये अंजली को अस्पताल जाना पड़ता था। माणिक ने कहा भी कि वह अभी कमजोर है इसलिये रोज अस्पताल न जाये। अपना दूध निकाल कर दे दे, वह चला जाया करेगा लेकिन अंजली नहीं मानती थी, वह कम से कम दिन में एक बार अपने बच्चे को देखना चाहती थी।

इसी भाग-दौड़ में उसे बुखार आने लगा और अंजली को मृत्यु तक ले गया। बच्चे के घर आने के पहले ही अंजली सदैव के लिये चली गई।

माणिक की लाई चाय ठंडी हो गई। अपने ऑसुओं को छुपाने के लिये माणिक उठकर चले गये। अम्मा रोती रहीं- ” क्या करूॅ बिटिया, कैसे पालूॅ इस नन्हीं सी जान को? अभी तक तो ठीक था लेकिन अब तो भागने दौडने भी लगा है। अब इस उम्र में शरीर नहीं चलता है।”

” अम्मा, माणिक जी की शादी करवा दीजिये तो इसे मॉ मिल जायेगी।”

” माणिक नहीं मानता है बेटा। कहता है कि शुरू में सब लड़कियां मान जाती हैं, बाद में सौतेली मॉ बन ही जाती हैं। मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे को कोई तकलीफ हो।”

” माणिक जी कहते तो सही हैं अम्मा।”

उस दिन से माणिक के ऑफिस आने पर जूही सबसे पहले अम्मा और जयंत के सम्बन्ध में पूॅछती। माणिक के लिये एक कोमल अहसास उसके मन में अपनी जगह बनाता जा रहा था लेकिन यह ख्याल कि माणिक उससे तीन साल छोटे हैं, उसके कोमल अहसास को दबा देता।

जयंत की दूसरी वर्षगांठ पर माणिक ने जूही से कहा – ” जूही, कल जयंत की दूसरी वर्षगांठ है, हमारे यहॉ जन्मदिन केक काटने के स्थान पर पूजा होती है। अम्मा ने तुम्हें बुलाया है। यदि आ सको तो आ जाना।”

” बुलाने का यह कौन सा तरीका है, आ सको तो आ जाना। ठीक है मैं अम्मा और जयंत के लिये आ जाऊॅगी लेकिन आप मुझसे बात मत करियेगा।” जूही ने नकली नाराजगी से कहा।

” मेरा यह मतलब नहीं था।” कहकर माणिक मुस्कराने लगा।

पहले तो जूही का मन किया कि मम्मी को माणिक के घर जाने के सम्बन्ध में बता दे लेकिन जानती थी कि मम्मी अर्थ का अनर्थ बना देंगी। इसलिये वह ऑफिस के समय पर निकली। पहले बाजार गई, जयंत के लिये खूब सारे कपड़े, खिलौने खरीदे साथ ही पूजा के लिये फूल, फल और मिठाई भी ले ली।

पूजा के बाद जयंत को उसी आसन पर बिठाकर वर्षगांठ की रश्में पूरी की गईं। सबके जाने के बाद तीनों लोगों ने साथ में बैठकर खाना खाया। जूही के बहुत अच्छा लगा, उसके घर में तो अब कोई उसके साथ खाना तक नहीं खाता था। 

खाने के बाद अम्मा, माणिक और जूही साथ बैठकर बातें करने लगे तो अम्मा ने पूॅछा – ” अभी तक शादी क्यों नहीं की?

बदले में जूही ने अम्मा और माणिक को अपने परिवार के सम्बन्ध में सब कुछ बता दिया। कुछ देर चुप रहकर अम्मा ने कहा – ” बेटा, क्या तुम मेरे बाद जयंत का दायित्व सम्हालोगी? मुझे अपने घर का पता दो, मैं खुद तुम्हारे घर जाकर तुम्हारे और माणिक के सम्बन्ध में बात करूॅगी।”

” मैं माणिक से तीन साल बड़ी हूॅ अम्मा।”

” तो क्या हुआ? यदि तुम मेरे घर में और मेरी जिन्दगी में आना स्वीकार करो तो हम कल ही तुम्हारे घर आयेंगे।”

” मेरे घर वाले नहीं मानेंगे। कोई नहीं चाहता कि अब मेरी शादी हो और मेरा भी कोई संसार हो। कठपुतली की तरह मम्मी के इशारों पर आजीवन नाचती रही और अब जब अपने लिये कुछ सोचना चाहती हूॅ तो सबको बुरा लगता है। मुझे व्यंग्य बाणों से बेधा जाता है। कहा जाता है कि मैं बूढ़ी हो गई हूॅ।”

दिल के घाव खुले तो खुलते ही चले गये, वह फूट फूटकर रोने लगी – ” मैं लड़की नहीं, पैसा कमाने की मशीन हूॅ अम्मा।”

” मॉ होकर ऐसे कैसे कह सकती हैं तुम्हारी मम्मी? मैं खुद बात करूॅगी उनसे जाकर।”

” नहीं अम्मा, आप नहीं मैं ही बात करूॅगी। बहुत नाच चुकी कठपुतली बनकर। अब उन धागों को मुझे ही तोड़ना है।”

घर लौटते समय जहॉ जूही के मन में एक नया संसार बनने की खुशी थी, वहीं घर वालों के व्यवहार और परिणाम को सोचकर उलझन भी थी। 

ऑफिस समय पर ही घर लौट आई थी इसलिये किसी के कुछ कहने का प्रश्न नहीं था लेकिन आज जूही को बहुत कुछ कहना था। खाना खाकर वह मम्मी पापा के कमरे में आ गई। उसे अपने कमरे में आया देखकर पापा बोल पड़े – ” कुछ कहना है जूही?”

” हॉ पापा, अब आपके सारे दायित्व जो मैंने अपने कंधे पर उठा लिये थे, सभी पूरे कर दिये हैं लेकिन अभी आपका एक दायित्व बाकी है, जिसे मैं पूरा नहीं कर पाई हूॅ। सोचती हूॅ कि वह भी पूरा कर दूॅ।”

पापा ने उसके सिर पर हाथ रख दिया – ” नहीं बेटा, मेरे सारे दायित्व तुमने पूरे कर दिये हैं, अब कोई जिम्मेदारी बाकी नहीं है।” 

” मेरी शादी भी आपका दायित्व था पापा। सोच रही हूॅ कि जब सारे दायित्व निभा दिये तो इसी को क्यों अपूर्ण रहने दूॅ?”

” क्या?” पापा और मम्मी एक साथ चौंक पड़े।

तभी मम्मी की तीखी आवाज पूरे घर में गूॅज गई। साथ ही उस आवाज के साथ उसका भाई और भाभी भी कमरे में आ गये – ” अभी शादी का भूत उतरा नहीं है दिमाग से। बूढ़ी भईं बिलारी तो मूस बजावें तारी।( बिल्ली जब बूढ़ी हो जाती है तो उसे देखकर चूहे भी परिहास में तालियां बजाते हैं) कौन करेगा अब तुमसे शादी? सबको पता है कि तुम शादी नहीं करना चाहती थीं, अब जो सुनेगा मजाक बनायेगा‌ तुम्हारा। अब तुम्हारी क्या उम्र है शादी की? तुम्हारी सहेलियों के तो बच्चे भी बड़े हो गये हैं।”

” सही तो कह रही हैं मम्मी, अब कौन मिलेगा आपको?” यह छोटा भाई था। 

” इसकी चिन्ता करने की आप लोगों को जरूरत नहीं है।” सबको आश्चर्यचकित करते हुये जूही ने माणिक, जयन्त और अम्मा के सम्बन्ध में जब सब कुछ बताया तो सब दंग रह गये।

” हॉ मम्मी, इस उम्र में तो दीदी को रिजेक्टेड माल ही मिलेगा।” भाभी की बात को उसने अनसुना कर दिया।

” आप लोगों को अब मेरी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है ” लेकिन मम्मी पापा की जिम्मेदारी?” उसका भाई।

” पापा और मम्मी के चार बच्चे हैं। तेरह साल मैंने सबकी जिम्मेदारी निभाई है। अब तेरह तेरह साल सबको केवल मम्मी पापा की जिम्मेदारी निभानी है।” 

सब एक दूसरे का मुॅह देखने लगे कि यह कठपुतली आज बोलने कैसे लगी?

तभी मम्मी ने एक नादिरशाही फरमान जारी कर दिया – ” ठीक है, तुम शादी करो या जो मन आये करो लेकिन पहले यह मकान मेरे या पापा के नाम करो और तुम्हें मैंने पाला – पोसा, पढ़ाया, नौकरी लगवाई तो तुम कम से कम दस लाख रुपये मेरे नाम जमा करो। जब तुम अपने लिये सोचने लगी हो तो मैं भी अपने बुढ़ापे के लिये सोचूॅगी।”

” मकान की तो अभी किश्तें चल रही हैं, जब तक बैंक का ऋण अदा नहीं हो जाता, रजिस्ट्री गिरवी रहती है तो मकान आपके नाम कैसे कर सकती हूॅ? रही पैसे की बात तो मेरे पास तो कुछ है ही नहीं। मैं तो अपना पूरा वेतन और ओवरटाइम आपको दे देती हूॅ।”

” इससे हमें कोई मतलब नहीं है। अगर शादी करनी है तो मेरी शर्त माननी ही पड़ेगी।”

जूही ने देख लिया कि बहस करने से कोई फायदा नहीं है तो उसने उठते हुये कहा – ” शायद मैंने सबकी जिम्मेदारी उठाकर गलती कर दी।”

कमरे में आकर जूही बहुत देर तक रोती रही। उसकी बेबसी भरी सिसकियों की आवाजें सुनकर सब मुस्कराते रहे। समझ गये कि जूही ने हार मान ली है और अब कभी शादी की बात नहीं करेगी।

जूही की ऑखों में नींद नहीं थी। आखिर जब न रहा गया तो मोबाइल उठाकर छत पर आ गई। कुछ देर तक सोचती रही फिर माणिक को फोन मिला दिया। पहली घंटी में ही माणिक ने फोन उठा लिया – ” जूही, अभी तक सोई नहीं क्या?”

” आप भी जग रहे थे क्या?”

” हॉ, तुम्हारी बातें सुनकर मन बहुत परेशान हो गया है। बोलो, क्या बात है? चिन्ता मत करो, अब मैं तुम्हारे साथ हूॅ।‌ जानता हूॅ कि कुछ विशेष बात होगी तभी इतनी रात को फोन किया है।”

सांत्वना के शब्द सुनकर जूही ने रोते हुये सब बता दिया। 

सुनकर माणिक दंग रह गया, फिर बोला – ” कल ऑफिस से छुट्टी ले लेते हैं। तुम घर आ जाओ। हम सब लोग बैठकर समाधान निकालेंगे।”

दूसरे दिन अम्मा और माणिक के साथ जूही ने एक योजना बना ली। सबसे पहले कोर्ट में जाकर शादी के लिये आवेदन पत्र दे दिया। अब उन्हें नोटिस पीरियड का एक महीने का समय बिताना था।

जूही शाम को घर लौट आई और उसने दुखी होने का नाटक करते हुये मम्मी से कह दिया कि शर्त सुनकर माणिक ने शादी से इन्कार कर दिया है।

पूरा घर बहुत खुश हुआ। मम्मी ने उसे गले से लगाकर कहा -” हम सब तो तुम्हारे साथ हैं ही। अब तो सारी जिम्मेदारी भी खतम हो गईं हैं। खूब खुश रहो। अपने ऑफिस से एल० टी०सी ० ले लो, चलो हम सब कहीं घूम आते हैं।”

जूही को मम्मी के गले लगकर बहुत नकारात्मक अनुभूति हो रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कॉटें चुभ रहे हों। इसलिये वह जल्दी से उनसे दूर होते हुये बोली – ” अभी तो छुट्टी मिल नहीं पायेगी, बहुत काम है। अगले महीने के बाद आवेदन कर दूॅगी।”

एक महीने तक जूही बहुत दुखी होने का अभिनय करती रही। जिस दिन एक महीना पूरा हुआ उसके एक दिन पहले ही जूही ने अपने पर्स में सारे प्रमाण पत्र, बैंकों की पासबुक, ए०टी०एम० कार्ड रख लिये और नित्य की तरह ऑफिस के लिये निकल आई। थोड़ी ही दूर पर माणिक मिल गया। सबसे पहले दोनों वकील के पास चले गये। वहॉ पर अम्मा और उसके दो दोस्त पहले से ही उपस्थित थे। 

शादी की कोर्ट सम्बन्धी सभी औपचारिकतायें पूरी होने के बाद दोनों ने अम्मा के पैर छुये तो अम्मा ने दोनों को गले से लगा लिया। 

अम्मा वैसे तो घर में सारी तैयारियां करके गईं थीं और बाकी तैयारियों के लिये माणिक की बहन मणि को छोड़ गईं थीं। कोर्ट से जब जूही बाहर निकली तो एक फूलों से सजी कार में मणि, उसके पति संदीप और दो बच्चों जयंत और मणि की बेटी दिया को देखकर प्रसन्नता के ऑसू छलक आये। जूही ने आगे बढ़कर जयंत को गोद में ले लिया तो मणि ” भाभी ” कहकर उसके गले लग गई।

घर में अम्मा ने विधि विधान से माणिक और जूही को सुखद दाम्पत्य के बंधन में बांध दिया। 

अम्मा ने पहले ही पंडित जी को सब कुछ बता दिया था। इसलिये पंडित जी अपनी पत्नी को भी लेकर आये थे। जूही का हाथ माणिक के हाथ में देते हुये पंडित जी और उनकी पत्नी ने ही किया – ” कन्या का दान नहीं करूॅगा। पाणि ग्रहण संस्कार करूॅगा। मेरी बेटी और तुम एक दूसरे का हाथ पकड़कर हर परिस्थिति, हर दुख सुख में जीवन संघर्ष को पार करना। एक दूसरे को प्रसन्न और सुखी रखना।”

फिर उन्होंने अम्मा से कहा – “आज से आप मेरी समधन हो गई हैं और मेरा घर जूही का मायका।”

सब कुछ बिना किसी व्यवधान के सम्पन्न हो गया तो अम्मा ने ऐसा कुछ कह दिया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी लेकिन जूही ने कहा – ” ठीक है अम्मा, आप जैसा कहेंगी हम वही करेंगे लेकिन आप भी मेरे साथ चलियेगा।”

” हॉ भाभी, हम आपको अकेले नहीं जाने देंगे। हम सभी उनको स्वागत समारोह के लिये निमंत्रण देंगे। आना न आना उन पर निर्भर करता है।”

एक बड़ी सी कार जूही के दरवाजे पर आकर रुकी। उससे पहले मणि और संदीप उतरे। उन्होंने आगे बढकर दरवाजे की घंटी बजा दी। दरवाजा खोलने जूही की मम्मी ही आईं। दरवाजे पर  मणि और संदीप को देखकर जब तक वह कुछ पूॅछ पातीं। उनकी नजर कार से उतरते नई दुल्हन और दूल्हे पर पड़ी। अपनी ही बेटी को दुल्हन के रूप में देखकर पहले तो वह पहचान ही नहीं पाईं लेकिन जब भारी साड़ी सम्हालती जूही और जयंत को गोद में लिये माणिक मणि और संदीप के बगल में आकर खड़े हुये तो वह चिल्ला कर बोली – ” धोखेबाज, आखिर अपनी मनमानी करके मानीं तुम। शर्म भी नहीं आई यह नाटक रचाते, मेरी जग हंसाई कराते।”

इतनी देर में दरवाजे पर जूही के पापा और भाई भाभी भी आ गये – ” मैं इस शादी को नहीं मानता। जूही, चुपचाप अंदर आओ और दुबारा कभी इस एक बच्चे के बाप से मत मिलना।” जूही के पापा दहाड़े।

जूही कुछ कहती उसके पहले अम्मा सामने आ गईं – ” कैसी बातें कर रहे हैं आप लोग। इन दोनों की शादी हो चुकी है। शादी करने में शर्म और जगहंसाई कैसी? यदि अपनी बेटी को अनुमति दे देते तो इसकी विदाई आपके घर से होती। खैर छोड़िये, अपनी बेटी दामाद को आशीर्वाद दीजिये और कल होने वाले स्वागत समारोह में सब लोग आकर हमारी प्रसन्नता को और बढ़ाइये।”

 ” इस घर से इसे आशीर्वाद नहीं बद्दुआ मिलेगी और रही आने की बात तो हम तो इसकी मृत्यु पर भी नहीं आयेंगे। जाइये यहॉ से।”

जूही के भाई ने दरवाजा बंद कर लिया तो सिसकती हुई जूही को समेटे हुये अम्मा लौट पड़ीं। जूही की सिसकियां रुक ही नहीं रहीं थीं। सब चुप थे। ऑसुओं से अम्मा का कंधा गीला हो गया। 

अम्मा ने माणिक को कुछ इशारा किया तो माणिक ने जूही की पीठ को सहलाते हुये कहा – ” तुम तो जानती थीं कि ऐसा ही होगा फिर इतना व्याकुल क्यों हो? बस चुप हो जाओ, मैं अपनी दुल्हन को इस तरह रोते नहीं देख सकता।”

तभी कार चलाते हुये आगे से संदीप की आवाज सुनाई दी – माणिक भइया, अभी केवल भाभी की पीठ पर हाथ रखकर ही सान्त्वना दे लीजिये, घर चलकर अपने कमरे में अच्छी तरह सांत्वना दीजियेगा। ” 

संदीप और मणि खिलखिला कर हॅस पड़े। अम्मा ने मुस्कराकर मुॅह घुमा लिया। माणिक और जूही के अधरों पर भी झेपी झेपी मुस्कान तैरने लगी।

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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