रिया एक मध्यमवर्गीय, पढ़ी-लिखी और आत्मनिर्भर स्त्री थी। वह एक निजी कंपनी में कार्यरत थी और अपने दो बच्चों की परवरिश पूरी ईमानदारी और ममता से कर रही थी। उसके दिन की शुरुआत घर के कामों से होती और ऑफिस की जिम्मेदारियों तक जाती, फिर भी वह कभी शिकायत नहीं करती। परंतु उसकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी चुनौती थी—विभा, उसकी जेठानी।
विभा एक अमीर परिवार से आई थी और अपने मायके के रुतबे, महंगे तोहफों और चालाकियों से सास-ससुर व पूरे परिवार में अपनी जगह बना चुकी थी। वह हर समय रिया पर ताने कसती, झूठे इल्ज़ाम लगाती और उसे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती।
रिया की मां ने एक बार कहा था, बेटी, सहना कमजोरी नहीं है, लेकिन जब आत्मा रोने लगे, तब आवाज़ उठाना ज़रूरी है।
एक दिन रिया का छोटा भाई, जो हाल ही में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम पर लगा था, अपने पहले वेतन से कुछ मिठाई, दो साड़ियाँ और एक-एक जोड़ी पायल लेकर आया। साड़ियाँ महंगी नहीं थीं, पर उनमें स्नेह की गंध थी। विभा ने सास के सामने पायल को उठाकर ज़मीन पर फेंक दिया और व्यंग्य किया, “हम कामवाली को भी इससे अच्छी देती हैं।” सास भी बोलीं, “बेटा, अपनी हैसियत के हिसाब से चलो, तुम्हारी माँ के पहनने लायक होंगी।”
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रिया का दिल टूट गया। भाई की आंखों में अपमान का दर्द उतर आया। फिर एक दिन जब रिया बुखार से तप रही थी, विभा पिक्चर देखने निकल गई। शाम को सासू माँ ने खाना न बना देखकर हंगामा मचा दिया। रिया जैसे-तैसे उठी, पर रसोई तक पहुँचने से पहले गिर पड़ी। जब डॉक्टर आया, तो बोला, “इनका हीमोग्लोबिन बहुत कम है। मानसिक और शारीरिक थकान से इनकी हालत बिगड़ रही है।”
धीरे-धीरे रिया ठीक होने लगी। तभी एक दिन उसकी मां एक छोटी-सी अंगूठी लेकर आईं। विभा ने उसे देखकर फिर झूठ बोला, “ये तो मेरी अंगूठी है, मैंने आज ही खरीदी है।” इस बार रिया की आत्मा चुप न रह सकी। उसने बिल निकालकर पति को दिखाया और कहा, “हम गरीब हैं, लेकिन चोर नहीं। ये मेरी मां की मेहनत की निशानी है।”
उस रात रिया का पति बिना किसी को बताए सेअपने साथ अलग ले गया। जाते-जाते रिया ने सिर्फ एक बात कही, “मेरी आत्मा को तकलीफ देकर तू कभी सुखी नहीं रह सकती, विभा।”
समय बीता। रिया की अनुपस्थिति से घर में सन्नाटा फैल गया जैसे भाग्य ही साथ छोड़ गया । विभा की ज़िंदगी बिखरने लगी। पति की नौकरी में घाटा, कोर्ट केस, और मानसिक तनाव ने उसे जकड़ लिया। कभी जो सबकी चहेती थी, अब अकेली रह गई।
और तब, एक रात विभा की नींद खुली—रिया की वही बात कानों में गूंज रही थी। उसने छत की ओर देखा और धीरे से फुसफुसाई, “सच कहा था रिया… आत्मा को ठेस देकर कोई सुखी नहीं रह सकता।”
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किसी की आत्मा को पीड़ा देकर कभी कोई खुश नहीं रह सकता। संसार से नहीं, भीतर की अंतरात्मा से रिश्ता बना लो—यही जीवन का सबसे बड़ा सत्य है।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
‘अनाम अपराजिता’
अहमदाबाद
# मेरी आत्मा को तकलीफ देकर तू कभी सुखी न रह सकती।