शहर के पॉश इलाके में रहने वाली समीरा की ज़िंदगी सोशल मीडिया पर किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं लगती थी। इंस्टाग्राम पर लाखों फॉलोअर्स, हर दिन की चमचमाती तस्वीरें, महंगे कपड़े, खूबसूरत कैफे, मुस्कुराता चेहरा — सबकुछ परफेक्ट। पर परदे के पीछे की हकीकत कोई नहीं जानता था।
वह नितांत अकेली थी।उसकी फैन फाॅलोइंग जितनी अधिक थी उसकी निजी जिंदगी उतनी ही तन्हा थी। न कोई सच्चा दोस्त न कोई हमदर्द हमसफ़र।
पैसा और चमक-दमक यदि सुकून देते तो हर अमीर आदमी सुखी होता।लेकिन वास्तविकता तो यह है कि सुकून हमारे भीतर ही होता है।यदि हम अपने मन पर कंट्रोल रखें तो हर मुश्किल को आसान किया जा सकता है क्योंकि दुःख का असली कारण हमारा मन ही है।
समीरा जब छोटी थी तो वह एक सुंदर, सुशील और सरल लड़की थी।उसकी जिंदगी में पैसा अधिक न था लेकिन प्यार करने वाले माता-पिता,भाई और बहुत से रिश्तेदार थे।वह अपनी छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थी।उसके पास सुख-सुविधाएं भले ही कम थी लेकिन खुशियाँ भरपूर थी।
उसके माता-पिता बहुत समझदार और मेहनती इंसान थे और यही उन्होंने अपने बच्चों को भी सिखाया था।समीरा पढ़ाई में अच्छी थी तो वह हमेशा अच्छे नंबरों से पास होती थी
बारहवीं के बाद जैसे ही उसने कालेज में एडमिशन लिया उसकी दोस्ती कुछ अमीर घरों की लड़कियों से हो गई। उनका रहन-सहन देखकर वह भी उनके रंग में रंगने लगी और पढ़ाई छोड़कर फैशन की दुनिया की ओर उसकापूरा फोकस हो गया।कभी कोई फैशन शो तो कभी माॅडलिंग।
पहले तो उसे यह सब बहुत आकर्षक लगता और वह पैसों की दीवानी हो गई।
इस चक्कर में शादी भी नहीं की।माता-पिता ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस पर तो जैसे अमीरी और दिखावे का जुनून सवार था।उसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकती थी।
लेकिन उम्र के साथ-साथ उसको महसूस हुआ कि दिखावा कभी अंदरूनी खुशी नहीं दे सकता। उसके लाखों फॉलोअर्स थे लेकिन सच्चा हमदर्द कोई नहीं।अब मात-पिता भी इस संसार में नहीं थे।भाई का भी अपना घर परिवार था वह नितांत अकेलापन महसूस करती। तब उसे अपनी सोच पर अफसोस होता ।
एक दिन समीरा की पुरानी स्कूल फ्रेंड नेहा उससे मिलने उसके घर आई।
नेहा: “वाह समीरा! क्या लाइफ है तेरी… मैं तो तुझे देखकर जलने लगी हूँ। हर दिन पार्टी, घूमना-फिरना, इतना बड़ा घर।”
समीरा (हल्की मुस्कान के साथ): “हां नेहा, बाहर से सब अच्छा लगता है। पर क्या तू सच में जानना चाहती है कि अंदर क्या चल रहा है?”
नेहा: “हां, बिल्कुल। तू इतनी खुश दिखती है, पर अब तेरी आंखों में थकान दिख रही है।”
समीरा ने गहरी सांस ली और चुपचाप अपनी मोबाइल स्क्रीन नेहा की तरफ बढ़ाई, जिसमें ढेरों फिल्टर लगी तस्वीरें थीं।
समीरा: “ये सब नकाब है नेहा। असल में मैं अकेली हूँ। सुबह से रात तक बस ये सोचती रहती हूँ कि अगली पोस्ट क्या डालूं ताकि लोग कहते रहें – ‘वाह समीरा, क्या ज़िंदगी है!’ मेरे पति बिज़ी रहते हैं, दोस्तों से मिलना अब बस कॉमेंट्स तक सीमित रह गया है। असल में, मैं खुद से भी दूर हो गई हूँ।”
नेहा: “तो फिर ये सब क्यों? ये दिखावा किसके लिए?”
समीरा: “क्योंकि सच्चाई दिखाने से लोग मुंह फेर लेते हैं, पर चमक-धमक उन्हें खींचती है। एक बार जब मैंने अपनी उदासी भरी पोस्ट डाली थी, तो किसी ने लाइक तक नहीं किया। पर जैसे ही नई ड्रेस में फोटो डाली, हज़ारों लाइक्स आ गए।”
नेहा: “पर तू तो अपने आप को खो रही है इस खेल में। क्या फायदा ऐसे रिश्तों का जो सिर्फ लाइक्स और कॉमेंट्स में सिमट जाएं?”
समीरा की आंखें भर आईं। नेहा ने उसका हाथ थामा।
नेहा: “चल, आज हम बिना फोटो लिए कॉफी पिएंगे। पुराने दिनों की तरह। कोई दिखावा नहीं, सिर्फ दिल से बातें।”
समीरा ने हल्का सा मुस्कुराते हुए सिर हिलाया — जैसे सालों बाद किसी ने उसे वो याद दिलाया हो, जो वो कभी थी — एक सच्ची, सीधी-सरल लड़की।
#दिखावे की ज़िंदगी
मीरा सजवान ‘मानवी’
स्वरचित मौलिक