फर्ज – मंजू सक्सेना : Moral Stories in Hindi

सुनीता गेट पर खड़ी थीं और उनकी नजरें एयरपोर्ट की तरफ जा रही गाड़ी पर टिकी थीं। अमित और उसकी पत्नी सुलक्षणा को छोड़कर अभी-अभी वह वापस लौटी थीं। मन में अजीब सी कशमकश चल रही थी। पड़ोसन मालती ने जब पूछा, “क्या हुआ, भाभीजी?” तो सुनीता का गुस्सा फूट पड़ा।

“अरे… जाते वक्त एक बार भी ये नहीं कहा कि आप अब इस बुढ़ापे में अकेले कहाँ रहेंगे, हमारे साथ रहिये।” मालती ने उसकी बात सुनी और हल्के से मुस्कुरा दी।

सुनीता के पति सुरेश यह सब सुन रहे थे और मन ही मन हंस रहे थे। वह अपनी पत्नी को अच्छी तरह जानते थे। सुनीता को अपनी पसंद और आदतों से रहना पसंद था। सुरेश को छह महीने पहले की घटना याद आ गई जब वे बेटे के बुलाने पर बेंगलुरु गए थे।

पंद्रह दिन भी पूरे नहीं हुए थे कि सुनीता ने घर वापस लौटने की ठान ली। वहाँ का माहौल और कन्नड़ भाषा की समस्या उसे बिल्कुल रास नहीं आई। सुलक्षणा का अपनी शैली में बना खाना, जो अमित को बहुत पसंद था, सुनीता को उतना ही अप्रिय लगा। तब सुरेश ने कहा भी था, “अरे, थोड़ा एडजस्ट कर लो। बच्चों के साथ कुछ समय बिता लो।” लेकिन सुनीता का जवाब था, “यहां का खाना और माहौल, दोनों ही मेरे बस का नहीं।” और वह वापस आ गई थीं।

अब जब सुरेश ने सुनीता से कहा, “सुनो, अमित इस बार कह गया है कि माँ को अब हमारे साथ रहने को मना लेना। मैं खाना बनाने वाली रख दूँगा, तो माँ अपनी पसंद का खाना खा सकती हैं,” तो सुनीता का आश्चर्य और बढ़ गया।

“पर मुझसे तो उसने या बहू ने कुछ नहीं कहा,” सुनीता ने चौंकते हुए जवाब दिया।

सुरेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ… क्योंकि वह जानता था कि तुम कुछ न कुछ बहाना बनाओगी। पर तुम्हारा इस बारे में क्या ख्याल है? यहाँ घर बंद करके अमित के पास चलें?”

“ना… ना… अभी कोई ज़रूरत नहीं है। अभी हम भी यहाँ ठीक हैं और उन्हें भी आज़ाद रहने दो। खेलने-खाने के दिन हैं उनके,” सुनीता के स्वर में घबराहट थी।

सुरेश ने उसे छेड़ते हुए कहा, “पर… अभी तो तुम मालती जी से…” 

सुनीता ने सुरेश की बात काटते हुए कहा, “अरे, वो तो… मैं कह रही थी कि ये बहू का फ़र्ज़ था कि वो एक बार मुझसे कहती। मुझे अच्छा लगता, पर ये मेरा फ़र्ज़ है कि जब तक वो आज़ादी से रह सकते हैं, हम उन्हें रहने दें।”

किचन की ओर जाते हुए सुनीता मन ही मन बुदबुदाई, ‘हम भी आज़ाद और वो भी आज़ाद।’ अब उनके मन में बहू के लिए कोई शिकायत नहीं बची थी।

इसके बाद कुछ दिनों तक सुनीता अपने कामों में व्यस्त रहीं। लेकिन मन के किसी कोने में वह सोचती रहीं कि सुलक्षणा ने उनसे ऐसा क्यों नहीं कहा। क्या वह सच में उनसे दूर रहना चाहती थी, या फिर यह उनका अपना अहंकार था जो उन्हें ऐसा महसूस करा रहा था? सुरेश ने भी इस विषय पर ज्यादा चर्चा नहीं की।

एक दिन, सुनीता ने अपने बेटे अमित को फोन किया। “कैसे हो, बेटा?” उन्होंने सामान्य बातचीत की शुरुआत की।

“मैं ठीक हूँ, माँ। आप कैसे हैं?” अमित ने जवाब दिया।

“हम भी ठीक हैं। सुनो, तुमने सुरेश से कुछ कहा था कि हमें बेंगलुरु आने को मना लो?” सुनीता ने सीधा सवाल किया।

अमित कुछ पल के लिए चुप हो गया। फिर बोला, “हाँ माँ, मैं चाहता हूँ कि आप और पापा हमारे साथ रहें। मैं और सुलक्षणा आपकी देखभाल करना चाहते हैं।”

सुनीता ने गहरी सांस ली और कहा, “लेकिन बेटा, यहाँ का घर बंद करके वहाँ जाना मुश्किल है। और सच कहूँ तो, मुझे अपनी आजादी बहुत पसंद है।”

अमित ने हंसते हुए कहा, “माँ, आप हमेशा से ऐसी ही रही हैं। लेकिन अगर आप और पापा कभी तैयार हों, तो हमारे दरवाजे आपके लिए हमेशा खुले हैं।”

इस बातचीत के बाद, सुनीता के मन में हल्कापन आया। उसने महसूस किया कि सुलक्षणा और अमित का उनके प्रति कोई दुर्भाव नहीं था। वह बस अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की कोशिश कर रहे थे।

अगले कुछ हफ्तों में, सुनीता ने सुलक्षणा के लिए अपने मन में उठे कई पूर्वाग्रहों को तोड़ने की कोशिश की। उन्होंने सुलक्षणा को फोन किया और उससे बात की। उन्होंने उससे पूछा, “कैसे हो, बहू?”

सुलक्षणा ने हंसते हुए जवाब दिया, “मैं ठीक हूँ, माँजी। आप कैसे हैं?”

“हम भी ठीक हैं। सुनो, तुमने मुझसे बेंगलुरु आने को क्यों नहीं कहा? क्या तुम चाहती हो कि हम यहाँ रहें?” सुनीता ने सीधे पूछा।

सुलक्षणा ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “माँजी, मैंने सोचा कि अगर मैं कहूँगी, तो आप सोचेंगी कि मैं आपको मजबूर कर रही हूँ। इसलिए मैंने अमित से कहा कि वह बात करें। लेकिन मैं सच में चाहती हूँ कि आप हमारे साथ रहें।”

सुनीता को यह सुनकर अच्छा लगा। उसने सुलक्षणा से कहा, “तुमने सही किया, बेटा। लेकिन अभी हम यहाँ खुश हैं। अगर हमें तुम्हारी ज़रूरत होगी, तो हम खुद आ जाएँगे।”

इस बातचीत के बाद, सुनीता के मन में सुलक्षणा के लिए एक नई इज्जत पैदा हुई। उसने महसूस किया कि रिश्ते आपसी समझ और संवाद पर आधारित होते हैं।

आने वाले दिनों में, सुनीता और सुरेश ने अपने जीवन को पहले से ज्यादा व्यवस्थित कर लिया। उन्होंने अपने पड़ोसियों और दोस्तों के साथ समय बिताया। साथ ही, अमित और सुलक्षणा से नियमित रूप से बात की। अब उनके मन में किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं थी।

मंजू सक्सेना

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