बाबुल की गलियां – अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
बहुत प्यार करती थी नेहा अपने भैया – भाभी से। उनका जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह, हमेशा हाज़िर हो जाती थी।
इस बार मायके पहुँची ही थी कि भाभी के मुँह से अपना नाम सुन यकायक रुक गई। भाभी बोल रहीं थीं, “न जाने नेहा किस मिट्टी की बनी है, मजाक और अपमान का फ़र्क ही नहीं समझती। माँ-बाबू जी के जाने के बाद भी, हर छोटी बड़ी बात में मायके दौड़ी चली आती है।”
आगे सुनने की हिम्मत नेहा में नहीं थी। नम आँखों से कागज़ी रिश्तों की आहुति दे, वहीं से लौट आई क्योंकि माँ बाप के जाते ही बाबुल की गलियां पराई हो चुकीं थीं।
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
अपमान – अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
आज एक अमीरज़ादे द्वारा राष्टीय ध्वज के अपमान के केस की सुनवाई थी।
पर… ऊंची पहुंच और पैसों की गर्मी से जज साहिब आर्डर देते हुए बोले, “यह केस पूरी तरह से गलत है। श्रद्धा मन में होनी चाहिए, दिखावे में नहीं। इसलिए यह केस रद्द किया जाता है।”
जज साहब के खड़े होते ही, बाकी लोग भी खड़े हो गए। वरिष्ठ वकील न जाने किन सोचों में बैठे थे। अपना अपमान होते देख, जज साहब ने आग्नेय दृष्टि से उन्हें देखा।
मुस्कुराते हुए वरिष्ठ वकील खड़े हो गए और बोले,”योर ऑनर, श्रद्धा मन में है।”
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
अपमान का दंश – शिव कुमारी शुक्ला
दीपा अपने विद्यालय की मेधावी छात्रा थी। उसन आठवीं बोर्ड परीक्षा में पूरे जिले में टॉप किया था। गाँव में आगे विद्यालय न होने के कारण उसके माता-पिता ने उसकी प्रतिभा को पंख देने के लिए शहर के विद्यालय में प्रवेश दिला दिया और होस्टल में रहने की व्यवस्था कर दी। किन्तु वह गाँव के परिवेश से आई थी सो उसका सीधा-सादा रहन सहन एवं पहनावा शहरी विद्यालय की छात्राओं के लिए मजाक का साधन बन गया और वे इसके लिए उसे बहुत अपमानित करतीं। शिक्षिकायें भी छात्राओं को रोकने के बजाए स्वयं भी उसका मजाक बना उसे अपमानित करतीं। वह बहुत दुःखी हो गई। पढने में उसका मन नहीं लगता अवसाद में जाने लगी। उसने पढ़ाई छोड़ वापस गाँव जाने का फैसला कर लिया।
अपमान के दंश ने एक उभरती प्रतिभा का गला घोंट दिया।
शिव कुमारी शुक्ला
4/10/24
स्व रचित
अपमान****गागर में सागर
माँ का अपमान – विभा गुप्ता
” माँ..आप अभी के अभी पोंछा का कपड़ा रखिये और मेरे साथ चलिये…जहाँ आपका अपमान हो..वहाँ आपको काम नहीं करना है।” कहते हुए राघव ने अपनी माँ का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगा तो घर के मालिक प्रशांत ने उसे रोका,” क्या बात है..तुम इन्हें क्यों लेकर जा रहे हो?”
तब राघव बोला,” साहब..मेरी माँ को कल से बुखार था, फिर भी वो आपके यहाँ काम करने आई।उन्हें फ़िक्र थी कि मैडम तो काम पर जाती हैं, फिर घर की सफ़ाई कौन करेगा।मैं इन्हें दवा देने के लिये आया ही था कि मेरे कानों में आपकी आवाज़ सुनाई दी,” देखकर काम नहीं कर सकती..अंधी है क्या…। ज़रा-सा पानी क्या गिर गया ….आपने तो उन्हें अंधी ही कह दिया।साहब…मैं अपनी माँ का अपमान हर्गिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकता..।” वह माँ को लेकर चला गया।प्रशांत राघव को पुकारता रहा लेकिन वह नहीं रुका।
विभा गुप्ता
# अपमान स्वरचित, बैंगलुरु
समय सीमा। – कामनी गुप्ता
घर में रानी की तरह जिस बहु को रखा था वो हर छोटी बड़ी बात पर सास ससुर को अपमानित कर रही थी। जिसमें बेटा भी शामिल था। उनका समझाना, उसे टोकना….निजी ज़िन्दगी में दखल लग रहा था। जब बर्दाश्त की हद गुज़र गई तो बहु को पास बैठाकर साफ कहा गया कि वो अपने लिए कोई नया घर लेकर वहाँ रह सकती है। कानून बूढ़े माँ बाप को इज़्ज़त की ज़िन्दगी जीने का हक देता है। बेटा भी माँ, बाप के कड़े फैसले से अपनी और पत्नी के व्यवहार के लिए शर्मिंदा था। पर अब पछतावे की समय सीमा समाप्त थी।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !
अपमान – डाॅक्टर संजु झा
आज छोटे बेटे के समान देवर सरस द्वारा किए गए अपमान से नीना का सर्वांग मानो सुलग उठा।उसकी अन्तरात्मा लहु-लुहान हो उठी।जिस देवर सरस को उसने बचपन से माँ की तरह पाला ,आज उसी ने अपने बड़े भाई के इलाज के लिए पैसे देने से मना करते हुए कहा -“भाभी!आप तो बाँझ हो,आपको क्या मालूम कि अपने बच्चों के भविष्य के लिए किस तरह पाई-पाई जोड़ना पड़ता है?मेरा अपना परिवार है।आज के बाद मुझसे कोई उम्मीद मत रखना!”
सरस की बातें सुनकर गुस्से और अपमान से नीना की आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगें।उसी समय उसका भतीजा (जो दूसरे शहर में था)अमन ने नीना के कंधे पर हाथ रखकर कहा -” बुआ!परेशान मत हों।मैं हूँ न!”
अपमान का दंश भूलकर नीना ने भावविह्वल होकर भतीजे को गले लगा लिया।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)
अपमान – के कामेश्वरी
श्रीजा पढ़ी लिखी थी पर संयुक्त परिवार होने के कारण नौकरी के लिए नहीं निकल सकती थी । एक दिन बच्चों के स्कूल के प्रिंसिपल ने उसे बुलाकर कहा कि आप पहली कक्षा को पढ़ा देंगी हमारी एक टीचर अचानक चली गई है पर तनख़्वाह कम ही मिलेगी । श्रीजा ने सोचा कि पैसों का क्या बच्चे छोटे हैं उनके साथ आ जा सकूँगी । हाँ कह दिया । एक दिन किसी ने पूछा कितना तनख़्वाह मिलता है श्रीजा को अपमानित करने के लिए सास ने चिढ़ाते हुए कहा हाँ दो सौ रुपए मिलते हैं । श्रीजा को बुरा लगा पर अपमान का घूंट पीकर रह गई ।
के कामेश्वरी
अपमान – संगीता त्रिपाठी
“उफ्फ खुद का ये रंग ऊपर से काली साड़ी….”सासु मां की बात सुन अपमान से श्यामली की आंखों में आंसू भर आए ,मोहित के रोकने के बाद भी ,उसने साड़ी बदल ली ,।
बेटे के विरोध करने पर सुनैना जी भुनभुनाने लगी….,”दूसरी बहू मैं गोरी ही लाऊंगी “
बड़े अरमान से लाई गोरी छोटी बहु ,कुछ दिनों में पति को लेकर अलग हो गई ,
आखिर वही पक्के रंग वाली बहु ही काम आ रही ।
सुनैना जी को भी समझ आ गया ,तन की नही मन की सुंदरता ही स्थायी होती है।
—— संगीता त्रिपाठी
*अस्तित्व* – बालेश्वर गुप्ता
मैं तो सपने में भी नही सोच सकती थी,तुम इस प्रकार मेरा,मेरे अस्तित्व का अपमान करोगे।राजेश, तुम हम दोनो के साथ बिताये हर पल को यूँ ही भूल गये।जिंदगी भर साथ रहने के सपने तुमने सब तोड़ दिये। मैं –मैं तुम्हे कभी माफ नही करूँगी।क्या तुम चैन से जी पाओगे?
बिफरती आशी राजेश को हिकारत की नजरों से देखते हुए झटके से चली गयी।तन्हा राजेश बड़बड़ा रहा था,आशी तुम ठीक कह गयी हो,मैं कैसे चैन से जी पाऊंगा,एक कैंसर पीड़ित जीना क्या चैन से मर भी नही सकता,आशी।मुझे माफ़ कर देना,अपने साथ मैं तुम्हे रोज रोज मरते नही देख सकता था।
तीन दिन बाद अचानक आशी आयी और राजेश से चिपट कर बोली,राजेश तुमने मुझे क्या इतना कमजोर समझ लिया था?आज ही तुम्हारे मित्र अनुज से मुझे पता चला।राजेश हम दोनों मिलकर जिंदगी की लड़ाई लड़ेंगे।मुझे अकेला मत करो राजेश।
राजेश और आशी आज एकाकार हुए थे,जीवन की जद्दोजहद की लड़ाई लड़ने को।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
अपमान – संध्या त्रिपाठी
अरे वाह भाभी , आप तो अब लेखिका बन गईं… अच्छा ये बताइए वीर रस ,श्रृंगार रस , हास्य रस ….आदि किस विधा में लिखती हैं आप …..?
बिटिया , बहू जिस भी रूप में अपनी भावनाएं , अपने विचारों को पाठकों तक पहुंचाना चाहती है , पाठकगढ़ आसानी से समझ जाते हैं …..!
बेटी की बहू के प्रति अपमान करने की मंशा देखते हुए सासू माँ ने जवाब दिया…!
( स्वरचित)
संध्या त्रिपाठी
अंबिकापुर ,
छत्तीसगढ़