Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

निर्णय – मनीषा गुप्ता

सविता ने इसी वर्ष बी.ए. पास किया था वह आगे पढ़

कर नौकरी करना चाहती थी परंतु घर वालों ने बड़े घर

का रिश्ता आते ही बिना उसकी सहमति के उसका

विवाह तय कर दिया। उसकी राय जाने की कोशिश

तक नहीं की। शादी के बाद उसके जीवन के सभी

महत्वपूर्ण फैसले सास ससुर और पति ने ही लिए। और

यह कहकर चुप कर दिया कि बड़े घर की बहुएं नौकरी

नहीं करती। शारीरिक रूप से कमजोर सविता ने नवें

महीने एक सुंदर बच्ची को जन्म दिया। अपनी बेटी को

गोद में उठा कर वह जीवन का पहला महत्वपूर्ण

‘निर्णय’ ले रही थी कि उसकी बेटी अपने जीवन के सभी

निर्णय स्वयं लेगी वह मेरी तरह अपने जीवन का रिमोट

किसी और के हाथ में नहीं देगी। वह अपने सपनों की

उड़ान स्वयं भरेगी।

#गागर मे सागर

मनीषा गुप्ता

#निर्णय

बंटवारा – डॉ. पारुल अग्रवाल

#गागर मे सागर

मनोहरजी के दोनों बेटों की शादियां हो गई थी। अब वे रिटायरमेंट के बाद की ज़िंदगी अपनी धर्मपत्नी के साथ सुकून से व्यतीत कर रहे थे। वे अपनी उम्र के दोस्त रमाकांत जी के साथ सैर पर जाते थे। कुछ दिनों से रमाकांतजी बहुत गुमसुम और शांत थे। आज मनोहरजी से रहा ना गया उन्होंने रमाकांतजी से उनकी परेशानी के विषय में पूछा तब उन्होंने बताया कि संपत्ति का बंटवारा करने के बाद तीनों बच्चों ने उनसे मुंह मोड़ लिया साथ ही साथ उन पर पक्षपात का भी आरोप लगा दिया। अब पता नहीं, उनकी आगे की ज़िंदगी कैसे कटेगी? ये सब सुनकर सुनकर मनोहरजी को अपने जीतेजी सब कुछ बच्चों के नाम ना करने के अपने निर्णय पर संतोष हो रहा था। वैसे भी उनका सोचना था कि मरते दम तक जो भी बेटा उनकी सेवा करेगा उनकी संपत्ति भी उसको ही जायेगी।

डॉ. पारुल अग्रवाल, नोएडा

#निर्णय

इंसान – बालेश्वर गुप्ता

आज लाजो फिर उदास हो गयी। उसकी पसंद की भिंडी की सब्जी घर मे बनी थी, पर मां ने उसे देने से मना कर दिया, बोली यह तो भैय्या के लिये है। लाजो ने कहा भी मैय्या थोड़ी सी चखा तो दे, पर मां ने उसे चटोरी कह डांट दिया। उदास लाजो नुक्कड़ वाले मंदिर में हर बार की तरह चली गयी। भगवान से शिकायत करने। आंखों में आंसू भर मंदिर में बैठ लाजो कह रही थी, भगवान अगले जन्म में मुझे भी भैया ही बनाना। तब तो माँ मुझे खूब प्यार करेगी ना। पर भगवान ये तो बताओ कि क्या आप भी बस भईया को ही अधिक प्यार करते हो? उसके सिर पर हाथ फिराते पुजारी बाबा ने उसकी बात सुन, कहा अरे लाजो भगवान तो सबको बराबर ही प्यार करते है। बस ये इंसान ही है जो सीखता नही। आ मेरी लाड़ो तुझे प्रसाद दूँ और पुजारी ने लाजो की हथेली सूखे मेवों से भर दी। 

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा मौलिक एवं अप्रकाशित

#कम-ज्यादा

अनजाना भय – बालेश्वर गुप्ता

#गागर मे सागर

पड़ौस से आयी तेज आवाज ने रमेश को जहां चौकाया वही उत्सुकता भी बढ़ा दी। आखिर माजरा क्या है? असल मे रमेश के मकान के बराबर में पड़ौसी का पुराना मकान है, जिसमें छत से उस घर का पूरा नजारा देखा जा सकता है। वहां झांकने पर रमेश एकदम सन्न हो गया। बहू अपने ससुर से चीखती हुई कह रही थी, इतनी उम्र हो गयी एक काम भी ठीक से नही होता, दूध के तीन पैकेट मंगाए थे ले आये दो, इतना भी याद नही रहता। वही आंगन में बैठा बेटा भी नसियत दे रहा था, बाबूजी याद नही रहता तो लिख कर ले जाया करो। रोज रोज यही होता है। पड़ौसी सुरेश गरदन झुका कर बोला गलती हो गयी बेटा, एक पैकेट दूध और अभी ला देता हूँ। रमेश हतप्रभ वहां से हट गया और सोचने लगा कि उसके बेटा बहू तो उसके सामने आंख उठा कर भी नही बोलते। उसकी हर आवश्यकता का ध्यान रखते हैं। अगर वे भी ऐसा उसके साथ करने लगे तो–? सोचकर ही रमेश कांप गया। एक आशंका मन में जन्म ले चुकी थी। निश्चल मन से अपने परिवार में रहने वाला रमेश अनजाने भय से ग्रस्त हो अपने ही बच्चो से डरने लगा था।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक, अप्रकाशित।

#डर

डर – पूजा शर्मा

#गागर मे सागर

देखो नीति तुम बेकार में डर रही हो मयंक को हमने अच्छे संस्कार दिए हैं उसे अपने भले बुरे का ज्ञान है और वैसे भी उच्च शिक्षा के लिए उसे बाहर भेजना ही पड़ेगा उसके भविष्य का सवाल है अपने बेटे के हॉस्टल का सामान पैक करती पत्नी से सुनील ने कहा। “सही कह रहे हो तुम “लेकिन पहली बार घर से दूर भेजने में एक अनजाना सा डर लग रहा है जाने संगति कैसी मिल जाए, तभी मयंक दूसरे कमरे से आकर बोलता है मम्मी – मैं वादा करता हूं कभी आप दोनों का सर नहीं झुकने दूंगा” और उनके गले लग जाता है।

-पूजा शर्मा

#डर

मुझे यकीन है – विभा गुप्ता

#गागर मे सागर

हाँ दीदी…, मेरा निर्णय अटल है। अम्मा अब कहीं नहीं जायेगी। पिछले दो साल से वो कभी बड़े भईया तो कभी मंझले भाई के पास एक मेहमान की तरह रहती आ रहीं हैं। उन्हें छोड़ने को मेरा जी कभी नहीं किया लेकिन वो पुत्र-मोह नहीं त्याग पा रहीं थीं। इस बार मैंने उनके चेहरे की झुर्रियों में पति के गुजरने की पीड़ा देखी है। घर रहते हुए बेघर की तरह इधर-उधर…। बाबा नहीं हैं तो क्या हुआ, मैं तो हूँ।” नितिन ने फ़ोन पर अपनी जेठसाली को कहा।

” पर नितिन एक बार पायल से तो पूछ लो..।” उधर से आवाज़ आई।

” दीदी.., आपको अपनी बहन पर विश्वास न होगा पर मुझे अपनी पायल पर पूरा यकीन है। कल ही तो वह चिंटू को संयुक्त परिवार पर दो वाक्य लिखवा रही थी। जैसे चिंटू उसका भविष्य है, वैसे ही मैं भी तो अम्मा का भविष्य हूँ और दीदी….” बाहर खड़ी पायल नितिन से कुछ कहने आई थी लेकिन अब उसने भी निर्णय किया कि अब अम्मा जी यहीं रहेंगी, अपने नितिन और चिंटू के पास।

– विभा गुप्ता स्वरचित

#निर्णय

“पूर्णता” – कविता भड़ाना

“अरे दीदी आपके बराबर वाले फ्लैट में सुधा मेमसाब आई है ना, वो बहुत अच्छी है”.., अधेड़ उम्र की अपनी गृह सहायिका रज्जो की बात सुनकर कोमल व्यंग से मुस्कुरा कर बोली, क्यूं वो क्या तुझे, मुझ से ज्यादा पगार देती है…

नहीं दीदी बात #कम ज्यादा पगार की नहीं बल्कि एक स्त्री के मन की बात समझ उसे आत्मसम्मान दिलाने के लिए किए हुए प्रयास की है… अनपढ़ होने का दंश मुझे अक्सर इस उम्र में आकर भी सालता रहता था, कई बार आपसे भी इस बात का जिक्र किया, ऐसे ही एक दिन बातो ही बातों में मेरे मन की ये इच्छा जानकर, सुधा मेमसाब पिछले एक महीने से मुझे रोज दो घंटे पढ़ाती है…. आत्मसंतुष्टि से सरोबार रज्जो के चेहरे की चमक अब बढ़ गई थी।

मौलिक रचना

#कम ज्यादा 

कविता भड़ाना

प्यार कम ज़्यादा – रश्मि प्रकाश  

“जाने क्या हुआ है आज मेरी आँखों को …एक से कम एक से ज़्यादा दिखाई दे रहा?” मनु बच्चों से बोली

बच्चे आश्चर्य से माँ को देखने लगे 

“ माँ  डॉक्टर को दिखाओ।”बेटी बोली 

“ज़रूर आँख में कुछ चला गया होगा लाओ फूँक मार कर निकाल देता हूँ ।” बेटे ने कहा

“ मुझे समझ नहीं आ रहा तुम दोनों में किसकी बात मानूँ, ऐसा करती हूँ मैं कुश की बात मान लेती हूँ वो ज़्यादा प्यार करता है मुझसे… है ना कुहू?” मनु

“ माँ हम दोनों आपसे बराबर प्यार करते हैं … कुश ज़्यादा कैसे करता है मैं आपकी फ़िक्र नहीं करती क्या?” मुँह लटका कर कुहू बोली

“ वही तो मैं तुम दोनों को समझाती हूँ मैं भी तुम दोनों को बराबर प्यार करती हूँ तभी तो कहती हूँ तुम दोनों मेरे आँखों के तारे हो पर तुम दोनों जब देखो इस बात पर लड़ते रहते उसको ज़्यादा प्यार करती मुझको कम… माता-पिता अपने बच्चों को बराबर का प्यार करते हैं कम ज़्यादा नहीं।” मनु के कहते ही दोनों उसके गले लग गए

रश्मि प्रकाश 

#कम ज़्यादा 

खाना – दिक्षा बागदरे 

आज खाना खाने बैठते ही राजीव ने रीना से कहा-,”आज तो सब्जी बहुत कम ही दिख रही है”।

रीना मुस्कुराते हुए किचन में चली गई

पिछले कई महीनो से राजीव ने रीना से कई बार कहा था- “तुम बहुत ज्यादा खाना बनाती हो, थोड़ा कम बनाया करो।”

राजीव और रीना के दो बच्चे थे। बच्चों का खाने पीने का कोई भरोसा नहीं होता। कोई सब्जी पसंद आ जाए तो वह दो रोटी ज्यादा भी खा लें। अगर किसी दिन कोई सब्जी ना पसंद आए तो खाना ही ना खाएं।

बढ़ती उम्र के बच्चों की पसंद ना पसंद बदलती रहती है। अक्सर बच्चों का सोच कर वह थोड़ा खाना ज्यादा ही बनाया करती थी।

मगर अब उसने तय कर लिया है कि वह इस कम-ज्यादा के फेर में नहीं पड़ेगी।

अब राजीव सोच रहे थे कि इस कम को ज्यादा कैसे करें

स्वरचित 

दिक्षा बागदरे 

निर्णय – संगीता त्रिपाठी

#गागर मे सागर

रंजन की नींद सुबह खुली तो बगल में अरु नहीं थी। याद आया कल का घमासान युद्ध, “बात क्या है अरु, क्यों इतना गुस्सा हो रही “रंजन जो ऑफिस से लौट कर बैठा ही था, पत्नी अरु को गुस्सा देख पूछा ।

“मैं तुम्हारे माता -पिता के साथ नही रह सकती , तुम्हे हम दोनो में से किसी एक को चुनना होगा ” रात की बात याद कर कमरे के बाहर निकला माता – पिता को सामान बांधते देखा, और विजयी मुस्कान अरु के चेहरे पर देखा ।

“मैने निर्णय ले लिया, तुम्हे या मुझे और साथी मिल जायेंगे पर मुझे दूसरे माता – पिता नही मिलेंगे…।””कह मुंह फेर लिया।

—संगीता त्रिपाठी

#निर्णय

 

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