घीसू ऑंगन में डली चारपाई पर लेटा हुआ, आसमान की ओर देख रहा था। आज मौसम खुला हुआ था। घीसू ने सोचा आज खेतो में धान बौने कै लिए अच्छा मौसम है, सब अपने खेतो में धान बो रहै होंगे और वह चारपाई पर पड़ा है। दो दिन आने वाले ज्वर ने उसकी कमर चौड़ा दी थी।
चक्कर आ रहे थे,अकेले खेत पर जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। उसने अपने बेटे हरिया से कितना कहा कि ‘मुझे खेत में ले चल मैं बताऊँ वैसे बीज बोना।’ मगर उस पर तो नेतागिरी का भूत सवार था, १८ साल का हो गया पढ़ाई में बिल्कुल रूचि नहीं थी।
बड़ी मुश्किल से ८ वी कक्षा पास की। चुनाव आने वाले थे, झूठे आश्वासन में फंसकर, किसी अच्छे काम को मिलने के लालच में वह सुबह से इन नेताओं के साथ निकल जाता। खाना पीना अच्छा हो जाता है। इसलिए बाबा की बात को हवा में उड़ा देता ।
बाबा ने समझाया ‘बेटा यह चार दिन की चॉंदनी है, अगर खेत में समय पर बुआई नहीं हुई तो आठ -आठ ऑंसू रोना पड़ेगा। बेटा बड़े परिश्रम के बाद अपना स्वयं का खेत हुआ है। दूसरों के खेत पर मजदूरी करके पाई-पाई जोड़कर यह खेत लिया है।
समय पर बुआई नहीं हुई तो पूरे साल तकलीफ उठानी पड़ेगी।’ मगर हरिया पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ। घीसू अपने स्वास्थ के कारण बुआई नहीं कर पा रहा था। चुनाव हो गए। नेता लोग अपना काम हो जाने पर अपनी मस्ती में मस्त हो गए।
हरिया अजनबी हो गया, अब खाना तो दूर एक कप चाय भी नसीब नहीं होती। हरिया ने देखा सबके खेतो में फसल लहलहा रही है और उसका खेत….। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और वह आठ- आठ ऑंसू रोया। घर में बिमार बाबा, माँ,
तीन छोटी बहिने सबके जीवन यापन की समस्या थी। मजबूरन उसे स्वयं का खेत होते हुए मजदूरी कर घर खर्चा चलाना पढ़ा।उसने तय कर लिया कि समय निकलने पर आठ आठ ऑंसू रोने से बेहतर है, कि समय रहते बीज बोओ, और अपनी फसल का ध्यान रखो।
साथ ही उसने प्रण किया कि वह प्राइवेट फार्म भरकर आगे की पढ़ाई करेगा व्यर्थ समय नहीं खोएगा। वह अपने बाबा के साथ खेती के काम को सम्हालने लगा और साथ ही पढ़ाई भी करता।अब पूरा परिवार बहुत खुश था।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित