पागल – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

पापा,मिनी ने पूछा था अपने डॉक्टर पापा से,आप के रूम का नंबर तेरह है,गाड़ी के नंबर में भी तेरह आता

है,सब इसे अशुभ मानते हैं आपको क्या ये शुभ लगता है?

कोई नम्बर शुभ अशुभ नहीं होता बेटा!मुझे ये पसंद है क्योंकि मेरी एक पेशेंट कमली तेरह नंबर के कमरे में थी

जिसे सब पागल कहते थे जबकि वो दिल की बहुत अच्छी थी।

तो लोग उसे पागल क्यों कहते थे पापा?मिनी ने उत्सुकता से पूछा।

बड़ी दुखभरी कहानी है बेचारी की,उसके पिता तब ही मर गए जब उसके दो छोटे भाई बहन बहुत छोटे

थे,उसने छुटपन से ही उनकी जिम्मेदारी उठाई,उन्हें पढ़ाया लिखाया,अपनी शादी की उम्र निकाल दी,उनके

कैरियर के चक्कर में और उन्होंने ही उसे पागल करार कर हॉस्पिटल में डाल दिया।

अरे!तो उसने,उनका विरोध नहीं किया?मिनी ने पूछा।

यही प्रश्न मैंने भी पूछा था उससे जब उसे उसकी कहानी की सच्चाई पता चली थी।

तो उसने क्या कहा?मिनी ने उत्सुकता से पूछा।

वो बोली,डॉक्टर साहब!जिन भाई बहन को आप बच्चों की तरह पालो,जब वो अपने स्वार्थवश आपको पागल

ठहराने पर तुले हों तो उनकी बातें कलेजा छलनी कर देती हैं,बस इसीलिए मै उन सबको आजाद कर यहां आ

गई।

लेकिन ये तो तुमने खुद के साथ ज्यादती नहीं की?मैंने कहा था उससे तो वो बोली…

अगर मेरे को पागल सिद्ध कर मेरे भाई बहन को खुशी मिलती है तो मुझे उनकी खुशी मंजूर है,वैसे भी उनकी

बातें मुझे जितना दुख पहुंचा सकती थीं,वो दे ही दिया उन्होंने,अब मुझे उनसे न की उम्मीद थी और न अब मेरी

अपनी जिंदगी बसाने की उम्र ही रह गई थी।

लेकिन ये तेरह नंबर का क्या राज है इस बात से?मिनी ने पूछा।

उसका रूम नंबर तेरह था और मुझे लगा कि जब कोई इस नंबर के कमरे में रहकर इस तरह की दार्शनिक सोच

रख सकता है तो ये नंबर अशुभ कैसे हुआ?

और फिर आपने…आपने उसी पेशेंट से खुद शादी कर ली पापा?यही न…मिनी विस्फारित नेत्रों से बोली।

हां बेटा!कमली दिल की बहुत अच्छी थी लेकिन अपने भाई बहनों की बातों से आहत होकर दिल का रोग

लगा बैठी थी,मैंने उसकी जिंदगी के कुछ बचे दिनों को खुशियों से भर दिया और वो अपनी

अच्छाइयों,खूबियों सबको तुममें समेट कर मुझे देकर हमेशा के लिए चली गई इस दुनिया से।

संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

मुहावरा “छलनी कर डालना”

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