शायना परेशान थी कई दिनों से,उसकी लाडली बेटी आहना बहुत अनमनी रहने लगी थी कुछ दिनो से।उसने डाइनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट करते हुए ये महसूस किया भी था,पूछना चाहा था उससे…”क्या हुआ आहू बेटा?कुछ “लो” दिख रही हो!कोई बात हुई स्कूल में?”
आहना मां को बहुत कुछ बताना चाहती थी पर जानती थी कि मां पर सुबह के टाइम बिलकुल समय नहीं होता,वो बैंक के लिए निकल रही हैं डैड के साथ,शाम को बात करेगी।
आहना सेवेंथ क्लास में आ गई थी,कुछ दिन पहले ही उसे पहला पीरियड्स आया था,पहले पहल वो डर गई,उसे तो कहीं चोट भी नहीं लगी फिर ये खून का धब्बा कैसे? वो तो बाय चांस,उसकी सहेली दिया को कुछ पता था इस बारे में,उसने बताया…”ये सब लड़कियों को होता है पगली,डर मत।”
“लड़कों को नहीं होता?” आहना ने एकदम से पूछा था।
“धत !ये तो बस लड़कियों को ही होता है,बाजार से सेनिटेरी नैपकिन ले लेना,वो इस्तेमाल करना।” दिया ने ज्ञान दिया उसे।
“पर मुझे शर्म आयेगी खरीदते हुए…” आहना ने संकोच करते कहा।
“ले!मुझसे ले ले अभी…” दिया ने छुपाते हुए एक नैपकिन उसे दिया।
“तू स्कूल भी लाती है ये?” अहाना चौंकी।
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आहना के मन में ढेरो सवाल थे,ये लड़कियों को ही क्यों होता है? क्या ये कोई बीमारी है?कितने दिन होगा?एक ही बार होगा या बार बार?वो दो दिन तक मम्मी के पास खाली वक्त का इंतजार करती रही लेकिन मार्च क्लोजिंग की वजह से मम्मी बहुत व्यस्त थीं।रात को भी वो घर आतीं तो डिनर के बाद एकदम सो जाती।
“सॉरी बेटा!आपसे कुछ दिन बाद बात करूंगी।बहुत बिजी हूं आजकल,कोई परेशानी है तो अलमारी वाले लॉकर से रुपए निकाल लेना।”
“मम्मी! डॉक्टर के पास चलना है..” आहना ने कहा,”मेरे पेट दर्द है।”
फिक्र मत करो बेटा, मै डॉक्टर पाठक को फोन कर दूंगी,वो दवाई बता देंगी तुम्हें…ओके!खुश!!अब सो जाओ,बहुत थक गई हूं,कहते हुए वो अपने मास्टर बेड रूम में सोने चली गई।
आहना सूनी आंखों से छत को घूरने लगी।क्या सभी वर्किंग पेरेंट्स ऐसे ही व्यस्त रहते हैं? मै अपनी समस्या का समाधान किससे करूं?उसके पेट में दर्द की लहर उठी और आंखों में आंसू छलक उठे।
चार दिन ऐसे ही रोते हुए और उदासी में बीते थे आहना के। पता नहीं, उन चार दिनों बाद भी वो नॉर्मल नहीं हुई।
एक दिन,शायना ने उसे बताया कि वो सेमिनार के लिए तीन दिन बाहर जा रही है और पीछे उसकी नानी आहना का ध्यान रखने आ रही हैं।नानी का नाम सुन कर भी आहना मुस्कराई नहीं इस बार तो शायना चौंकी।
“बेटा!तुम तो लगता है मुस्कराना भी भूल गई,क्या बात है?”
तबियत ठीक नहीं मेरी,आहना झुंझला के बोली।
“दवाई ली तो है तुमने?अभी भी पेट दर्द ठीक नहीं हुआ?”शायना ने पूछा।
“वो तो ठीक है पर…”आहना के शब्द गले में अटक गए क्योंकि उसने अपनी मां की चढ़ती त्यौरियां देख ली थीं।
“कोई घर मे कॉपरेट करने की तैयार नहीं मुझे”,मां गुस्से में बोलीं,”सब तुम सबके लिए ही तो करती हूं।”
आहना की नानी ने आते ही उसकी समस्या सुनी,समझी और बड़े प्यार से उसे विस्तार से समझाया कि ये कोई बीमारी नहीं होती,ये तो हर युवा लड़की के लिए बहुत आवश्यक होता है,ये उसके मातृत्व के लिए जरूरी होता है,इसमें सफाई,खाने पीने और आराम का ध्यान रखना होता है बस।
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आहना आज बहुत रिलैक्स थी और वो अपने चिर परिचित अंदाज में मुस्करा दी थी।
उसकी नानी ने अपनी बेटी शायना से वीडियो कॉल की जिसमें शायना ने आहना की शिकायत की,मां! वो बस मेरा ध्यान खींचने के लिए नए ड्रामे करती है रोज़,मैंने तो बढ़िया डॉक्टर,दवा हमेशा दिलाई है उसे।
मां ने बताया अपनी बेटी को,हर बीमारी का
इलाज दवाई नहीं होता बेटी!कुछ बीमारियां मन की होती हैं जहां व्यक्ति को किसी का साथ,स्नेहिल स्पर्श ही चाहिए होता है जैसे तुम्हारी बेटी को…देखो!उसको कितनी खुश है अब वो।
शायना आश्चर्य में थी कि आहना फिर से मुस्करा रही थी पहले की तरह,ये नानी के प्यार का असर था या उनके सानिध्य का जादू,
सच में,कई बार कितनी ही बड़ी बीमारी दवा से नहीं,सिर्फ प्यार के दो मीठे बोल से ही सही हो जाती है, कई बार तो कोई बीमारी होती ही नहीं ,बात सिर्फ एक दूसरे के साथ की ही होती है,सलाह,मार्ग दर्शन और सहयोग की होती है।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
#हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नहीं होता