दायित्व – मुकेश कुमार झा : Moral stories in hindi

” अरे सुनती हो रमा, कहाँ चली गई” बाहर से आते हुए उमेश जी आवाज देते हुए छोटे से बने आँगन में आते है और सब्जी का थैला रखते है। 

उमेश जी, जाने कहाँ चली जाती है ये भी और आँगन में रखे मटके में से पानी लेकर पीते है। 

कुछ देर बाद लकड़ी का एक गट्ठर लेकर रमा जी आती है और उसे आँगन में पटक कर रख देती है। 

” आप कब आयें ” 

” अभी बस थोड़ी देर पहले और जब आपकी तबियत ख़राब है तो फिर लकड़ी लाने की क्या जरूरत थी” उमेश जी शिकायती लहजे में बोलते है और रमा जी कोई ज़वाब दिए बिना सुस्ताने लगती है। 

उमेश जी की उम्र यहीं कोई 70 के आसपास थी और उनकी पत्नी रमा 62 – 63 वर्ष की महिला थी। दोनों का अपने खेत में एक झोपड़ी वाला मकान है और उसी में दोनों बस अपना गुजर बसर कर रहे थे। 

ऐसा नहीं था कि दोनों इस संसार में अकेले थे। भरा पूरा परिवार है इनका एक बेटा ( जो डॉक्टर है ), बहु , पोता पोती से भरा पूरा परिवार है। 

अंधेरा होने में अभी थोड़ा वक़्त है पर शाम होने के बाद रमा जी को कम दिखता है तो वो जल्दी से खाना बनाने के लिए बैठ जाती है और जल्दी जल्दी में आधी जली आधी पकी रोटी और आलू उबाल कर उसकी चटनी बनाती है और फिर बस अंधेरा गहराने का इंतजार करने लगती है। 

इसी बीच उमेश जी आकर रमा के हाथ में 100 रुपये थमाते है। 

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” इसे संभाल कर रखिए, जरूरत पड़ने पर काम आएगा और फिर इस बार बरसात से पहले तो थोड़ा घर भी ठीक करवाना है ना ” उमेश जी बोलते है और रमा जी उठ कर पैसे सम्भाल कर एक जगह रख लेती है। 

” अच्छा पता है, हमारा बेटा आया है गाँव ” 

” कैसा है वो, आप मिले उस से, मुझे याद भी कर रहा था क्या, क्या करें बेचारा मजबूर है, नहीं तो हमें तो वो अपने साथ ले जाता ” रमा जी बोलती है और उमेश जी उनकी बातों पर कोई ज़वाब नहीं देते है क्योंकि एक माँ की ममता के आगे सच्चाई कहाँ टिक पाती है और वो बस उनकी बात पर सहमती में सिर हिला देती है। 

इतने में बाहर बहुत तेज हवा चलने लगती है और साथ में ही तेज की बारिश भी शुरू हो जाती है। रमा जी ने रोटी बना कर बाहर ही छोड़ दिया था और जब तक उमेश जी बाहर से रोटी लेने जाते तब तक तो रोटी गिला हो चुका था पर फिर भी वो रोटी उठा कर ले आते है और उसे घर में रख लेते है। 

अब बारिश और तेज हो चली थी और उमेश जी को पता था कि रोटी को थोड़ी देर छोड़ तो वो पूरा खराब हो जाएगा तो वो उठ कर एक प्लेट में 2 गिली रोटी अपने लिए तो एक प्लेट में दो रोटी रमा जी के लिए निकालते है और अचार के साथ उसे खाने लगते है। 

दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोलता है और दोनों खाकर आराम से नीचे जमीन पर जहां उन्होंने अपना बिस्तर बना रखा था लेट जाते है। 

रमा जी की तो तबीयत खराब थी तो वो दवाई खा कर सो जाती है पर उमेश जी की पथराई आंखों से आंसू बहने लगते हैं। 

एक वक़्त था जब उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने में कोई कमी नहीं आने दी थी। मेहनत मजदूरी करते थे वो पर अपने बेटे की पढ़ाई में कभी रुकावट नहीं आने दी उन्होंने और बेटे ने भी बहुत लगन से पढ़ाई की और डॉक्टर बना। उसके बाद उन्होंने अपने बेटे की बड़े धूमधाम से शादी की, शादी में इतनी चकाचौंध थी कि आस पड़ोस के लोग भी बातें बनाने लगे कि किस्मत हो तो उमेश जी के जैसी जो रातों रात पलट गई और कल तक मजदूरी करने वाले उमेश जी आज गाड़ी में घूम रहे है पर ये चकाचौंध भी ज्यादा दिनों तक टिकती नहीं है और नई बहु ने आते ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। 

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एक वक़्त ऐसा आया जब आत्मसम्मान और जिल्लत में से किसी एक को चुनना था और अंत में दोनों पति पत्नी अपने खेत में एक छोटा सा झोपड़ी बनाते है और उसी में बाकी की जिंदगी बिताने लगते है। 

घर पर पार्टी होती है, भोज होता है कभी भी उनसे नहीं पूछा जाता है और ना ही बुलाया जाता है और ना कभी बेटे या बहु ने कहा कि उनके साथ आकर रहें। 

उमेश जी ने भी फिर कभी मोह नहीं देखा और एक सब्जी की दुकान पर जाकर सुबह शाम दुकान वाले की सब्जियां बेचने लगे और बदले में उन्हें कभी 100 तो कभी 200 रुपये मिल जाते थे और उसी में दोनों अपना गुजर बसर कर रहे थे। 

” कब तक सोचते रहेंगे, सो जाइए, सुबह फिर काम पर भी जाना है ” रमा जी, करवट बदलते हुए बोलती है। 

” क्या हमारी परवरिश में कोई कमी रह गई रमा ” 

” मत सोचिए कुछ भी, हमने माँ बाप होने का दायित्व पूरा किया है और अंतिम दम तक करते रहेंगे और फिर हमारे बेटे या बहु ने तो हमें घर से नहीं निकाला ना, हम अपनी मर्जी से आयें थे ” 

” सही कह रही हो, सभी अपना दायित्व ही तो पूरा कर रहे है , हमने अपना पूरा किया और अब बस एक दूसरे का साथ निभा कर ये दायित्व भी पूरा करेंगे ” और दोनों थोड़ी देर में नींद की आगोश में चले जाते है …….

मुकेश कुमार झा

1 thought on “दायित्व – मुकेश कुमार झा : Moral stories in hindi”

  1. इतना भीषण दुःख किसी को न मिले। जब तक दोनों जीवित हैं, दिन साथ साथ गुजार लेंगे। सोच कर डर लगता है कि जब एक दुनिया छोड़ देगा तब दूसरा कैसे रहेगा।

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