Moral Stories in Hindi :श्रुति की शादी हुए अभी चार महीने ही हुए थे पर उसके चेहरे की रौनक जाती जा रही थी। शादी से पहले श्रुति गोरी चिट्टी सुंदर, गुलाबी गाल उस पर पड़ते डिंपल उसके रूप में और चार चांद लगा देते पर अब उसका रूप बिखरता जा रहा था। उसकी शादी वैसे तो अच्छे खाते पीते घर में हुई थी
पर शादी के 10 दिनो बाद ही उसकी सास ,उसके ससुर के साथ राजसमंद चली गई थी जहां उनकी नौकरी थी और श्रुति को उसकी जेठानी के साथ रहना पड़ रहा था। उसके दुल्हन जैसे कोई लाड चाव नही हुए थे क्योंकि पहले तो घर पर मेहमान रुके हुए थे फिर उसको लाड करने वाली उसकी सास उसको चूल्हा पूजन( शादी के बाद की पहली रसोई पूजन)8 दिनों बाद करके ही चली गई थी तो उसको काम भी करवाना ही पड़ता घर का जेठानी के साथ।
जेठानी को तो जैसे फ्री की नौकरानी ही मिल गई श्रुति के रूप में जैसे। श्रुति को सुबह जल्दी उठने की आदत थी तो सुबह की चाय अब वो ही बनाकर देती सबको जेठ जेठानी, उनके दो बच्चों का दूध और अपनी और पतिदेव की चाय। श्रुति की जेठानी मीठा बोलकर उससे सारे काम करवा लेती थी और खाने के टाइम सिर्फ रोटी और सब्जी के अलावा कुछ और नहीं होता था उसकी थाली में, श्रुति को खाने के साथ दही और मिठाई बहुत पसंद थी पर उसकी जेठानी उससे इन सबके लिए कभी पूछती नही थी।
और जब उसकी जेठानी बोलती कि हमारे तो नियम कायदे ऐसे ही हैं , सादा खाना खाते हैं नही तो फिर आदत पड़ जाती है आलतू फालतू खाने की तो फिर तो श्रुति कुछ बोल ही न पाती मन मारकर उसे वो ही खाना खाना पड़ता और जब जेठानी जी की बारी आती तो अपनी थाली में रोटी, सब्जी के साथ सलाद, थोड़ी सी नमकीन, मिठाई यहां तक कि केले की चाट भी साथ लेकर बैठती तब श्रुति को उनके नियम कायदे समझ न आते।
श्रुति बाहर से खुश जरूर दिखती थी पर कहीं न कहीं अंदर से कमजोर हो रही थी और दुखी भी क्युकी नई जगह, नए लोगों के साथ अभी तारतम्य नही बैठ पा रहा था उसका ऊपर से उसको अपने मायके की बहुत याद आती थी ,उसका खाना पीना , सोना जागना सब कुछ जो बदल गया था । उसको मम्मी के हाथों से बने खाने का स्वाद रह रह कर जुबान पर आ जाता था और उसकी आंखों के कोर से गिरते दो आंसू सब कुछ बयां कर जाते।
मन ही मन खुद से कहती क्या मुसीबत पाल ली मैने शादी करके
सोचा था छोटा सा परिवार है, मैं भी सबसे छोटी तो लाड़ में रहूंगी पर यहां तो लाड़ करना तो दूर ढंग से खाना भी नही मिल रहा
पर कर भी क्या सकती थी सिवाय दुखी होने के
सर्दियों के मौसम में उसको गुड मूंगफली, गजक , रेवड़ी , तिल चिक्की बहुत पसंद था पर ससुराल में ये सब किसको बताती अभी नई नई जो आई थी वो तो अपने पति तक को बताने में हिचकिचाती थी और रसोई में ढूंढने पर इसको कभी कुछ मिलता नही था पर जब जेठानी जी के कमरे में उनको अलमारी से ये सब निकालते हुए देखा तो उसको सारा माजरा समझ आ गया। जेठानी जी सफाई देते हुए बोलती अरे बच्चों का कभी भी कुछ खाने का मन कर जाता है ना इसलिए सब कुछ यहीं रख लिया ताकि बार बार आना जाना न पड़े पर तुम शर्माना मत जो चाहिए ले लेना मुझे लगा तुम कभी मीठा खाती नहीं हो न तो तुम्हे पसंद नहीं शायद
श्रुति मन ही मन बोलती आप पूछती कब हो जो खाऊं और चाहिए तो बहुत कुछ पर पर ऐसे कैसे ले लूं किसी और के कमरे में से ।
श्रुति बस मुस्कुरा दी सुनकर।
हद तो तब हो गई जब श्रुति की जेठानी सारे कपड़े हाथ से धोती और कहती मुझे मशीन में धुले कपड़े पसंद नही आते तब उसको भी शर्मा शर्मी में फिर कपड़े ऐसे ही धोने पड़ते जबकि श्रुति के पापा ने यह कहकर कि उसकी बेटी से कपड़े नही धुलते तो उसको वाशिंग मशीन चाहिए और दहेज में उसको अच्छी वाली मशीन तक दी थी पर उसकी जेठानी कुछ न कुछ कारण बताकर मशीन सिर्फ हफ्ते में एक बार ही चलाती।श्रुति तो बहुत थक जाती थी अब पूरे दिन काम करते करते
घर में इकलौती होने के कारण सब उसे खूब हाथ ही हाथों में रखते तो उसने आज तक घर का कोई काम भी नही किया था।
श्रुति को घर का काम मुसीबत लगने लगा था फिर भी वो अतुल अपने पति से कभी शिकायत नहीं करती और हमेशा हंसती मुस्कुराती रहती
जेठानी को लेकर भी उसके मन में कोई वैर नही था। वो तो उन्हें बड़ी बहन की तरह मानती थी और उनसे खूब बाते करती थी।जेठानी जी घर के हर सदस्य के बारे में बताती थी पर ज्यादातर बातें सबकी बुराइयों से भरी होती थी। श्रुति ने ये बातें भी कभी अतुल को नही बताई ये सोचकर कि मुझे सबसे क्या लेना देना ।
पर एक दिन उसने जेठानी को फोन पर किसी से बात करते हुए सुन लिया जो बोल रही थी
पता है मां श्रुति को कुछ काम नहीं आता, लेट उठती है, बना बनाया नाश्ता मिल जाता है और तो और घर के किसी काम में हाथ तक नहीं लगाती। मुझे तो इसके साथ रहना मुसीबत लग रहा है। सोचा था देवरानी आने से घर के काम में मदद मिल जाएगी पर यहां तो इसे बैठकर खिलाना पड़ रहा है। और तो खाने की भी इतनी शौकीन है कि बस पूछो मत । बिना मीठे और दही के तो खाना भी नही खाती।
श्रुति जो किसी काम से जेठानी के पास आई थी बिना मिले ही चली
गई। पर ये सब बातें रह रह कर उसके कानों में गूंज रही थी। सोचा अतुल को बताएगी पर अतुल जब आया अपने साथ अपने ट्रांसफर की खबर लाया और बोला श्रुति अभी नई जगह होगी तो तुम्हे थोड़ी परेशानी होगी मेरे साथ चलने में । तुम थोड़े दिन मां के पास रह लो।और मैं हर हफ्ते तुमसे मिलने आता रहूंगा।
श्रुति को लगा अच्छा है वैसे भी जेठानी जी के लिए तो मैं मुसीबत हूं
मेरे बारे में कितना झूठ बोलती हैं।वो अतुल के साथ अपने सास ससुर के पास चली गई
हर सप्ताह अतुल श्रुति से मिलकर उसका मन बहलाता उसको घुमाता फिराता ताकि वो अकेलापन महसूस न करे पर श्रुति अभी तक अपनी जेठानी की कही बातों को मन से लगाए बैठी थी और दिनभर सोचती कि ऐसे माहोल में कैसे रह पाएगी वो क्युकी उसके घर का माहोल तो इसके बिलकुल विपरीत था ।चुगली करने जैसी कोई आदत नही थी उसके परिवार में,सब एक दूसरे का पूरा ध्यान रखते थे। उन्होंने मेरे बारे में सासू मां को भी झूठ बोल दिया तो अतुल तो मुझ पर कभी विश्वास नही करेंगे। यही सोचकर श्रुति मन ही मन दुखी हो रही थी।
वो कहते हैं ना मन के हारे हार है मन के जीते जीत बस श्रुति के साथ भी ऐसा ही था उसका मन अंदर से खुश नही था तो उसे कुछ भी अच्छा नही लगता था और ऊपर से अतुल से दूरी भी इसका एक कारण थी । श्रुति का जरूरत से ज्यादा सोचना और जेठानी जी जैसी झूठे व्यक्तिव वाले लोगों के बीच रहना कहीं न कहीं उसके स्वास्थ्य के लिए मुसीबत बनता जा रहा था और वो डिप्रेशन का शिकार हो रही थी।
इसी बीच अतुल भी श्रुति को अपने साथ ले गया । नई जगह नए लोगों के बीच वो खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही थी। अपने मन की बात करने के लिए जेठानी जी सहारा थी , उस पर से भी अब उसका विश्वास उठ चुका था। जेठानी जी को बड़ी बहन की तरह प्यार दिया उसने पर उन्होंने उस प्यार को मुसीबत का नाम दे दिया।
ऊपर से उसके और अतुल के स्वभाव को देखते हुए रिश्तेदार और मेहमानों का आना जाना लगा ही रहता था और श्रुति और अतुल की शादीशुदा जिंदगी में उन दोनो का आपस का समय मेहमानों की आवभगत में जाने लगा।
इतने लोगों के बीच भी श्रुति अकेलापन महसूस करती थी , एक तो नई जगह, नए लोग और वहां का माहोल उसको समझ नही आ रहा था ऊपर से अतुल का कम बोलने का स्वभाव जो उसको बिलकुल पसंद नहीं था। अब उसने भी थोड़ा कम बोलना शुरू कर दिया था , वो अपने में ही रहती खोई खोई सी,मुरझाई सी। अतुल ने एक दो दिन तो ध्यान नहीं दिया पर अब उसको भी लगने लगा कि श्रुति कुछ बदल सी गई है, उसकी तबियत भी ठीक नहीं है शायद
अगले दिन अतुल ने श्रुति को पूछा
क्या बात है श्रुति आजकल तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है क्या, कुछ बोलती नही ,अपने में ही खोई रहती हो, पहले से कमजोर भी लग रही हो। मुझे मम्मी भी बोल रही थी आजकल श्रुति की आवाज भी थकी थकी सी आती है, कोई मुसीबत है क्या?तुम दोनो में लड़ाई हुई है क्या या कोई बीमारी हो गई उसको। डॉक्टर को दिखा कर दवाई दिला उसको
चलो आज का अपॉइंटमेंट लिया है मैने
श्रुति ने कहा अरे नही अतुल ऐसी कोई बात नही तुम चिंता मत करो हां थोड़ी थकान सी जरूर है , मेने ले ली है दवाई हो जाऊंगी एक दो दिन में ठीक।
वो सब ठीक है पर एक बार डॉक्टर को दिखाने में क्या हर्ज है, मैं कुछ नहीं सुनना चाहता बस तुम तैयार हो जाओ और चलो मेरे साथ
थोड़ी देर में श्रुति और अतुल डॉक्टर के यहां पहुंच गए। डॉक्टर ने श्रुति की पूरी बात सुनने के बाद उसका अच्छे से चेक अप किया और बोली श्रुति तुम्हारी बीमारी दवाइयों से ठीक होने वाली नही है ये सुनते ही श्रुति और अतुल एक दूसरे का चेहरा बड़ी घबराहट के साथ देखने लगे कि पता नहीं क्या बीमारी हो गई जिसका इलाज दवाई से भी नही हो सकता।
अरे चिंता की कोई बात नहीं है बीमारी इतनी भी बड़ी नही है बस उसका इलाज सिर्फ दवाइयों से नही हो सकता उसके लिए तुम्हारी इच्छाशक्ति का मजबूत होना बहुत जरूरी है। एक्चुअली सच बताऊं तो तुम डिप्रेशन का शिकार हो गई हो ,तुम्हारे अंदर उत्साह की कमी हो गई है , तुम खाना भी अच्छे से नही खा रही हो शायद इसलिए तुम्हारा वजन भी कम हो रहा है और तुम्हे थकान भी लग रही है ।और आगे जाकर ये सब चीज़ें तुम्हारे लिए मुसीबत खड़ी कर देंगे जब तुम्हे कंसीव करने में भी परेशानी हो सकती है
तो तुम्हे अभी से अपना ध्यान रखना होगा। अकेलापन इसकी एक वजह हो सकता है और तुम ज्यादा सोचती हो शायद इसलिए तनाव भी हो सकता है ।
अतुल तुम्हे भी श्रुति के साथ साथ उसका ख्याल रहना है । किसी किसी बीमारी का इलाज दवाई से संभव नहीं हैं उसके लिए अपनों के साथ की ज्यादा जरूरत होती है, श्रुति को अकेले रहने के बजाय दोस्तों के साथ या अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहिए, सुबह शाम वॉक पर जाओ, अपने पसंद का कोई भी काम करो जैसे कोई क्लास ज्वाइन कर लो डांस क्लास, लाइब्रेरी, योगा क्लास कुछ भी जिसमे तुम्हे रुचि हो। सकारात्मक सोच रखो और फालतू बाते सोचना बंद करो जैसा तुमने मुझे बताया। अपने फोन पर मोटिवेशनल स्टोरी सुनो और देखो , जीवन का लक्ष्य निर्धारित करो , खूब हंसो और खुश रहने की कोशिश करो तभी तुम इस बीमारी से छुटकारा पा सकती हो केवल दवाई लेने से कुछ नही होगा।
हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नही होती कभी कभी मरीज की इच्छाशक्ति मजबूत और सोच सकारात्मक होनी चाहिए।
श्रुति और अतुल ने डॉक्टर की बाते ध्यान से सुनी और सारी नसीहतों को मानने का वादा किया ।
घर आने के बाद अतुल ने श्रुति पर जब ज़ोर डालकर बताने को कहा कि वो कौनसी फालतू बातें हैं जिसके बारे में डाक्टर बोल रही थी…. तो श्रुति को वो सब बताना पड़ा जिनसे अतुल अभी तक अनजान था।
श्रुति भाभी ने इतनी सारी बातें की और तुमने मुझे कुछ नही बताया।
अतुल मुझे लगा सारी बातें बताऊंगी तो कोई मुसीबत खड़ी ना हो जाए । देवर भाभी के रिश्ते में दरार न पड़ जाए
श्रुति भाभी का स्वभाव ही ऐसा है इसलिए मैं उनसे ज्यादा बातें नही करता पर तुम अब ये सब सोचना छोड़ दो बस मुझे पता है ना तुम कैसी हो तो कोई कुछ भी सोचे मुझे उससे फर्क नही पड़ता।
आज से जो भी बातें तुम्हे परेशान कर रही हैं उसे दिल से लगाना छोड़ दो
घर गृहस्थी में ये सब बातें चलती रहती है इन पर इतना ध्यान दोगी तो जिंदगी आसान होने के बजाय और मुश्किल हो जाएगी।
श्रुति को भी अब लगने लगा था कि वो कुछ ज्यादा ही सोच रही है ,ऐसे तो उसकी तबियत बिगड़ जाएगी और उनकी शादीशुदा जिंदगी भी खतरे में पड़ जायेगी
उसने खुद से वादा किया कि किसी और की वजह से वो अपने लिए मुसीबत पैदा नही करेगी और खुद के बारे में ज्यादा सोचेगी और अतुल के पास जाकर उससे लिपट कर सो गई। आज बहुत दिनों के बाद वो और अतुल एक साथ बहुत खुश थे।
दोस्तो कभी कभी हम लोग दूसरे लोगों के कारण खुद के लिए मुसीबतें खड़ी कर लेते हैं , अपनी सेहत खराब कर लेते हैं जैसे श्रुति ने किया जो सही नही है।किसी और के बारे मे सोचने से अच्छा है खुद में अच्छे परिवर्तन लाना और कोई बात जो मुसीबत का कारण बने ,उसका हल निकालना।
आप मेरी बातों से सहमत हैं तो कृपया मेरा उत्साहवर्धन करना ना भूले।
धन्यवाद
निशा जैन
Very nice story..
Achi story hai