Moral Stories in Hindi : माँ… माँ ” जल्दी से कुछ खाने को दो बहुत भूख लगी है ” रिया ने कॉलेज से आते ही कहा !
“बस बेटा 2 मिनट रुको मैं लाती हूँ। सुबह टिफिन ले जाने को इसी लिए तो बोला था मैने । ” रिया की माँ ऋतु ने कहा
“क्या माँ आते ही लेक्चर मत दो ! ” ऐसा बोल रिया अपने कमरे मे चली गई !
थोड़ी देर बाद ऋतु खाना ले उसके कमरे मे आई तो देखा रिया सो चुकी थी । ऋतु ने बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेर उसे उठाया…” उठ बेटा खाना खा ले ।”
“क्या मुसीबत है कोई चैन से सोने भी नही देता नींद से जगाना जरूरी था क्या ? नही खाना मुझे कोई खाना वाना आप जाओ यहाँ से !” ये बोल रिया पलट कर सो गई !
आँखों मे आँसू लिए ऋतु कमरे से बाहर आ गई ! यही तो होता है अक्सर कॉलेज जाती युवा बेटी हो या एक बड़ी कम्पनी मे नौकरी करता पति दोनो के लिए ऋतु मानो उनका पंचिंग बैग है जिसपर् वो अपना गुस्सा अपनी दिन भर की चिढ़न सब निकाल लेते है और ऋतु बेचारी प्यार के दो बोल को तरसती सारा दिन पति , बेटी के कामो मे ही लगी रहती है ।
“ऋतु ऋतु कहाँ हो यार ? ” शाम को ऋतु के पति ऋषभ ने घर मे आते हुए आवाज़ दी।
रसोई से निकलते हुए ऋतु ने कहा “आ गए आप कैसा रहा आज का दिन ? “
” दिन विन छोड़ो उससे तुम्हें क्या तुम्हें कौन सा कुछ समझ आता है मेरा बैग पैक करो मुझे कंपनी के काम से 4 दिन के लिए कोलकता जाना है ! ” ऋषभ बोला।
ऋतु भीगी आँखो से चुप चाप कमरे मे आ ऋषभ का बैग लगाने लगी असल मे ऋतु कम पढ़ी लिखी थी इसलिए ऋषभ और रिया को लगता वो कुछ नही समझती है। जबकि ऋतु तो उनसे बाते करना चाहती है उनका साथ चाहती है इसलिए खुद से पहल करती है ।
खैर खाना खा ऋषभ चला गया l
ऋतु सोचती रह गई आज तो डॉक्टर के जाने की बात हुई थी कई दिन से ऋतु की आँखों के आगे अंधेरा छा रहा था और उसे चककर से आने लगते थे। ( कई दिन से ऋतु बोल रही थी और ऋषभ टाल रहा था, आज किसी तरह तैयार हुआ था)
पर अब तो ऋषभ जा चुका था तभी रिया उठ के कमरे से बाहर आई और सोफे पर बैठ टीवी देखने लगी l
” रिया बेटा मेरे साथ डॉक्टर के चलो तुम्हारे पापा जाते पर उन्हे अचानक कोलकता जाना पड़ गया! ” ऋतु उससे बोली।
” यार मम्मी क्या मुसीबत है तुम्हें कितनी बार कहा है खुद के काम खुद करना सीखो हम खाली थोड़ी होते आपकी तरह सौ काम होते हमे । ” रिया झुंझलाते हुए बोली और फोन मे लग गई l
ऋतु ने पर्स उठाया और अकेली चल दी डॉक्टर के । गाड़ी उसे चलानी आती नही थी इसीलिए उसने रिया से बोला था । वो घर से थोडी दूर आ ऑटो देखने लगी । ऑटो सड़क के दूसरी तरफ़ था… ऋतु रिया और ऋषभ की बातों से दुखी अपनी धुन मे चली जा रही थी अचानक उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाया और सड़क पार करते मे अचानक वो ट्रक से टकरा गई और मौके पर ही उसकी मौत हो गई….।
इधर रिया अपने दोस्तों के साथ फोन मे व्यस्त थी की ऋतु के नंबर से फोन आया उसने काट दिया l
असल मे सड़क चलते किसी आदमी ने ऋतु के फोन मे बेटी के नाम से नंबर देख कॉल की थी l
फिर उसने 2-3 बार मिलाया तब झुंझला कर रिया ने फोन उठाया और बोली “क्या मुसीबत है मम्मी आपको चैन नही है क्या ! ”
तभी सामने से किसी आदमी की आवाज़ सुनाई दी ” ये जिसका नंबर है उनका एक्सीडेंट हो गया और वो अब इस दुनिया मे नही रही !”
रिया कुछ बोल ही नही पाई सामने से हैलो! हैलो आप सुन रही है ?” की आवाज़ आ रही थी थोड़ा सम्भल कर रिया ने जगह पूछी और ऋषभ को फ़ोन किया और खुद वहाँ पहुँची!
ऋषभ रास्ते से ही वापिस लौट आया … ऋतु के जाने से घर बिखर गया l अब ऋतु के प्रति अपने व्यवहार को याद कर रिया और ऋषभ पछता रहे थे.! अब उन्हे समझ आ रहा है जिस ऋतु को वो बात बात पर झिड़का करते थे उसका बात करना भी मुसीबत लगता था उसके बिना जिंदगी बिताना उनके लिए कितनी बड़ी मुसीबत है ।
पर कहावत है ना कि …
अब पछतावे क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत
दोस्तों क्यों हम आज इतने ज्यादा स्वार्थी और खुद मे मगन हो गए की हमे अपनों की तकलीफ नही दिखती । खासकर कुछ घरो की महिलाएँ इससे बहुत उपेक्षित होती है क्योकि दिन भर पति बच्चो की बाट जोहती उनके काम करती वो महिलाएँ थोड़ा सा पति बच्चो का साथ चाहती है जो आज के मोबाइल युग मे उन्हे नही मिलता बस मिलती है तो उपेक्षा। क्यों हम जीतेजी अपनों की कदर नही करते? उनके जाने के बाद ही उनकी एहमियत क्यो नज़र आती है ।
क्या आपके पास इस सवाल का जवाब है ?
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल