” चलो पापा आप भी!” मानसी ने उठते हुए से कहा।
” अरे नहीं दीदी पापा को क्या परेशान करना वो यही खा लेंगे खाना आप चलिए!” नेहा बोली।
” पर भाभी…!”
” पर वर कुछ नहीं दीदी अब इस उम्र मे पापा क्या बाहर तक आएंगे वो कमरे में ही खाते है खाना!” नेहा सपाट लहजे में बोली। मानसी हैरान रह गई पापा तो बिना मेज कुर्सी खाना ही नही खाते थे।
“तो ऐसा करो भाभी मेरा खाना भी पापा के साथ लगा दो हम साथ खा लेंगे!” मानसी बोली।
मानसी की बात सुन नेहा कुछ बोली नहीं पर मानसी ने साफ महसूस किया कि भाभी को ये पसंद नहीं आया पर वो चुपचाप चली गई और मानसी के लिए प्लेट में सब्जी पूड़ी, रायता अचार लेकर आई और पापा के लिए रात की दाल से रोटी।
” पापा आप ये सब नहीं खाओगे?” मानसी ने हैरानी से पूछा।
” दीदी पापा को ये सब नहीं झिलता इसलिए उन्हे सादा खाना ही देती हूँ अब दोनो समय अलग अलग खाना बनाना मेरे बस मे नही इसलिए एक समय ही बना कर रख देती हूँ इनकी सब्जी या दाल !” नेहा ये बोल चली गई।
पापा ने बेबसी से अपनी प्लेट उठा ली पर उनकी निगाह मानसी की प्लेट पर ही थी। मानसी का कलेजा मुंह को आ गया कितना शौक था पापा को खाने का दोनो वक्त ताजा दाल सब्जी बनाती थी माँ और अब । उसने नम आँखों से पापा के मुंह में एक कोर पूड़ी का तोड़ कर डाला। पापा की आंख में वही चमक उभरी जो वीडियो कॉल पर आती थी। पर पापा ने प्रत्यक्ष में मना किया पता नहीं भाभी का डर था या बेटी को खिलाने का मोह। फिर भी मानसी ने सारा खाना पापा को खिला दिया और खुद दाल रोटी खाने लगी।
दो दिन मानसी वहां रही और पापा को अपना खाना खिला खुद उनका खाती रही। पापा कितना मना करते पर मानसी जिद करके खिला देती। घर मे शांति रहे और उसके पीछे से पापा को सुनना ना पड़े इसलिए खुद से भी कुछ पापा को बना नही खिला सकती थी।
” भाई पापा को मैं कुछ दिन अपने साथ ले जाऊं!” चलने से पहले मानसी ने अपने भाई तरुण से पूछा।
” पागल हो गई है क्या लोग क्या कहेंगे बेटा बाप को तकलीफ देता होगा इसलिए बाप मजबूरी में बेटी के पास रह रहा है !” तरुण भड़क कर बोला।
” सही तो कह रहा है ये बेटा …बेटी के घर मां बाप जाते अच्छे नही लगते तू आराम से जा मैं यहां खुश हूं!” बेटे की बात सुन पापा बोले।
मानसी ने बहुत ज़िद की पर शायद पापा भी मजबूर थे….मानसी बेमन से लौट गई।
फिर कुछ दिन बाद पापा की मौत की खबर आई। सब ख़तम हो गया मानसी जानती थी पापा कितना तरसते हुए गये हैं पर मजबूर थी एक बेटी जो थी।
मानसी अकेले पापा के श्राद्ध में पहुंचती है….
आज पापा के श्राद्ध कितने भोग बने हैं सब मज़े से खा रहे हैं और नेहा और तरुण की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं उन्हें दुनिया का सबसे अच्छा बेटा बहू बोल रहे हैं जो पिता के मरने के बाद भी इतना सोचते हैं उन के लिए तो जीतेजी कितनी सेवा की होगी। मानसी दुखी हो पिता की तस्वीर को देखती है जिसमें पिता की आंखों में चमक मानसी अब भी साफ देख पा रही थी।
” दीदी चलो आप भी खाना खा लो अब!” नेहा आकर मानसी से बोली जो पापा के कमरे में उनकी तस्वीर सीने से लगाए बैठी थी।
” नहीं भाभी मुझे नहीं खाना !” मानसी बोली।
” पर क्यों आप नहीं खाएंगी तो पापा की आत्मा कैसे तृप्त होगी!” नेहा बोली।
” भाभी जिस खाने के लिए मेरे पापा जीते जी तरसते रहे वो अब कैसे तृप्त हो सकते है..सोच के देखिए एक बार…आप आज पकवानों के ढेर लगा रही हैं पापा के जीतेजी अगर उनकी पसंद के दो कोर खिला देती तो पापा तो वैसे ही तृप्त हो जाते वहीं तो पापा का सच्चा श्राद्ध होता ये जो आज हो रहा ये तो दिखावा है बस। इससे पापा कैसे तृप्त हो सकते है और जिस घर में मेरे पापा अतृप्त होकर गए हैं उस घर में मैं कैसे खा सकती हूँ !” मानसी तड़प कर बोली। तभी वहां तरुण भी आ गया।
” ऊपर वाले की लाठी बे आवाज़ होती है भाभी भैया जब किसी पर पड़ती है ना तब बहुत शोर होता है आप भी दो बेटों के मां बाप हो भगवान से दुआ करूंगी वो आपको कभी जीतेजी अतृप्त ना रखे पापा तो अपना वनवास काट नया जन्म ले चुके है पर आपका जीवन अभी बहुत लंबा है!” मानसी ये बोल पिता की तस्वीर ले निकल गई वहां से।
पीछे तरुण और नेहा का सिर शर्मिंदगी से झुक गया।
दोस्तों मां बाप को जीतेजी तृप्त करना ही असली श्राद्ध होता है उनकी मौत के बाद आप कितने छप्पन भोग बनवा लो सब बेकार है।
ये कहानी मैने अपने आस पास के परिवेश को देख कर लिखी है मेरा मकसद यहां किसी को गलत कहना नहीं है क्योंकि इस दुनिया में तरुण जैसे बेटे हैं तो श्रवण कुमार सरीखे भी हैं। हर बेटा बहू गलत नहीं होते और हर बेटी भी मानसी जैसी नहीं होती। पर ये कहानी कुछ घरों की सच्चाई जरूर उजागर करती है।
आपकी दोस्त
संगीता