वक्त है बदलाव का ! – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :  ” मम्मीजी इस बार तो मिट्ठू की पहली लोहडी है !” सिमरन अपनी सास जीतो जी से बोली।

” हां तो !” टीवी देखती हुई उसकी सास बोली।

” तो कुछ खास नही होना चाहिए क्या ?” सिमरन बोली।

” खास लोहडी मुंडे के होने पर होती है कुड़ी के होने पर नही !”  जीतो जी बिना उसकी तरफ देखे बोली।

” मम्मी जी मुंडे या कुड़ी से क्या होता है मिट्ठू इस घर की पहली बच्ची है उसकी पहली लोहडी तो खास होनी चाहिए सबको बुला कर जिससे लोग भी देखे हमने अपने घर की कुड़ी की लोहडी कैसे मनाई है !” सिमरन खुश होते हुए बोली।

“दिमाग़ तो नही खराब हो गया तेरा लोग क्या कहेंगे भला कुड़ी की लोहडी रखी है। ” जीतो जी गुस्से होकर बोली।

” मम्मीजी माफ़ कीजियेगा पर एक बात बताओ अगर आप नही होते तो रंजीत ( सिमरन का पति) कैसे पैदा होते । दादी जी नही होती तो पापाजी कैसे पैदा होते । कुड़ियों से ही तो मुंडे जन्म लेते है फिर तो कुड़िया मुंडो से भी बढ़कर हुई ना !” सिमरन प्यार से बोली।

” तेरी बात सही है बेटा पर सदियों से यही होता आया है कि कुछ चीजे मुंडो के होने पर ही होती है !” सिमरन की बात  सुनकर जीतो जी का लहजा भी नर्म हो गया था।

” जो सदियों से होता आया उसे बदला भी तो जा सकता है मम्मी जी । सदियों से औरते घर मे कैद थी । घर ही उनकी पहचान थी बस खाना बनाना, घर संवारना और बच्चे पैदा करना यही काम करती थी तब क्या किसी ने सोचा था कल्पना चावला बेटी होकर अंतरिक्ष मे जाएगी , क्या किसी ने सोचा था पी टी उषा का इतना नाम होगा । किसी ने सोचा था ओलिंपिक मे बेटिया गोल्ड मैडल जीतेंगी। नही ना मम्मी जी पर वक़्त के साथ बदलाव आया ना कुड़ियों ने अपनी पहचान बनाई है ना। सोचो इनके माँ बाप सोचते की सदियों से बेटियां घरो मे बंद रही है तो हम क्यो इन्हे बाहर निकाले तो क्या ये सब होता नही ना आज कोई भी लड़की अपनी पहचान ना बना पाती ..आजकल बेटी हर फील्ड मे आगे है फिर क्यो उसके लिए ये छोटे छोटे रिवाज़ नही बदले जा सकते ।” सिमरन सास का हाथ पकड़ कर बोली। तभी मिट्ठू उठ गई और सिमरन जीतो जी को खामोश देख अपनी आँखों के कोरों पर आये आँसू पोंछ कर मिट्ठू को दूध पिलाने चल दी।

दूध पिलाते पिलाते सिमरन सोच रही थी जब हमारे समाज मे इतने बदलाव आये है । जब बेटिया हर मोर्चे को बेहतर संभाले है बेटों से बढ़कर अपनी पहचान बनाये है तो कुछ लोग अब भी अपनी सदियों से चली आ रही रीत क्यो नही बदलते। कब हमारा समाज पूरी तरह से बदलेगा । कब बेटी और बेटे को हर तरह से बराबर समझा जायेगा ?

अनेक सवाल थे उसके मन मे पर जवाब एक नही । कितना मन था उसका अपनी लाडली की पहली लोहडी धूम धाम से मनाने का और उसकी ही लाडली क्यो मिट्ठू तो घर भर कि लाडली है सबसे ज्यादा तो मम्मी जी की फिर वो क्यो भेद कर रही उसके साथ। पिछले साल जेठानी के लड़के की लोहडी तो कितने धूमधाम से मनी थी । 

खैर कुछ चीजे बदलना हमारे बस मे होते हुए भी हम नही बदल पाते कभी परिवार की शांति कभी संस्कारो के नाम पर एक बहु झुक जाती है । यहाँ भी यही हुआ सिमरन ने उसके बाद किसी से इस बारे मे कोई बात नही की क्योकि वो जानती थी मम्मीजी की इंकार यानी सबकी इंकार । पति रंजीत ने तो पहले ही बोल दिया था कि अगर मम्मी इज़ाज़त दे तो मुझे कोई एतराज नही।

दिन बीते और लोहडी भी आ गई । लेकिन सिमरन को कोई खास उमंग ना थी इस लोहडी पर वो बेमन से थोड़ी बहुत तैयार हुई थी बस और बेटी को तैयार किया था। हां उसने इतना जरूर किया कि सुबह गुरूद्वारे जा बेटी के नाम की अरदास करा आई थी। 

” सुंदर मुंदरिये होय तेरा कौन बिचारा होय दूल्हा भट्टी वाला होय !” अचानक दरवाजे पर ढोल की आवाज़ के साथ गीत के बोल सिमरन के कानो मे पड़े। पर उसने सोचा कोई लोहडी की बक्शीश् मांगने वाला होगा तो वो अपने कमरे मे ही रही।

” सिमरन देख तो कौन है दरवाजे पर ?” तभी जीतो जी ने आवाज़ दी। 

बेमन से सिमरन ने दरवाजा खोला और खोलते ही हैरान रह गई सामने रंजीत , पापा जी दोनो ढोल वालों के साथ आये थे कुछ यार दोस्त भी थे सभी ढोल की थाप पर नाच रहे थे।

” रंजीत ये सब क्या है ?” सिमरन उनके बीच जाकर पति की बाह पकड़ कर जोर से बोली।

” अरे पुत्तर जी ये हमारी पोती की पहली लोहडी की खुशी है अपनी सास को बाहर बुला जरा उसे भी ठुमके लगाने दे !” रंजीत की जगह उसके पापा बोले।

तभी जीतो जी पोती के कान मे रुई लगा उसे लेकर बाहर आई और उसे गोद मे लिए लिए ठुमकने लगी । रंजीत ने सिमरन को भी खींच लिया वो हैरानी और असमंजस मिश्रित भावो के साथ हाथ हिलाने लगी। जब थोड़ी देर सब नाच लिए तो पापाजी जोर से चिल्लाये।

” अब बस करो जी यही सब नाच लोगो क्या …चलो सब पिछली गली वाले ग्राउंड मे पहुंचो हम आते है रंजीत लेकर जा तू इन्हे !” ये बोल उन्होंने 100-100 के पांच नोट पोती पर वार के ढोल वालों को दे दिये।

” चल सिमरन जल्दी तैयार हो जा लोहडी जलने का टाइम हो गया ..मिट्ठू के लिए मैं एक फ्रॉक लाई हूँ उसे मैं तैयार कर दूंगी!” जीतो जी सबके जाते ही बोली।

” मम्मी जी ये सब !” आँखों मे खुशी के आंसू लिए सिमरन सास से बोली।

” एक बदलाव की शुरुआत है बेटा …शुरुआत है लोगो को एक मेसेज देने की के कुड़ियाँ मुंडे एक समान होते है। इसकी तैयारी तो उस दिन से ही हो गई थी जब मेरी समझदार बहु ने मुझे समझाया था …पर अगर तुझे तभी बता देती तो इतनी खुशी कैसे देखती तेरे चेहरे पर । अब जब कुड़ी मुंडे एक समान है तो बेटा बहु भी तो एक समान हुए दोनो की खुशियाँ मेरे लिए मायने रखती है !” जीतो जी बहु का माथा चूमते हुए बोली। 

” अब ये प्यार व्यार बाद मे जता लेना बहु यही रहेगी अभी जल्दी तैयार हो जाओ सारे रिश्तेदार पहुँच भी गये होंगे !” तभी रंजीत के पापा जी हँसते हुए बोले।

सिमरन खूब अच्छे से तैयार होकर् आई। मिट्ठू की दादी ने उसे पीले रंग की खूबसूरत सी फ्रॉक पहनाई जिसमे वो खिले फूल सी लग रही थी। 

लोहडी जलते वक़्त मिट्ठू जोर जोर से ताली बजा हँसने लगी मानो इस बदलाव का स्वागत कर रही थी वो भी।

दोस्तों आज भी कुछ घरों मे बेटा बेटी मे भेद किया जाता है खासकर तब जब बात अहोई अष्टमी , लोहडी जैसे त्योहारों की हो क्योकि ये त्योहार सदियों से लड़को के लिए मनाये जाते रहे है पर अब समय है बदलाव का। क्योकि अब बेटियों ने बेटों की तरह अपनी पहचान बनाई है । वैसे भी बेटियां नही होंगी तो बेटे कहाँ से आएंगे । 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!