hindi stories with moral : आज रमा के पर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मानो वह उड़ती उड़ती सी फिर रही थी। बार-बार घर के बाहर जाकर दरवाजे के पास वाली दीवार पर लगी हुई नेम प्लेट को अपने पल्लू से पोंछती और उसे देखकर खुश होती फिर मुस्कुराती और अंदर चली जाती। पिछले 10 मिनट में न जाने कितनी बार वह ऐसा कर चुकी थी।
उसका पति महेश जो कि पहले एक रिक्शा चालक था, उसे देखकर हंस रहा था।
महेश-“रमा, बावली हो गई है क्या। बार-बार बाहर जाकर नाम की तख्ती को देखती है, खुश होती है और फिर अंदर आ जाती है। कितने चक्कर काटेगी री बावली। फिर बाद में कहेगी ,थक गई हूं।”
रमा-“क्या बताऊं विष्णु के बापू, अपने नसीब में भी ऐसा दिन आएगा, विश्वास नहीं हो रहा। हमारा अपना नया घर, और उस पर हमारे नाम की तख्ती। गजब हो गया गजब। भगवान खूब लंबी उम्र देवे हमारे बबुआ को। उसी की मेहनत और पढ़ाई लिखाई की वजह से हमें यह खुशियां मिली है।”
महेश-“हां सही कह रही हो।”
रमा-“आपने रिक्शा चला कर खूब जी तोड़ मेहनत की और दोनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया। आप तो अपनी तबीयत खराब होने पर भी आराम नहीं करते थे। आपने भी खूब त्याग किया है। मैं कुछ भी भूल ही नहीं हूं। कैसे हम लोग एक छोटी सी झुग्गी- झोपड़ी में रहते थे । बारिश आने पर पूरी झुग्गी के अंदर पानी टपकता था। और उसे देखकर हमारी मासूम बिटिया कैसे रोने लगती थी। हां वैसे हमारी बिटिया शालू भी पढ़ने में खूब होशियार निकली।”
महेश-“हां, यह दिन हमें विष्णु की वजह से ही देखने को मिला है। बिटिया भी हमारी पढ़ लिख कर टीचर बन गई और उसका विवाह एक अच्छे परिवार में, एक समझदार लड़के सौरभ से हो गया। विष्णु भी खूब मेहनत करके आखिरकार सीए बन गया। पर हमारा तुमने भी खूब साथ दिया है रमा। तुम्हारे बिना यह संभव न था।”
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रमा-“विष्णु ने जब बताया कि उसने एक तीन कमरों वाला घर खरीदा है तब खुशी के मारे मुझे तो यकीन ही ना आ रहा था। और जब देखा कि उसने नाम की तख्ती पर तुम्हारा और मेरा नाम लिखवाया है तब तो मेरी आंखों से खुशी के आंसू ही बह चले। ऐसे बेटे भगवान सबको दे। दुनिया की सारी खुशियां पाए मेरा बबुआ। अपने सुंदर घर का सपना पूरा कर दिया उसने। और यह भी कितना अच्छा है कि बहुरिया भी बहुत अच्छी है। बहुत समझदार है। बस , उन्हें दोनों का इंतजार है। घूम फिर कर आते ही होंगे।”
महेश-“हां मुझे सब कुछ याद है। उन दोनों को मैं कैसे भूल सकता हूं। बिटवा ने पहली कमाई आते ही कह दिया था-पिताजी अब आपके आराम करने के दिन है। मैं कमा कर लाऊंगा। अब आप को रिक्शा चलाने की कोई जरूरत नहीं है और फिर एक दिन उसने बताया कि साथ पढ़ने वाली एक लड़की निशा उसे बेहद पसंद है। उसे उसने पहले से ही बता दिया था कि मेरे पिताजी रिक्शा चलाते थे। निशा को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी ना ही उसके घर वालों को। खुशी खुशी दोनों की शादी हो गई। भगवान हमारी खुशियों को कायम रखे, हमारे बच्चों को सदा सुखी रखे बस हमें और क्या चाहिए।”
रमा-“अरे बस करो, कितना बोलते हो, अपनी बातों में मुझे उलझा कर देर करवा दी। बहु बेटा आते ही होंगे, आज मुझे उनकी पसंद का खाना बनाना है।”
महेश जोर से हंसते हुए कहता है-“हांभई
सच कहा, हमेशा देर तो मैं ही करवाता हूं और मैं ही ज्यादा बोलता हूं। तुम तो गूंगी गाए हो।”
दोनों पति-पत्नी जोर-जोर से हंसने लगते हैं और इतने में उनके बहू बेटा और बेटी दामाद चारों घर के अंदर आते हैं और पूछते हैं क्या हुआ मां पिताजी किस बात पर इतना हंस रहे हैं हमें भी तो बताइए।
महेश और रमा-“हां हां बच्चों बताते हैं, आओ बैठो।”
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली