Moral Stories in Hindi : कुछ महीनों से हमारे छोटे से शहर में ये चर्चा का विषय था, यहां भी वृद्धाश्रम खुल रहा है… एक दिन मुहल्ले में वृद्धाश्रम का बोर्ड टंगा देख आश्चर्य दुःख निराशा और उत्सुकता से भर उठी…
एक दिन किसी तरह बर्दाश्त किया.. अगले दिन जाने के लिए निकली सोचा थोड़े फल ले लूं.. फल दुकान वाला परिचित था बोला इतने फल एक साथ मत लीजिए खराब हो जायेंगे, मैने कहा वृद्धाश्रम जाना है. दुकान वाला बोला मेरी मानिए तो अभी मत जाइए.. चुनाव नजदीक है सारे नेता वहां आना जाना कर रहे हैं… दशहरा है तो और भी बहुत लोग फल खरीदकर ले जा रहे हैं, वहां देने.. ये सब खत्म हो जाए तब पूरा दिन उन लोगों के साथ गुजारिए उन्हे भी अच्छा लगेगा… बाकी आपकी मर्जी.. मुझे भी बात में दम लगा और मैं वापस आ गई..
ऐसे हीं कुछ महीने पहले पटना के एक वृद्धाश्रम में गई थी.…बड़ा सा हॉल.. उसमें दोनो तरफ बेड लगे थे… सत्तर प्लस के बुजुर्ग महिला और पुरुष दिख रहे थे… मैं उन लोगों के बीच जाकर बैठ गई.. बात की शुरुआत हुई यहां कितने दिन से हैं, अच्छा लगता होगा अपने हमउम्र लोगों के साथ रहना…
बोलना बातें करना..तभी एक बुजुर्ग महिला तल्खी से मेरी तरफ देखते हुए बोली इस उम्र में अपना परिवार बेटा बहु पोता पोती छोड़कर, जहां ब्याह कर आई उस घर को छोड़कर, पति की यादों से भरे उस घर को छोड़कर खाक अच्छा लगता है… ऐसे हीं हम जैसे अभागे यहां हैं..आंखों से आसूं बह चले…
मुझे भी अफसोस हुआ नही पूछना था ये सब…. मैने उनके आंसू पोंछे और कहा माताजी मत रोइए.. किस्मत किसको कौन सा दिन दिखाएगी कौन जाने, इसलिए जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए… वो बोली कहने में बहुत आसान है….. और आवेश में कहने लगी..जानती हो मेरे मालिक अकाउंटेंट थे कृषि विभाग में…
सुखी संपन्न परिवार था हमारा.. मैं अनपढ़ थी पर मालिक मुझे कभी इसका अहसास नही होने दिया.. तीन लोगों का छोटा परिवार था हमारा..एक बेटा मैं और मेरे पति.. बेटा बहुत तेज और आज्ञाकारी था.. मेरे मालिक कहते मनोज जैसा बेटा किस्मत वालों को हीं मिलता है.. मनोज आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग कर एमबीए की डिग्री भी ले ली…
बहुत अच्छे पैकेज मिल रहे थे..जगह जगह से ऑफर आ रहे थे नौकरी के..पुणे में मनोज ने नौकरी ज्वॉइन की…और अपने पसंद की लड़की से शादी करने की इजाजत मांगी… हमने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी.. परी हमारे घर बहु बनकर आ गई.. बहु बेटी दोनों वही थी.. हमने खूब प्यार लुटाया परी पर.. हमारी कुछ जमीन रेलवे ने ले ली थी और उसके बदले मोटी रकम दी थी…
हमने पुराना घर बेंचकर मनोज और परी के सलाह पर पुणे में बंगलो खरीद लिया… क्योंकि मनोज और परी हमें अकेला छोड़ने को तैयार नहीं थे.. हमारी आंखों पर भी मोह की पट्टी बंधी थी.. हम पुणे आ गए.. क्योंकि मालिक रिटायर हो गए थे.. दो महीना भी नही हुआ मालिक को दिल का दौरा पड़ा तीन दिन भर्ती रहने के बाद दुबारा दौरा पड़ने से चल बसे…
मैं इतने बड़े आघात से उबर नहीं पा रही थी.. ओह अगले महीने हम दोनों रामेश्वरम धाम जाने वाले थे.. मैने अपने गहने पासबुक सब मनोज को दे दिया.. मुझे किसी चीज की सुधबुध नही रही…. पहले परी और मनोज के ऑफिस जाने पर घर के सारे काम देख लेती थी पर अब अपनी हीं सुध नहीं थी तो…
परी बात बात पर मुझे झिड़कने लगी.. परी मां बनने वाली थी, पर मुझे किसी ने बताया नही.. एक दिन दो तीन कागज पर परी और मनोज ने मेरे अंगूठे के निशान लिए.. कहा पेंशन के लिए जमा करना है.. मुझे क्या मालूम ये घर बेचने के लिए मेरे साथ विश्वासघात कर रहे थे..
और एक दिन सुबह सुबह टैक्सी की हॉर्न सुनाई दी.. देखा मनोज और परी अपना समान रख रहे हैं.. मैं दौड़ कर गई मुझे छोड़ कर कहां जा रहे हो तुम दोनो.. परी बोली आ गई अपनी मनहूस सूरत ले कर . सोचा था जाते समय तेरा चेहरा नहीं देखेंगे पर… पति को तो खा हीं गई बेटे को तो जीने दो… और टैक्सी चली गई… बेटा भी पराया हो गया था…
मैं दुःख बेबसी से बिलख बिलख कर रो पड़ी.. पर मेरी बदकिस्मती का अंत अभी बाकी था.. समान भरा ट्रक गेट के पास रुका… और पीछे से एक बड़ी सी गाड़ी में बच्चे महिलाएं और तीन पुरुष उतरे… ट्रक से समान उतरने लगा.. मैने सोचा इतने बड़े घर में अकेले कैसे रहती इसलिए मनोज ने किरायेदार रख दिया है..
तभी ट्रक के साथ आया उनका स्टाफ अंदर आया और मुझे घर से बाहर जाने को कहने लगा.. ऐ बुढ़िया बाहर निकलेगी घर से या ज़लील करके निकलना पड़ेगा… मैने कहा ये मेरा घर है तुम मुझे कैसे निकालोगे.., वो हंसने लगा… तभी गाड़ी से एक औरत उतर कर आई और कहा आंटी जी मनोज जी ने ये बंगलो मेरे पति को बेंच दिया है…
आप कौन हैं? आपके विषय में कुछ बताया नही…. मनोज जी और उनकी पत्नी विदेश चले गए, उन्हे अच्छी नौकरी मिल गई है और उनकी पत्नी मां बनने वाली हैं उनके बच्चे को वहां की नागरिकता मिल जाएगी… इसलिए यहां से सब बेचकर चले गए.…उनका वैसे भी इंडिया में कोई है नहीं.. माता पिता रहे नही.…
मेरे कानों में गर्म पिघले सीसे सा हर शब्द उतरता गया. मैं बिना कुछ बोले गेट से बाहर निकल गई… मनोज के यहां जो लड़का दूध का पैकेट पहुंचाता था उसी ने मुझे यहां तक पहुंचाया… मैने अपने गले से सोने का जितिया (बिहार में एक पर्व होता है जो अक्सर पुत्र के लिए किया जाता है, निर्जला उपवास, उसी में सोने का जितिया धागे में मां पहनती है..)
उतार कर जबरदस्ती उसे दिया.. किसके लिए अब ये पहनूं…. हिचकी बंध गई बोलते बोलते… मन खिन्न हो गया… तभी एक बुजुर्ग जो टी शर्ट और हाफ पैंट पहने थे रोने लगे अपना घर अपने बच्चे और अपने परिचित संगी साथी बहुत याद आते हैं… हम सभी अपनों से ज़लील होकर यहां आए हैं.. और भारी मन भरी आंखें लिए थके कदमों से वापस आ गई थी…
#ज़लील
Veena singh
स्वार्थ चरम पर है पर यह कैसे उन घरों में पहुंच गया है जहां बच्चे मां बाप एवं परिवार से अटूट स्नेह पाकर बड़े हुए हैं? लगता है मां बाप ने बच्चों को अत्यधिक ममता प्रेम दिया है पर जीवन की वास्तविकताओं से जूझने के लिए कभी तैयार नहीं किया। ज्यादा सुख भी स्वार्थपरता को बढ़ावा देता है।
लगता है अपने अपने घरों की ही कहानी तो है हर शब्द सत्य और सुंदर ।मगर हमेशा बच्चे दोषी नहीं होते अपना ही दोष होता है