हाँ, नहीं हूँ मैं एक परफेक्ट हाउस वाइफ –  पल्लवी विनोद

क्या करती हो दिन भर, कोई अपना किचन ऐसे रखता है क्या! अरे! देखो पोर्च में कितने जाले लगे हैं। दस दिन के लिए आई मम्मी जी के ताने सुबह से शुरू हैं और मैं कैलेंडर में दिन गिन रही हूँ कि आज से चार दिन और झेलना है इन्हें।

मुझे कभी-कभी खुद पर शर्म आती है मैं कैसी हो गयी हूँ जिस सास को माँ का दर्जा दिया था उसी के जाने के दिन गिन रही हूँ तब तक मम्मी जी का कोई नया उपदेश शुरू हो जाता। कभी कहतीं किचन नहीं चमकता, कभी कहतीं कपड़े स्टोर क्यों करती हो रोज क्यों नहीं धोती तो कभी बच्चों की अलमारी व्यवस्थित क्यों नहीं है। कुछ दिन के लिए आतीं और मुझे मशीन बना देतीं फिर भी खुश नहीं होतीं।

आज सुबह से ही शुरू हैं कह रही थीं मेरे घर में मैं चैलेंज देती थी कि कोई धूल खोज के दिखा दे। अलमारी का हर कपड़ा व्यवस्थित रहता। उस टाइम तो हमने कोई मेड भी नहीं रखी थी। चार बच्चे पाल लिए हमने और आजकल लोगों से दो बच्चे पालना आफत हुआ है। असीम चुपचाप सब सुन रहे थे। मैं बच्चों का लंच तैयार कर रही थी। मेड भी उनकी बातें सुनकर मुस्कुरा रही थी। मेरी आँखें रह-रह कर छलछला रही थीं लेकिन बस यही सोच कर शांत थी कि इन्हें बस तीन दिन और झेलना है।

तब तक असीम बोले अरे शुभदा! तुम्हें एक बताना भूल गया। कल विभु की क्लास टीचर का फोन आया था। वो बोल रही थीं,”विभु का साइंस प्रोजेक्ट इंटर स्कूल साइंस एग्जिबिशन कॉम्पटीशन के लिए चुना गया है। बहुत तारीफ कर रही थीं।” मम्मी जी तुरंत बोलीं,”विभु है ही होशियार एक दम तुमपर गया है।”

“अरे नहीं माँ, मुझे नहीं आता ये सब! मैं तो खुद ही अपना प्रोजेक्ट दोस्तों से बनवाता था। ये सब तो शुभदा की मेहनत है।”

मम्मी जी चुप हो गईं कुछ नहीं बोली तब तक असीम बोले, “अच्छा शुभु वो राजीव यूनियन बैंक का शेयर बेचना चाह रहा है क्या बोलूँ उसे।”



“अभी मना कर दीजिए कुछ दिन रुक जाएँ अभी रेट ठीक नहीं चल रहा है।” मम्मी जी असीम से कहने लगीं,”राजीव तुमसे पूछ रहा था या शुभदा से” राजीव हंसते हुए बोले,” माँ शुभदा को शेयर मार्केट का अच्छा नॉलेज है तो सब इसी से पूछते हैं खुद मैं भी।” माँ को शांत देखकर असीम बोलने लगे माँ आपके समय में आप लोगों को पढ़ने-लिखने की छूट नहीं मिली। आप लोगों की दुनिया हम और हमारा घर थे। पापा ही बाहर का सारा काम करते थे।राशन, बैंक यहाँ तक कि हमारे स्कूल भी आपको अकेले नहीं जाना होता था।लेकिन अब जमाना बदल गया है। औरतों की जिम्मेदारियाँ बहुत बढ़ गयी हैं। बच्चों की पढ़ाई उनसे जुड़े प्रोजेक्ट्स, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी, उनका वैक्सीनेशन, बैंक के काम, बिजली का बिल, सोसाइटी में होने वाले कल्चरल प्रोग्राम के अलावा उनके अपने शौक होते हैं जैसे शुभदा को शेयर मार्केट और क्लासिक्ल डांस में बहुत इंटरेस्ट है। 

अब इतने सारे काम के बावजूद घर का थोड़ा बहुत हिस्सा कम चमका या नाश्ते में परांठे की जगह सैंडविच बन गया तो आप उसे कामचोर या खराब हाउस वाइफ तो नहीं कह सकती ना! पता है माँ… शुभदा आपके आने से पहले पूरे घर को साफ करती है कि मम्मी जी को गंदगी पसंद नहीं है सिर्फ इसलिए कि आप उसकी सफाई से खुश होकर उसकी तारीफ करेंगी। लेकिन आपको धूल दिख ही जाती है और उसकी सारी मेहनत बर्बाद हो जाती है। मैं चाहता तो इस बार भी आपसे ये सब नहीं कहता, तीन दिन बाद आपको चले ही जाना है लेकिन मुझसे आप दोनों के रिश्ते पर जमीं ये धूल देखी नहीं जा रही थी। क्या करूँ आपका ही बेटा हूँ ना तो थोड़ी बहुत सफाई मुझे भी पसंद है। हो सकता है आप लोगों की नजरों में वो परफेक्ट हाउस वाइफ नहीं है लेकिन मेरी नजर से देखिये माँ तो आपको भी उसके अंदर एक परफेक्ट बीवी, परफेक्ट माँ और परफेक्ट बहु दिखाई देगी।

माँ ने मुझे बुलाया, मेरे आँसू मेरे नियंत्रण का बाँध तोड़ चुके थे। मैं उनके पैर के पास बैठ गयी। उन्होंने मेरा चेहरा अपने हाथों में लेकर कहा, सच कह रहा है असीम मेरी नजर कुछ खराब हो गयी है। घर की सुंदरता के चक्कर में अपनी शुभदा के मन की सुंदरता नहीं देख पा रही थी। यही तो मेरे घर की परफेक्ट बहू जिसने अपने ज्ञान का बखान कभी हम लोगों के सामने नहीं किया। अरे बेटा! मुझे कब दिखाएगी अपना डांस! दोस्तों ये तो थी शुभदा की कहानी। शुभदा की तरह हमारे आस-पास बहुत सी गृहणियाँ हैं जिनके घर और कामकाज पर हम टिप्पणी करते रहते हैं। परफेक्ट हाउस वाइफ की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती। हर वो घर जहां से लोगों के खिलखिलाने की आवाज होती है उस घर की औरत परफेक्ट है। हम सब परफेक्ट हैं।

आप सबको मेरे विचार कैसे लगे जरूर बताइयेगा और मेरे अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए मुझे फॉलो जरूर करिएगा।

 पल्लवी विनोद

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3 thoughts on “हाँ, नहीं हूँ मैं एक परफेक्ट हाउस वाइफ –  पल्लवी विनोद”

  1. मैं भी परफेक्ट गृहिणी नहीं हूं , शायद परफेक्ट वाइफ भी नहीं हु पर एक छोटे-से टाउन में रहकर , पढ़ाकर मेने बेटे को गूगल में अमरीका पहुंचाया है। मुझे गर्व है इस बात पर।

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  2. 👌👌बहोत अच्छा msg दिया इस कहानी ने. खुबीया सभी के अंदर होती हैं बस फील्ड अलग हो सकता हैं. और वैसे भी कोई 100% परफेक्ट नही होता. 🙏😊

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