माधवी आज समझ पाई थी कि जिस आत्मिक सुख के लिए जीवन भर भटकती रही वह,वह तो मृग मरीचिका से ज्यादा कुछ भी नहीं था।रिश्तों की बोलियों में घरों को बिकते देखा है उसने।हर रिश्ते में छिपा होता है स्वार्थ।पाने और देने की परंपरा निभाई जा रही है रिश्तों में।एक दूसरे को खुश रखने की झूठी कोशिश इतनी शिद्दत से निभाई जा रही आजकल कि ,रिश्तों में जमकर मिलावट होने लगी।रिश्तों का आधार बन गया है पैसा।
यहां हर किसी को दूसरे से कुछ चाहिए।कोई किसी की मदद भी यही सोचकर कर रहा है कि बदले में क्या मिलेगा।इन रिश्तों की गिरती मानसिकता से ईश्वर भी अछूते नहीं।मन्नत पुरी हो तो प्रसाद सवा किलो का,ना पूरी हुई तो एक पांव भी मुश्किल से चढ़ते होंगें।अमीर का चढ़ावा लाखों का,तो दर्शन भी त्वरित।
गरीबों के प्रसाद को पंडित जी भगवान के पास भी नहीं पहुंचाना चाहते। दर्शन बड़े दुर्लभ हो जातें हैं।
बचपन से माधवी बड़ी ईमानदारी से रिश्तों को निभाती रही पर उसमें भी छल-कपट के कीट प्रवेश कर ही गए।मां को अपना दामाद बेटी से ज्यादा अच्छा लगता था क्योंकि बेटी अपने ससुराल के प्रति सदा वफादार रही।
पति के साथ अपने रिश्ते को मजबूती देने के एवज में कई बार मारना पड़ा है अपने आत्मसम्मान को। सास-ससुर के साथ ईमानदारी से निभाएं रिश्तों में भी कभी प्रशंसनीय वाला भी प्रमाणपत्र नहीं मिला।घर की सारी जिम्मेदारी निभाकर नौकरी करने में ही रिश्ते बचते रहे।बच्चों की अलग अपेक्षाएं रहीं थीं मां से।अच्छा नाश्ता या लंच नहीं मिले अगर किसी दिन,तो आतंक का साया घर कर लेता।अपना मनपसंद का खाना ना मिलने पर बच्चों की आंखों में अपना रिश्ता डूबता मिलता।
इस कहानी को भी पढ़ें:
आख़िर किसे समझाएँ..? – रश्मि प्रकाश : hindi stories with moral
अब थकचुकी थी माधवी।अब उसने अपने आप से बना रिश्ता को बदलने की सोची।इतना त्याग,समर्पण के बाद भी परिवार में सभी को सफाई देनी पड़ती।ये कैसे रिश्वतें हैं। गिरगिट से भी तेज रंग बदल सकतें हैं।मुंह में झूठी हंसी और हांथों में खंजर लिए हर रिश्ता दूसरे रिश्ते से सुबूत ही मांगता दिखा।
आज माधवी लगभग दो सालों के बाद स्कूल गई।ज्यादा पीरियड नहीं पढ़ाने के कारण फ्री पीरियड्स में छोटी कक्षाओं को खाली पाकर जाती थी। छोटे-छोटे मासूम निष्पाप बच्चों को देखकर माधवी कभी उनकी कक्षा में जाकर खड़ी हो जाती ।अपने कविता के पिटारे को खोलकर उसमें से अच्छी कविताएं सुनाने लगी थी माधवी।
बच्चों ने भी प्रेम और सम्मान देकर स्वागत किया।लंच में ग्राउंड में छोटे-छोटे बच्चों को देखना बहुत अच्छा लगता था ।इन मासूमों ने अभी रिश्तों पर दांव लगाना सीखा नहीं है।माधवी रोज़ की तरह छोटे बच्चों का खेल देख रही थी लंच के समय,कि तभी एक बच्चा भागता हुआ आया और माधवी के हांथ में एक चॉकलेट देकर कहा”आप तो हमेशा देतीं हैं हमें।ये मैं आपके लिए लाया ।”उस क्षण ऐसा लगा कि नोबल पुरस्कार मिल गया।उस बच्चे का भोलापन देखकर माधवी को प्रेरणा मिल गई।
उसी के जैसे कई छोटे-छोटे बच्चे माधवी के आगे पीछे घूमते रहते।एक टॉफी देता तो पाकेट में रखकर किसी और को दे देती।ये निष्पाप बच्चे इसी में खुश होकर उछल कूद कर खेलते रहते।समय समय पर आकर माधवी के बारे में पूछते प्रिंसिपल से। जोबच्चा रोज़ माधवी को टॉफी दे रहा था ,उसका हांथ बुरी तरह टूट गया था।
अपनी बहन जो कि इसी विद्यालय में पढ़ती है,से माधवी का नंबर पता किया और रोज फोन लगाकर पूछता”मैम मैं जल्दी ठीक हो जाऊंगा ना”,?माधवी हर बार बोलती”क्यों नहीं।”तेज बारिश की वजह से मिलने नहीं जा पाई उससे पर उससे फोन पर बात करके अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी।
शायद यह ईश्वर का संकेत है कि,स्वार्थ से बंधे मतलबी रिश्तों से कहीं बेहतर हैं प्रेम के रिश्ते।अब माधवी रिश्तों की तुरपाई नहीं करेगी।अपेक्षाओं की सारी खाली रील्स फेंक दी उसने।अब रफू करा कर के नहीं सीएगी रिश्तों के थीगड़ों को।माधवी का दिल मानो अब खुल कर सांस ले रहा था।मानो कह रहा था उससे”अरे पगली,यही तो मेरी चाहत थी।अपनों से प्रेम और विश्वास की याचना कब तक करेगी?जिनसे कोई रिश्ता नहीं जन्म का उनसे एक बार प्रेम करके देख।सारे रिश्ते बेमानी से लगेंगे।”
माधवी अपने इस बदले स्वरूप को जीना चाहती है अब।क्या हुआ जो अब समय नहीं अपनों के पास,क्या हुआ जो बहुत सारा उम्र का हिस्सा छूट गया पीछे।इन प्रेम के रिश्ते ने उसके जीवन का सारा खालीपन भर दिया।अब वह सभी की है,और सारे उसके।।
शुभ्रा बैनर्जी