संयुक्त परिवार की बड़ी बहू हूं मैं , सास – ससुर , मैं , मेरे पति ,मेरे देवर – देवरानी और हमारे परिवार के भोले – भाले 3 बेटे और सीधी -साधी 1 बेटी …. हमारे परिवार में बहुत प्यार है, तो ये चारो बच्चे हमारे साझे के हैं । न तेरे ना मेरे ……हमारे सबके ये चार…।
अब परिवार हमारा संयुक्त है तो बड़ो के लाड – प्यार ने चारों बच्चों को सर चढ़ा रखा है। उनकी भी आदतों में शुमार हो गया है नित नई फरमाइशें करना और अपनी फालतू की जिद्द पूरी करवाना…. दाल- चावल , रोटी सब्जी, घीया ,तौरी ,टिंडा खाना तो उन्हें जेल ,अस्पताल के खाने समान लगता है।
घड़ी की सुई भी 2 बजाने से कतरा रही है । किसी भी समय भूखे बच्चों की सेना स्कूल से घर को लौटने वाली हैं , घर में महाभारत का आगाज़ होने वाला है …. घंटी बजती है , तो गेट पर से ही बड़े बेटे ने आवाज लगाई ….मम्मी,” आज खाने में क्या बना है “??? बाकी के तीनों शैतान व्यंगात्मक रूप से मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं….
मैं कुछ उत्तर दे पाती उससे पहले ही बिटिया रानी नाक – भौं सिकोड़ कर बोली -“… पूछना क्या है भैया , मेनू तो आपको पता ही है ना “। छोटे नवाब ने भी बीच में कूद पड़े ,” दाल -चावल” और क्या ? और उनके शब्दों ने भी दरवाजे पर ही आज के दाल – चावल के मेनू पर मुहर लगा दी थी ।
अब तो मेरा खून उबल पड़ा …।
हां -हां…… दाल-चावल ही है…., और हां…..यही खाना भी पड़ेगा… मैने अपने स्वर में गुस्सा और आज्ञा दोनों का ही पुट डाल दिया था ।
अब तो काटो तो खून नहीं ….। बच्चों ने आज के बेहतरीन मेनू का खाना खाने से साफ इंकार कर दिया था । रोज़ – रोज़ की चिक – चिक से परेशान बच्चों की चाची भी दनदनाती हुई आई और उन्होंने पिछले 1 हफ्ते का स्वादिष्ट डिशेज का मेनू झट-पट उंगलियों पर गिना डाला …बच्चे सकपका गए और कोई उत्तर न होने पर पतली गली से अपने कमरे की ओर निकल लिए… .. धम…. धड़ाम….!
स्वर से ही मैं समझ गई आज मामला बहुत गंभीर है जल्दी से शांत नहीं होने वाला , बात उठी है तो ऊपर तक जाएगी ।
” भूख लगेगी तो अपने आप खायेंगे ” – सासु मां के इस डायलॉग की तो swigy और जोमैटो एप ने धज्जियाँ उड़ा कर रख दी थी…. । मनपसंद डिशेज ऑर्डर कर दी गई …. बच्चों के कमरे से रह रह कर ठहाको की आवाजे आ रही थी … स्वादिष्ट मसालेदार भोजन का आनंद लिया जा रहा था ।… हम दोनो देवरानी जेठानी मुंह फुला कर अपने कमरे में जा बैठी…।
जैसे तैसे शाम हुई ,पिताजी के घर लौटते ही शिकायतों का पिटारा खुल गया …काम के डर से पिता का प्रेम तो जगा नहीं और वे अपने कमरे की ओर खिसक लिए ,परंतु बच्चो के चाचू का प्रेम तो फूट- फूट कर बाहर आ गिरा ।
देवर जी के कमरे से खुसर- फुसर की आवाजे आ रही थी , पता नहीं मीटिंग में क्या तय हुआ…..अगले ही पल बेलन धारी देवर जी अट्टहास करते हुए किचन की ओर बढ़ रहे थे, पीछे- पीछे हेल्पर रूपी सेना में चारो बच्चे कूदते फांदते देवर जी के कदम से कदम मिलाकर साथ ही किचन में प्रवेश कर रहे थे ….छोटे नवाब ने बैकग्राउंड में अजीमोशान शंहशाह का गाना बजा दिया था …।
देवरानी जेठानी की हमारी जोड़ी इस भयंकर सेना को दम खम और जोश सहित अपनी तरफ आते देख कर भय भीत हो गई थी । अब तो लग रहा था मानो किचन क्वीन का खिताब मेरे सिर से उतर कर देवर जी के माथे पर जा चिपकेगा…।
….कुकर भर कर आलू उबाले गए 1/2 किलो प्याज बारीक कतरा गया । हमारा गूंथा हुआ आटा स्वाभिमानी बेलनधारी सेना से प्रयोग में लेने से मना कर दिया….बासी आटा डिब्बे से झांक कर मेरा मुंह ताक रहा था …मैं विवश थी….किस मुंह से तुम्हारा साथ दूं आज तो अपने सिर पर सजे ताज पर ही बन आई है… ।
डिब्बे से आटा निकाला गया, ना आटे में पानी, न नमक का ज्ञान …देवर जी तो ठहरे बुद्धू राम ….हम मन ही मन खुशियाए गए ….आटा तो ना लगा पाएंगे …..पर ये यूट्यूब है ना…जल्द ही हमारी खुशियों पर पानी फिर गया …. आटा गूंथ कर तैयार हो गया …।
मसालों का तो पता नही पर आलू प्याज में जो मिला सो झोंक दिया ,नमक, मिर्च ,धनिया और क्या …. लो हो गई परांठे की स्टफिंग तैयार…हरे धनिए की पत्तियां बुरक कर देवर जी का तो कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ गया था ,और बेलनधारी सेना की अकड़ …।
देवर जी ने बड़ा सा ढाबा स्टाइल परांठा तवे पर दे पटका , रोजाना हेल्थ पर ज्ञान देने वाले पतिदेव के हेल्थ टिप्स आज कहीं नदारद थे । पतिदेव को आज तनिक भी कैलोरीज़ की चिंता न सता रही थी जो रोज हमे कम घी तेल यूज करने की हिदायतें देते थे । भर-भर घी तवे पर उड़ेला गया , तवा भी खिसिया पड़ा ….बस बस अब और नहीं…काहे भैया ….डूबा कर मारोगे क्या…?
परांठे की खुशबू से चित डोल रहा था ,
जीभ पर परांठे का स्वाद तैर रहा था …. मक्खन की आधी टिकिया परांठे पर सज गई, बच्चों ने परांठे का खूब लुत्फ उठाया और देवर जी ने तारीफों का लुत्फ … हमें बचा खुचा एक परांठा परोस दिया गया ।किचन क्वीन का डायमंड से सजा ताज मेरे सिर से उतार लिया गया था …. जो की देवर जी के माथे पर जगमगा रहा था …। हारने के दुख से दूर ,असली परीक्षा तो अभी बाकी थी ।
वो था हमारी किचन का हाल……जो देख कर तो हमारे प्राण पखेरू उड़ चले थे । कही आलू के छिलके कही बिखरा प्याज … और हमारा नया तवा जल कर कोयला बन गया था , सिंक से बर्तन बाहर कूदने पड़ने को तैयार थे ,गंदी फैली हुई किचन अपनी प्रिय मालकिनो को पुकार रही थी ।चक्कर खा कर गिरने ही वाली थी की दोनो ने एक दूसरे को सहारा दिया..।
और कसम खा ली … अब बच्चों को ना कहना …. न बाबा न ।।,,
धन्यवाद
पूजा मनोज अग्रवाल