अम्मा की तेरहवीं – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

 Moral Stories in Hindi : आज अम्मा की तेरहवीं है ।कुछ बाकी रीति रिवाज निभाने हैं मुझे ।फिर सब कुछ खत्म हो जायेगा ।मै उनका इकलौता बेटा हूँ ।मेरे सिवा  और कौन समझ सकता है उन्हे ।जब से होश संभाला है घर में तिरस्कार ही सहते देखा है ।मै छोटा सा था शायद सात या आठ साल का तभी पापा गुजर गए थे ।छोटे से उम्र से ही अम्मा को छिप कर आँसू पोछते देखा था ।इतनी समझ तो थी कि अम्मा को किसी बात से दुख पहुंचा है ।

पर वह कभी बताती नहीं थी।हर बार बात को टाल जाती।जैसे जैसे बड़ा होता गया मुझे समझ आने लगा था ।बात बात पर दादी का टोकना, चिल्लाना, बड़ी माँ का गुस्सा उनपर उतारना बदस्तूर जारी रहता ।” अरे, इसे तो खाना बनाना नहीं आता, कोई तरीका नहीं जानती इसे माँ बाप ने कुछ सिखाया नहीं ।देना लेना तो दूर बेटी को खाली हाथ भेज दिया “।–” और हाँ अम्मा, अब देवर जी तो चले गये, इन माँ बेटे के परवरिश की जिम्मेदारी हम पर छोड़ दिया ।

अब हम अपना देखें कि इनका खयाल रखें?” आखिर हमारी अपनी अपनी दुनिया है ।अम्मा धीरे से आँसू पोछ लेती ।दिन रात चक्की सी पिसती रहती ।मुझे बहुत दुःख होता यह देख सुनकर ।पर मै बहुत छोटा था ।फिर घर संभालने के साथ अम्मा ने स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली ।सुबह स्कूल जाती, दो बजे आकर रसोई तैयार करती ।फिर दादाजी को खिलाकर निश्चित होती ।

फिर पूरे परिवार का खाना पीना चलता और तुरंत बाद टयूशन के लिए बच्चे आने लगते।पंद्रह बच्चों को पढ़ाते शाम को पाँच बज जाते ।फिर अम्मा शाम के नाश्ते की तैयारी में लग जाती।कभी उन्हे  आराम करते नहीं देखा ।फिर भी घर वाले खुश नहीं रहते अम्मा से ।कभी थकती नहीं थी क्या वह ? मेरे दिमाग में उथल-पुथल मचा रहता ।सोचता  मुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना होगा ।

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ताकि अपनी माँ को खुशियाँ दे सकूँ ।मै जी जान से शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ने लगा था ।घर का वातावरण बहुत अच्छा नहीं था ।दादी को सिर्फ कोसने की आदत थी, बड़ी माँ का गुस्सा उनपर उतारना बदस्तूर जारी रहता, वे अपनी बीमारी का रोना रोती रहती ।सिर्फ दादाजी  चुप रहते ।।वैसे तो अम्मा सब की देखभाल और तीमारदारी में कोई कमी नहीं करती लेकिन दादा जी ही सहानुभूति रखते थे लेकिन उनका भी घर में चलता ही नहीं था।

बड़ी माँ तो सीधे सीधे डांट देती उनको।दादी को भी दादा जी से लड़ते ही देखा था हमेशा ।बहुत कोफ्त होती मुझे ।कैसे लोग हैं ये,जरा भी समझ दारी नहीं है ।नहीं  ,मुझे आगे बढ़ कर अपनी अम्मा को देखना होगा ।मन लगाकर पढ़ाई करता मै ।देखते देखते समय भाग रहा था ।मै इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक अच्छी कम्पनी में लग गया ।मेरी पोस्टिंग पूना में हो गई ।नौकरी लगते ही रिश्ते आने लगे।मै तो अभी तुरंत शादी के पक्ष में नहीं था पर अम्मा की जिद थी तो हाँ कहना पड़ा ।धूमधाम से शादी हो गई ।बहुत खर्च हुआ ।लोगों ने कहा वाह बहुत सुन्दर पार्टी थी ।बड़े पापा ने खूब खर्चा किया ।लेकिन मै जानता था कि अम्मा ने बैंक से लोन लेकर शादी निभाया है ।नयी दुल्हन को लेकर हम वापस पूना आ गए ।अम्मा ने ही नेहा को साथ लेकर आने को कहा था ।

एक महीने के बाद ही मैंने अम्मा को बुला लिया ।वह तो परिवार से डरती ही रही।आने से टाल मटोल कर रही थी ।लेकिन मेरी जिद पर आ गई ।” अब तुम्हारा  बेटा कमाने लगा है अम्मा, तुम्हारा सब शौक पूरा करेगा ” अम्मा बहुत खुश हो गई थी, नेहा भी खूब खयाल रखती उनका।दिन हंसी खुशी में गुजर रहा था ।अम्मा अपने मन का बनाती, खाती,पहनती, घूमती ।मेरी कोशिश रहती थी कि अम्मा को किसी बात से तकलीफ न हो, उनके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ मिले।पर होनी को कौन टाल सकता है ।




दादी की बीमारी के खबर मिलते ही अम्मा घर चली गई ।वहां जाकर भी फिर पहले जैसा ही होने लगा था ।बड़ी माँ तो और भी उग्र हो गईथी ।शायद अम्मा का सुख उन्हे खटकने लगा था ।और दादी का बदलना भी मुश्किल था ।रोज घर में चीखना चिल्लाना होता ।अम्मा एक दम गुमसुम रहने लगी ।ठीक ढंग से कोई बात करने वाला नहीं था ।अभी तो उनके सुख के अवसर मिले थे, लेकिन कौन जानता था कि ईश्वर को यही मंजूर था ।

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एक दिन हल्का सा ज्वर हो आया और अम्मा चली गई ।खबर मिलते ही तो भागा था मै।जमीन पर पड़ी थी अम्मा ।एक दम शान्त ।परिवार के सारे लोग जुटे ।कुछ लोगों ने नकली आँसू भी बहाये ।किसी चीज की कमी नहीं रहनी चाहिये, बड़ी समझदार और सहनशीलता की मूर्ति थी छोटी।बड़ी माँ दहाड़ मार कर रो रही थी ।मै अपने काममें लगा रहता, सोचता ” इतनी समझदार और सहनशीलता की मूर्ति थी तो फिर आप लोगों ने जीना क्यो दूभर कर दिया था ।” अम्मा चली गई ।सारे परिवार जुट गये, दान पुण्य हो रहा है ।खूब अच्छा खाना हो रहा है, लोग संतुष्टि से खा कर लौट रहे हैं ।

सब के मुँह से निकल रहा है ” भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें ” कल तेरहवीं खत्म हो जायेगी ।मै भी लौट जाऊँगा ।पर अम्मा को सचमुच शान्ति मिल गई क्या? जो पूरी जिंदगी दूसरे की मर्जी से चली ।हमेशा तिरस्कार ही सहती रही ।मै ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि हे ईश्वर अगले जन्म में मेरी प्यारी माँ को खुशियाँ देना ।बहुत सारी जरूरतें पूरी नहीं कर पाया उनकी ।भगवान ने समय ही नहीं दिया ।अगले जन्म में वह खूब खुश रहें ।”” माँ मुझे आपकी बहुत याद आती है “” आपका  बेटा बहुत तड़प  रहा है आप के लिए ” काश,एक बार फिर से मिल पाता ।आप तो मुक्त हो गई ।मै आप की सोच से कहाँ मुक्त हो रहा हूँ??? 

“” उमा वर्मा “”। नोयेडा ।

1 thought on “अम्मा की तेरहवीं – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi”

  1. Aaj ki duniyan mein sab kuchch fikhava hi ho hai, sab dhakosla….. jeete ji poochte nahin, merne per dar ke maare Shraddha ka dikhava karte hain…..

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