चरित्रहीन.. – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: बगल वाले फ्लैट का ताला खुलने की आवाज आई, नेहा ने की होल से झाँक कर देखा, सहेली नैना की बात सही थी, रजनी को सहारा देकर अंदर जाते पुरुष के बलिष्ठ हाथ ही दिखे,चेहरा नहीं दिखा,!!

  “तू सही कह रही नैना, आज तो अपने पुरुष मित्र के साथ घर आई है, लगता है पार्टी करके आ रहे है, इसीलिए रजनी ठीक से चल भी नहीं पा रही” नेहा ने फोन पर दूसरी ओर कान लगाए पड़ोसी सहेली नैना  से कहा!!

“आज तक मेरी बात गलत साबित नहीं हुई, रजनी का चाल – चलन अच्छा नहीं है, कोई इस तरह तलाक लेता है,उसे अपने सुंदरता और नौकरी का गुमान है, तभी तो हम लोगों से बात नहीं करती.., तू सम्भल कर रहना, कहीं तेरे पति पर डोरे ना डाले.., दोनों एक ही ऑफिस में काम करते है…, “नैना बोली,

जाने क्यों नैना की बात सुन नेहा बेचैन हो गई..,

  घंटी की आवाज सुन नेहा ने फोन रख दिया, दरवाजे पर आकाश खड़े थे,

  “आप को आज इतनी देर क्यों हो गई, “बोलते नेहा की नजर आकाश के शर्ट पर पडी, लिपस्टिक के हल्के दाग उसकी शर्ट पर थे!!

” ओह.., अब मैं समझी, कहीं पड़ोसन के घर से तो नहीं आ रहे, आखिर आपके ऑफिस में काम करती है,”नेहा कटु हो कर बोली,

   “नेहा, मैं थक गया हूँ, मैं फ्रेश होकर आता हूँ, तुम एक प्याली चाय पिला दो..” आकाश बाथरूम जाते हुए बोला,

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  “नहीं, पहले तुम्हें सच बताना होगा, तुम कहां थे, ये लिपस्टिक के दाग तुम्हारी शर्ट पर है, जो तुम्हारे गिरे चरित्र की कहानी बता रहे,.., यही सिला दिया तुमने मेरे प्यार का, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकती, तुमने मुझे धोखा दिया . “रोते हुए नेहा बोली,

अब तक धैर्य रखे आकाश का पारा एकदम से हाई हो गया, “हाँ मैं इतनी देर रजनी के साथ था ., और क्यों था..?? कारण भी सुन लो, उसका एक्सीडेंट हो गया, वहाँ सड़क पर वीडियो बनाने और तमाशा देखने वाले लोग थे, पर मदद करने वाले हाथ नहीं थे..,उसने मुझे नहीं बुलाया, मैं उधर से गुजर रहा था, भीड़ देख रुक गया…, रजनी को डॉ. को दिखा घर पहुंचाया हूँ.. .,!!

  ” मदद करने गए थे या बेवफाई करने..” नेहा जोर से चीख पड़ी..

आकाश की निगाहें दरवाजे पर पड़ी, जहां बैसाखी का सहारा लिए रजनी,पूजा की थाली ले कर पत्थर बन खड़ी थी..!!

     आकाश की नजरों का अनुसरण करते नेहा की आँखे रजनी पर पड़ी, थाली में खूबसूरत सी राखी  थी!!

” मेरा घर बिगाड़ कर ये राखी बांधने का नाटक करने आई हो” चिढ़ और गुस्से से नेहा बोली,

   आँखों के आँसू और आवाज को संयत कर रजनी बोली, “नेहा, तुम्हारी गलती नहीं, हमारा ये समाज तलाकशुदा स्त्री को हमेशा गलत नजरों से देखता है, पुरुष को नहीं, कभी किसी ने उस स्त्री से नहीं पूछा, आखिर उसने ये कदम क्यों उठाया..?? क्या बिना पुरुष के एक स्त्री का कोई चरित्र नहीं होता है,..??

थोड़ा रुक कर फिर बोली, “मैंने पांच साल हिंसा सही, हर रात टूटने की पीड़ा सही, जब सहनशक्ति खत्म हो गई तब लगा ये कदम उठाना जरूरी है, पर अफसोस.. एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की पीड़ा समझ नहीं पाई,

” मैं आकाश में, असमय चले गए अपने भाई का अक्स देखती थी, सोचा था, आज बरसों की रखी राखी आकाश को बाँध, रिश्ते की पूर्णता को जी लूँगी .., पर मैं भूल गई,मुझे खुश होने और रिश्तों में जीने का हक़ नहीं है .. तलाकशुदा हूँ ना, बस किसी का घर बिगाड़ सकती हूँ  बना नहीं सकती.., और तलाकशुदा हमेशा चरित्रहीन होती है “रोते हुए रजनी वापस चली गई!!

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घर में तनाव फैल गया, नेहा अपने को कोसने लगी, वो क्यों इतनी कान की कच्ची हो गई, अपनों को छोड़ दूसरों की फिजूल की बातों पर विश्वास कर बैठी.. आत्मग्लानि से नेहा सर नहीं उठा पा रही थी..!!

सुबह की लालिमा सब जगह फैल गई, चाय बना, नेहा आकाश को देकर बोली, “तुम पर अविश्वास करके मैंने जो अपराध किया, उसकी माफी तो नहीं है, पर मुझे जीवन में एक सबक मिल गया है, मुझे माफ़ कर दो आकाश…!!”

” तुम को लिपस्टिक का जो दाग दिख रहा था, तुम भूल गई सुबह तुम ही गले लगी थी ., ऑफिस में भी सब मज़ाक उड़ा रहे थे..यूँ किसी पर अविश्वास नहीं करना चाहिये, मेरे साथ – साथ रजनी भी कितनी आहत हुई. “आकाश बोला

   कुछ देर बाद रजनी के फ्लैट की घंटी बजी, समाने नेहा को देख रजनी दरबाजा बंद करने लगी, नेहा ने ज़बरदस्ती रोका,कान पकड़ बोली, “माना मैं कान की कच्ची थी, पर अब नहीं हूँ.., आज से एक नया आगाज कर रही हूँ, दूसरों की बातों पर बिना जाने – समझे यकीन नहीं करूंगी…, अब माफ कर दो और मेरी प्यारी सी नन्द रानी बन जाओ..”

  कुछ देर बाद नेहा के घर आई नैना और एक – दो सहेलियाँ आश्चर्यचकित थी, रजनी खुशी से आकाश और नेहा   को राखी बाँध रही थी, हँसते – खिलखिलाते चेहरों को देख, नैना और सहेलियाँ ने, चले जाने में ही भलाई समझी…!!

   दोस्तों, यों तो तलाक की बात आज आम हो गई, पर हमारी मानसिकता वही है, तलाक की दोषी हम स्त्री को ही क्यों मान लेते, जबकि हम आधुनिक सोच का दावा करते है .. तलाकशुदा स्त्री के लिए जीवन आसान नहीं रह जाता, तभी तो स्त्रियाँ हिंसा झेल लेती है, जान गवां लेती लेकिन तलाक नहीं सोच पाती है, आखिर इसके जिम्मेदार कौन है, हमारी सोच, समाज, पति या डर..??

               – – (संगीता त्रिपाठी

             #कान का कच्चा

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