नीड का निर्माण – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: जय और मीरा दोनों अच्छे पढे लिखे एवं सरकारी नोकरी में कार्यरत थे। वे स्कूल 

व्याख्याता  के पद पर कार्य कर रहे थे।उनकी शादी को सात वर्ष व्यतीत हो गए थे ।वे दो प्यारे -प्यारे बच्चों  के माता पिता भी थे।  मीरा  के सयुंक्त परिवार में सास ससुर देवर  एव॔ एक छोटी नन्द भी थी। चल तो शुरु से ही रहा  था किन्तु आज कल कुछ ज्यादा ही उसे परेशान  किया जा रहा था। सास कोई मौका नहीं छोडती थी उसे जली कटी सुनाने में।

नन्द  देवर भी अपने छोटे-छोटे कामों को पूरा न करने का ताना देते । वह उन्हें समझाने का प्रयास करती ,अब उसके ऊपर अपने दो बच्चों को सम्हालने की भी जिम्मेदारी है, जय का काम अलग अब वे बड़े हो गए उन्हें अपने  कुछ  काम  स्वयं करने चाहिए. इस पर सास ससुर उसे बुरा भला सुनाते। हमारे बच्चे तो तुम्हें फूटी ऑख नहीं सुहाते.।

तुम तो सिर्फ  अपने बच्चों और अपनी नोकरी  में मस्त हो। छोड क्यों  नहीं देती ऐसी नोकरी।जबकी  मीरा ने शादी से पहले ही यह शर्त रखी थी कि वह नौकरी नहीं छोड़ेगी मन ही मन तो वे भी नहीं चाहते थे कि मीरा नोकरी छोडे आती लक्ष्मी किसे बुरी लगती है किन्तु उस पर अहसान जरूर जताते कि तुम्हारी नोकरी की वजह से हम परेशान हैं , तुम्हारे बच्चों को पीछे से सम्हालना पडता है।

जय को हमेशा अपने परिवार के लोगों की बात ही सही लगती और वह भी जब तब मीरा से उलझ पडता और खूब खरी खोटी सुनाता । मीरा रोकर रह जाती ।वह आपने घर में दो भाइयों की इकलौती बहन थी। मायके में उसने कभी इतना काम नहीं किया था। फिर भी यहाँ वह सुबह पाँच बजे से उठ कर चकर  घिननी की तरह घूम -घूम कर काम करती।

सास ससुर की पहली चाय, पाॅच – पाँच  टिफिन तैयार करना, बच्चों को तैयार करना तब तक नन्द  की पुकार भाभी मेरा सूट अब तक आपने प्रेस नहीं किया। अभी करती हूँ कह कर वह सूट लेकर चल देती रहने दो भाभी आपके पास मेरा काम करने का समय ही कहाँ है ,मै स्वय॔  ही कर लूगीं। 

 तभी देवर की पुकार भाभी मेरे मोजे नहीं मिल रहे, कहाँ है। वह मोजे ढूंढ  रही थी कि जय का गुस्सा भरा, ताना कर क्या रही हो अभी तक मेरे कपडे भी नहीं निकाले | तुम से कुछ नहीं होता।

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  अभी सुबह से उसके हलक में एक कप चाय भी नहीं गई थी जबकि दो दो बार सब चाय पी चुके थे कारण एक कप चाय भी पीने का समय नहीं था उसके पास। कोई उसकी इतनी भी मदद करने को तैयार नहीं कि बच्चों को ही बसस्टाप पर छोड़ आए। सबको सब चीजें हाथों में चाहिए थी।

थोडी सी देर होते ही सास का बड़बडाना चालू हो जाता दवाइ का समय हो गया हमारा नाश्ते का ठिकाना ही नहीं है। पता नहीं क्या करती  रहती है सुबह से, थोडा हाथ जल्दी – जल्दी  चलाया कर। माँ की बात सुनकर जय भी सुर में सुर मिलाकर उसे डॉटने लगता माॅ पापा का ख्याल नहीं रख सकती हो पहले उन्हें नाश्ता दो वह बिना कुछ बोले आँखों में भर आए आँसुओ को छिपाते हुए रसोई में चली गई और नाश्ता बनाने लगी।

किसी ने नहीं पूछा कि उसने चाय भी पी है या नहीं। क्या वह सिर्फ काम ही करने और झिड़कियाँ सुनने के लिए है। ऐसा व्यवहार तो कोई नौकरों को साथ भी नहीं करता। जय का गुस्से में बडबडाना चालू था, एक काम समय पर नहीं कर सकती अब मेरे मोजे रूमाल नहीं है। पता नहीं कहाँ ध्यान रहता है।

वह अपने मन की पीडा किसे बतायें। फोन पर माँ से बात करती तो वे और उसकी भाभीयाँ उसे  लडने और घर छोड़ने के लिए उकसाती । तुम क्या नोकर हो, अच्छा खासा कमाती हो फिर भी इतना सुनती हो माँ कहती तुम्हारे पिता और भाई इतके सक्षम हैं कि तुम्हे सम्हाल लेगें ।आ जाओ सब कुछ छोड़-छाड़ कर। 

उधर जब वह अपनी तकलीफ जय को समझाने की कोशिश करती तो वह झल्ला उठता कि रहना है तो ऐसे ही रहो, मैं अपने परिवार की खुशी के बदले तुम्हारा साथ नहीं दूंगा जब चाहो घर छोड़कर जा सकती हो।

वह बड़ी ही दुविधा में फंसी हुई थी कि स्थिती को सामान्य कैसे करे। वह जय से प्यार करती थी और उसे छोड़ने की कल्पना मात्र से ही सिहर जाती । खैर जैसे तैसे रोते मरते एक वर्ष और बीत गया अब उस पर ज्यादती और ज्यादा होने लगी। कल स्कूल से एक घंटा लेट आने पर सास ने हंगामा कर दिया।

पता नही नोकरी करती है या काम से बचने के लिए कहाँ घुमती फिरती है जय के आने पर  माॅ ने उसके कान भरे और वह भी बिना बात जाने उस पर चढ़ बैठा ।सब्र का पैमाना छलक उठा और आज मीरा ने भी खूब सास और पति को सुनाया। माॅ नहीं समझना चाहती किन्तु तुम  तो समझो ,स्कूल में वार्षिकोत्सव की तैयारी चल रही है  उसी के कारण रूकना पड़ा।

 जय- क्या तुम्हारे कंधों पर ही भार है सब तैयारी कराने का और लोग भी तो हैं।

मीरा-पूरा स्टाफ और भाग लेने वाले सारे बच्चे रुके थे। मैं ऐसे कैसे आ सकती थी। 

जय -तुम्हें नहीं, पता घर में खाने का समय हो गया 

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मीरा – क्या खाने का समय अपने ही घर में है सबके नहीं।

सास – देखतो बेटा एक तो देर से आई और कैसे जबान चला रही है इसे कुछ लाज शर्म  है या नही |

मीरा- क्यों मै क्या गलत काम करके आइ हूॅ  जो शर्म आए। जिस काम के पैसे  लेती हूॅ  वही तो कर रहीं थी। आज मीरा ने पहली बार  मुॅह खोला था।  जय गुस्से से काँपने लगा, माॅ से जबान लडाती है ,चुप हो जा बेशरम।

 मीरा -क्यों क्यों चुप हो जाऊँ। क्या मैं किसी का दिया खाती हूँ खुद कमाती हुँ कहते हुए वह अपने कमरे में चली गई। अब यह रोज आए दिन का किस्सा हो गया। किसी न  किसी बात को लेकर हंगामा हो जाता।

आज उसकी सहेली की शादी की वर्षगांठ की पार्टी थी उसमें सबको पती पत्नी सहित आमंत्रित किया था। अत: उसने जय को भी जल्दी आने को बोला था। शाम छ बजे आकर उसने  जल्दी- जल्दी चाय बनाई और शाम के लिए सब्जी बना दी! आटा लगा कर सास से बोली अब केवल रोटी बनानी है जो आप बना लेना, ओर तैयार हो जय के साथ निकल गई। दोनों ने पार्टी को खूब इन्जॉय किया। देर रात ग्यारह बजे खुश खुश  घर मे घुसे। तभी माॅ का स्वर सुनाई दिया तू तो खा कर आगई हम क्या भूखे पेट सोयेगें, जल्दी नही आ सकती थी क्या।

 माॅजी सब कुछ तो तैयार कर गई थी, क्या आप या मीता (नन्द) रोटी नहीं सेंक सकते थे। इतना सुनना था कि जय विफर पड़ा तुम तो वहाँ पार्टी में खाने के मजे लो और यह सब भूखे पेट बैठे हैं। रवाना बना के नहीं जा सकती थी क्या ?

मीरा -बना गईथी। ठंडी हो जाती  इसीलिए  रोटी नहीं सेकीं थी कह कर गई थी क्या  ये लोग इतना भी नहीं कर सकती।

 जय- क्या मेरी माँ रोटी बनायेगी । वह गुस्से से अगवबूला हो रहा था वह मीरा पर हाथ उठाने वाला ही था कि मीरा वहाँ हट  गई।  

 मीराकी सहन शक्ती की इन्तेहा हो गई और  उसने रात को ही फोन करके अपने घर बात की भाई तुरन्त उसे लेने आ गया। वह बच्चों को लेकर चल दी। नहीं रहना अब मुझे इस घर  में ।जय ने उसे एक बार भी रोकने की कोशिश नही की ।

 माॅ के  घर आने पर अब सब खुश थे। किन्तु यह खुशी अधिक समय तक न रही । छ माह बितते ही भाभीयो का व्यवहार  बदलने लगा। उसके बच्चों के साथ सौतेला व्यवहार देख कर वह व्यथित हो जाती और एकान्त  में आठ-आठ आँसू रोती सबके सिखाने में आकर ये मैंने क्या कर दिया। बच्चों के उदास चेहरे उससे देखे न जाते ।

सूना विस्तर काटने को दोडता उसे जय की बहुत याद आती। फिर मन कठोर कर व्यस्त  हो जाती। मायके के बदलते व्यवहार से दुखी हो उसने अलग घर लेकर रहना शुरु किया। किन्तु किशोर होते बच्चों और एक जवान स्त्री का अकेला रहना आसान नहीं था। मदत के नाम पर कई हाथ आगे बढते किन्तु उनके चेहरे के लोलुप भाव देख वह सतर्क रहती। समय बीत  रहा था उधर जय के भाई बहन भी शादी करके अपनी अपनी गृहस्थी मे मग्न थे ।छोटा भाई अपनी पत्नी की ढाल बन कर हमेशा खड़ा रहता। मजाल है कि उसकी पत्नी से कोई कुछ भी कह पाए।

जय-अरे रितु(भाई की पत्नी)जरा एक कप चाय बना दो ।

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रितु कुछ कहती उसके पहले ही भाई बोल पड़ा भैया यह कोई चाय पीने का समय है देख नहीं रहे यह विचारी कितनी  थकी हुई है। इतना ही जरूरी है तो आप स्वयं क्यों नहीं बना लेते ।

जय आश्चार्य से उसका मुँह देखता रह गया ।यह वही भाई है जिसके लिए मैने न जाने  कितनी बार मीरा को डाँटा डपटा  था ।कैसै  वह उसके नखरे उठाती थी। आज उसकी आँखे खुली कि उसने क्या गल्ती की है। माॅ वही थी

 किन्तु रितु से एक शब्द नहीं बोल सकती थी क्योंकि उसका पति उसके साथ खडा था ।  एक वह था जिसने कभी मीरा की परवाह नही की ।बहन भी मायके आने पर कभी बडे भाई की परवाह न करती। वह रातों को रो-रो कर तकिया भिगोता रहता। बच्चो को, मीरा को याद कर “आठ-आठ आँसू रोता

रहता। 

बच्चे बड़े हो गये थे वे अपने मातापिता  दोनों का साथ चाहते थे। एक दिन उन्होने उन  दोनों को एक पार्क में बुलाया और उन्हें अकेला छोड़ हम आभी आते है चले गए। कुछ समय तक खामोशी उनके बीच पसरी रही । शब्द मुँह से निकल ही नहीं रहे थे ,केवल एक दूसरे को देखे ही जा रहे थे । भावनाओं क ज्वार उठा  वे एक दूसरे के गले लग आठ -आठ आँसू बहाते पश्चाताप करते रहे । दोनों को अपनी- अपनी गलतियों  का अहसास था। दूसरों के बहकावे में आकर कैसे अपना आशियाना  उजाड़ दिया। अब वे उस भूल को सुधार पुन: अपने बच्चों के साथ  एक नये नीड के  निर्माण में लग गए।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मोलिक अप्रकाशित

 

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