Moral Stories in Hindi : क्या हुआ सीमा..? क्या चल रहा है तुम्हारे अंदर..? इतने साल जिस खुशी के लिए तरस रही थी, आज उसी से अपनी नज़रें चुरा रही हो..? आखिर बात क्या है..? मुझे भी तो बताओ…
पंकज ने अपनी पत्नी सीमा से कहा
सीमा: क्या कहूं…? कुछ समझ ही नहीं आ रहा है… भगवान ने आज तक हमें औलाद का सुख नहीं दिया… जो मन को समझा कर एक बच्चे को गोद लिया… उसे भी हमसे दूर कर दिया… अब तो डर लगता है औलाद की इच्छा करने से भी…
पंकज: देखो सीमा…! परीक्षाएं तो सभी के जीवन में आती हैं…और उससे लड़कर ही जीवन को जिया जा सकता हैं…
सीमा: पर जीवन को जीने की इच्छा ही अब मुझमें नहीं है… माफ कर दीजिए मुझे…! मैं आपको एक औलाद भी नहीं दे पाई… यह कहकर सीमा रोने लगती है…
पंकज: देखो… जो हो गया, सो हो गया… इसमें ना तो तुम्हारी गलती थी और ना ही किसी की… उससे आगे बढ़ने का मौका हमें फिर से मिला है, अब इसे मत गवाओ और चलो अभी…
सीमा: जाना तो मैं भी चाहती हूं जी… पर मेरे कदम आगे बढ़ने को ही तैयार नहीं…. हमारे नसीब में औलाद का सुख नहीं है… अभी वह जहां पर है.. कम से कम जीवित तो है.. कहीं मेरे गोद लेने से फिर से…? नहीं… नहीं… मैं ऐसे ही ठीक हूं…
क्या हुआ था सीमा के साथ..? और अभी वह क्या करने से डर रही थी..? यह सब जानने के लिए, आपको ले चलती हूं इस समय से थोड़ा पहले…
इस बार भी नेगेटिव है… सीमा ने उदास होकर कहा…
इस कहानी को भी पढ़ें:
परिभाषा – गुरविन्दर टूटेजा
शादी के 7 साल बाद भी, यह नेगेटिव शब्द एक दंपत्ति के लिए एक तीर की तरह होते हैं… जो तेज चुभन के साथ-साथ एक टीस भी देते हैं, काफी इलाज, दवाएं, दुआओं के बाद भी जब पंकज और सीमा को औलाद का सुख नसीब नहीं हुआ… तो उन्होंने एक बच्चे को गोद ले लिया..
फिर आया उन दोनों के जीवन में वह खुशियों वाला दिन, जब उन्होंने नन्हे से 2 साल के राहुल को गोद लिया… उनके सोए हुए तकदीर को मानो पंख लग गए… और समय भी तेजी से चलने लगा… पर शायद तकदीर उन्हें खुश देखना ही नहीं चाहती थी…
6 साल की उम्र में राहुल एक गंभीर बीमारी का शिकार हो गया और फिर वह दुनिया से चल बसा… उसके बाद से ही सीमा फिर किसी बच्चे को गोद लेने से डरती रही….
राहुल से उसकी जुदाई उसे अधमरा करने के लिए काफी था…और उस हादसे के बाद, उसे ऐसा लगता था कि शायद जो भी उसकी औलाद के रूप में उसके जीवन में आएगा, वह मर जाएगा…
आज उसकी नौकरानी निर्मला बच्चा जन्म देते वक्त चल बसी थी… उसका शराबी पति अपनी नवजात बच्ची की देखभाल करना नहीं चाहता था… ऐसे में पंकज उस बच्ची को गोद लेना चाहता था और इसलिए वह सीमा को चलने को कह रहा था…
पर सीमा..? वह तो मान बैठी थी कि, जो भी उसकी औलाद के रूप में उसके घर आएगा… वह मर जाएगा… पंकज के बहुत समझाने पर सीमा उस बच्ची को ना सिर्फ गोद लेती है, बल्कि एक अच्छी परवरिश भी देती है…
सीमा अपनी बेटी का नाम रोशनी रखती है… क्योंकि उनके बुझते जीवन में वह रोशनी बनकर आई थी…. आज कई सालों बाद रोशनी अपनी पढ़ाई पूरी कर, डॉक्टर बनकर अपने मां, पापा के पास आती है… सीमा और पंकज गर्व से फूले नहीं समा रहे थे कि, तभी उनकी पड़ोसी आती है और कहती है…. वाह..! सीमा बहन, हम तो अपने सगे औलाद के लिए भी इतना नहीं कर पाए… जो तुमने..?
इस कहानी को भी पढ़ें:
छोटी सी बात – अभिलाषा कक्कड़
सीमा: चुप हो जाओ रमा बहन…! खुशी के मौके पर आई हो… मिठाई खाओ और मीठा बोलो… यह कहकर सीमा उसके मुंह में एक लड्डू भर देती है…
रोशनी: मासी..! औलाद तो जिसे अपने माता पिता के रूप में जानती हैं, वही हैं उसके असली माता पिता… फिर क्या फर्क पड़ता है किसने उसे जन्म दिया..?
सीमा हैरान होकर पूछती है…बेटा..! तुझे सब पता था..?
रोशनी: मां..! मुझे यह बात बहुत पहले से ही मालूम थी, पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता… मैं आपलोगो की ही औलाद हूं… और आप लोगो की ही रहूंगी…जैसै कृष्ण जी यशोदा के जाने जाते हैं.. उसी तरह मैं भी अपनी मां के नाम से ही पहचानी जाना चाहती हूं…….
फिर तीनों एक दूसरे से लिपटकर रोने लगते हैं…
धन्यवाद
#औलाद
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
रोनिता कुंडू