उपेक्षा एक नारी की! – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : लक्ष्य एक औसत कद काठी का, गेंहुआ रंग, खूबसूरत तो नहीं कहा जा सकता लेकिन स्मार्ट सा युवक था। वह एक इंजीनियर था। 

उसकी शादी एक घरेलू किस्म की लड़की रागिनी से हो गई थी। जो देखने-सुनने में खूबसूरत तो थी लेकिन बनाव श्रृंगार से कोसों दूर रहती थी। 

लक्ष्य उसको कहता तो, हमेशा यह रहता था कि तुम्हारी सादगी ही तुम पर चार चाँद  लगा देती है। इसलिए तुम्हें बनाव-श्रृंगार की जरूरत नहीं है, तुम पर बनाव-श्रृंगार नहीं फबता है।

रागिनी तो वैसे भी बनाव-श्रृंगार से कोसों दूर थी।

फिर भी नारी मन कभी-कभी, बाजार में नए-नए उत्पादों को देखकर मचल उठता था या फिर ये कहें कि देखकर उसका मन भी सब कुछ उपयोग करने के लिए करता था। 

लक्ष्य की उपेक्षा से वह मन ही मन आहत तो बहुत होती थी। परन्तु कहती कुछ भी नहीं थी। क्योंकि वह घर पर बेवजह का बवाल नहीं करना चाह रही थी।

वैसे भी लक्ष्य को रागिनी का बनाव श्रृंगार देखने की फुरसत ही कहाँ थी!

वह तो अपना सारा वक्त अपनी नौकरी में बिताता। इसके बाद बचा समय अपने रिश्तेदारों  (माता-पिता, भाई-बहन नहीं, ऐरे-गैरे रिश्तेदारों) में व्यतीत कर देता था। और रागिनी को भी उनकी तीमारदारी में लगा देता था।

रागिनी भी अपने घर-परिवार में अपना पूरा समय झोंक देती थी। वह बहुत ही संस्कारी लड़की थी, इसलिए वह अपने बचे हुए समय को अपने पढ़ाई-लिखाई और क्राफ्ट  में लगा देती थी।

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लेकिन दूसरी तरफ लक्ष्य में संस्कारों का जैसे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था।

अब वह अपनी ड्यूटी और मित्र, यार, रिश्तेदारों से मेल-मुलाकात के बाद बचे समय को अपनी महिला मित्रों को समर्पित कर देता था।

इस तरह लक्ष्य दिन प्रति दिन, अधिक और अधिक भटकता ही चला गया।

अब इसे लक्ष्य की कमी कहें कि उसे अपनी पत्नी का बनाव-श्रृंगार  तो अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि उसमें पैसे खर्च होने हैं।

लेकिन वहीं पर उसे “पर स्त्री” का बनाव-श्रृंगार भाता था! (यह बात लक्ष्य ने स्वयं कबूल की थी)।

या फिर रागिनी की कमी कहें कि वह अपने अँधे विश्वास के चलते, लक्ष्य पर लगाम कसकर नहीं रख पाई।

या शायद वह लक्ष्य को अपने प्यार में बाँध कर नहीं रख पाई।

ये तो पता ही है कि महिला सबका बंटवारा कर सकती है,,, जैसे: माता-पिता, भाई-बहन आदि।

लेकिन कोई भी महिला अपने पति का बंटवारा नहीं कर सकती। चाहे वह पढ़ी-लिखी नौकरी पेशा महिला हो या अनपढ़,  सीधी-साधी घरेलू महिला! 

लेकिन यहाँ लक्ष्य गलत फहमी में था। वह रागिनी के  प्यार, त्याग और समर्पण को, समझ रहा था, कि यह सीधी-साधी लड़की क्या ही बगावत करेगी!

इसलिए लंपट बने घूमते रहो।

चित भी मेरी, पट भी मेरी, वाले फार्मूले पर ऐश करते रहो।

लेकिन रागिनी ने उसकी यह गलत फहमी भी जल्द ही दूर कर दी!

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हां यह बात जरूर थी कि रागिनी ने कभी भी लक्ष्य की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास नहीं किया था।

क्योंकि लक्ष्य का एक खाश गुण या अवगुण जो भी कहें उसमें शामिल है, झूठी शान में जीना। 

वह अपने माता-पिता की देख-रेख भी इसलिए करता था, कि जमाना क्या कहेगा! अपना कर्तव्य मानकर नहीं!

और हाँ देखरेख भी वह क्या खाक करता था! वह तो रागिनी से करवाता था।

जिन दूर के रिश्तेदारों की भीड़ भी वह इकट्ठा  करता था, उनकी भी देखरेख लक्ष्य खुद नहीं करता था। यह काम भी तो रागिनी के हिस्से ही आता था।

सिर्फ महा पंचायत लगाकर समय खराब करना ही लक्ष्य का काम होता था।

लक्ष्य, इतने दूर के रिश्तेदारों का जमघट  बुला लेता था, कि रागिनी को तो कइयों के बारे में, यह भी पता नहीं होता था कि वे, नंदिनी के रिश्ते में लगते कौन हैं?

खैर नंदिनी ने भी अपनी उपेक्षा का बदला ले ही लिया। पहले वो यह भी मानती थी कि वह गलत फहमी का शिकार है। लेकिन जब लक्ष्य ने कबूल कर लिया कि वह पराई सुसज्जित महिलाओं की ओर आकर्षित है और घर पर पत्नी की उपेक्षा कर रहा है।

तब रागिनी ने उससे कहा,,,  “तुम मुझे अब हर्जाना दो बिना कोर्ट कचहरी गए हुए ही। यदि अपनी झूठी शान को बरकरार रखना चाहते हो!”

क्योंकि रागिनी को बहुत अच्छे से पता था कि लक्ष्य झूठी शान में जीने का आदी है, भले ही भूखे पेट रह ले लेकिन समाज में अपनी बेइज्जती नहीं कराएगा।

रागिनी ने भी पूरा मन बना ही लिया था कि वह घर छोड़कर कहीं चली जाएगी फिर कभी वापस इस घर में नहीं आएगी। लक्ष्य से कहा,,, “मैं किसी को नहीं बताउंगी कि मैंने क्यों घर छोड़ा! तुम सबको बताते रहना! जो भी तुम्हें बताना हो।”

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इसलिए लक्ष्य यह भी समझ गया था कि, रागिनी का परिवार और लक्ष्य का परिवार दोनों ही लक्ष्य से अधिक रागिनी को चाहते हैं। इसलिए उन्हें समझते देर नहीं लगेगी कि हो ना हो लक्ष्य की ही कोई गलती है। रागिनी क्यों अलग रह रही है ये बात सब उससे जानने की कोशिश करेंगे।

इसलिए रागिनी की बात मान लेने में ही भलाई है।

इसके बाद रागिनी ने यह भी कहा कि,,, “सिर्फ आर्थिक भरपाई ही नहीं, तुम्हारा मैं त्याग करती हूँ। खाना खाओ और घर में पड़े रहो। समझ में आए उपेक्षा कैसी होती है। इतना जरूर वादा करती हूँ कि तुम्हारी तरह नीयत और चरित्र से कभी नहीं गिरूंगी।”

पर तुम भी अब मेरे करीब नहीं आ सकते।

और तुम्हें आजाद भी नहीं करूंगी ताकि तुम गुलछर्रे ना उड़ा सको।

ना घर के रहोगे ना घाट के! तुमने एक भोली-भाली लड़की को छलने का प्रयास किया है!

अब पता चलेगा कि कोई भी स्त्री तब तक ही भोली-भाली रहती है, जब तक वह अपने परिवार को प्यार करती है।

लेकिन जिस दिन वह नफरत में उतर आती है, तब वह हर अपमान और उपेक्षा का बदला गिन-गिन कर ले सकती है।

इसलिए स्त्री को कभी भी कमजोर समझने की कोशिश नहीं करनी चाहिएu।

स्वरचित

अनिला द्विवेदी तिवारी

#उपेक्षा

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