जब मैं था तब हरि नही अब हरी है मैं नाहि…. – लतिका श्रीवास्तव
पीयूष बेटा तेरे पिता तुझे बहुत याद कर रहे हैं अंतिम समय में तुझे देखना चाहते हैं एक बार आ जा बेटा….दमयंती जी करुणा विगलित स्वर में अपने इकलौते चिराग पियूष से प्रार्थना कर रहीं थीं।
मां कोशिश कर रहा हूं कंपनी में छुट्टी पहले से लेनी पड़ती है ऐसे अचानक नही ले सकता इतनी दूर विदेश में हूं आने जाने सबकी व्यवस्था में समय लगता है मां ….पापा को देश के बेस्ट हॉस्पिटल में एडमिट करवा तो दिया है बेस्ट डॉक्टर्स दिन रात लगे हैं मैं आकर क्या करूंगा….मुझे तो खुद अपने लिए समय नही मिल पाता है..आप लोगों की यही तो ख्वाहिश थी कि उनका बेटा विदेश जाए समाज में इज्जत बढ़ाए …. इन्हीं ख्वाहिशों को पूरा करने में मैने अपनी ख्वाहिशों का गला घोंट दिया …और कोई भी बेस्ट सुविधा चाहिए तो बता दीजिएगा…. पीयूष ने कहा और फोन कट गया था ।
..और दमयंती जी के जेहन में वो अबोध नन्हा पियूष कौंध रहा था जो फूट फूट कर रो रहा था …मां मैं हॉस्टल नहीं जाऊंगा मुझे नहीं पढ़ना बाहर जाकर वहां मुझे खाना कौन खिलाएगा अभी तो मुझे अपने जूते की लेस बांधनी भी नहीं आती मां.मुझे आपके पास रहना है..नन्हा पीयूष बिलख रहा था ।
दमयंती जी , प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं ….
पियूष अभी सिक्स्थ स्टैंडर्ड में गया था …लेकिन दमयंती जी के लिए वो बहुत बड़ा हो गया था सिक्स्थ क्लास फ्यूचर डिसाइडिंग क्लास होती है …उनकी सोसायटी में सभी के बच्चे बाहर हॉस्टल चले गए हैं…उन्हें भी इतने काम रहते हैं आए दिन पीयूष के स्कूल में होने वाली मीटिंग्स और दुनिया भर की गतिविधियों में बेटे के साथ जुड़ने के लिए उनके पास बिलकुल वक्त नहीं रहता जब देखो तब उनके और सोमेश के बीच इन्हीं मुद्दों को लेकर तनातनी होती रहती थी।
सोमेश को अपना ऑफिस और अपना काम अपना पैसा सबसे महत्वपूर्ण लगता था और दमयंती के समाज सुधार के कार्य बेकार और समय बर्बाद करने वाले लगते थे।
आप कुछ कहते क्यों नहीं पीयूष को समझाइए अब बड़ा हो गया है घर से बाहर जाकर ही उसका व्यक्तित्व निर्माण संभव है माधुरी जी का बेटा सुयश चार सालों से आर्मी स्कूल में हॉस्टल में पढ़ रहा है अलग ही दिखता है माधुरी जी बड़ा दंभ करती है उसे लेकर
अब मैं क्या बोलूं तुम्हें जब मेरी कोई बात सुननी ही नही है तो ये तो अभी बहुत छोटा है ये क्या समझेगा तुम क्यों नही समझ जाती हो कि अभी से इसे बाहर नहीं भेजना चाहिए थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो समझ आ जायेगी तब भेज देंगे …सोमेश के कहते ही दमयंती का स्वर तेज हो गया
बहुत छोटा है बहुत छोटा है कह कह के आपने ही इसका दिमाग चढ़ा दिया है अरे जब एक दिन बाहर जाना ही है तो अभी से आदत डाल लेने हर्ज ही क्या है… यहां घर पर ही रहता है तो भी आपके पास तो समय नहीं रहता उसके लिए मुझे ही उसके साथ लगे रहना पड़ता है…वहां हॉस्टल में उसकी ट्यूशन कोचिंग स्कूल बस टिफिन तैयार करने बीमारी में देखभाल इन सबकी चिंता से मैं दूर हो जाऊंगी….
हां दूर होकर क्या करोगी वही समाज सुधार के चोचले..! दिखावटी सुधार है सब तुम्हारा बाहर घूमने फिरने और घर की जिम्मेदारियों से बचे रहने का ढोंग है अभी ही तुम्हारे करने से क्या कर पा रहा है इतनी छोटी पांचवी कक्षा में क्या मार्क्स आएं हैं इसके
मुझे तो शर्म आती है इसे अपना बेटा कहते हुए बेस्ट स्कूल बेस्ट कोचिंग बेस्ट सुविधाएं…सब कुछ तो कर रहा हूं बेस्ट पापा हूं मैं नौकरी क्या होती है कैसे मिलती है पैसे का महत्व समझ में नहीं आ रहा है इसे !!मेरे साथ के सभी सहकर्मियों के बच्चे विदेशों में सेटल्ड हैं….मेरे बेटे को देख लो ….दब्बू कहीं का मां के अंचल से बाहर ही नहीं निकलना चाहता मेरी इज्जत डुबोएगा ये…एक ही तो है और किससे क्या उम्मीद रखूं….सोमेश जी उत्तेजित ऊंची होती आवाज के बीच ही …
“….मां मैं हॉस्टल जा रहा हूं सारा सामान मैंने बांध लिया है और हां पिताजी अब आप लोगों को मेरी वजह से समाज परिवार में किसी भी बेइज्जती का सामना नहीं करना पड़ेगा…. कहता नन्हा पियूष अचानक बड़ा हो गया था। उस दिन वो घर छोड़कर जो हॉस्टल गया तो फिर पलट के नही देखा जैसे निर्मोही सा हो गया था घर आना ही नही चाहता था मां पिताजी भी उसे हॉस्टल में रक्कर कोचिंग करते देखना चाहते थे ….पियूष भी पढ़ता ही गया बढ़ता ही गया और अनजाने ही मां पिता से दूर होता गया और पिता की इच्छा अनुरूप न्यूयॉर्क चला गया वहीं सेटल हो गया …..!
सच है कल जब उसे मां की ममता और पिता के स्नेह की छांव की जरूरत थी तब हमने उसे अपने से दूर कर दिया था..आज हमें पुत्र के स्नेहिल सान्निध्य की जरूरत है तो वो हमसे दूर हो गया है!!
हमने तो खुद अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारी है…..पुत्र को याद करती हुई व्यथित सी दमयंती जी सोमेश जी के पास बैठ गई थीं।
अरे वाह बेटा हो तो आपके पियूष जैसा हो देखो कितना ख्याल रखता है मां पिता का बिचारा खुद नहीं आ पाया तो क्या हुआ देश का बेस्ट डॉक्टर नर्सिंग होम और बेस्ट सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं उसने ….सोसायटी के अशोक जी और सुमेधा ने सोमेश के बेड के पास बैठते हुए जोर से दमयंती जी से कहा तो दमयंती और सोमेश एक दूसरे की ओर नजर उठा कर देखने का साहस नहीं संजो पाए।
धोखा – स्नेह ज्योति
राधा ने अपनी मैम से सिफ़ारिश कर रंजन को ड्राइवर की नौकरी पे लगवाया । क्योंकि रंजन को गलत बात पसंद नहीं थी, इसलिए हमेशा नौकरी से निकाला जाता था । बेटा ! बड़ी मुश्किल से नौकरी मिली है ,बस दूसरो के लिए लड़ना छोड़ के अपने लिए कुछ करना सीखों ।ठीक है माँ …. अगले दिन रंजन समीर के घर पहुँचा और समीर के ऑफिस के लिए निकल गए ।ऐसे ही दिन बीत गए , समीर की बीवी मीरा और बच्चों को कहीं ले के जाना हो या घर का कोई काम हो रंजन सब काम अच्छे से करता था । ये देख मीरा भी उस पर विश्वास करने लगी और उसे अपने भाई की तरह समझने लगी थी ।
उसकी माँ भी खुश थी कि रंजन अब अपनी ज़िम्मेदारियों को समझ रहा हैं । एक दिन बहुत तेज़ बरसात हो रही थी ।तभी समीर का फ़ोन आया कि उसका पर्स कार में रह गया है । उसे लेकर ऊपर आ जाओ ! ! जैसे ही रंजन ऊपर पहुँचा और घंटी बजाई तो उसने देखा की समीर नशे में लड़खड़ाते हुए दरवाज़े पे आया और हाथ से पर्स छीन गिर पड़ा । आस-पास खड़े उनके दोस्त भाग के आए और मेरी तरफ़ देख कर बोले उठाओ इसे अंदर ले कर चलो । मैं जब अंदर पहुँचा तो मेरे पैरो तलों जमी खिसक गई । अंदर का वो नजारा बड़ा ही शर्मसार करने वाला था ।मैंने देखा बहुत सारे युवक युवतिया एक दूसरे की बाहों में बाहे डाले बेहोश पड़े है । थोड़ी देर में एक लड़की आयी और समीर सर के पास बैठ गई । नीचे आकर भी वो मंज़र मेरे सामने घूम रहा था ।सर का इतना अच्छा परिवार है ,फिर भी अपनी बीवी को धोखा दे रहे है ।
अगले दिन हम दोनों एक दूसरे से नज़र चुराए कार में जा बैठें । तभी समीर सर की आवाज़ आयी ये लो पैसें और कल जो भी हुआ उसे भूल के भी मीरा को मत बताना । ग़लत का साथ ना देने वाला सच में गलती कर बैठा, खामोशी की कीमत ले सच को झुठला बैठा !!
समीर से लिए पैसों से वो घर में क़ीमती चीजे , खाने का महँगा सामान लेकर लाया ।ये देख उसकी माँ को आश्चर्य हुआ !! ये सब कहाँ से आया है?? …”कुछ नहीं माँ समीर सर ने खुश होकर दिया है “। रंजन को भी आख़िर झूठी शान की लत लग ही गई । कुछ दिन बाद दोपहर को मीरा ने रंजन को घर बुलाया । मीरा आरती का थाल लेकर आई, रंजन ये सब देख हैरान परेशान हो गया !! ये सब क्या है मैम ! ….. आज राखी का दिन हैं और तुम मुझे हमेशा मेरे भाई की याद दिलाते हो ।जो अब इस दुनिया में नहीं हैं ! तो क्या मैं तुम्हें राखी बांध सकती हूँ । ख़ामोश हिचकिचाते हुए सिर को हिला के बोला “ठीक है बांध दो “! मीरा की ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी जो रंजन को टीस की तरह चुभ रही थी । जैसे ही वो बाहर जाने लगा तभी वो मुड़ा और मीरा को राखी के पवित्र बंधन की खातिर समीर के बारे में सब बताने लगा । वो सब सुन मीरा ने उसे एक झन्नाते दार चाटा मारा…..तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ?? मेरे समीर के बारे में ऐसा बोलने की…मैंने तुम्हें अपने भाई का औदा दे इतनी इज़्ज़त दी और तुम …… कुछ लोग होते ही नहीं है इस लायक़ …निकल जाओ । लेकिन मैम ,मैं सच कह रहा हूँ …. मैंने दूसरो के भले के लिए कितनी बार अपने पांव पे कुल्हाड़ी मारी ,पर दुनिया को तो हर बार मैं ही ग़लत नज़र आता हूँ ।
हर बार की तरह इस बार भी सच झूठा निकला
किसी अपने के विश्वास को धोखा देना कितना आसान निकला ॥
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति
शौक उम्र के साथ अच्छे लगते – संगीता अग्रवाल
” पापा मुझे मेरे जन्मदिन पर बाइक चाहिए !” सौलह साल का चिराग अपने पिता सुधीर से बोला।
” बेटा आपको बाइक चलानी आती है ?” सुधीर आश्चर्य से बोला।
” जी पापा मैने अपने दोस्तों से सीखी हुई है बस आप मुझे बाइक दिलवा दो !” खुश होता हुआ चिराग बोला।
” कोई बाइक नही मिलेगी अभी तुम्हारी उम्र नही बाइक चलाने की समझे तुम !” चिराग की माँ ममता ने कहा।
” अरे जब उसे आती है चलानी तो दिक्कत क्या है तुम भी ना बेवजह टोकती हो उसे बच्चे की यही तो उम्र है अपने शौक पूरे करने की !” सुधीर बोला।
” शौक उम्र के साथ अच्छे लगते वैसे भी हमारी सरकार भी छोटे बच्चो को वाहन देने से मना करती है ना !” ममता बोली।
” तुम अपने उपदेश रहने दो बेटा बड़ा हो गया है।..बेटा तू शाम को चलियो मेरे साथ !” सुधीर बोला।
ममता के लाख मना करने पर भी आखिरकार चिराग के जन्मदिन पर बाइक आ गई। बाइक की पूजा करवा वो अपने दोस्तो को बाइक दिखाने और पार्टी देने निकल गया।
” सुनो चिराग अब तक नही आया !” देर रात चिंतित ममता बोली।
” अरे आ जायेगा तुम भी ना बच्चा बड़ा हो रहा समझती नही हो !” सुधीर बोला सुधीर के इतना बोलते ही फोन की घंटी बजी । जैसे ही सुधीर ने फोन उठा बात की धम्म से जमीन पर कटे वृक्ष सा गिर पड़ा क्योकि फोन पुलिस का था चिराग हाई वे पर तेज रफ़्तार मे बाइक चला रहा था और एक ट्रक से टकरा गया। उसे काफी चोट आई थी।
दोनो अस्पताल पहुंचे तो देखा चिराग जिंदगी मौत से लड़ रहा है। सुधीर को एहसास हो गया बेटे की जिद मे उसे बाइक दिला उसने खुद के पाँव पर कुल्हाड़ी मारी है।
सरकार गलत नही जो उसने नियम बनाये है वो हमारी सुरक्षा के लिए है इसलिए अपने नाबालिग बच्चो के हाथ मे वाहन देने से पहले एक बार सोचिये आपका लाड और उनकी जिद आपके अपने पैरो पर कुल्हाड़ी ना मार दे।
धन्यवाद आपकी दोस्त
संगीता ( स्वरचित )
सबक – डॉ. पारुल अग्रवाल
आज सवेरा वृद्धाश्रम के बाहर एक बुजुर्ग बेहोशी की अवस्था में मिले थे। ऐसा लग रहा था कि रात के अंधेरे में कोई उनको चुपचाप छोड़ कर चला गया था। डॉक्टर की देखरेख में तीन- चार दिन में उनकी स्थिति में काफ़ी सुधार था।अब वो थोड़ा बोलने की हालत में थे।
उनके विषय में जानकर आश्रम के संस्थापक मनोहर जी उनसे मिलने आए।जैसे ही मनोहर जी ने उनको देखा तो उन्हें अपनी आंखों पर सहर्ष विश्वास नहीं हुआ क्योंकि वो रघुनाथ जी थे।जो ऑफिस में उनके सीनियर हुआ करते थे।ऑफिस में काम करते समय रघुनाथ जी को सिर्फ अपने बेटों की चिंता रहती थी।यहां तक कि अपने बेटों का भविष्य बनाने के लिए उन्होंने पेंशन का विकल्प ना लेकर रिटायरमेंट के समय ही सारा पैसा ले लिया था। उस समय मनोहर जी न उनको ऐसा ना करने के लिए काफ़ी समझाया था पर उन्होंने अपने दोनों बेटों को अपनी दो आंख बताते हुए किसी की भी ना सुनी थी।
आज मनोहर जी को देखकर रघुनाथ जी फूट-फूट कर रो पड़े और बोले रिटायरमेंट के कई वर्षों तक तो सब ठीक चला। उनको पेंशन नहीं मिलती थी पर तब भी दोनों बेटे कुछ नहीं देते थे।उनकी खुद की जमा पूंजी और मकान के ऊपर वाले हिस्से के किराए से दोनो पति-पत्नी का खर्च आराम से चल जाता था।अभी एक साल पहले दोनों बेटे बहुत जल्दी-जल्दी उनसे मिलने आने लगे,वो दोनों बुड्ढे-बुड्ढी भी खुश थे कि उन्हें अपने बच्चों का सानिध्य मिल रहा है।
एक रात उनकी धर्मपत्नी जो सोई तो वो सुबह का सूरज नहीं देख पाई।पत्नी की तेहरवीं के बाद भी दोनों बेटे अपने परिवार के साथ उनके साथ रहे और उनका बहुत ख्याल रखा। इस बीच उन्होनें घर और संपत्ति के सारे पेपर्स पर बहला-फुसला कर रघुनाथ जी के हस्ताक्षर करवा लिए थे और ऊपर के हिस्से में रहने वाले किरायेदार से भी मकान खाली करवा लिया था। एक दिन उनकी तबियत थोड़ी खराब थी तब दोनों बेटे-बहुओं ने उनको कुछ दवाई खाने के लिए दी फिर उसके बाद उनको नहीं पता कि वो यहां तक कैसे पहुंचे?उनकी बातें सुनकर मनोहर जी ने रघुनाथ जी से उनके बेटों के फोन नंबर लिए पर वो सारे नंबर बंद आए।उनके बताए पते पर भी आश्रम के एक प्रतिनिधि को भेजा तो वहां पर भी ताला था। रघुनाथ जी के पास दोनों बेटों का पता भी नहीं था।
अब रघुनाथ जी बस यही कह पाए कि जीते जी अपनी सारी संपत्ति अपने बच्चों के नाम कर देना,अपने पांव में कुल्हाड़ी मारना है। काश समय रहते हम सब ही इस सबक को सीख जाएं तो जीवन की संध्या में इतने दुख ना झेलने पड़ें।
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा
अपमान – अमित रत्ता
शालिनी मोहल्ले में सबसे खूबसूरत पढ़ीलिखी शादीशुदा औरत थी हालांकि औरत कहना गलत होगा क्यों उसने खुद को एकदम फिट रखा गया। ब्यायम जिम ब्यूटी पार्लर उसके रोजमर्रा के काम थे।
घर मे किसी चीज की कमी नही थी होती भी क्यों आखिर पति का अपना बिजनेस था करोड़ो में कमाई थी । ऐसी घर ऐसी गाड़ियां नौकर चाकर हर कुछ था बस कमी थी तो पति का रंग थोड़ा सांबला था ।
ये बात शालिनी को हमेशा परेशान करती और बो अपने पति को बातें सुनाने से कभी न चूकती थी। हमेशा उसके रंग बॉडी पे कमेंट करके उसका अपमान करती।
बो हमेशा स्वर का घूंट पीकर रह जाता क्योंकि अक्सर बो घर से बाहर बिजनेस टूर पर ही रहता कभी कभी ही घर आता था। इसी बीच शालिनी की फेसबुक पर एक स्मार्ट जवान फिट लड़के से मुलाकात हो गई । दोनों की बातें होने लगी तो नजदीकियां बढ़ गईं ।
पति की गैर हाजिरी में बो शालिनी से मिलने उसके घर आ जाता। उसने शालिनी को बता रखा था कि उसकी अपनी कंपनी है अच्छा कारोबार है। कुछ ही समय मे शालिनी उस पर इतना भरोसा करने लगी थी कि अब उसने अपने पति को छोड़ने का मन बना लिया । एक दिन अपने पति से किसी बात पर झगड़ा करके बो पति को ये कहकर चली गयी कि तुम्हारे जैसे आदमी के साथ रहने से अच्छा मैं मर जाऊं
ये तो मेरे मां बाप ने तुम्हारे पैसे देखकर जबरदस्ती तुमसे शादी करवा दी बर्ना तुमसे शादी कौन करेगा। उसने अपने बॉयफ्रेंड को फ़ोन किया और उसके साथ बैठकर चली गयी। शालिनी के खाते में दस बीस लाख रुपये थे ।
बो लड़का कोई न कोई बहाना बनाकर उससे पैसे निकलवाता रहा और शालिनी का खाता अब खाली हो गया। अब दोनों में झगड़ा होने लगा कि तुम्हारी फैक्ट्री कहाँ है तो उस लड़के ने बताया कि उसकी फैक्ट्री नही बल्कि वो तो एक जिम ट्रेनर की नौकरी करता था वो गाड़ी उसके मालिक की थी जिसपर उसे घुमाता था ।
अब शालिनी रोड पर आ गई थी बापिस पति से माफी मांगने और रहने आई यो पता चला पति ने दूसरी शादी कर ली थी।अब शालिनी कहीं की नही रह गयी थी अपनी आलीशान जिंदगी उसने खुद बर्बाद कर ली थी। या यूं कहो कि अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मार ली थी।
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश
विनाश काले…. – रीटा मक्कड़
आज विनीत बहुत उदास था और चुपचाप गुमसुम सा अपने कमरे में कुर्सी पर सिर टिकाए आंखें बंद करके बैठा था कि थोड़ी देर आराम कर लूं।लेकिन जिसके सुखी संसार मे उथल पुथल मच गई हो उसको आराम कहाँ मिलता।
आंखे बंद करते ही जैसे पिछली ज़िन्दगी की सभी घटनाएं एक चल चित्र की भांति उसकी आँखों के सामने घूमने लगी।
कितने खुश थे दोनो अपनी ज़िंदगी मे।विनीत की शादी को अभी दस साल ही तो हुए थे। कितने रिश्तेदारों और दोस्तों को मन ही मन ईर्ष्या हुई थी जब उसकी बार्बी डॉल जैसी गोरी चिट्टी दुल्हन को सबने देखा था। इतनी सुंदर थी रंजना के लगता था हाथ लगे तो मैली हो जाये।होती भी क्यों न विनीत की अपनी पसंद जो थी।लोग समझते थे कि ये प्रेम विवाह है लेकिन वो दोनो ही जानते थे कि उन्होंने शादी से पहले कभी एक दूसरे की आवाज भी नही सुनी थी।
विनीत रंजना को कॉलेज आते जाते देखा करता था तो उसको उसके घर और कॉलेज का भी पता चल गया था।
घर में जब विनीत की शादी की बातें होने लगी और रिश्ते आने लगे तो विनीत ने अपनी मम्मी को बता दिया कि वो शादी करेगा तो उसी लड़की से वरना नही करेगा।
माँ बाप ने भी बेटे की खुशी के लिए रंजना के घर जा कर उसके पापा से बेटी का हाथ मांग लिया और उन्होंने खुशी खुशी इस रिश्ते के लिए हामी भर दी। क्योंकि ऐसे परिवार में लड़की देने को कौन मना करेगा जहां लड़का बहूत शरीफ और उसके परिवार वाले बहुत अच्छे और साख वाले लोग थे।
बहुत खुश थे सब ऐसी बहु पा कर। विनीत ओर रंजना भी एक दूसरे से बहुत खुश थे। फिर उनकी ज़िंदगी मे दो प्यारे प्यारे बच्चे आ गए।
जैसे जैसे परिवार बढ़ता है जरुरतें बढ़ती हैं, खर्चे बढ़ते हैं आकांक्षाएं बढ़ती हैं। विनीत ने सोचा क्यों न परिवारिक बिज़नेस से हट कर कुछ अलग किया जाए जिससे आमदनी भी बढ़ जाएगी और बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित कर पाएंगे।
यही सब सोचते हुए विनीत ने अपने किसी दोस्त के साथ मिल कर नया व्यापार शुरू किया क्योंकि उसके उस दोस्त को उस काम का अच्छा ज्ञान था और वो बहुत समय से उस व्यपार से जुड़ा हुआ था।
धीरे धीरे एक साथ काम करते करते दोनो की दोस्ती और गाढ़ी होती गयी और दोनो एक दूसरे के घर आने जाने लगे।
फिर एक दिन विनीत के उस दोस्त ने बताया कि उसकी पत्नी बीमार रहती है और बेड पर ही है। रंजना और विनीत जब उनके घर जाने लगे तो रंजना उनके घर और बच्चों के कामो में मदद करने लगी। लगता था दोनो परिवार एक ही हैं। धीरे धीरे विनीत को लगने लगा कि उसके बिज़नेस में घाटा पड़ने लगा था और वो घर के बढ़ रहे खर्च को संभाल नही पा रहा।
लेकिन उसके दोस्त ने उसके घर पे किसी चीज की कमी नही आने दी। वो किसी न किसी मौके पर रंजना और बच्चों को महंगे महंगे तोहफे देता रहता। विनीत को तो जैसे अपने दोस्त पर कुछ ज्यादा ही विश्वास था। और वो तो ऐसा वैसा कुछ सोच भी नही सकता था।
लेकिन एक दिन उसके पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकल गयी जब उसको पता चला कि जिस दोस्त पर उसने अंधविश्वास किया था उसी ने उसके साथ विश्वासघात कर डाला। दोस्ती की आड़ में उसी की पीठ पर छुरा घोंप दिया।
उसको पता ही नही चला कब उसके भोलेपन का फायदा उठाते हुए उसकी पत्नी और दोस्त एक दूसरे के करीब आ गए। जिनपर वो कभी शक करना तो दूर उनके बारे में गलत सोच भी नही सकता था उन्होंने ही उसके प्यार का नजायज फायदा उठाते हुए धोखा किया।
उसने अपने टूटते हुए घर को बचाने के लिए दोनो को समझाने की बहुत कोशिश की।लेकिन वो इस रिश्ते में इतने आगे बढ़ चुके थे कि अब उनको समझाना तो उनके सामने अपना माथा फोड़ने के समान था। काश उसने उस दोस्त को अपने घर में न लाया होता ऐसा करके उसने खुद अपने ही पांव में कुल्हाड़ी मार ली है।
एक समय जिस परिवार की खुशहाली को देख कर लोग ईर्ष्या करते थे आज उस घर को किसी की ऐसी नजर लग गयी है कि दोनो के बीच आई हुई दूरियों को परिवार वाले भी ठीक नही कर पा रहे और ये दूरियों की खाई इतनी बड़ी हो गयी है कि अब दोनो में से कोई भी उसको पार नही कर पा रहा।
भगवान का दिया सब कुछ होते हुए भी जिस घर मे कभी उन दोनों के साथ बच्चों की किलकारियां और हंसी गूंजा करती थी ।
आज वो घर टूटने की कगार पर है।
उस घर मे अब हर तरफ अंतहीन सूनापन और उदासी पसरी रहती है। अपना ही घर काटने को दौड़ता है। एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनो अजनबी बन गए हैं।
स्वलिखित एवं मौलिक
रीटा मक्कड़
जैसी करनी वैसी भरनी – हेमलता गुप्ता
विशंभर दयाल जी की किराने की बहुत बड़ी दुकान थी! छोटा सा सुखी परिवार जिसमें दो बेटियां निशा और पारुल और धर्मपत्नी सुमित्रा जी थी! विशंभर जी अपनी बेटियों से अत्यधिक स्नेह रखते थे और उनकी आंखों में एक आंसू भी नहीं देख सकते थे!
अगर उन दोनों में से कभी कोई बीमार भी हो जाती तो विशंभर जी की सांसे मानो थम सी जाती थी ! विशंभर जी की एक बुरी आदत भी थी बह थी मिलावट करने की !वह अपनी दुकान पर नकली घी तेल मसाले इत्यादि सामान बेचते थे !
और इस तरह बेचते थे आज तक कभी किसी को उनपर शक नहीं हुआ !खुद घर के लिए अलग से शुद्ध सामान लाते थे !ऐसे व्यक्ति को भगवान कभी ना कभी सजा अवश्य देता है !1 दिन किसी कारण से विशंभर जी को 2 दिन के लिए बाहर जाना पड़ा
,उधर घर में संयोग से लड्डूओ के लिए घी कम पड़ गया !सुमित्रा जी ने तुरंत दुकान पर फोन करके नौकर से घी मंगवा लिया और लड्डू बना लिए! उन लड्डूओ को खाते ही विशंभर जी की दोनों बेटियों की तबीयत खराब होने लगी!
सुमित्रा जी ने तुरंत विशंभर जी को फोन करके आने को बोला और दोनों बेटियों को अस्पताल में भर्ती करवा दिया! विशंभर जी भी फौरन अस्पताल आ गए !डॉक्टर ने बोला ;अगर इन्हें सही समय पर अस्पताल नहीं लाया जाता तो जहर इनके शरीर में फैल जाता!
शायद इन्होंने किसी नकली चीज का सेवन किया था !शुक्र है भगवान का कि अब उनकी तबीयत में सुधार है !यह सुनकर विशंभर जी ने अपना माथा पकड़ लिया और बोले मैंने तो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली !
बेटियां के उज्जवल भविष्य की जगह मैंने तो इनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर दिया !आज अगर इन्हेंकुछ हो जाता तो मैं कहीं का नहीं रहता !पता नहीं आज तक मैंने नकली चीजों से कितनों को नुकसान पहुंचाया होगा! आज के बाद कभी ऐसा काम नहीं करूंगा भगवान ने आज मुझे सबक सिखा ही दिया!
!हेमलता गुप्ता!
शक की सजा – अंजना ठाकुर
आज रवि कमरे मै अकेला बैठा सोच रहा था की काश मैंने घरवालों की जगह अपनी पत्नी की बात का विश्वास किया होता तो यूं उसकी जिंदगी वीरान नही होती
ज्योति शादी हो कर आई तब से ही मां और बहन को पता नही उसका रवि के करीब आना पसंद नही था दोनों
की लव मैरिज थी मां ने बेटे की खातिर इजाजत तो दे दी लेकिन ज्योति को कभी नही अपनाया
दोनों की साजिश रवि समझ नही पाया उनका ज्योति के खिलाफ भड़काना उसके चरित्र पर लांछन लगाना रोज रोज एक ही बात से रवि बही सच मानने लगा अब वो ज्योति की बात को झूठा और मां की बात को ही सच मनाता शक इतना बढ़ गया की सच रवि देख नही पाया और दोनों अलग हो गए
आज मां और दीदी को बात करते सुना दीदी कह रही थी देखा मां हमने ज्योति को अलग करवा ही दिया हम शादी की मना करके बुरे भी नही बने अब कुछ दिनों मैं अपनी पसंद की लड़की से शादी कर देना
आज उसकी आंखे खुल गई थी पर अब क्या कर सकता अपने पैरों पर उसने खुद ही कुल्हाड़ी मारी थी
स्वरचित अंजना ठाकुर
मन की उड़ान – प्राची लेखिका
14 साल का गगन छत पर खड़े होकर, उड़ती पतंगों को निहार रहा था।
तभी उसकी मम्मी आवाज लगाती हैं, “नीचे आजा। पढ़ ले,तेरे पापा आने वाले हैं।”
गगन बेमन से नीचे आकर अपने बंद कमरे में किताब लेकर बैठ गया। लेकिन उसका मन उड़ान पर था, उड़ती पतंग की डोर जैसा।
पापा के डर की वजह से किताबों को हाथ में तो पकड़ लेता किंतु अंदर कुछ नहीं कर पाता। गगन का मन ज्यादा पढ़ने लिखने में नहीं लगता। उसे प्रकृति और खुली हवा, खुला वातावरण बहुत पसंद था।
गगन को फोटोग्राफी का बहुत शौक था। वह खेल में भी काफी अच्छा था।
पर उसके पिता की प्रबल इच्छा थी कि उनका बेटा किसी प्रतिस्पर्धा में पीछे ना रह जाए। रिश्तेदारी के बच्चों से उसके अंक कम ना आ जाए।
उन्होंने जबरदस्ती उसका प्रवेश कोटा की एक महंगी संस्था में करा दिया। गगन का जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था। पर पिता के आगे उसकी एक न चली। बेमन से अपने दोस्तों को छोड़कर,कोटा अकेले कमरे में रहने लगा। वहां उसका बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था।
एक महीने बाद उसका हाई स्कूल का रिजल्ट आया। मात्र 50% नंबर से पास हुआ है। छोटा सा मासूम किशोर अपने पापा की,उसके पढ़ाई के प्रति जुनून और प्रतिस्पर्धा से इतना भयभीत हो गया कि उसने अपने कमरे में फांसी का फंदा लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
अंधी प्रतिस्पर्धा के बढ़ते जुनून ने एक बच्चे को गलत कदम उठाने पर मजबूर दिया।
गगन की माताजी बिलाप करते हुए कहती हैं कि यह आत्महत्या नहीं है बल्कि एक साइलेंट किलिंग है। सभी की नम आंखों से पानी बह रहा था।
गगन के पिता अपना सिर पीटते हुए बिलाप कर रहे थे। उन्हें बहुत पछतावा हो रहा था। उन्होंने गगन को कोचिंग में भेज कर अपने पाँव में खुद कुल्हाड़ी मार ली। बच्चे की इच्छा का मान ना रखकर सिर्फ अपनी चलाना उनकी सबसे बड़ी भूल थी।
और इस भूल की उन्हें इतनी बड़ी सजा मिली जिसकी कोई भरपाई ना थी।
स्वरचित मौलिक
प्राची लेखिका
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश
जीवन गणित – मसीरा मैसी
ग्रेसी ने एक मॉल में शॉपिंग करते हुए अपनी प्यारी सहेली को धप्प से चौंकाया, “अरे सुनयना, अकेले घूम रही है! मुझे तो लगा तेरे हज़बैंड भी साथ होंगे।”
हाथों में लाल चूड़ा, जींस-टॉप पहने और हल्का मेकअप किए, सुनयना चौंक कर मुस्कुरायी, “अकेली तो तू भी आई है!”
“अरे मेरी छोड़! तेरी शादी को तो महीना भी नहीं हुआ, और अभी से ये हाल है!” ग्रेसी ने स्नेह से उसे लिपटा लिया।
“छोड़ न यार, चल आ कॉफी पीते हैं,” सुनयना ने उसे खींचा।
“कुछ गड़बड़ लग रही है। मुझे सारी बात बताएगी न!?” ग्रेसी ने शर्त रखी।
सुनयना बोली कुछ नहीं, बस उसे कॉफी शॉप में ले गयी। कॉफी पीते हुए एक दो हल्की-फुल्की बातें करने के बाद ग्रेसी फिर मुद्दे पर आ गयी। उसे जाने क्यों कुछ अज़ीब लग रहा था। उसकी आँखों में सवाल देख कर सुनयना ने बताया— “पिछले हफ्ते मेरे बर्थडे पर शांतनु ने बस एक ग्रीटिंग कार्ड दिया मुझको। अगले दिन फिल्म दिखाने ले जा रहा था, मैंने नाराज़गी में मना कर दिया। फिर दो दिन पहले उसने एक चॉकलेट का बॉक्स दिया, तो मैंने उसी नाराज़गी में उठा कर भी न देखा। फिर आज उसका भी मूड ऑफ था। कुछ जरूरी चीजें खरीदनी थी, तो मैं अकेली आ गयी।“
“अरे-अरे तुमने लव-मैरिज़ की है न? ग्रीटिंग कार्ड प्यार जताने का सबसे अच्छा माध्यम होता है। शादी में इतनी गिफ्ट्स तो तुझे वैसे भी मिली ही होंगीं। फिर फिल्म दिखाने तो ले ही जा रहा था न शांतनु! गिफ्ट के लिये उस दिन का भी सत्यानाश कर दिया तुमने। और उसने एक चॉकलेट का बॉक्स भी दिया, यानि खुशी मनाने का एक और मौका था लेकिन तुमने बर्थडे पर गिफ्ट न मिलने के कारण वह भी गँवा दिया। सोचो कितनी बड़ी बेवकूफ़ हो तुम।“
“इसमें बेवकूफ़ी वाली क्या बात है? उसने शादी से पहले मेरे हर बर्थडे पर गिफ्ट्स दिये हैं। अब मुझे बुरा नहीं लगेगा क्या?”
“तू पागल है, सच में। चल बता ये बिस्किट (कुकी) अच्छा है न?” ग्रेसी ने प्लेट में से बिस्किट उठाया।
सुनयना ठहाका मार कर हँसी, “पता है, ये बिस्किट बहुत यम्मी है!”
ग्रेसी भी हँसने लगी और जोर से हँसते हुए उसने वह बिस्किट फ़र्श पर ऐसे गिरा दिया जैसे गलती से गिर गया हो।
“ओह, गिर गया!” सुनयना के मुँह से निकला और वह बड़े प्रेम से दूसरा बिस्किट उठा कर ग्रेसी को खिलाने लगी। ग्रेसी ने उसका हाथ पीछे कर दिया। सुनयना ने फिर से कोशिश की और ग्रेसी ने फिर से उसका हाथ पीछे कर दिया।
“एक बिस्किट गिर गया तो और खाएगी ही नहीं क्या?” सुनयना दुखी हो उठी।
“यही तो समझाना चाह रही थी तुझे। एक गिफ्ट के लिये तूने फिल्म नहीं देखी, चॉकलेट्स नहीं खाईं, आज शांतनु के साथ शॉपिंग का आनंद भी नहीं ले रही। अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मार रही है तू, बस एक गिफ्ट न मिलने के कारण!”
बात समझ आते ही सुनयना को अपनी गलती का आभास हुआ। एक खुशी गयी तो क्या आने वाली खुशियों को ठुकरा दिया जायेगा? उसे खुशियों को घटाना नहीं, गुणा करना सीखना होगा।
—मसीरा मैसी