नानी की OPD – रमन शांडिल्य : Short Moral Stories in Hindi 

“मम्मा सुनो…” अखबार देखते हुए मैंने जोर से पुकारा।

“अरे इतना जोर से क्यों बोल रहे हो। तुम्हारे साथ ही तो खड़ी हूं, सुशांत।”

मम्मी ने डाइनिंग टेबल से ब्रेकफास्ट के बर्तन उठाते हुए कहा ।

“देखो, देखो मम्मा, कितनी अच्छी बात है न, कि आज फिर रवि मामा की फोटो अखबार में छपी है। और न्यूयार्क शहर के बहुत सारे गणमान्य लोग उनको बधाई

देते भी दिखाई दे रहे हैं।”

मैंने चहकते हुए मम्मी को अखबार दिखाया । और कहा, “वैसे मम्मी! एक बात बताओ कि जब रवि मामा इतने ज्यादा पढ़ लिख गए तो फिर हरी मामा ज्यादा क्यों नहीं पढ़े ? वो भी तो बड़े अफसर बन सकते थे। रवि मामा की तरह हरी मामा के भी अखबारों में फोटो छपते। लोग उनसे भी मिलने आते। “

जब भी मैं मेरी मम्मी से रवि मामा के बारे में बातें करता तो वो अक्सर छिड़ जाती, आज भी बिगड़ कर बोली, “तेरे रवि मामा को शहर के अखबारों में छपने का जितना शौक है उतना शौक अपनी बूढ़ी मां से मिलने का नहीं है। विदेश में तो दुनिया जाती है, वहां बसती भी है, सफल भी होती है। लेकिन घर-परिवार, मां, भाई-बहन को इतना कोई नहीं भूलता जितना कि रवि भूल गया।” रसोई से बर्तनों की आवाज मेरी मम्मी के सुर में सुर मिलाती लगी। मम्मी की आवाज और गुस्से वाली हुई । गुस्से में ही बोली,”रवि के पास गुड़गांव में किलेनुमा फार्म हाउस बना कर अपनी शान दिखाने के लिए के तो खूब पैसे हैं, लेकिन अपने पुस्तैनी मकान की मरम्मत कराने, घर की दशा सुधारने के लिए एक फूटी कौड़ी तक नहीं ।

घर जमीन में धसा जा रहा है । गली का धरातल दहलीज से एक फुट ऊपर उठ गया है। लेकिन तेरे रवि मामा को क्या चिंता! विदेशी हो गए हैं पूरे!

घर परिवार की चिंता तो अब हम लड़कियां करें।”

मैं चुपचाप सुन रहा था मम्मी ने थोड़ा सा विराम लिया और फिर नॉन स्टॉप, “हम तो मायके की चिंता करेंगी ही, बेटियां जो ठहरी। मां जब तक है तब तक तो पीहर का मोह छूटता भी तो नहीं ।”

“ये तो तेरे हरी मामा का सहारा है तेरी नानी को, नहीं तो उस जर्जर घर में उस बूढ़ी माई का कैसे गुजारा होता, भगवान जाने!”

अब मेरी मम्मी शुरू हो चुकी थी अब वो केवल बोलती ही जाएगी , ऐसा मुझे पता था, वो आगे और तुनक कर बोली, “हम भी जब कभी कभार मां से मिलने जाते हैं तो घर के पुराने जर्जर दरवाजे यूं अर्र-अरर टरटर करते हैं जैसे कह रहे हों कि अगली बार उन्हें छू भी लिया तो सांकल हाथ में ही आ जाएंगी ।”

बात तो मम्मी ठीक ही कह रही थी, “पिछली बार जब मैं नानी के घर गया तो मेरा भी हाथ ही फंस गया था रसोई के गेट में। ये तो नानी को पता था कि हाथ कैसे निकालना है, नहीं तो चोट लग जाती और मम्मी से डांट पड़ती वो अलग ।

इधर रवि मामा की बुराइयों के अंबार लगाते और बड़बड़ाते बड़बड़ाते मेरी मम्मी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। मुझे तो लगता है कि बिना रुके बोलते जाना आजकल की सुपर केयरिंग मम्मियों की बड़ी समस्या है।

लेकिन तब मैं सोचने लगा कि रवि मामा के सामने तो मेरी मम्मी इतना मीठा बोलती है, सारे हंसी मजाक करती है और पीछे से जब भी कोई जिक्र करो तो ऐसे शुरू हो जाती है, जैसे पाकिस्तान में घुस कर एयर स्ट्राइक कर रही हो?

मैं कई बार सोचता कि रवि मामा ने मेरी नानी के लिए दो-दो नौकरानियां लगा रखी हैं, एक मालिश वाली भी आती है। मेरी मम्मी भी उसी से मसाज कराती है जब कभी हम नानी के पास होते हैं । मसाज के पैसे, नौकरानियों की पगार, बिजली का बिल,राशन – तेल सभी तो रवि मामा ही देते हैं । फिर रवि मामा से मेरी मम्मी की इतनी नाराज़गी समझ नहीं आती।

मुझे इस नाराजगी की तह तक जाने की उत्सुकता पिछले कई सालों से थी लेकिन किसी हल पर नहीं पहुंच पाया था । इसी उत्सुकता के कारण आज मैंने रवि मामा को फोन मिलाया और बातों बातों में पूछ ही लिया, “मामा! आप नानी का घर ठीक क्यों नहीं कराते? दरवाजों की हालत तो बहुत खस्ता है ।”

इस पर मामा बोले,”अरे बेटा सुशांत, उस घर में तो तुम्हारी नानी मुझे तुम्हारे नाना की तस्वीर इधर से उधर हिलाने तक नहीं देती। कभी कभार जब कभी घर के मंदिर की मूर्तियों को छू भी लेता हूं तो अपने कान्हा को जाने कैसे कैसे और कितनी बार नहलाती है।”

मामा ने हंसते हुए कहा, ” सुशांत! अभी पिछली बार जब मैं शैंघाई से दो दिन के लिए आया तो मैंने मां को कहा “मां ऐसा करते हैं ये मंदिर अब छोटा पड़ने लगा है तो थोड़ा बड़े वाला खरीद लाते हैं।” उस दिन मां मुझ पर बहुत बिगड़ी बोली, “हाथ भी नहीं लगाना मेरे ठाकुर जी को। विदेश में तुम पता नहीं क्या क्या खाते पीते होगे, बेहू कहीं के। रवि के बच्चे, अशुद्ध नहीं करना मेरे लड्डू गोपाल को!!!” और मामा जोर जोर से हंसने लगे, जैसे उन्हें मां की डांट खाने में बहुत मजा आया हो।

मामा ने मुझे फिर थोड़ा गंभीर भाव से कहा, “सुशांत बेटा! तेरी नानी को कई बार समझाया कि वो इस पुराने घर को छोड़ कर नए मकान में आ जाएं। नए मकान में उन्हें कुछ और सुविधाएं मिल जाएंगी, लेकिन वो नहीं मानी। और मानती भी क्यों !

जिस व्यक्ति ने अभाव में एक लंबा समय गुजार

लिया हो, जिसने सारी उम्र सब्र किया हो, जो सुविधाओं को मात्र तन का सुख मानता हो, वो सुविधाओं की खातिर अपने आपको क्यों विस्थापित करेगा!

और वैसे भी बुढ़ापे में आलीशान मकान की बजाए, पुराने साथियों का साथ ज्यादा अच्छा लगता है ।”

मामा ने आगे कहा,”बेटा सुशांत, मुझे तो मेरी मां पर वैसे ही फक्र है । वो हमेशा से ही पूरे गली मुहल्ले की जगत दादी रही हैं । आज भी गली की सभी औरतें उनके पास कभी व्रत की कहानी सुनने आती हैं तो, कभी सत्संग कराने।

कभी श्राद्ध के बारे में पूछने आती हैं तो कभी अमावस्या के बारे में। मतलब ये कि मां की OPD चलती ही रहती है सारा दिन।”

“नानी की OPD” कह कर मैं खूब हंसा और मैंने कहा, “मामा आपकी भी सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल है।”

मामा ने फिर कहा, “मेरी मां को समाज के लिए उपयोगी होना अच्छा लगता है, उसे पड़ोस के सभी घरों की अनकही कहानियां मालूम होती हैं, सभी पड़ोसनें अपने दिल की बात मां से ही सांझा करती हैं, क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि मां किसी की भी बात को कभी इधर उधर नहीं करती । सभी को नेक सलाह ही देती हैं । कभी किसी की चुगली का तो सवाल नहीं उठता।

बातें पचाने का हुनर तो महिलाएं मेरी मां से सीखें।”

“अरे सुशांत, मेरी मां से तो हमारी पड़ोसने अपने छोटे बच्चों की पसलियां मसलवाने, टॉन्सिलज में गले की मसाज कराने भी आती रहती हैं। और मां भी अपने आपको किसी हकीम से कम नहीं समझती, जब वो पेट दर्द वाला चूर्ण किसी को पुड़िया बना कर देती है। “

मामा आज पूरे मनोविनोद के साथ मेरे साथ बातों में मशगूल थे। तभी उन्होंने पूछा, “अच्छा! अब तुम बताओ सुशांत, क्या तुम्हारी नानी पुराने घर को छोड़ कर कहीं और खुश रह सकती है ?

मैंने भी निर्णायक की भूमिका मिलते ही कहा,” नहीं, मामा! सवाल ही नहीं उठता। नानी कहीं और विस्थापित होंगी ।”

“और सुशांत, बात एक और भी है कि चाहे मां कितनी भी वृद्ध हो गई है लेकिन आज भी उसकी आवाज और उसकी चाल दोनों में कड़की है। और तुम्हें तो पता ही है सुशांत, कि मां तो गली की सभी बूढ़ी औरतों की सरदार है । कभी सभी आंटियों के साथ धार्मिक यात्रों पर घूमने भी निकल जाती हैं तो कभी किसी पारिवारिक आयोजन पर। और इस बार तो हरिद्वार में पूरे दस दिन लगा कर आया है इनका ओल्डन गोल्डन गर्लज गैंग।”

मामा के ओल्डन गोल्डन गर्लज गैंग वाले इस humourous पंच से मेरा हंस हंस कर बुरा हाल हो गया। लगा जैसे कपिल शर्मा शो का participant हूं।

मामा हंसी दबाते हुए बोले, “सुशांत! उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा मेलजोल ही आपको ऊर्जावान रखता है,

नहीं तो दवाओं की गठरियां उठाए नहीं उठती।”

मैंने कहा कि अब तो मुझे बिल्कुल सही सही स्पष्ट हो गया है कि नानी न तो पुराना मकान छोड़ सकती हैं और न ही उसे ढहा कर दोबारा बनाने के लिए ही राजी हो सकती हैं ।

मामा भी बोले, “अभी दो महीने पहले जब मैं दुबई आया था तो मुझे लगा की मां से मिलता चलूं। मैंने मां को कहा, “मां मकान पुराना हो गया है । तोड़ कर दोबारा बना लेते हैं।

तो पता है मां ने क्या कहा, सुशांत?

मां ने कहा,” मेरे जीते जी तो इस मकान को तोड़ने की सोचना भी मत। क्योंकि अगर मकान दोबारा बनेगा तो तुम दोनों भाइयों (यानी हरी और रवि) के बीच घर के बंटवारे का मुद्दा उठेगा। और बंटवारा मैं होने नहीं दूंगी, कम से कम तब तक जब तक मैं जिंदा हूं। हां, मेरे मरने के बाद तुम दोनों भाई कुछ भी करना।”

ऐसा कह कर मां ने मेरा मुंह हर बार की तरह बंद कर दिया, सुशांत।”

मामा रवि की सारी बात सुन कर मेरा मन गदगद हो गया। मैं सोचने लगा कि मामा भी कई दिनों से अपने मन की सारी बातें कह ही नहीं पाए होंगे जो सारी बातें मुझे आज बता दी ।

अब मुझे आभास हो गया कि चाहे मामा मेरी नानी के पास, उसी पुराने घर में रहने में असमर्थ हों, लेकिन वो अपनी मां से भावनात्मक स्तर पर पूर्ण रूप से जुड़े हुए हैं। आज मामा से बात करने के बाद मेरा दिल हल्का जरूर हुआ, लेकिन मैं दोबारा सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर मेरी मम्मी रवि मामा के बारे में जलीकटी बातें क्यों करती है?

इस रहस्य को जानने की मेरी उत्सुकता अब मेरी दुविधा में बदल गई।

समस्या का समाधान अगर समय पर न निकले तो वह दुविधा सी लगने लग ही जाती है।

मुझे लगा कि हो सकता है कि मेरे पापा ने मेरी मम्मी को नौकरी करने से मना किया हो, और मेरी मम्मी नौकरी न कर सकने के कारण अपने आप को अपने भाई की तरह प्रूव नहीं कर पाई हो! वगैरह वगैरह!!!

मैं तो इतना भी सोच गया कि महिलाएं तो ईर्षालु होती ही हैं। फिर मेरी मम्मी कोई अलग थोड़ी हैं ।

लेकिन थोड़ी देर बाद ही मुझे मेरे अपने इस तर्क में कोई दम नहीं लगा।

मैंने हार कर नानी को फोन मिलाया। पहले हालचाल पूछा, मौसम और इधर उधर की बात की और बाद में पूछा कि “नानी ये बताओ कि मेरी मम्मी को रवि मामा बचपन में क्यों पीटते थे?”

इस बात पर नानी खूब खिलखिला कर हंसी और बोली, “बेटा सुशांत, तेरे मामा तेरी मां को नहीं बल्कि तेरी मां ही रवि की पिटाई कर दिया करती थी। मगर, हां, तुम्हारी मम्मी रवि को प्यार भी बहुत ही ज्यादा करती थी । वो अपने भाई को उतना ही प्यार करती थी जितना माताएं अपने बच्चों को करती हैं । और

इसलिए तुम्हारी मम्मी तो तुम्हारे नाना से भी भिड़ जाती थी । कह ही देती थी कि अगर रवि की पिटाई की तो वो कभी किसी से बात नहीं करेगी।”

यह कह कर नानी बोली, “बेटा सुशांत! मैं समझ गई कि तू क्या पूछना चाहता है और तेरे मन की दुविधा क्या है।”

यह सुन कर मैं दंग रह गया और सोचने लगा कि नानी के हुनर और पर्सनेलिटी में दम है। बातों बातों में ही मेरे मन की पूरी बात ही भांप गई ।

सोचा कि यही कारण है कि नानी इतने लंबे समय से अपनी सभी सहेलियों की सरदार है।

वैसे भी बिना हुनर के महिलाओं का सरदार होना, इंपॉसिबल।

मैं कुछ और सोचने लगता उससे पहले ही नानी बोली,”

तो सुन बेटा सुशांत! तेरी मम्मी रावी और तेरे मामा एक ही स्कूल में पढ़ते थे। दोनों एक साथ ही स्कूल जाते आते। स्कूल की छुट्टी होने पर रावी ही रवि का बस्ता संभाल कर लाती । दोनों खूब पढ़ते और अव्वल आते। लेकिन 10+2के बाद रवि को यू एस की स्कॉलरशिप मिली और वो विदेश पढ़ने की सोचने लगा। मगर रावी नहीं चाहती थी कि उसका भाई उसे छोड़ कर विदेश जाए और हमेशा के लिए उससे दूर हो जाए। लेकिन रवि को तो पढ़ने के लिए विदेश जाना ही था तो रवि चला ही गया।

रावी बहुत दिनों तक रोती रही। लेकिन बेचारी का किसी पर जोर नहीं चलता। उस जमाने में तो मोबाइल और फोन भी नहीं थे जो रावी अपने भाई से बातें ही कर लेती। रावी मन को मसोसती रहती और भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती। बस इसी कारण रावी को बार बार बुखार आने लगा। सूख कर लकड़ी होने लगी। तब बहुत मुश्किल से हमने रावी को संभाला। उसकी पढ़ाई पूरी हुई और जब रवि विदेश में कमाने लगा तो हमने रावी की शादी बहुत ही धूमधाम से तुम्हारे पापा के साथ कर दी। लेकिन शादी के बाद तेरी मां अपने घर-परिवार और अपने बच्चों में इस कदर मशगूल हो गई कि अपने पीहर और सहेलियों को लगभग भूल सी गई। रावी का अपने ससुराल में रचना-बसना स्वाभाविक ही था क्योंकि जब किसी सुघड़ लड़की को ससुराल में बेटी का सा दर्जा और कदर करने वाला पति मिल जाता है तो वो लड़की अपने मायके को कम ही याद करती है। यही कारण था कि

हम जब भी रावी को अपने पास बुलाते तो रावी कम ही आती। और जब मिलने आती तो उसके पास केवल एक ही जिक्र मिलता। जानते हो किस का ? “

मैंने तपाक से कहा, “रवि मामा का!”

मगर नानी ने हंसते हुए कहा, “अरे नहीं! सुशांत! अब रावी मां बन चुकी थी अब उसके पास अपने बेटे सुशांत के अलावा कोई जिक्र नहीं था।

आज सुशांत ने ये शरारत की, आज उसकी टीचर ने ये कहा वैगरह, वगैरह।

और हां ! जब तू छोटा था तो तेरी मां एक पल के लिए भी तुझे अकेला नहीं छोड़ती थी।

मुझे तो याद है कि जिस दिन तुम्हारे स्कूल जाने का पहला दिन था तो उस दिन स्कूल के गेट पर दूसरे बच्चों की अपेक्षा तुम तो कम रोए लेकिन रावी से अपने आंसू छिपाए नहीं छिपे। घर रो रो कर भर दिया रावी ने, कभी बाथरूम में जा कर तो कभी सफाई करने के बहाने से इधर उधर आंसू टपका आती। मुझे जब इस बात का पता चला तो मैंने रावी को बहुत फटकार लगाई। और समझाया भी। मैंने कहा, “आदम जात बंदरिया की तरह अपने बच्चों को चिपका कर नहीं रख सकती। आगे से सुशांत के स्कूल जाने पर आसूं बहाए तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। रावी को थोड़ी कस कर फटकार लगाई तब कहीं जा कर नॉर्मल हुई।”

नानी ने आगे कहा कि बेटा अब तू उभरने लगा है तो रावी को एक और विचार परेशान किए जा रहा है और वो है – तेरा भी रवि की तरह पढ़ाई के लिए विदेश जाने का रुख कर लेना।

रावी को अब यही डर सताता रहता है कि कहीं तू भी उसे छोड़ कर विदेश न चला जाए ।

बस इसीलिए रावी तेरे सामने रवि की बुराइयां करती है ताकि तू कभी भी विदेश जाने की न सोचे और हमेशा ही अपनी मम्मी के आस पास ही रहे।

बेटा! मैं भी मानती हूं कि इकलौते बेटे को विदेश में पढ़ाई के लिए भेजना मतलब अपने बच्चे से हमेशा के लिए अलग होना होता है । ऐसे में माताओं की आंखे नम होने का कारण यही होता है कि बच्चा एक बार विदेश गया तो फिर विदेशी ही हो गया ।”

नानी के सम्मोहित करने वाले शब्दों और अपनी इस कहानी को मैं पूरे मनोयोग से सुन रहा था ।

मम्मी और मामा के किस्से किसी फिल्म की भांति मेरी आंखों के सामने दौड़ रहे थे। अपने इस पारिवारिक इतिहास को जानने के बाद, वर्तमान की मेरी सारी दुविधाऐं मेरे अशांत चित्त से निकल गई ।

मुझे लगा कि नानी की OPD तो बहुत ही कमाल की है, बिना किसी ब्लड टैस्ट के मेरे मनोभावों

का पूरा डायग्नोनिस भी कर दिया और बिना किसी दवा के मुझ अशांत को वापस सुशांत भी बना दिया।

रमन शांडिल्य

21.06.2023

भिवानी।

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