दिखावा – उमा वर्मा

रवि को आफिस भेज कर निश्चिन्त होकर बैठी तो एक कप और चाय पीने का मन हो आया ।रसोई में गैस पर चाय चढ़ाया और तबतक घर को व्यवस्थित कर लिया ।जब तक सब अपने अपने काम पर निकलते नहीं तबतक घर लगता है कुश्ती का अखाड़ा बना रहता है ।चाय तैयार हो गई ।कप लेकर बालकनी में आकर बैठी ही थी कि फोन बजने लगा ।” अम्मा नहीं रही ” फोन अरूण का था ।

अरूण दीदी का बेटा है ।दीदी के जाने की खबर सुनकर मेरे तो होश उड़ गए ।” क्या हुआ था? कैसे हुआ? कब हुआ? मेरे सवाल का जवाब नहीं आया ।फोन कट चुका था ।एक ही शहर में रहने के कारण अक्सर दीदी के यहाँ आना जाना लगा रहता था ।वह मेरी बड़ी बहन थी लेकिन अम्मा के गुजर जाने के बाद दीदी ने ही पूरे घर को संभाल लिया था ।पापा तो अम्मा के जाने के गम में एक दम चुप हो गये थे ।न ठीक से खाते, न कुछ बोलते ।जैसे तैसे आफिस जाते और आकर सीधे पड़ जाते।ऐसा कितने दिन चलता ।

वे बीमार पड़ गये।दीदी की क शादी हो चुकी थी ।जीजा जी अच्छे थे ।इसीलिए दीदी को कोई परेशानी नहीं हुई ।मायके और ससुराल दोनों को अच्छी तरह निभा रही थी ।कभी सास ससुर को भी शिकायत का मौका नहीं दिया ।वे भी खुश रहते उनसे ।दीदी मुझसे नौ साल बड़ी  थी।उनके एक ही बेटा  था ।बहुत आज्ञाकारी ।बहुत लायक ।दीदी और चाहती भी नहीं थी।उनका कहना था कम बच्चे की  शिक्षा और परवरिश अच्छी तरह कर सकती हूँ ।

और बाल बच्चा हुआ या नहीं या नहीं होने का उपाय किया था मुझे नहीं मालूम ।दीदी के देख रेख में पापा के स्वास्थय का सुधार हो गया ।कुछ साल के बाद मेरी भी शादी हो गई ।दीदी ने बढ़कर कर सब जिम्मेदारी निभाई।मेरा भी ससुराल नजदीक ही था ।तो आना जाना बना हुआ था ।अक्सर जब इनकी छुट्टी होती, हम दीदी के यहाँ होते।दिन भर खाना खा कर रात को लौटते ।सबकुछ ठीक चल रहा था ।अब उनहोंने बेटे की शादी की सूचना दी तो हम खुश हो गये ।

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चलो खूब मस्ती होगी ।एक सप्ताह के बाद शादी की तारीख थी ।हमने भी अपनी तैयारी शुरू कर दिया ।दीदी ने पहले ही कह दिया था कि अभी ही आ जाना है तुम्हे ।हम समय पर पहुंच गए ।शादी की तैयारी के बीच मुझे महसूस हुआ कि दीदी बहुत खुश नहीं हैं ।बस किसी तरह निभा रही थी ।मौका मिलते ही मैंने घेर लिया ” बताओ दीदी, तुम खुश हो तो?” फिर मुझे पकड़ कर रोने लगी ।मालूम हुआ अपनी पसंद की पंजाबी लड़की से कर रहा है ।अलग प्रान्त, अलग जाती, दीदी नहीं चाहती थी ।लेकिन बेटे की पसंद ।क्या करती ।बेटा कहने लगा ” अम्मा, जाती और देश मत देखो, पढ़ी लिखी है, नौकरी करती है, देखने में सुन्दर है, ।स्वभाव अच्छा लगता है ।और क्या चाहिए ।दीदी निरूत्तर हो गई ।शादी निबट गई ।जीजा जी बहुत पहले ही दुनिया से चले गये थे तो दीदी अकेले थी।वह अक्सर फोन पर बताती ” लड़की अच्छी है, बहुत खयाल रखती है मेरा।सुनकर अच्छा लगा ।मैं भी अपनी गृहस्थी में रम गयी थी ।आज कल दीदी का फोन आना कम हो गया था सोचा बेटा बहू मे मगन होगी ।कुछ दिन के बाद कहीँ से खबर आई कि बहू से  नहीं पटती ।

दीदी तो बहुत शान्त और समझदार थी तो नहीं पटने का क्या सवाल हो गया ।एक दिन समय निकाल कर पहुंच गयी उनके यहाँ ।बाहर से ही शोर सुनाई दे रहा था ” अब हमसे आपकी तीमारदारी नहीं होगी, आपका शरीर तो चलता नहीं ।बैठे बैठे पलंग तोड़ने लगे हैं ।मेरा मन कभी खाना बनाने का नहीं होता, हम बाहर खा लेते ।मगर आपके लिए घर आकर खटना पड़ता  है ।और फिर आपकी दवा का खर्चा? हम अपना देखें कि आपको? मै अन्दर गयी तो दीदी पकड़ कर रोने लगी ।” हाँ, हाँ, रो कर दिखाया करिये बहन को” कि बहू ही खराब मिल गई ।दीदी ने बताया बेटा भी पत्नि का ही होकर रह गया है ।




मेरे लिए उसके पास समय ही नहीं है ।मैं दुखी मन से लौट आयी ।अब जब बहू अपने काम पर जाती तब दीदी फोन कर लेती ।एक दिन बात कर ही रही थी कि वह आफिस से लौट आयी और फोन छीन कर पटक दिया ” खूब शिकायत हो  रही थी न? लीजिए खूब बातें शेयर करते रहिये ” फोन टूट गया था ।दीदी से बात करना मुश्किल हो गया था ।जब तब जाकर मिल आती मै ।

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आकर दुख ही होता ।कितनी समझदार, शान्त और नेक दीदी का यह हाल? वह एक दम दुबली पतली हो गई थी ।आँखे धंस गई थी ।बड़ी अजीब लगने लगी थी वह।मैं ईश्वर से प्रार्थना करती ” मेरी दीदी  को बुला ले  भगवान ” अब नहीं सहा जाता, नहीं देखा जाता उनका दुख ।और आज शायद ईश्वर ने सुन ली थी मेरी पुकार ।जब अचानक से उनके जाने की खबर मिली ।

वहां पहुँची तो बहू दहाड़े मार कर रो रही थी ” हाय अम्मा, आप कितनी अच्छी थी ।अब कौन मेरा खयाल रखेगा, आप क्यो चली गई अम्मा? आप के बिना कैसे रहेंगे हम? ” ओह! इतना  नाटक,इतना दिखावा ” कोई कैसे कर सकता है ।जिस दीदी को कभी प्रणाम तक नहीं किया अब पैर छू कर कह रही थी आपके बिना घर सूना हो गया अम्मा ।दीदी जमीन पर शान्त पड़ी थी ।लेकिन जाने की तैयारी होने लगी तो मै अपने आँसू नहीं रोक पायी।फूल  माला से लाद दिया गया उन्हे ।अंतिम विदाई हो गई ।मैं अपने घर लौट आयी ।शायद मेरी प्रार्थना सही लगी ईश्वर को ।उनहोंने बुला लिया ।पता नहीं मैंने क्यो चाहा ऐसा? उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें ईश्वर बस आखिरी इच्छा है मेरी ।अब उन्हे चैन तो जरूर मिलेगा ।” 

#दिखावा 

उमा वर्मा ” नोयेडा ।स्वरचित, अप्रकाशित,व मौलिक ।

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