त्याग का रिश्ता… – विनोद सिन्हा “सुदामा”

डागडर साहिब कैसी है मेरी बहू….

विमला देवी ने भरे मन डाक्टर से बहू रश्मि का हाल पूछा…

जी माँ जी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता…हम कोशिश कर रहें..ईश्वर पर भरोसा रखिए…

आखिर उसे हुआ क्या है..??

क्यूँ एकाएक दर्द उठा पेट में..क्यूँ बेहोश हुई…

जी renal failure का केश है….

रेनल फेलर इ का होता है…..

ज्््जी।..किडनी फेल्युअर या यूँ कहें किडनी की विफलता…किडनी खराब होना…

आपकी बहू की किडनी में संक्रमण है..

हे…भगवान… ये कैसे हो सकता है….अभी उम्र ही क्या है इसकी…

जी माँ जी इसका उम्र से कोई लेना देना नहीं..

अगर किडनी की कार्यक्षमता में किसी प्रकार की कोई कमी या क्षति हो जाती है तो इसका मतलब होता है कि किडनी में कोई बीमारी है। यह बीमारी कुछ भी हो सकती है..कभी भी हो सकती है..किसी भी उम्र में..हो सकती है

और आपकी बहू की तो दोनों किडनियां खराब हो चुकी है….अभी डायलिसिस पर रख छोड़ा है…कुछ कहा नहीं जा सकता…

नहीं नहीं.. ईश्वर इतना निर्दयी नहीं हो सकता…

अभी कुछ साल पहले ही तो पति खोया इसने….बच्चा भी छोटा है अभी..साथ खड़े बब्लू के माथे पर विमला देवी ने मामता से हाँथ फेरते हुए कहा…

कोई सहारा नहीं लाख कहा दूसरी शादी कर ले…मेरा क्या है..मैं तो वैसे भी..चलती फिरती लाश ही..हूँ कब साँसें साथ छोड़ दे क्या भरोसा…लेकिन मानती ही नहीं.. कितनी बार कहा…जाने को..करमजली जाती ही नहीं छोड़ कर..

कहती है माँ को छोड़कर कहाँ जाऊँ…

फिर वो वहीं दिवार सटे बेंच पर बैठ रोने लगीं..मन की पीड़ा उनकी बूढ़ी पलको  से से आँसू बनकर छलक रही थी

विमला देवी ज्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं थी…..लेकिन स्वाभिमान की धनी थी….खुशकिस्मत भी कि बहू सुशील और शांत मिली थी…साथ दुखदाई यह था कि उन्होंने पति को तो काफी पहले खो दिया और अभी कुछ साल पहले एक दुर्घटना मे बेटा भी चल बसा….था..तबसे वो बहू और आठ साल का पोता ही रह गए परिवार के नाम पर..बाकी न कोई आगे न कोई पीछे….न कोई देखने वाला न कोई पूछने वाला,दोनो सास बहू साथ रहते साथ लड़ते साथ मिलते…बहुत मानती थी बहू को….लाख तकलीफ रही लेकिन बहू ने उनका साथ नहीं छोड़ा..




लेकिन उस रोज अचानक बहू रश्मि के पेट में खूब जोर दर्द उठा और वह माँजी माँजी  चिल्लाते हुए बेहोश हो गई..

आवाज सुन विमला देवी भागकर बहू के नजदीक पहुँची..देखा बहू बेहोश पड़ी है….

उन्होंने पास रखी बाल्टी से पानी बहू के मुख पर पानी छिड़का लेकिन कोई अंतर नहीं…अतः आनन फानन में चिंतित उसे टैक्सी में लेकर अस्पताल पहुँच गई…

इलाज का खर्च सुन रेंगटे खड़े हो गए..विमला देवी के..

पति के मरणोपरांत कभी किसी के सामने हाँथ नहीं फैलाया….था लेकिन आज…कहाँ जाए किससे कहे उन्हें कुज समझ नहीं आ रहा था…दिल्ली जैसे बड़े शहर में किसी को जानती तक नहीं…

फिर भी हिम्मत कर उन्होंने डाक्टर से बोला…

डागडर साहब किसी तरह बचा लिजिए मेरी बहू को…इलाज में जो खर्चा आए .किसी तरह दे दूँगी.कुछ पैसे जमा रख छोड़ा है..एक घर बचा है उसे भी बेच दूँगी…रह लूँगी जैसे तैसे कहीं..इसके सिवा कोई नहीं मेरा…विलखते हुए हाँथ जोड़ बिनती कर रहीं थी..

इसका बस एक ही इलाज है….अगर आपके सगी सबंधी  या कोई और अपनी  एक किडनी इन्हें दे तो किडनी ट्रांसप्लांट कर आपकी बहू की जान बच सकती है..

डागडर साहब यह कैसे संभव है और कोई अपनी किडनी क्यूँ देगा भला..मेरा तो कोई नहीं.. हाँ इसके भाई भौजाई हैं..वो तो कभी मुड़कर ताकते तक नहीं…आप ही कुछ उपाय किजिए..

और टरंसपलटन क्या होता है…और कैसे होगा..

किडनी ट्रांसप्लांट का अर्थ होता है प्रत्यारोपण, यह वह प्रक्रिया है जिसे मरीज की किडनी पूरी तरह खराब होने पर अपानया जाता है। इसमें क्षतिग्रस्त किडनी को हटाए बिना ही नई किडनी लगा दी जाती है

डाक्टर ने विमला देवी को समझाते हुए कहा….

विमला देवी हताश परेशान कभी डाक्टर तो कभी हाँथ पकड़े पोते को देखती…तो कभी साथ खड़े रमेश को देखती जिसकी सहायता से अपनी बेहोश बहू को अस्पताल लेकर आई थी….

रमेश विमला देवी के घर के सामने ही चाय की दुकान चलाता था…और उन्हें माँजी कहता था..

उनकी आँखों के बहते आँसू रूकने को तैयार नही थे..कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो आखिर क्या करे..किसके पास जाए..किससे सहायता माँगें..कौन उनकी बहू को यूँ ही अपनी किडनी देगा भला….

फिर उनके मन में खयाल आया हालांकि विमला देवी को अपनी बूढ़ी अवस्था पता थी….लेकिन फिर भी उन्होंने डाक्टर से बात की..सलाह मशवरा किया…कि डाक्टर  उनकी एक किडनी निकाल कर बहू को लगा दे…

लेकिन डाक्टर ने साफ मना कर दिया….

नहीं यह संभव नहीं… आपकी जान भी जा सकती है…

कोई बात नहीं पर बहू तो जी सकेगी..जिंदगी पड़ी है.. मेरा क्या है..मैंने तो अपनी जिंदगी जी ली…

फिर भी माँ जी आपकी उम्र हो गई. है..हम ये रिश्क नहीं ले सकते…

आप रिक्सा ले या मोटर…..आपको मेरी बहू को ठीक करना ही होगा…विमला देवी ने मानों जिद्द ही धर लिया..




हार फिर कर डाक्टर ने अपने सहयोगियों से बात चीत की..और विमला देवी की बात मान ली…

विमला देवी को पैसे का इंतजाम करने को कहा गया…

पति सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हो गुजरे थे..अतः

नगदी जमा पुंजी को जोड़ विमला देवी ने अपने सारे जेवर बेच डाले और देखते देखते पैसों का इंतजाम कर लिया…और ऑपरेशन का फीस जमा कर दिया…

नतीजा…अगले ही दिन डाक्टरों ने विमला देवी की एक किडनी निकाल उनकी बहू को ट्रांसप्लांट कर दिया…

दोनों का ऑपरेशन सफल रहा..

ईश्वर की कृपा थी कि दोनों सहीसलामत थे…दस दिन आइसोलेटेड वार्ड में रहने के बाद….दोनों एक ही बार्ड में आमने सामने की बेड पर लेटी थी.

बहू को पहले होश आ गया था….रमेश ने उसे सारी बातें बता दी थी….

बेटा बब्लू माँ के पास में ही था…माँ चाहती थी कि बच्चे को गले लगा ले लेकिन मजबूर थी..नर्स ने मना कर दिया..

कुछ घंटों बाद विमला देवी ने भी आँखे खोल दी…उन्होंने आँखें खोल पहले सामने खड़े पोते को देखा जो माँ को छोड़ रमेश के साथ उनकी सिरहाने आ खड़ा हुआ  था….

बेचारा रमेश दोनों को जब तक होश नहीं आया और ICU में रहीं.. किसी सज्जन की तरह बब्लू को वहीं अस्पताल में साथ रखे रहा..कहीं नहीं गया….था

हाँ इस बीच आस पड़ोस के लोग जिन्हें पता चला अस्पताल आकर उन दोनों की कुशलता पूछ जा रहे थे..

विमला देवी ने रमेश से इशारे से बहू के बारे में पूछा…

रमेश ने उनकी बगल की ओर इशारा किया…

बहू अपनी सास को कृतज्ञता से देखे जा रही थी…

विमला देवी ने बहू की आँखों में आँसू देख..पोछने को हाँथ बढाने लगी..लेकिन असमर्थ थी…

फिर धीमी आवाज में कहा…..चुप कर…रो मत…बहुत रो ली… आँखें लाल हो गई है। बाकी घर चलकर रो लेना वरना ज्यादा बीमार हो जाओगी…

उन्होंने अपनेपन से कहा…

तभी चेकप करने आई नर्स ने विमला जी पूछा कैसा महसूस कर रहीं आप….

जी बिल्कुल ठीक….अब चीड़ा लगा है तो दर्द तो होगा ही न बहन….

नर्स ने मुस्कुराते हुए हामी भरी…

हाँ मेरी बहू से जरूर कह दो….

सास हूँ….यूँ ही नहीं छोड़ने वाली…

छाती न सही पेट में घुर्मुराऊँगी…

उसे मैंनें…अपनी किडनी नहीं..जंजीर दिया है जन्मों का…मैं रहूँ या न रहूँ सदा साथ बंधी रहूँगी..डागडर साहिब कह रहें थे..किडनी भी दिल से कम महत्वपूर्ण नहीं…

और हाँ अब आगे घर जाकर मुझसे ज्यादा चटरपटर की तो अपनी किडनी वापस ले लूँगी ध्यान रहे….

साथ खड़े  डाक्टर नर्स सभी मुस्कुरा रहे थे…और विमला. देवी की जिंदादिली की भरे मन से प्रशंसा कर रहे थें…

मुस्कुरा बहू भी रही थी …या यूँ कहें सास बहू दोनों…की होठों पर हल्की मुस्कान थी….

लेकिन आँसूओं ने साथ नहीं छोड़ा था..दोनों यही सोच रही थी..सास बहू का रिश्ता आखिर…क्यूँ सदा  असुरक्षा के घेरे में रहता है..आखिर क्यूँँ सास बहू के रिश्ते को 36 का आँकडा कहते हैं…..

जहाँ विमला देवी सोच रही थी कितनी भाग्यशाली हूँ मैं जो मुझे ऐसी बहू मिली….बहू सोच रही थी कितनी सौभाग्यशाली हूँ मैं जो मुझे ऐसी सास मिली….

वहीं नर्स डाक्टर सास बहू की बौडिंग देख सोच रहे थे कितनी महान है यह सास जिसने अपनी बहू के लिए अपनी जिंदगी दाँव पर लगा दी…जाने कैसा अनमोल और अनोखा रिश्ता है इनका….

काश हर सासबहू के संबंध यूँ ही मधुर बने रहें, इनकी ही तरह  हर सास बहू  के व्यवहार में उदारता, धैर्य और त्याग के भाव हो तो क्या परेशानी है…

विनोद सिन्हा “सुदामा”

#एक_रिश्ता

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