अपने बेटे को बस स्टॉप पर पहली बार छोड़ने आई निवेदिता देख रही थी वहाँ पर सब बच्चे या तो अपनी मम्मी के साथ खड़े हैं या फिर पापा के साथ पर एक लड़की किसी बुजुर्ग महिला के साथ खड़ी थी वो शायद उसकी नानी… दादी … या फिर कोई और होंगी ।
कुछ पुराने लोग जो शायद उनको जानते होंगे नमस्ते कर रहे थे वो सबके अभिवादन का हँसते हुए जवाब दे रही थी । निवेदिता जो उनके बगल वाले ब्लॉक में रहती थी वो अभी अभी इस सेक्टर में रहने आई थी… बस उन महिला के ब्लॉक के ठीक सामने ही रूकता था… जहां सब महिलाएँ बच्चों को भेज कर गप्पें मारने लगती वो बुजुर्ग महिला जल्दी जल्दी घर की तरफ़ भागती।
निवेदिता के दो बच्चे… और दोनों के बस की टाइमिंग अलग अलग… वो जब बेटी को लेकर बस स्टॉप के पास आई तो देखती है वो बुजुर्ग महिला भी छह साल के बच्चे के साथ बस का इंतज़ार कर रही है उसका बैग बोतल सब टांग कर वो खड़ी थी ।
इस वक़्त बस ये दोनों ही खड़ी थी तो निवेदिता ने आगे बढ़कर नमस्ते किया।
बस आ गई दोनों बच्चों को भेजने के बाद वो बुजुर्ग महिला बोली,“ लगता है तुम ही पीछे वाले ब्लॉक में रहने आई हो? क्योंकि यहाँ पर तुम ही नई दिख रही हो और किस फ़्लैट में कोई रहने आया है ये तो इस सोसाइटी में क्षण भर में पता चल जाता ।” हँसते हुए वो बुजुर्ग महिला बोली
“जी हाँ मैं ही उसमें रहने आई हूँ पति सेल में काम करते और ये फ़्लैट हमें रहने के लिए दिया गया है।आप ..? निवेदिता ने पूछा
“बेटा ये दोनों मेरे पोती पोते है… बेटा बिज़नेस करता है और बहू स्कूल में शिक्षिका है….. वो सुबह पाँच बजे घर से निकल जाती है… सुबह उठ कर बच्चों का और अपना टिफ़िन बनाती है ये दोनों तो सोये रहते हैं..उसके जाने के बाद मैं इन्हें एक एक कर उठाती हूँ जैसे जिसका बस का समय होता। उठाकर मुँह धुलवाकर …दूध देती हूँ फिर तैयार करती हूँ… जूते पॉलिश करना… स्कूल ड्रेस प्रेस करना सब इनकी मम्मी कर जाती पर कभी नहीं कर पाती तो वो भी मैं कर देती हूँ … बस यूँ समझो बेटा अपने बच्चों के बाद फिर से बच्चों वाली बन गई हूँ ।” कहकर वो हँसने लगी।
“वाह आँटी ….आप तो अभी भी एक दम चुस्त दुरुस्त है… इतना कुछ कर लेती हैं ।” निवेदिता ने कहा
“अरे बेटा मुझे सब चाची बोलती वही बोलो ये आँटी वाँटी परदेसी लगता…। चलो अब घर जाती हूँ मेरा बेटा अभी घर में सो रहा उसके लिए चाय बना दूँ।कभी फ़ुरसत मिले तो घर आओ… मेरी बहू से भी मिलना हो जाएगा वो चार बजे तक घर आ जाती है… यहाँ से दूर स्कूल है इसलिए वक़्त लग जाता।”हँसते मुस्कुराते बोल कर वो चली गई
“इस उम्र में भी बिना किसी शिकवे शिकायत के चाची कितने प्रेम से सब काम कर रही… एक बार भी बहू की शिकायत नहीं की …. नहीं तो ऐसी कौन सास होगी जो बहू की बुराई ना करे कि इस उम्र में भी काम करवाती रहती।”निवेदिता सोचते हुए घर आ गई
संजोग से दोनों के घर काम करने वाली एक ही थी कमला। दोनों इस बात से अंजान थी।
“अरे कमला वो जो बगल वाले ब्लॉक में एक चाची जी है तू जानती उनको..?” निवेदिता ने पूछा
“कुसुम चाची की बात कर रही हो क्या भाभी?” कमला ने पूछा
“नाम तो नहीं पता पर अपने पोते पोतियों को बस स्टॉप पर छोड़ने आई तब देखी थी…. कमाल की महिला है इतनी उम्र में भी फुर्ती से सब कर लेती दो छोटे बच्चों को देखना… हम से नहीं हो पाता पर वो तो वक़्त पर खड़ी रहती।”
“अरे भाभी …कुसुम चाची के घर कितने साल से काम कर रही हूँ… पोती अब आठ साल की हो गई जब छोटी थी तो उनके पास ही रहती थी … बहुत नख़रा करती थी खाने में… मैंने देखा है चाची तब उसको जो भी खिलाती दूध रोटी या दाल रोटी ही क्यों ना हो पहले उसे फूला देती फिर मिक्सी में ग्राइंड कर महीन करती फिर छान कर खिलाती थी…. इतना तो उसकी माँ नहीं करती थी… कितनी बार देखा वो बच्चों को बैठा कर पढ़ातीं और होमवर्क भी करवाती हैं….मम्मी तो सुबह ही निकल जाती जो शाम में आती… स्कूल से आकर भी बच्चे दादी के साथ ही रहते … सच कहूँ तो इतना करने वाली दादी नहीं मिलेगी … सुनयना भाभी … उन बच्चों की मम्मी बहुत लकी है… स्कूल जाती निश्चित रहती की घर में बच्चों और पति को देखने के लिए सासु माँ जो रहती। कभी आप मिल आओ… शाम में जाना तो भाभी से भी मुलाक़ात हो जाएगी।” कमला ने कहा
निवेदिता की सासु माँ कभी उसके पास नहीं रही क्योंकि उन्हें लगता था इसके पास रहूँगी तो ये बच्चों को छोड़कर बाहर जाएँगी और मुझे बच्चों को सँभालना पड़ेगा ।इसलिए उसे दोनों सास बहू का तालमेल देखने की उत्सुकता उसी दिन शाम को कुसुम चाची के घर खींच ले गई ।
कुसुम चाची निवेदिता को देख कर अपनी बहू को बुलाई और परिचय करवाया ।
“अरे आइए आइए… माँ बता रही थी आज आपसे मिली थी…. मुझसे ज़्यादा तो यहाँ लोग माँ को पहचानते हैं… नौकरी की वजह से घर पर कम रहती हूँ फिर घर आने के बाद बस घर पर ही ध्यान रहता … मेरे नहीं रहने पर माँ जितना कर देती मेरे लिए तो वो बहुत हो जाता इसलिए आने के बाद उन्हें बस आराम करने देती हूँ।आप बैठ कर माँ से बातें कीजिए मैं बस रसोई में जाकर जरा चाय बना दूँ … माँ को इस वक़्त चाय पीने की आदत है…।” कहकर सुनयना चली गई
कुसुम चाची सोफे के पास लगे बिस्तर पर बच्चों के संग बैठी हुई थी…बच्चों के खिलौने के साथ वो भी बच्ची बन खेल रही थी।
“चाची सुनयना भाभी बहुत लकी है जो आप जैसी सास मिली उनको ..और तो और उनके बच्चों का उनसे बेहतर ख़्याल रखने वाली दादी मिली ।” निवेदिता ने कहा
सुनयना चाय नाश्ता लेकर आई तो कुसुम चाची ने कहा,” इसके आने के बाद मेरा कोई काम नहीं होता….सब सोचते हैं बहू को कौन इतना आराम देता है… पर सच कहू बेटा मैं तो अपने पोते पोतियों के लिए करती हूँ…. बहू अगर नौकरी करते हुए इन्हें सँभालती तो ना खुद स्वस्थ्य रहती ना मेरे पोते पोती…पहले जब मैं कुछ नहीं करती थी तो ये हड़बड़ी में सब कर के जाती थी… कितनी बार बैग में टिफ़िन रखना भूल जाती कभी बोतल में पानी नहीं भरती…कभी दिन के हिसाब के कपड़े प्रेस नहीं होते थे… देख रही थी ना वो खुश रह पा रही ना बच्चे… उसके बाद मैं मदद करने लगी… सबकुछ पैक कर के रख देती है … बच्चों को तैयार ही तो करना होता फिर बस स्टॉप पर छोड़ना… बाकी तो ये सुबह उठ कर कर ही लेती…घर में रहती हूँ कैसे आँखें बंद कर बैठी रहूँगी… बेटा भी मेरा बहू भी मेरी और ये पोते पोती भी मेरे… किसी गैर के लिए तो कुछ करती नहीं हूँ ।लकी का तो नहीं पता पर इतना कह सकती हूँ…… जब तक आप बहू और पोते पोतियों को अपना नहीं समझेंगे तो वो कैसे आपको अपना समझ सकते… बस मैं तो यही सोच कर करती हूँ ।” कुसुम चाची ने कहा
“हम बहुत लकी है जो हमारे पास इतना प्यार करने वाली दादी है.. आप सबसे अच्छी हो दादी माँ….जो मम्मा से ज़्यादा हमारा ध्यान रखती हो।” दोनों पोते पोती दादी में चिपक कर बोले
“ये सच कह रहे हैं निवेदिता जी… हम सही में बहुत लकी है जो हमारे पास अच्छी सोच वाली सासु माँ है।” सुनयना पास आकर बोली
काश मेरे बच्चों के पास भी ऐसी दादी होती…. निवेदिता सोच रही थी और उसके बच्चे कुसुम चाची के साथ मस्ती कर रहे थे ।
सब की क़िस्मत सुनयना जैसी नहीं होती…. अगर दोनों में अच्छा तालमेल हो तो बच्चों को अच्छी दादी मिल जाती.. और इतना समझने वाली सास।
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रश्मि प्रकाश