‘ बेड़ियाँ नहीं, कवच है ‘ –  विभा गुप्ता

” ये तू क्या कह रही नीरू?तू उस बेवकूफ़ के लिए अपना घर छोड़ देगी?तेरा दिमाग तो ठीक है ना?” निर्मला ने आश्चर्य से नीरु से पूछा। 

        “हाँ-हाँ,  मेरा दिमाग ठीक है।तू चाहे जो भी कह, लेकिन मैं तो उससे बहुत प्यार करती हूँ।अगर पापा नहीं मानेंगे तो मैं घर छोड़ दूँगी और ये मेरा अटल फ़ैसला है।” नीरू ने तैश में आकर जवाब दिया तो निर्मला बोली, ” और तेरे पापा का प्यार, घर की मान-मर्यादा कुछ भी नहीं है?” 

       ” वो सब मेरे पाँव की बेड़ियाँ हैं।” कहते हुए नीरू ने अपनी किताबें ली और पैर पटकती हुई निर्मला के घर से निकलकर ऑटो में बैठ गई।

           अगले दिन उसने अपनी दादी और पापा को बताया कि वह अपने ही कॉलेज़ के एक एक्स स्टूडेंट अमित नाम के लड़के से प्यार करती है और उसी से विवाह करेगी।सुनकर पिता तो बहुत क्रोधित हुए लेकिन दादी ने बात संभाला, अपने बेटे को समझाया कि एक बार लड़के से मिलने में क्या हर्ज़ है।फिर नीरू से बोली कि तू कल उसे घर बुला ले, हमें सही लगा तो शादी के लिए सहमति दे देंगे,नहीं जँचा तो फिर तू उससे हमेशा के लिए संबंध तोड़ लेगी।

         नीरू ने तुरन्त ‘ ठीक है ‘ कह दिया और अमित को फ़ोन करके बोली कि मेरे पापा तुमसे मिलना चाहते हैं,कल शाम सात बजे घर आ जाना।साथ ही उसने अपना एड्रेस भी उसके नंबर पर मैसेज कर दिया।




          अगले दिन सुबह से ही वह अपने को तैयार करने में लगी हुई थी।घर के महाराज को भी अमित के पसंद की डिश बनाने की हिदायत देती जा रही थी।शाम के सात से साढ़े सात बज गए, फिर आठ, नौ और रात के ग्यारह बजने के बाद भी जब अमित नहीं आया तो दादी- पापा बिना कुछ खाये सोने चले गये।इस बीच उसने कई बार अमित को फ़ोन भी किया पर हर बार स्वीच ऑफ़ बताने से उसे बहुत गुस्सा आया और उसने तय कर लिया कि अब वह अमित से कभी नहीं मिलेगी।

             उसकी आँख अभी लगी ही थी कि उसके मोबाइल की घंटी बज उठी।फ़ोन अमित का ही था।घबराहट भरे स्वर में वह न आने की माफ़ी माँगने लगा तो उसका क्रोध और कुछ देर पहले खुद से किया गया वादा,दोनों हवा हो गये।उसने अमित को कल आने को कहा तो अमित बोला, ” सुनो नीरू,अब हमारे पास बिल्कुल भी वक्त नहीं है।मुझे दुबई में एक जाॅब का ऑफ़र मिला है।आज सुबह के ही पाँच बजे की फ़्लाइट है।तुम तुरन्त अपना सामान बाँधकर एयरपोर्ट आ जाओ, मैं तुमसे वहीं मिलता हूँ।” 

” लेकिन पापा को बिना बताए कैसे..”  

” अरे यार, वहाँ पहुँचकर बता देंगे ना, और हाँ, थोड़े पैसे तथा अपने कुछ जेवर भी साथ रख लेना।शुरुआत में तो समस्यायें आयेंगी ही,तब तुम्हें उनसे हेल्प हो जाएगी।”                                                 कच्ची उम्र में जब प्यार का नशा हावी हो तो सभी अपने दुश्मन नज़र आने लगते हैं और सही-गलत की समझ भी न जाने कहाँ चली जाती है।नीरू को भी उस वक्त अमित के साथ एक सुनहरा भविष्य दिखाई देने लगा था और वह उसके साथ भाग जाने का तय करके एक ट्राॅलीबैग में अपने कपड़े रखने लगी।पास में जितने भी रुपये रखे थे ,वो सब उसने अपने पर्स में ठूँस लिए, एटीएम कार्ड सहित हाथ-कान की जो भी ज्वेलरी उसके पास थी, सब रखकर उसने बैग में लाॅक लगाया और बाहर जाने के लिए वह धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगी।

             ड्राॅइंग रूम में लगी अपनी मम्मी की तस्वीर के आगे वह रुक गई।उसे याद आया,मम्मी अक्सर कहा करती थीं, ” सीता जी ने लक्ष्मण -रेखा पार करके जो गलती की,उसकी सज़ा उन्हें उम्र भर भुगतनी पड़ी थी।” कहीं मैं भी तो कोई गलती… नहीं- नहीं….। प्यार करना कोई गलती नहीं है और वह अपने विचारों को झटक कर साइड टेबल पर रखी दादी की तस्वीर को निहारने लगी।दसवीं बोर्ड की परीक्षाएँ शुरु होने ही वाली थी।उस वक़्त वह स्कूल में थी कि अचानक मम्मी को हार्ट अटैक आ गया और वह अपनी नीरू से बिना मिले ही हमेशा के लिए चली गयीं।उस वक्त दादी अपना दमा और गठिये के दर्द को भूलकर उसकी माँ बन गईं थी।समय पर उसका टिफ़िन देना, रात को अपने सामने ही दूध पिलाना और उसके सिर की मालिश करना तो वो कभी नहीं भूलती थीं।सोचते हुए वह भावुक हो उठी लेकिन अमित…।अमित के बिना भी तो वह जी नहीं सकती।




              अपना ट्राॅली बैग सरकाते हुए वह दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि पापा की फोटो देखकर वह ठिठक गई।चौथी कक्षा में जब वह प्रथम आई थी तो स्कूल से मिली ट्राॅफ़ी के साथ उसके पापा ने ये तस्वीर खिंचवाई थी।पापा जब भी इस तस्वीर को देखते तो मम्मी से कहते, ” सुनयना, मुझे अपनी नीरू पर गर्व है।परिवार की मान-मर्यादा का ख्याल रखने वाली हमारी नीरू कभी कोई गलत काम नहीं करेगी।” पापा को याद करके उसकी आँखें भर आईं लेकिन अमित…वो भी तो बहुत प्यार करता है।एक झटके से उसने अपना बैग उठाया और जैसे ही घर की दहलीज़ पार करने के लिए अपना एक पैर बढ़ाया तभी उसके दिल में कसक-सी उठी।उसके चले जाने से दादी तो रो-रोकर मर जाएगी।पापा तो किसी मुँह नहीं दिखा पाएँगे।मेरे चले जाने की शर्मिंदगी से कहीं उन्हें हार्ट अटैक….।नहीं-नहीं, उसने तुरन्त आगे बढ़ाया हुआ अपना पैर पीछे कर लिया और तेज-तेज कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ती हुई अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर गिर पड़ी और फूट-फूट कर रोने लगी।क्षणिक आवेश में आकर वो अपने घर की मान-मर्यादा ही नहीं बल्कि अपनों के विश्वास को भी ठेस पहुंचाने जा रही थी।

              सुबह जब महाराज उसे चाय देने आया,वह नहीं जगी तो घबराकर उसने दादी को आवाज़ लगाई, ” बड़ी मालकिन, बिटिया…।” दादी ने नीरू का माथा छूकर देखा, बदन आग की तरह तप रहा था।उन्होंने महाराज को गर्म दूध में हल्दी डालकर लाने को कहा और स्वयं ठंडे पानी की पट्टियाँ उसके सिर पर रखने लगी।पापा तुरन्त डाॅक्टर को फोन करने लगे।यह सब देखकर उसे अपने कल के व्यवहार पर आत्मग्लानी होने लगी।न जाने कैसे वो अमित के बहकावे के आ गई थी।जो हमसे प्यार करते हैं वो हमेशा हमारा भला ही चाहते हैं और मर्यादा वही सुरक्षा-कवच जो हमें भावी परेशानियों से बचाता है।उसने जिसे बेड़ियाँ समझा, दरअसल वो तो दादी-पापा का प्यार था।

               दादी का स्नेह-स्पर्श पाकर उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी।कल रात उनकी लाडो घर की देहली पार करने वाली थी,इस बात से बेखबर दादी नीरू से कहती हैं, ” आराम कर, मैं हूँ ना तेरे पास,तेरा बुखार तो मिनटों में छू-मंतर हो जाएगा।” फिर बेटे से बोली, ” देख ब्रजेश ,हमारी नीरू को परिवार की मान-मर्यादा का कितना ख्याल है।” बेटी की तरफ़ देखते हुए पिता बोले, ” जी माँ, हमारी नीरू सचमुच सयानी हो गई है।”

         सच है, अपनी महत्वाकांक्षाओं के पीछे दौड़ते समय हमें अपनी मर्यादाओं का भी ख्याल रखना चाहिए क्योंकि ये बेड़ियाँ नहीं, एक सुरक्षा-कवच है।

    #मर्यादा 

 विभा गुप्ता 

 

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