” बेचारी शांति भरी जवानी में विधवा हो गई वो तो शुक्र है बेटे है उसके सहारे जी लेगी वरना क्या करती ये!” शांति के पति मानव की सर्पदंश से मौत के बाद गांव की औरतें आपस में बात कर रही थी।
” और नहीं तो क्या कुछ सालों में लड़का बड़ा हो जाएगा और सहारा बनेगा अपनी मां का लड़की होती तो पराए घर चली जाती ऊपर से दान दहेज की भी व्यवस्था करो!” दूसरी औरत बोली।
जितने लोग थे उतनी है बातें कर रहे थे । खैर शांति ने अपने बेटे अयांश की परवरिश में रात दिन एक कर दिया गांव में जमीन जायदाद भी थी थोड़ी बहुत उस पर शांति थोड़ा पढ़ी लिखी भी हुई थी तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। वक़्त के साथ अयांश बड़ा हुआ तो शांति ने उसे पढ़ने शहर भेज दिया।
“मां गांव में कुछ नहीं रखा तुम मेरे साथ शहर चलो अब तो मेरी नौकरी भी है और कंपनी ने मुझे घर भी दे रखा है!” इंजिनियर बनने के बाद नौकरी लगते ही अयांश मां से बोला।
और पुत्र मोह में शांति ने सारी जमीन बेच दी और बेटे के साथ शहर आ गई। शुरू में सब ठीक रहा हां वो बात अलग है कि शहर में गांव वाली बात कहां । फिर अयांश के कहने पर शांति ने पास के पार्क जाना शुरू कर दिया जिससे वक़्त कट जाता था उनका।
शांति ने अयांश की शादी उसकी पसंद की लड़की वीणा से करवा अपनी आखिरी जिम्मेदारी भी पूरी की।
वीणा ने आते ही घर की बागडोर अपने हाथ में ले ली। धीरे धीरे शांति पूरे घर से सिमट अपने कमरे में आ गई।बेटा भी अब कभी कभार ही शांति जी के पास आकर बैठता था। फिर भी वो खुश थी क्योंकि बेटा खुश था। लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन नहीं रही क्योंकि वीणा को गांव की शांति फूटी आंख ना सुहाती उसे अपनी सहेलियों के सामने शर्म आती गांव की सास का परिचय देते में।इसलिए उसने उन्हें किसी के आने पर कमरे से बाहर निकलने को ही मना कर दिया और बेटे ने भी उसका साथ दिया। शांति जी किससे कहती बस या तो अपने कमरे में बैठी रहती या पार्क चली जाती क्योंकि गांव में भी कुछ नहीं बचा था जो जिंदगी की सांझ इज्जत से काटने वहां चली जाती।
” आप किसी तकलीफ में हैं क्या?” एक दिन पार्क में बैठी शांति जी ये आवाज़ सुन चौंक गई।
” न…नहीं!” उन्होंने हड़बड़ा कर पीछे मुड़ कर देखा तो उन्हीं की सी उम्र के एक आदमी को खड़ा पाया।
” तो आपकी आंखों में ये आंसू क्यों? मैं अक्सर आपको यूंही उदास यहां बैठे देखता हूं क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं कुछ?” उस आदमी ने फिर कहा।
” माफ़ कीजियेगा मैं तो आपको जानती तक नहीं!” शांति जी अब तक संभल चुकी थी।
” जी मैं विक्रांत यही पास में रहता हूं रिटायर्ड हूं तो मन बहलाने को पार्क चला आता हूं!” उस आदमी ने परिचय दिया।
” आपका परिवार?” अचानक शांति जी के मुंह से निकला पर अजनबी से ज्यादा बात करना उचित ना समझ चुप हो गई।
” जी पत्नी का देहांत तो आज से दस साल पहले हो गया था दो बेटे हैं जो विदेश में रहते है। उन्होंने बहुत चाहा मैं भी वहां बस जाऊं पर मेरा मन नहीं लगा वहां पेंशन आती ही है घर भी अपना तो आराम से रहता हूं!” विक्रांत जी बोले।
शांति जी ने भी अपना परिचय दिया रोज मिलने के कारण धीरे धीरे वो दोस्त बन गए अब शांति जी पहले की तरह उदास नहीं रहती थी।
ऐसे ही एक साल बीत गया।
आज विक्रांत जी ने शांति जी से अपनी जीवनसंगिनी बनने का आग्रह किया जिसे शांति जी ने पहले तो ठुकरा दिया पर फिर विक्रांत जी के समझाने पर और अपने बच्चों की उपेक्षा का दर्द याद आने पर उन्होंने कल तक का वक़्त मांगा है। क्योंकि इतना बड़ा फैसला वो अकेले कैसे कर सकती थी। उन्होंने विक्रांत जी से भी कहा अपने बच्चों से बात करने को तो विक्रांत जी ने तभी अपने बच्चों से बात की वो तो खुश थे कि पापा को इस उम्र में अकेले नहीं रहना पड़ेगा उन्होंने वीडियो कॉल पर शांति जी से भी बात की और आश्वस्त हो गए।
घर आने के बाद….
” अयांश और वीणा मुझे तुमसे बात करनी है!” शांति जी अपने बच्चों से बोली।
” मां मैं थका हुआ हूं कल बात करते हैं!” अयांश अपने कमरे में जाता हुआ बोला।
” मैं शादी कर रही हूं पास की सोसायटी में रहने वाले विक्रांत जी से वो भी अकेले हैं और मैं भी यहां तुम लोगों के होते हुए भी अकेली ही हूं तो हम दोनों ने एक दूसरे का सहारा बनने का निश्चय किया है!” शांति जी एक सांस में बोल गई।
” क्या…? दिमाग खराब है आपका लोग क्या सोचेंगे हंसेंगे वो आप पर और हम पर भी इस उम्र में इश्क़ लड़ाते आपको शर्म नहीं आईं!” वीणा अचानक चिल्लाती हुई बोली।
” और नहीं तो क्या वीणा बिल्कुल सही बोल रही है!” अयांश ने बीवी की हां में हां मिलाते हुए कहा।
” कौन लोग… जिन लोगों के सामने तुम्हे मेरा परिचय देने में शर्म आती है? वो तो आधुनिकता का दम भरते हैं फिर उनकी सोच इतनी छोटी होगी क्या …. वैसे भी हम अपनी जरूरतें पूरी करने को शादी नहीं कर रहे बस अपना अकेलापन बांटने को कर रहे हैं!” शांति जी बोली।
” पर इस उम्र में ये सब क्या जरूरी है मां?” अयांश बोला।
” जरूरी ना होता अगर तुम मेरे साथ होते… मैने तुम्हारे पिता के मरने पर शादी इसलिए नहीं कि के कहीं तुम अकेले ना रह जाओ पर नहीं जानती थी एक दिन मैं ही अकेली हो जाऊंगी। मैने अपना फैसला तुम्हे बता दिया मानो या ना मानो तुम्हारी मर्जी है कल हम मंदिर में शादी कर लेंगे उम्मीद है जैसे मैं तुम्हारे हर फैसले में साथ रही तुम भी रहोगे बाकी तुम्हारी मर्जी ।” शांति जी दृढ़ता से बोली और विक्रांत जी को हां कहने को फोन करने लगी।
अयांश और वीणा एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
दोस्तों हर किसी को अपनी जिंदगी खुशी खुशी जीने का हक है । मां बाप अपने बच्चों की खुशी के लिए अपनी जवानी अपने सपने यहां तक कि अपनी जरूरतें भी न्योछावर कर देते पर जब वहीं बच्चे बड़े हो अपने मां बाप को ना समझे तो उन मां बाप को पूरा हक है अपने फैसले खुद लेने का और औलाद से ऊपर उठ अपनी खुशी देखने का।
ये मेरे किसी परिचित की कहानी है जो मैं आपके साथ शेयर कर रही। क्या आप उनके फैसले को सही मानते हैं?
आपके जवाब के इंतजार में आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
VD