ज़िंदगी चलने का नाम – मणि शर्मा : Moral Stories in Hindi

“अब मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकती ,हर समय तुम्हारी मम्मी के तानों से परेशान हो गयी हूँ “,कहते कहते मीरा साहिल के सामने रो पड़ी .

“नहीं कर सकती तो जो चाहो करो ,जहाँ चाहो जाओ मैं भी रोज़ रोज़ की चिक चिक से तंग आ गया हूँ “,चीखता हुआ साहिल कमरे से बाहर निकल गया .

मीरा रोती रही पर कोई भी उसका हाल जानने के नहीं आया .

सास ससुर बाहर टेलीविजन पर मैच देख रहे थे .

मीरा सोच रही थी किस आदमी के लिए उसने जीवन के बेशक़ीमती चार साल बर्बाद कर दिए .

अपने परिवार के विरुध्द जाकर मीरा ने साहिल से शादी की थी . पापा को साहिल पसंद नहीं था उससे भी ज़्यादा उनका कहना था

कि इतनी पढ़ाई करने के बाद मीरा को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए .

पर मीरा की आँखों पर तो साहिल के प्यार की पट्टी ऐसी बँधी थी कि उसे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था .

उसे तो बस साहिल के साथ रहना था . अच्छा ख़ासा पुश्तैनी कपड़ों का व्यापार था ,छोटा परिवार था ,तो फिर उसे क्या करना था.

पापा ने बहुत समझाया कि पढ़ाई के यूँ बर्बाद मत करो कुछ नहीं तो अपने अस्तित्व अपने सम्मान के लिए ही कुछ करो ,

यह समय निकल जाएगा तो पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाएगा . पर सब बेकार हुआ मीरा ने साहिल से शादी कर ली.

कुछ दिनों में ही मीरा का सामना सच से हो गया .साहिल की माँ बहुत ही कठोर स्वभाव के साथ पैसों की लालची भी थीं .

उनके हिसाब से उनका बेटा कौड़ियों के भाव बिक गया ,बिना दान दहेज के बहू ले आया था . दिन रात के तानों ने मीरा का जीना मुश्किल कर दिया था ,

और साहिल के प्यार का रंग भी उतर गया था . जो शादी से पहले उसके आगे पीछे घूमता था, उसे जरा भी परेशान नहीं देख पाता था,

अब उसे मीरा के साथ बात करना भी अच्छा नहीं लगता ,हाँ उसके शरीर पर घाव ज़रूर देता जो मीरा की रूह भी घायल कर देते..

अब वह भी अपनी मम्मी की बातों में आकर उसे ताने मारने लगा था .ससुर कुछ कहते तो दोनों उन्हें चुप करा देते .

मीरा को लगने लगा था कि उसने पापा का कहना न मान कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी .

पापा ने कई बार फिर मीरा को कुछ काम करने को प्रेरित किया पर अब मीरा की परेशानी उसे अवसाद की ओर धकेल रही थी .

आज भी ऐसा ही हुआ था ,रोज़ की तरह साहिल की मम्मी रसोई में खाने को लेकर उसे उल्टा सीधा सुना रहीं थी ,

यहाँ तक कि वह मीरा के मम्मी पापा के लिए भी भला बुरा कह रहीं थीं तो वह कमरे में आकर साहिल के सामने रो पड़ी .

पर साहिल का बुरा व्यवहार उसे अंदर तक तोड़ गया .

मन ही मन एक कठिन निर्णय लेकर वह घर से बाहर निकलने लगी .

“कहाँ जा रही हो “,पीछे से आई साहिल की कठोर आवाज़ को अनसुना कर वह बाहर आ गई .खुले आसमान की ओर

देख कर उसे बहुत ही सुकून की अनुभूति हुई .मीरा लगा मानो आसमान कह रहा हो ,

“ज़िंदगी ठहरने का नहीं ,आगे बढ़ने का नाम है “और मीरा ने आत्मविश्वास के साथ अपने कदम आगे बढ़ा दिए .

 

मणि शर्मा

आगरा

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