जीवन के 70 बसंत पूरे करने के बाद जीवनलाल पूरी तरह से प्रभु भक्ति में लीन हो गया। चारों बेटे और दो बेटियों की शादी जीवनलाल ने बड़ी धूमधाम से की। जीवन लाल ने अपने जीवन में खूब संपत्ति कमाई । जिसे उसने सभी बच्चों में बराबर बराबर बांट दिया। उसका एक बेटा विदेश नौकरी करने के लिए चला गया और तीन बेटे वही रहे। परंतु वे तीनों बेटे जीवन लाल द्वारा दी हुई संपत्ति के हिस्से से खुश नहीं थे हर कोई एक दूसरे पर कम ज्यादा को लेकरआरोप लगा रहा था। । यह विवाद जीवन लाल को भीतर ही भीतर खाए जा रहा था । वह मन ही मन सोचता इससे अच्छा होता ‘ मैं इनके लिए कोई भी संपत्ति इकट्ठा ना करता ।’
आज इस संपत्ति को लेकर ही तीनो भाई आपस में झगड़ रहे हैं। विवाद इतना बढ़ गया कि तीनों ने जीवन लाल को दोषी मानकर उसे खाना देना बंद कर दिया। इतनी बड़ी संपत्ति का मालिक आज तीनों बेटों के बीच भूखा बैठा हुआ था। बहुएं एक दूसरे पर अपनी जिम्मेदारी थोप आपस में विवाद करती रहती।
बड़ी बहू अपने पति से कहती, देखो जी! अब बहुत हुआ, अब मुझ से इनका खाना नहीं बनता ।मैं थक जाती हूॅं। मझोली बहू से कहो, इनका काम किया करें , बंटवारा तो सभी में आधा-आधा हुआ है, फिर सेवा मै की क्यों करूं?
मझौली बहू भी विदेश में बैठी हुई छोटी बहू के लिए उलाहना मारती रहती ,देवर जी भी सारी जिम्मेदारियां छोड़कर, यहां से विदेश भाग गए और हम हैं कि इन जिम्मेदारियों में पीस रहे है।’
यह सब सुनकर एक दिन जीवन लाल घर से बाहर निकल गया। उसने अपने छोटे बेटे से बात की और वहीं विदेश में उसके पास चला गया। छोटा बेटा और बहू दोनों ही एक बड़ी कंपनी में नौकरी करते थे। उन्होंने उनके लिए एक सेविका नियुक्त कर दी जो पूरा दिन बाबूजी की देखभाल करती। छोटे बेटे की पत्नी भी बाबूजी का बहुत ध्यान रखती इसे देखकर वे बहुत खुश रहते। अब जीवन लाल के जीवन में फिर से एक रौनक आ गई थी। उनकी वही नियमित दिनचर्या सुबह उठना, स्नान करना ,प्रभु भक्ति में लीन हो जाना ,रामायण पाठ करना। खाना खाने के बाद वे पक्षियों के लिए कुछ रोटियों के टुकड़े बाहर डालते । धीरे-धीरे वहाॅं पक्षी इकट्ठा होने लगे ।
पक्षी रोज भोजन करने आते। एक बहुत अच्छा संबंध बन गया था जीवन लाल और उन पक्षियों का। वे घंटों एकांत में पक्षियों से बातें करते। परंतु जब भी खाली समय होता उसे अपने बच्चों की याद आती।
वह हमेशा अपनी छोटी बहू से उनके बारे में पूछता बेटी’ देश में सब ठीक हैं , तुम पता करो ।’
यह देखकर छोटी बहू को बहुत आश्चर्य होता, वह सोचती बाबू जी का ह्रदय कितना कोमल है, सभी ने इनके साथ कितना बुरा किया फिर भी वे उनके बारे में ही सोचते रहते हैं ,एक समय ऐसा था जब पूरे घर में बाबूजी की चलती थी और आज वे असहाय और कमजोर हैं, जिंदगी की धूप छांव हर किसी के जीवन में आती है।’
ये सुनकर उसकी आंखों में आंसू आ जाते। पूरा एक वर्ष बीत चुका था ।
अब जीवनलाल को अपने देश की याद आ रही थी। वह अपने बच्चों पोते, पोतियो और बेटियों से मिलना चाहता था। उधर बेटों को भी एहसास हो गया था कि उन्होंने अपने पिता के साथ कितना गलत किया। सभी बाबूजी से माफी मांग कर उन्हें घर वापिस लाना चाहते थे। अब बाबूजी फिर अपने भरे पूरे परिवार में वापस आ गए । उनके जीवन में फिर छांव आ गई ।
#कभी धूप कभी छांव
अनीता चेची,मौलिक रचना