पति के देहांत के बाद प्रीति जी अपने बेटे कमल के पास गुरुग्राम आ गई थी। बेटा अभी कुँवारा था तो बेटा जब ऑफिस चला जाता तो घर खाली रह जाता, इसीलिए शाम को नियमित रूप से सोसायटी के पार्क मे टहलने जाती थीं।
एक दिन टहलकर पार्क के बेंच पर बैठ आराम कर रही थीं तभी उनके हमउम्र का एक आदमी उनके बगल मे आकार बैठ गया। तभी प्रीति जी की आंखें चश्में के पीछे छिपी मोटी आंखों से टकराई, लगा जैसे पहले भी कभी उन्हें देखा था| बहुत सोचा कहाँ पर कुछ याद नहीं आया। पर बैठेने वाले का चेहरा प्रीति जी को देखते ही फक पड़ गया।
वो श्याम जी थे उन्होंने प्रीति जी को फौरन पहचान लिया| वो समझ गए प्रीति जी ने उन्हें नहीं पहचाना| प्रीति जी के चेहरे और कद काठी पर वक्त के हस्ताक्षर कहीं भी नहीं थे, फर्क सिर्फ बालों में झांकते कुछ चांदी के तार और आंखों पर चढ़ा पतला सा चश्मा!
श्याम जी का दिल जोर से धड़क रहा था| 25 साल पहले जिसको पहली बार देखने पर उनको लगा था जीवन साथी पाने का उनका इंतजार पूरा हुआ, आज उसे सामने पाकर वो समझ नहीं पा रहे थे, खुश हो या दुखी।
काफी देर बैठे रहे , प्रीति जी फोन पर बात कर रही थी शायद उसके बेटे का फोन था जो उसके लिए चिंतित लग रहा था ।
श्याम जी को एक पल के लिए उनसे ईर्ष्या भी हुई।
श्याम जी ने ही बातों का सिलसिला शुरू किया, इसी सोसायटी मे रहती हैं? आवाज़ सुनते ही प्रीति जी धक सी रह गई, “अरे आप”! प्रीति जी ने आश्चर्य से देखा|
“तो तुमने पहचान लिया?” श्याम जी बोले|
हल्के से मुस्कुराते हुए प्रीति जी ने उत्तर दिया “कैसे ना पहचानती?”
“आपकी पत्नी नहीं आईं? सुना था बहुत पैसे वाले घर की इकलौती बेटी बहुत दहेज लाई थी। चार बेटियों के मेरे पिता उतना खर्च नहीं कर सकते थे, इसलिए आपने मुझे रिजेक्ट कर दिया था” इतने सालों का दबा गुबार प्रीति जी ने एक सांस में ही निकाल दिया।
“ये किसने कहा कि मुझे दहेज चाहिए था”? श्याम जी आश्चर्य से बोले|
प्रीति जी गुस्से से बोली “क्यूं? आपकी भाभी ने दहेज की लिस्ट नहीं भिजवाई थी क्या?”
“दहेज की लिस्ट?” श्याम जी आवाक रह गए|
“जी हाँ लंबी चौड़ी दहेज की वो लिस्ट जिसे पूरा करने की सामर्थ्य मेरे पिता में नहीं थी” प्रीति जी बोली और बोलती चली गई|
“मुझे भी यकीन नहीं था कि उसमें आपकी भी सहमति होगी परन्तु आपकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न होने पर हमारे संशय की गुंजाइश नहीं रही। आपके साथ गुजारे उस एक दिन (जब आप मुझे देखने आए थे) ने मेरी दुनिया बदल दी थी| मैं अपने आप को सातवें आसमान पर समझ रही थी, हमारा रिश्ता टूटने पर ऐसा लगा जैसे किसी ने बच्चे का प्रिय खिलौना छीन कर किसी और को दे दिया हो| बहुत मुश्किल से उबर सकी” बहुत दुखी होकर प्रीति जी ने बताया।
“आप बताएं अपने परिवार के बारे में, अपनी पैसे वाली पत्नी और बच्चे?” प्रीति जी ने पूछा?
श्याम जी ठंडी सांस लेकर बोले, “सुमी भाभी की रिश्ते की बहन थी| बाद में पता चला सिर्फ अपने साथ बहुत बड़ा दहेज लाई थी, संस्कार और सभ्यता उससे कोसों दूर थे| अपने अहम और अहंकार के आगे कभी किसी को कुछ समझा नहीं| रोज़ रोज़ के झगड़ों से सबका जीना हराम हो गया था, मेरी, मां बाबा और मेरी जिंदगी घुट कर रह गई”।
एक साल बाद रिया पैदा हुई, उसके आने से मुझे लगा शायद तुम्हें भूल सकूं| तभी एक एक्सीडेंट में सुमी नहीं रही। मैंने अपने आप को नन्ही रिया और बिजनेस के हवाले कर दिया| मां बाबा ने उसे संभाल लिया, जीवन मूल्यों का मान करना सिखाया| पूरी तरह से संस्कारी बनाया, विदेश में पढ़ने के बावजूद भी वो पूरी तरह से भारतीय है। दिल्ली के बड़े हस्पताल में इंटर्नशिप कर रही है। जब से बड़ी हुई है उसमें मुझे तुम्हारी छवि दिखाई दी, वही सौम्यता, वही भोलापन”।
“आज तुम मिल ही गई हो तो तो मैं ये कनफेस करता हूँ| मैंने जिन्दगी में सिर्फ तुमको ही चाहा था।”
“तेरे बिना जिन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं
तेरे बिना जिन्दगी भी जिन्दगी तो नहीं “
श्याम जी ने सकुचाते हुए कहा “मैं डरता हूँ कहूँ या नहीं, सोच रहा हूँ एक बार चुप रह कर जिन्दगी बरबाद कर चुका हूँ, अब नहीं| तुम्हे अपने घर लाने का अरमान पूरा नहीं कर सका, क्या मेरी बेटी को अपनी बहू बनाकर मुझे माफ कर दोगी”?
प्रीति जी ने कहा मैं तो तैयार हूँ बस बेटा तैयार हो जाए अगले सप्ताह अपने बेटे को लेकर आपके घर आती हूँ।
श्याम जी बोले, “अरे! कैसे बातों-बातों मे सूरज डूब गया पता भी नहीं चला और शाम हो गई । चलो अब घर चलते हैं। अगले सप्ताह तुम्हारा इंतजार करूंगा।
दोनों अपने- अपने घर को लौट चुके थे।
अगले सप्ताह रविवार प्रीति जी अपने बेटे के साथ जाकर सीधे सगाई कर आई। आज श्याम जी की बेटी उनकी बहू बन प्रीति जी के घर आ गई है।
दोस्तों! कभी-कभी एक चुप की वजह से इन्सान की जिंदगी बदल जाती है| ऐसा कभी ना होने दें, जिन्दगी आपकी फैसला किसी और का।
कुमुद मोहन
सूपर
सुपर